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Saturday, 13 December, 2025
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बांग्लादेश चुनाव और BNP के तारिक रहमान की वापसी—क्यों जमात-ए-इस्लामी दोनों के लिए अहम कड़ी है

बांग्लादेश में तारिक रहमान किससे इतना डरते हैं कि वह न तो अपनी बीमार मां से मिलने घर आ पा रहे हैं और न ही अहम चुनाव से पहले अपनी पार्टी की कमान संभाल पा रहे हैं?

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आज बांग्लादेश में सबसे अहम सवाल का जवाब एक और सवाल पर टिका है. हर कोई पूछ रहा है कि क्या अगले साल फरवरी की शुरुआत में राष्ट्रीय चुनाव होंगे.

बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि राष्ट्रीय चुनाव की संभावित तारीख 8 फरवरी 2026 हो सकती है. चीफ एडवाइज़र ऑफस के एक अधिकारी ने द बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा था, “8 फरवरी से ठीक पहले दो सरकारी छुट्टियां हैं, इसलिए शहरों में रहने वाले मतदाता, खासकर नौकरीपेशा लोग, अपने गृह जिलों में जाकर वोट डाल सकेंगे.”

इसके बाद स्थानीय प्रेस ने बताया कि चुनाव 8 से 14 फरवरी के बीच होने की संभावना है. अब बांग्लादेश चुनाव आयोग ने अगले राष्ट्रीय चुनाव की तारीख 12 फरवरी घोषित की है.

इस घोषणा को लेकर बांग्लादेश में कुछ संदेह भी है, क्योंकि इससे पहले भी राष्ट्रीय चुनाव टाले जा चुके हैं. दरअसल, देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) चुनाव में देरी को लेकर अंतरिम सरकार से टकराव की स्थिति में है.

और फिर दूसरा सवाल है: बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान ढाका वापस क्यों नहीं लौट रहे हैं?

रहमान की मां और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया 23 नवंबर से गंभीर रूप से बीमार हैं और उन्हें ढाका के एवरकेयर अस्पताल में भर्ती कराया गया है. राष्ट्रीय चुनाव भी नज़दीक हैं. इसके बावजूद रहमान लंदन में अपने स्वैच्छिक निर्वासन से वापस नहीं लौटे हैं.

तारिक रहमान की ढाका वापसी और बांग्लादेश में अगले राष्ट्रीय चुनाव का भविष्य, दोनों एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए नज़र आते हैं.

रहमान किससे डरते हैं?

रहमान की लगातार गैर-मौजूदगी ने देश के बाहर बांग्लादेश पर नज़र रखने वालों के बीच भी चर्चाएं तेज़ कर दी हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर रहमान ढाका लौटते हैं तो उनकी जान को खतरा हो सकता है.

2 दिसंबर को गृह मामलों के सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एमडी जहांगीर आलम चौधरी ने बीएनपी नेता को उनकी सुरक्षा के लिए ज़रूरी हर तरह का सहयोग देने का भरोसा दिलाया था.

बीएनपी स्थायी समिति के सदस्य सलाहुद्दीन अहमद ने प्रेस से कहा था, “मुझे भरोसा है कि बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान नवंबर के भीतर देश लौट आएंगे.”

6 अक्टूबर को, करीब 20 साल में अपने पहले आमने-सामने इंटरव्यू में रहमान ने बीबीसी बांग्ला से कहा था कि वह लौटने की योजना बना रहे हैं.

उन्होंने कहा था, “वक्त आ गया है, अगर अल्लाह ने चाहा तो मैं जल्द लौटूंगा.”

29 नवंबर तक उन्होंने अपना रुख बदल लिया.

रहमान ने कहा, “इस संवेदनशील मामले से जुड़े हर पहलू को सार्वजनिक करने की एक सीमा होती है. हमारा परिवार उम्मीद बनाए हुए है कि जैसे ही राजनीतिक हालात अनुकूल होंगे, अपने वतन लौटने के लिए चला आ रहा लंबा और बेचैन इंतजार आखिरकार खत्म होगा.”

उन्हें दूर रखने वाले कारण क्या हैं? अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद उनके खिलाफ दर्ज ज्यादातर मामलों में उन्हें बरी कर दिया गया है. इनमें 21 अगस्त 2004 का ग्रेनेड हमला मामला भी शामिल है, जिसमें रहमान और 18 अन्य लोगों को पहले उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई थी.

रहमान की राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना इस समय भारत में हैं और इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने उन्हें मौत की सज़ा सुनाई है, जबकि उनकी पार्टी की सभी राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध बना हुआ है.

बांग्लादेश के भीतर रहमान किससे इतना डरते हैं कि वह न तो अपनी बीमार मां से मिलने घर आ पा रहे हैं और न ही अहम चुनाव से पहले अपनी पार्टी की कमान संभाल पा रहे हैं?

जमात का उभार

बीएनपी, जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, नेशनल सिटिजन पार्टी और अन्य पंजीकृत पार्टियां 300 एकल-सदस्यीय संसदीय सीटों के लिए उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने में जुटी हैं और चुनाव कार्यक्रम जल्द घोषित किया जा सकता है.

लेकिन जो लोग चाहते हैं कि बांग्लादेश फिर से संसदीय लोकतंत्र की ओर लौटे, उनके मन में एक गहरी चिंता है कि कहीं चुनाव हों ही न. इसकी वजह है बांग्लादेशी संस्थानों पर जमात-ए-इस्लामी की मजबूत पकड़.

जमात की छात्र इकाई, बांग्लादेशी इस्लामी छात्र शिबिर ने सितंबर में प्रतिष्ठित ढाका विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में चौंकाने वाली जीत हासिल की. इसके बाद अन्य शैक्षणिक संस्थानों में भी इसी तरह की जीत हुईं, जिससे दुनिया को बांग्लादेश के समाज और राजनीति में जमात के बढ़ते प्रभाव का एहसास हुआ.

7 जनवरी 2024 को हुए बांग्लादेश के पिछले संसदीय चुनावों में जमात को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था. 1 जून 2025 को जाकर बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को उसका पंजीकरण बहाल करने का आदेश दिया.

हालांकि, ढाका पर नज़र रखने वालों के लिए शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से जमात का उभार रुकने वाला नहीं दिखता.

विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की पुष्पा कुमारी ने लिखा, “बांग्लादेश में पार्टी की पहचान एक उभरते ‘इस्लामिस्ट लेफ्ट’ के जरिए बदली जा रही है, जो इस्लामी सिद्धांतों को सामाजिक और आर्थिक न्याय, समावेशन और नागरिक अधिकारों के विस्तार के साथ जोड़ता है.”

कुमारी ने साउथ एशियन नेटवर्क ऑन इकोनॉमिक मॉडलिंग द्वारा किए गए हालिया राष्ट्रीय युवा सर्वे का हवाला देते हुए लिखा कि 35 साल से कम उम्र के 39 प्रतिशत मतदाता बीएनपी का समर्थन करते हैं, जबकि करीब 22 प्रतिशत मतदाता अब जमात का समर्थन कर रहे हैं.

इसके बावजूद, जमात बांग्लादेश में चुनावों में देरी की कोशिश कर रही है, जिससे उसका पूर्व सहयोगी बीएनपी नाराज है. सलाहुद्दीन अहमद ने 20 सितंबर को ढाका में हुए एक युवा संवाद के दौरान चुनाव में देरी को लेकर जमात से सवाल किया.

अहमद ने कहा, “कुछ अखबारों में सुर्खियां छपीं कि जमात के नेताओं ने दावा किया है कि वे सरकार बनाएंगे और बीएनपी विपक्ष में बैठेगी, लेकिन यह फैसला कौन करता है? आप या जनता? अगर आप इतने आत्मविश्वास से भरे हैं, तो फिर चुनाव में हिस्सा क्यों नहीं लेते, एक के बाद एक बहाने बनाकर उसे रोकने की कोशिश क्यों कर रहे हैं?”

रहमान/चुनाव के लिए तैयार नहीं?

बांग्लादेश के कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चाहे जमात कितनी भी ताकतवर क्यों न हो गई हो, उसके पास चुनाव जीतने लायक जनसमर्थन अब भी नहीं है. इसलिए वह न तो चुनाव चाहती है और न ही रहमान की ढाका वापसी, जिससे बीएनपी का कार्यकर्ता वर्ग जल्दी चुनाव के लिए उत्साहित हो सके.

बांग्लादेशी अभिनेत्री और पत्रकार दीपान्विता रॉय मार्टिन ने फोन पर दिप्रिंट से कहा कि रहमान अपनी जान के डर से बांग्लादेश लौटने में देरी कर रहे हैं.

मार्टिन ने कहा, “रहमान और बीएनपी का एक वर्ग चुनाव चाहता हो सकता है, लेकिन जमात नहीं चाहती क्योंकि वह चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी. उसके पास जनमत नहीं है, भले ही उसने संस्थानों पर कब्ज़ा कर लिया हो. दिलचस्प बात यह है कि बांग्लादेश के भीतर कुछ और राजनीतिक खिलाड़ी भी इस वक्त चुनाव नहीं चाहते.”

अवामी लीग को फिलहाल चुनावों से बाहर रखा गया है. शेख हसीना सरकार के दौरान बांग्लादेश के गृह मंत्री रहे मोहम्मद अली अराफात ने दिप्रिंट से कहा कि यूनुस के लिए “एकतरफा, पहले से तय और छेड़छाड़ वाले चुनाव” के साथ आगे बढ़ना मुश्किल होगा.

उन्होंने कहा, “सरकार और कानून लागू करने वाली एजेंसियां देशभर के 40,000 मतदान केंद्रों पर शांतिपूर्ण प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए बहुत कमज़ोर हैं.”

12 दिसंबर को अराफात की यह बात सच साबित होती दिखी. ढाका-8 सीट से संभावित निर्दलीय सांसद उम्मीदवार शरीफ उस्मान हादी को ढाका के पल्टन-बिजयनगर इलाके में गोली मारकर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया, जिससे पूरे बांग्लादेश में सनसनी फैल गई.

बांग्लादेश के राजनीतिक पत्रकार शाहिदुल हसन खोकोन ने दिप्रिंट से कहा, इस हमले ने 12 फरवरी तक चुनाव हो पाने को लेकर नए संदेह पैदा कर दिए हैं.

खोकोन ने कहा, “बीएनपी ने घोषणा की है कि तारिक रहमान 25 दिसंबर को घर लौटेंगे. लेकिन अब यह बेहद असंभव लगता है, खासकर हादी पर हुए हमले के बाद.”

बांग्लादेश की राजनीतिक गणनाएं अब बदलती रेत जैसी हो गई हैं. जब तक हालात स्थिर नहीं होते, रहमान की वापसी भी नहीं होगी और न ही चुनाव इतनी जल्दी होते दिख रहे हैं.

(दीप हालदार लेखक और पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @deepscribble है. यह उनके निजी विचार हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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