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सोमवार, 16 जून, 2025
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ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर हमला करने से इज़राइल की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती नहीं मिलेगी

1967 से, इज़राइल इस इलाके में सैन्य रूप से हावी रहा है, लेकिन इससे इज़राइली लोग सुरक्षित नहीं हो सके, जैसा कि अक्टूबर 2023 में हमास के हमलों में देखने को मिला.

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मैं इजरायल एक सप्ताह पहले ही आया. अक्टूबर 2023 में हमास के हमले के बाद से भूमध्यसागर (मेडिटेरेनियन) क्षेत्र में पुरानी गर्मी नहीं दिखी है. हमेशा जल्दबाज़ी में उलझे रहने वाले इजरायली कुछ शांत और चिंतित दिख रहे हैं. चारों ओर निराशा का माहौल है. गाज़ा में एक अनंत युद्ध जारी है, जिसमें युद्धबंदियों के लिए कोई उम्मीद नहीं नजर आती; फिलस्तीनियों के लिए भोजन और आश्रय की भीषण समस्या है, और पांच प्रमुख देशों (ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, नॉर्वे) ने इजरायल के दो मंत्रियों के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा कर दी है क्योंकि उन दोनों ने फिलस्तीनियों के साथ हिंसा का खुला आह्वान कर दिया था.

2023 में बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने ‘न्यायिक सुधार’ शुरू किए थे और इसके बाद से बीते हर सप्ताह की तरह पिछले सप्ताह की खबर सियासी खेल में अव्वल बने रहने की इजरायली प्रधानमंत्री की क्षमता के बारे में थी. और यह कि अधिकतर इजरायलियों के लिए ईरान मसला कोई अहमियत नहीं रखता.

घर में ही उथलपुथल

ईरान पर इजरायल के भारी हमले के महज दो दिन पहले घरेलू खबर देश की धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष आबादियों में बढ़ती आंतरिक खाई की, यरुसलम और तेल अवीव में वार्षिक गौरव परेडों की, गज़ा युद्ध को जारी रखने के लिए सैनिकों की कमी की थी, और यह भी कि धुर रूढ़िवादी  यहूदी लोग अनिवार्य सैन्य सेवा देने से कब तक बच सकेंगे. इसके अलावा, युद्ध विरोधी आंदोलन के लोग यह बहस कर रहे थे कि इस सप्ताह नेतन्याहू के बेटे की शादी का जो आडंबरपूर्ण समारोह होने वाला है उसके स्थान पर विरोध प्रदर्शन किया जाए या नहीं.

धुर रूढ़िवादी यहूदियों के सेना में काम करने का मसला इतना गंभीर हो गया कि दो दिन पहले तक नेतन्याहू की सरकार का वजूद ही संकट में पड़ा था. वे सरकार को उस कानून के मसौदे को लेकर गिरा डालने की धमकी दे रहे थे जिसके तहत युवाओं को निर्देश दिया गया था कि वे सेना को सेवाएं देने के लिए आगे आएं, वरना कानूनी सज़ा झेलने के लिए तैयार रहें. बृहस्पतिवार की देर रात तक, इजरायली संसद ‘नेसेट’ को भंग करने के प्रस्ताव पर संसद में मतदान चल रहा था. धार्मिक गुटों को कुछ अधिक रियायतें देकर नेतन्याहू ने किसी तरह अपनी सरकार बचाई. इधर यह सब चल रहा था, उधर नेतन्याहू को तेल अवीव की एक अदालत में कठघरे में खड़े होकर अपने ऊपर घूसख़ोरी, जालसाजी, और धोखाधड़ी के मुकदमे में आरोपों का जवाब देना पड़ रहा था.

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर शुक्रवार को किए गए हमले में तेहरान की कुछ रिहाइशी इमारतों को भी नुकसान पहुंचा. इसने दुनिया भर को ही नहीं, इजरायलियों को भी आश्चर्य में डाल दिया. इस तरह की कार्रवाई किसी दीर्घकालिक रणनीतिक योजना का हिस्सा लगती है, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भी शामिल लगते हैं. इन हमलों के बाद उन्होंने कहा कि उन्हें इनकी जानकारी थी और इसमें “आश्चर्य वाली कोई बात नहीं है”. ट्रंप ने यह भी कहा कि उन्होंने ईरान को 60 दिन की मोहलत दी थी कि वह “डील कर ले”, इसलिए उसे “यह कर लेना चाहिए था”.

ईरान और अमेरिका की वार्ता गंभीरता से चल रही थी. परमाणु मसले पर वार्ता के पांच दौर पूरे हो चुके थे, छठा दौर रविवार को होने वाला था. ट्रंप कई बार कह चुके थे कि वे गज़ा पर हमले के बाद और मुयतें और विध्वंस नहीं चाहते, कि वे ईरान कूटनीतिक पहल करना चाहते हैं. वास्तव में उन्होंने दो सप्ताह पहले ही नेतन्याहू को हमला करने से हतोत्साहित किया था.

नेतन्याहू की दादागीरी

ट्रंप का मानना था कि ईरान पर परमाणु कार्यक्रम को नष्ट करने और उसके परमाणु ठिकानों की जांच के लिए रजामंदी देने की सख्ती करके वे उसे एक समझौता करने के लिए तैयार कर लेंगे. इस रणनीति से अब उनका दिमाग पलट क्यों गया या नेतन्याहू उस शख्स पर हावी कैसे हो गए जो यह कहता है कि वह किसी पर विश्वास नहीं करता, यह सब जानने में थोड़ा वक़्त लगेगा. यह नेतन्याहू की निश्चित रणनीतिक जीत नजर आती है. आखिर वे ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ फौजी कार्रवाई पर 1990 के दशक से ज़ोर देते रहे हैं.

बहरहाल, यह इस क्षेत्र के लिए खतरनाक घटना है, क्योंकि कई देश इसकी चपेट में आ सकते हैं, हालांकि अमेरिका और फ्रांस तथा जर्मनी जैसे प्रमुख देशों ने अपनी रक्षा करने के इजरायल के अधिकार का बचाव किया है. अगर सऊदी अरब, जॉर्डन, और यूएई जैसी  क्षेत्रीय ताक़तें भी इजरायल को अपनी रक्षा करने में उसकी मदद के लिए अपने पश्चिमी मित्रदेशों के साथ खड़े हो जाते हैं तो यह इस क्षेत्र के लिए नया मोड साबित हो सकता है. इन देशों ने अक्टूबर 2024 में यही किया था जब ईरान ने इजरायल पर 180 बैलिस्टिक मिसाइलों से निशाना साधा था. इन देशों को भी एक तरह का भय सताता है, और वे चाहेंगे कि ईरान कमजोर तथा परमाणु शक्ति विहीन देश बना रहे. उनके लिए और बेहतर बात तो यह होगी कि ईरान में शिया हुकूमत नाकाम हो जाए, लेकिन यह ख़्वाहिश जल्दी पूरी होती नहीं दिखती है.

इस “ऐतिहासिक घड़ी” पर कई इजरायली नेता जबकि एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं, तब इजरायल वास्तव में कहां खड़ा है? क्या यह 1967 वाले युद्ध की पुनरावृति है, जिसने इस क्षेत्र में इजरायल की सैन्य तकदीर बदला दी थी? अमेरिका और दूसरे मित्र देशों से मिली सुरक्षा की इस्पाती गारंटी और सैन्य सहायता के कारण इजरायल ईरान से यह जंग जीत सकता है. इजरायल ने बेशक एकतरफा कार्रवाई की लेकिन जब वजूद का सवाल आता है तब वह अकेला नहीं है. उसे कई हफ्तों या महीनों तक चिंता के दौर से गुजरना पड़ सकता है लेकिन ईरान उसकी बुनियादी मजबूती को खतरा नहीं पहुंचा पाएगा.

धर्म शासित ‘गणतंत्र’ हाल में लंबे समय से घरेलू चुनौतियों से जूझता रहा है, और इजरायल तथा अमेरिका के खिलाफ भीषण युद्ध में सरकार भी गिर सकती है. लेबनान में हिज्बुल्ला को खो देने और सीरिया में अपनी पैठ गंवाने के बाद ईरान अपने छद्म सैनिकों को गंवाने के परिणामों से अभी भी जूझ रहा है. रूस ईरान को हथियारों से ज्यादा मदद करने की स्थिति में नहीं है. पुतिन की पोल खुल चुकी है और ट्रंप उन्हें बहुत पसंद भी नहीं करते क्योंकि उन्होंने ट्रंप को यूक्रेन से समझौता करवाने की मध्यस्थता से मना कर दिया था. वे अब ट्रंप के खिलाफ खुली जंग नहीं छेड़ सकते.

ईरान अगले एक दशक तक परमाणु शक्ति विहीन देश बना भी रहेगा तब भी नेतन्याहू की दादागीरी के कारण इजरायल खुद को बेहतर सुरक्षित स्थिति में नहीं पाएगा. यह एक विडंबना ही है. 1967 के बाद से इस क्षेत्र में इजरायल का सैन्य वर्चस्व रहा है लेकिन इसके बावजूद इजरायली लोग शायद ही सुरक्षित हैं, जैसा कि अक्टूबर 2023 में उजागर भी हो गया. हमास के साथ इसकी जंग और कब्जे के जरिए संघर्ष का मुक़ाबला करने की पूरी कोशिश इजरायल की दुखती रग रही है. अतीत में हासिल असंख्य सैन्य विजय और हमले की पहल ने इजरायल की सुरक्षा या इस क्षेत्र में सामान्य स्थिति की बहाली में मदद नहीं की. संघर्षों का राजनीतिक समाधान बहुत प्रिय नहीं हुआ करता है और यह कष्टप्रद समझौतों की मांग कर सकता है, लेकिन यह सच्ची राष्ट्रीय सुरक्षा देता है.

खिनवराज जांगिड़ सोनीपत की ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और सेंटर फॉर इजरायल स्टडीज़ के निदेशक हैं. वे इजरायल की बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी के अतिथि प्राध्यापक हैं. यहां व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं.

(नेशनल इंट्रेस्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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