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Saturday, 2 November, 2024
होममत-विमतमंदिरों पर हमले, 5 लाख टका की डिमांड; कट्टरपंथियों के चलते बांग्लादेश में हिंदू नहीं मना पाएंगे दुर्गा पूजा

मंदिरों पर हमले, 5 लाख टका की डिमांड; कट्टरपंथियों के चलते बांग्लादेश में हिंदू नहीं मना पाएंगे दुर्गा पूजा

बांग्लादेश पूजा उद्यापन परिषद के उपाध्यक्ष मनिंद्र कुमार नाथ ने कहा कि हिंदू पहले की तरह दुर्गा पूजा मनाने से डरते हैं.

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बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथी अल्पसंख्यक हिंदुओं के सबसे बड़े धार्मिक त्योहार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, क्या इस साल दुर्गा पूजा एक फीका मामला बन जाएगा? जबकि मुहम्मद यूनुस प्रशासन ने पंडालों और भक्तों को सुरक्षा देने का वादा किया है, हिंदू समुदाय के नेताओं को चिंता है कि खुले तौर पर अपने धर्म को फॉलो कर पाना उनके लिए अतीत की बात हो सकती है.

शेख हसीना के बांग्लादेश में भी दुर्गा पूजा समारोह सुरक्षित नहीं थे. शायद ही कोई साल ऐसा बीता हो जब पूजा पंडालों या मूर्तियों पर कोई हमला न हुआ हो. कट्टरपंथियों के लिए मूर्ति पूजा आंख की किरकिरी बनी रही क्योंकि दुर्गा पूजा के दौरान पूरे देश में मनाया जाने वाला यह उत्सव उनके बांग्लादेश के विचार पर सीधा हमला था. खास बात यह है कि शेख हसीना भी इन कट्टपंथियों पर रोग लगा पाने में सफल नहीं रहीं.

2021 में, कुछ हिंदुओं द्वारा कथित तौर पर दुर्गा पूजा पंडाल में कुरान की एक प्रति रखने की झूठी खबर ने कोमिला जिले में दंगे भड़का दिए, जो बांग्लादेश के कई जिलों में फैल गए. हिंदुओं के घरों और संपत्तियों के साथ-साथ मंदिरों और दुर्गा पूजा स्थलों पर हमले में पाँच लोग मारे गए और कई घायल हो गए.

बाद में, पुलिस ने पंडाल में कुरान रखने के आरोप में इकबाल हुसैन नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति को गिरफ्तार किया. जब पुलिस ने उसे हिरासत में लिया, तो उसके परिवार ने कहा कि वह मानसिक रूप से अस्थिर है और किसी ने उसकी हालत का फायदा उठाया है. हसीना प्रशासन ने यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की कि अगले साल से दुर्गा पूजा कट्टरपंथियों के जाल से सुरक्षित रहे.

2022 में अकेले कोमिला जिले में 794 पूजा पंडाल लगाए गए. और 1 अक्टूबर को अपने संदेश में, महा षष्ठी के दिन जब बंगाली हिंदू मानते हैं कि देवी दुर्गा अपने चार बच्चों के साथ धरती पर उतरती हैं, हसीना ने कहा कि दुर्गा पूजा केवल हिंदुओं का त्योहार नहीं है.

“यह अब एक सार्वभौमिक त्योहार है. उन्होंने कहा, ‘‘सभी बांग्लादेशी हर धार्मिक त्योहार को एक साथ मनाते हैं और इस मंत्र में विश्वास करते हैं कि ‘धर्म व्यक्तिगत है, त्योहार सभी के लिए हैं’.’’

फिर भी, इसके तुरंत बाद, 6 फरवरी 2023 को, अज्ञात बदमाशों ने ठाकुरगांव जिले के 12 हिंदू मंदिरों में 14 मूर्तियों को तोड़ दिया. इन हमलों के बावजूद, हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग ने दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेशी हिंदुओं को समर्थन और शुभकामनाएं देना जारी रखा.

अब जब पूर्व प्रधानमंत्री को पद से हटा दिया गया है और उनके स्थान पर आए प्रधानमंत्री ने बिना किसी ठोस कार्रवाई के इसी तरह की टिप्पणी की है, तो बांग्लादेशी हिंदुओं के पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि दुर्गा पूजा समारोह सुरक्षित हो जाएगा.

‘पूजा में संयम बरतें, हिंदू होने की बात छिपाकर रखें’

5 अगस्त को हसीना के अचानक अपदस्थ होकर देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों की खबरें सुर्खियों में बनी हुई हैं, जिससे दुर्गा पूजा के उत्सव पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ढाका से फोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए, देश में दुर्गा पूजा आयोजकों की शीर्ष संस्था बांग्लादेश पूजा उद्यापन परिषद के उपाध्यक्ष मनिंद्र कुमार नाथ ने कहा कि हिंदू इस त्योहार को उस धूमधाम और भव्यता के साथ मनाने से डरते हैं, जैसा वे पहले करते थे.

उन्होंने कहा, “यूनुस प्रशासन ने हमें सुरक्षा का आश्वासन दिया है और हमने पूजा के दौरान सुरक्षा के लिए पुलिस के सर्वोच्च अधिकारियों से बात की है, लेकिन कुछ अन्य आवाजें भी हैं जो हिंदुओं को दुर्गा पूजा मनाने के खिलाफ चेतावनी दे रही हैं.” नाथ ने कहा कि पिछले साल बांग्लादेश में 32,000 से अधिक दुर्गा पूजा पंडाल बनाए गए थे, लेकिन समुदाय को इस बात को लेकर अनिश्चितता है कि इस साल क्या होगा.


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नाथ के पास चिंता करने के कारण हैं. बांग्लादेश में सबसे ज़्यादा प्रसारित होने वाले अंग्रेज़ी अख़बार डेली स्टार ने बताया कि खुलना जिले के कई मंदिरों को गुमनाम पत्र मिले हैं, जिसमें धमकी दी गई है कि अगर वे 5 लाख बांग्लादेशी टका का टोल के रूप में भुगतान नहीं करते हैं, तो वे दुर्गा पूजा नहीं मना पाएंगे.

रिपोर्ट में कहा गया है, “विभिन्न पूजा उत्सव समितियों के नेताओं को भेजे गए पत्रों में यह भी कहा गया है कि इसे न मानने पर गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. हिंदू समुदाय के नेताओं ने अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं और कुछ लोग अपने मंदिरों में उत्सव को पूरी तरह से रद्द करने पर विचार कर रहे हैं.” डाकोप के कमरखोला सार्वजनीन दुर्गा पूजा उत्सव समिति के अध्यक्ष शेखर चंद्र गोल्डार के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है, “हमारे सदस्य अब इसमें रुचि नहीं रखते हैं. इस साल हमें पूजा रोकनी होगी.”

इंसाफ कीमकरी छात्र-जनता नामक संगठन ने भी ढाका में विरोध प्रदर्शन किया है, जिसके बैनर पर बांग्ला भाषा में लिखा है: “सड़कें बंद करके पूजा न करें, मूर्ति विसर्जन से जल प्रदूषण न करें, मूर्तियों की पूजा न करें.” कनेक्टेड टू इंडिया वेबसाइट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, समूह ने 16 सूत्री मांग पेश की और दुर्गा पूजा जैसे हिंदू त्योहारों के लिए सार्वजनिक अवकाश के खिलाफ तर्क दिया क्योंकि समुदाय बांग्लादेश की आबादी का 2 प्रतिशत से भी कम है. समूह ने यह भी मांग की कि हिंदू त्योहारों के समर्थन में किसी भी मुस्लिम को शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है.

बांग्लादेशी पत्रकार शरबानी दत्ता ने ढाका ट्रिब्यून में लिखा, “कुम्हार रातों की नींद हराम करके मिट्टी को गूंथते हैं और उन्हें आकार देते हैं, जबकि रात में कुछ लोग मंदिरों में घुसकर उन मूर्तियों को अपवित्र करते हैं. बांग्लादेश में इस तरह से दुर्गा पूजा का उद्घाटन किया जाता है. और हम उन्हें होते हुए देखते हैं – हैरान, चुप – क्योंकि हम यह कैसे भूल सकते हैं कि हमें इस देश में इतने दबे हुए हैं कि हमें अपनी धार्मिक भावनाओं को दिखाने का अधिकार नहीं है?”

हसीना के देश छोड़ने के बाद से भूमिगत हुए नोआखली के एक हिंदू अधिकार कार्यकर्ता ने दिप्रिंट को बताया कि दुर्गा पूजा पंडालों पर पहले भी हमले हुए हैं, लेकिन इस साल बांग्लादेश में हिंदू होने के खिलाफ़ एक संगठित प्रतिरोध की शुरुआत हुई है.

उन्होंने कहा, “लिंचिंग, बलात्कार, आगजनी दुनिया भर का ध्यान आकर्षित करती है. सत्ता प्रतिष्ठान अब ऐसा नहीं चाहेगा. धमकियों, नकली पर्यावरण संबंधी चिंताओं और संरक्षण राशि की मांग के ज़रिए कट्टरपंथी दुर्गा पूजा समारोहों को कम करने की कोशिश करेंगे ताकि अंततः बांग्लादेश में हिंदू बने रहना मुश्किल हो जाए. लोगों को धर्म परिवर्तन करने या भागने के लिए मजबूर किया जाएगा, जिससे 7.9 प्रतिशत हिंदू आबादी और भी कम हो जाएगी,”.

दुर्गा पंडालों और एक अंधेरी जगह के बीच

कई बंगाली हिंदुओं का कहना है कि पहली दुर्गा पूजा का आयोजन अब के बांग्लादेश में हुआ था. आयोजन स्थल को लेकर राय विभाजित है: क्या यह राजशाही के बागमारा उपजिला में निर्मित राजा कांगसा नारायण का मंदिर है या मेदोश मुनीर आश्रम, जो बोआलखाली उपजिला में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित एक मंदिर है? दुर्गा पूजा की उत्पत्ति की कहानी पर बहस को सुलझाने के लिए ढाका के एक मुस्लिम YouTuber, सलाहुद्दीन सुमन की ज़रूरत पड़ी.

सुमन ने मुझे बताया था, “यह आपको अजीब लग सकता है, लेकिन मैं जिस धूल भरे गांव में पैदा हुआ था, बोगरा ज़िला के आदमदिघी उपजिला के पुशिंडा में, हम एक साथ बड़े हुए. घर पर, मेरे माता-पिता ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कोई अंतर नहीं किया. सिर्फ़ हिंदू ही नहीं, हमें बौद्ध, ईसाई और सभी अन्य धर्मों के लोगों को गले लगाना सिखाया गया था,”

यह पिछले साल की बात है. बांग्लादेश पर नज़र रखने वाले अब देश को इस्लामी गणराज्य में बदलने की एक ठोस कोशिश देख रहे हैं.

जमात-ए-इस्लामी नेताओं ने हाल ही में बांग्लादेश के शीर्ष क़ौमी विद्वानों से मुलाक़ात की, जिन्होंने जमात के मौजूदा प्रमुख डॉ. शफ़ीकुर्रहमान के नेतृत्व में इस्लामी नियमों पर आधारित देश की स्थापना के लिए समर्थन जताया. रहमान ने सभा में कहा, “अब से हम सब एक दूसरे के लिए हैं. हम सब शीशे से बनी दीवार की तरह एकजुट होंगे.”

पत्रकार स्निग्धेंदु भट्टाचार्य ने द डिप्लोमैट में लिखा, “बांग्लादेश के सिविल सोसायटी के सदस्यों के एक वर्ग द्वारा चेतावनी के संकेत माने जाने वाली अन्य घटनाओं में प्रतिबंधित आतंकवादी समूह हिज्ब उत ताहिर द्वारा सार्वजनिक रैलियां और पोस्टर अभियान तथा अलकायदा से प्रेरित आतंकवादी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के प्रमुख मुफ्ती जशीमुद्दीन रहमानी की रिहाई शामिल है, जिसका नाम बदलकर अंसार अल इस्लाम कर दिया गया है.”

और यह केवल हिंदू और उनकी धार्मिक मान्यताएं ही नहीं हैं जो नए बांग्लादेश में चुनौतियों का सामना कर रही हैं. सिलहट में हजरत शाह पोरन की दरगाह पर संगीत बजाने पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए, 6 सितंबर को जुम्मा (शुक्रवार) की नमाज के बाद हजारों लोगों ने दरगाह के सामने प्रदर्शन किया.

ऐसे समय में जब बांग्लादेश नई राजनीतिक वास्तविकता और सामाजिक अस्थिरता से जूझ रहा है, क्या देवी दुर्गा सांप्रदायिक वैमनस्य के राक्षस का वध कर सकती हैं? बांग्लादेश के 1.3 करोड़ हिंदुओं का भविष्य इसी जवाब पर निर्भर करेगा.

(दीप हलदर एक लेखक और पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @deepscribble हैं. व्यक्त किए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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