अपने सीने पर चार ‘स्टार’ के तमगे चमकाने वाला कोई पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जो नहीं कर पाया वह क्या पांचवें ‘स्टार’ का तमगा चमकाकर कर पाएगा? कोई सर्वशक्तिमान पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल बनकर अलग क्या कर लेगा, जो वह महज जनरल के रूप में नहीं कर पाया?
इस सवाल का यह जवाब तो दिया ही जा सकता है कि वह कुछ तो ज्यादा कर ही लेगा. अपनी वर्दी के कॉलर, अपनी कैप, कार और चाहे तो अपने ‘सिंहासन’, मुख्य युद्धक टैंक को कुछ और तरह के निशान से सुशोभित कर लेगा. बहरहाल, यह सवाल उसके भी दिमाग को जरूर परेशान कर रहा होगा.
वह जानता है कि वह यह पांचवां स्टार नहीं हासिल कर सकता, और हासिल कर भी ले तो बहुत कुछ कर नहीं सकता. तो क्या भारतीय सेना को परेशान होना चाहिए?
इसका छोटा-सा जवाब यह है कि भारत को पाकिस्तानी फौज से हमेशा सावधान रहना चाहिए, और वह रहते भी हैं. अब ‘सिस्टम’ के अंदर से या बाहर से यह जो विचित्र किस्म का प्रोमोशन दिया गया है (यह इससे तय होगा कि आप इस व्यवस्था में शहबाज़ शरीफ को कहां रखते हैं) उसने इस चिंता या सावधानी को थोड़ा बढ़ाया है.
चिंता यह है कि इस पांचवें ‘स्टार’ के साथ वे क्या करेंगे? पाकिस्तान और इस उपमहादेश के पूरे इतिहास में किसी को पांचवें ‘स्टार’ से सम्मानित करने की यह दूसरी घटना है. (पांच स्टार वाले हमारे करिअप्पा, मानेकशॉ और अर्जन सिंह को रस्मी बेटन से सम्मानित किया गया था). आधुनिक सेनाओं में पांचवें स्टार से सम्मानित करने के उदाहरण दुर्लभ हो गए हैं. किसी महत्वपूर्ण देश का उदाहरण देना हो तो इजिप्ट के अब्देल फत्तह अल-सीसी का दिया जा सकता है. यहां तक कि ताकतवर अमेरिकियों ने इस ऊंची उपाधि को मार्शल, मैकआर्थर, आइजनआवर और ब्रैडले जैसे नामों में दफन कर दिया है. तो, पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष इस उपाधि का कुछ-न-कुछ तो जरूर करना चाहेंगे. मैं ईदी अमीन के तौर-तरीके में से कोई उदाहरण देना चाहूंगा और ‘कनक्वरर ऑफ दि ब्रिटिश एंपायर’ जैसा कोई नाम पेश करना चाहूंगा. लेकिन नहीं, यह कोई मजाक का वक़्त नहीं है.
असैनिक सरकार का तख़्ता पलट कर खुद सत्ता हथिया लेना पाकिस्तान में अब काफी उबाऊ हो गया है. उन्हें यह सब करने की जरूरत नहीं है. हमारा राजनीतिक-रणनीतिक विश्लेषण अब इस मुख्य मुद्दे पर केंद्रित होना चाहिए कि फील्ड मार्शल आसिम मुनीर जनरल आसिम मुनीर से कितने भिन्न होंगे? जनरल के इरादे का संकेत हमें 16 अप्रैल को प्रवासी पाकिस्तानियों की सभा में उनके भाषण से मिल गया था और वे क्या कर सकते थे यह 22 अप्रैल को पहलगाम में जो हुआ उससे साफ हो गया. उस भाषण में उन्होंने जो एक और वादा किया था उसे पूरा करना बाकी है, वह वादा है पाकिस्तान को एक “हार्ड स्टेट”, सख्त मुल्क बनाने का.
प्रोपगंडा के लिए जीत के जश्न मनाना अलग बात है, उन्हें मालूम है कि उनकी फौज को भारी झटका लगा है. फिर भी, भारतीय विमानों को मार गिराने के अपुष्ट दावे लोगों को कुछ समय के लिए ही खुश कर सकते हैं. ध्वस्त हुए हवाई अड्डों (सभी सिंधु नदी के पूरब में स्थित), और जैश-लश्कर के मलबे में तब्दील बड़े-बड़े ठिकानों की तस्वीरें ही छाई रहेंगी. वे अपनी छाती चाहे जितनी ठोक लें, पांचवें स्टार की चमक जमीनी हकीकत को फीकी नहीं कर पाएगी. इसलिए वे “सुधार” करने के लिए कुछ-न-कुछ तो करना चाहेंगे ही. वास्तव में, उनके लिए यह जरूरी भी होगा.
मैं तो यह बाजी भी लगा सकता हूं कि वे हमारी कल्पना से पहले ही ऐसा कुछ कर डालेंगे. जिसे पाकिस्तानी फौज की “सात साल पर उभरने वाली खुजली” कहा जाता था. उसके तहत अतीत में जो बड़े आतंकवादी हमले और उनके जो भारतीय जवाब होते थे वे उनमें इतनी खौफ पैदा करते थे कि सात साल तक थोड़ी शांति रहती थी. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा, क्योंकि मुनीर मुनीर को वह हासिल नहीं हुआ है. वे कब कार्रवाई करेंगे, क्या करेंगे, इन सबके बारे में अटकलें ही लगा सकते हैं, पक्के तौर पर कुछ कह नहीं सकते. पक्के तौर पर मैं एक ही बात कह सकता हूं. अगर आप अगले छह-सात साल के बारे में सोच रहे हों, तो मैं निश्चित बता सकता हूं कि मुनीर कहां रहेंगे. पाकिस्तान की सियासत, संस्कृति, और इतिहास बताता है कि वह किसी अच्छी स्थिति में नहीं रहेंगे.
लेकिन पहले हम यह देखें कि जब वे चार स्टार वाले थे तभी कितनी जबरदस्त ताकत हासिल कर चुके थे. जिस असैनिक सरकार के ‘निर्वाचन’ में उनकी मिलीभगत थी वह सरकार पहले ही उनके आगे दंडवत थी. अपने ‘सिपहसालार’ (पांचवां स्टार दिए जाने से पहले इस सरकार के अगुआ मुनीर को यही कहा करते थे) के सामने छोटे शरीफ, शाहबाज की चापलूसी भरी बोली, और मुद्राओं से क्या एक वजीरे आजम का कोई रुतबा झलकता है? सो, आप उन्हें प्रशंसक, दरबारी, जो चाहे कह सकते हैं. मुनीर तमाम अहम मसलों पर बोलते रहे हैं, मुल्क को एक ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था (फिलहाल जो महज 410 अरब वाली है) बनाने तक के वादे करते रहे हैं.
फौज की बढ़ी हुई ताकत को चुनौती देने वाले एकमात्र नेता इमरान खान को उन्होंने जेल में डाल रखा है. इससे पहले वे उनकी पार्टी पर प्रतिबंध लगाकर उसे चुनाव लड़ने से रोक चुके हैं. मुनीर की पसंदीदा पार्टियों का गठबंधन (पीएमएल-एन के नेतृत्व वाला) यह एकतरफा चुनाव भी न जीत सका, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. उसे उन्होंने सत्ता सौंप दी.
न्यायपालिका ने समर्पण कर दिया है, यहां तक कि उसने फौजी अदालतों को यह अधिकार सौंप दिया है कि वे देशद्रोह समेत कुछ सबसे गंभीर अपराधों के लिए नागरिकों पर मुकदमा चला सकती हैं. संस्थात्मक चोरी के जरिए निर्वाचित, अपने हाथों की कठपुतली संसद को उन्होंने संविधान की हत्या करने वाले संशोधनों पर मुहर लगाने को मजबूर किया है और अपना कार्यकाल भी बढ़वा लिया है. जजों को भी कुछ ठोस लाभ दिए हैं. मुनीर ने सब कुछ अपने चंगुल में कर लिया है. अब आगे क्या होगा?
अब फील्ड मार्शल की कुर्सी के नजरिए से देखिए. अगर वे आगे के सात वर्षों पर नजर डालें तो यही उम्मीद कर सकते हैं कि म्यूचुअल फंड के साथ दी जाने वाली यह वैधानिक चेतावनी उन पर भी लागू होगी कि ‘पिछले प्रदर्शन को भावी प्रदर्शन की गारंटी न मानें’. पिछला प्रदर्शन तो उनसे यही कहेगा कि सियासी अरमान रखने वाले हरेक ‘महान’ सेनाध्यक्ष का बुरा हश्र ही हुआ: हार की शर्म झेलनी पड़ी, मुकदमों का सामना करना पड़ा, देश से निकाले गए, चार में से तीन तो मार डाले गए. अय्यूब, याहया, ज़िया, मुशर्रफ, चारों एक लाइन में खड़े दिखते हैं.
विस्तार से देखें तो जुल्फ़ीकार अली भुट्टो तानशाह बने और उनका भी यही हश्र हुआ. मुनीर के दो पूर्ववर्ती, क़मर जावेद पाहवा और रहील शरीफ वर्दी में होते हुए चाहे जितने भी ताकतवर रहे हों, समझदार रहे और ओझल हो गए. मुनीर आज जितने ताकतवर हैं उतना ताकतवर कोई पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष यह खुशनुमा ख्याल नहीं पालते कि वह गोल्फ खेलते हुए रिटायरमेंट वाली ज़िंदगी जिएंगे. यह विकल्प खारिज होने के बाद मुनीर के लिए वह करना बच जाता है, जो उनके भीतर का धर्मगुरु अल्लाह की ओर से दिया गया अवसर मानता है. मुझे लगता है कि अल्लाह ने मुझे चुना है, और अगर ऐसा है तो मुझे क्या करने के लिए चुना गया?
क्या उनका उत्कर्ष पाकिस्तान के लिए भी अनूठी घटना है? मुल्क ने हमें एक सेनाध्यक्ष दिया जिसे असैनिक शासन ने रक्षा और गृह मंत्री (अयूब) भी बना दिया, वह आगे चलकर चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बन बैठे और उसी असैनिक सरकार का तख़्ता पलटकर राष्ट्रपति बन गए और जल्दी ही खुद को फील्ड मार्शल की पदवी दे दी. हम याहया, ज़िया, और मुशर्रफ को गमलों में उगने वाले फौजी हुक्मरानों के रूप में देख चुके हैं और सबका इसी तरह का हश्र भी देख चुके हैं.
अंतिम दो सेनाध्यक्षों ने भी किसी तरह से निर्वाचित सरकार को सत्ता में बिठाया. इस तरह की ‘बोन्साई’ सरकार राजनीति विज्ञान को पाकिस्तान की अनूठी देन है. जब कोई जनरल सीधे सत्ता में नहीं होता, तो वह बाहर रहते हुए भी हुक्मरानी करता रहा है. पाकिस्तान की एक और अनूठी देन है : ‘वर्णसंकर’ सरकार. आज जो सरकार है उसे आप किस तरह परिभाषित करेंगे? एक फील्ड मार्शल है, और एक बंधुआ सरकार है, और उन्हें चुनौती देने वाला एकमात्र शख्स जेल में बंद है.
तीन दशक से भी पहले (इंडिया टुडे, 15 मई 1993), जब फौजी तंत्र ने नवाज़ शरीफ को बर्खास्त किया था तब उन्होंने एक इंटरव्यू में मुझसे तीखे तेवर के साथ कहा था कि “यह कैसी सिस्टम है? आधा तीतर, आधा बटेर.” अगली बार जब वे बहुमत से सत्ता में वापस आए तब कहा था कि वे इस सिस्टम में सफाई लाने की कोशिश करेंगे, कि या तो वे (फौज) ही राज करें, या हम (निर्वाचित नागरिक) राज करें.
मैं नहीं जानता, आज हम जो देख रहे हैं उसके बारे में वे क्या कहेंगे जबकि वे अपने मुल्क में सियासत से खुद को बाहर किए बैठे हैं. आप इसे किस नजर से देखेंगे? एक सेनाध्यक्ष को फील्ड मार्शल का ओहदा दे दिया जाता है, सबसे लोकप्रिय नेता दो साल से जेल में बंद है, और फर्जीवाड़े से चुनी गई असैनिक सरकार सत्ता में बैठी है.
क्या आपको याद है कि आपकी पांचवीं के बायोलॉजी क्लास में जीवों के विकास की कहानी बताने के लिए एक ऑस्ट्रेलियाई जीव का उदाहरण दिया जाता था, जो बत्तख के मुंह वाला स्तनपायी जीव होता है जिसमें पक्षी और सांप आदि के भी लक्षण पाए जाते हैं? आप यह पढ़कर जरूर हंस रहे होंगे लेकिन नहीं, यह कोई मज़ाक नहीं है. फील्ड मार्शल आज इसी तरह के जीवों की अगुआई कर रहे हैं. वे इन सब पर राज करें और उनका कुछ न करें, यह नहीं चल सकता. पांचवें स्टार वाला तमगा सीने पर उतना ही बड़ा बोझ है जितना बड़ा बोझ जीत का दावा है. भारत के लिए बेहतर यही होगा कि वह तैयार रहे. मुनीर को पांच-सात साल नहीं मिलने वाले हैं. वे जल्दी ही हमारे सिर पर सवार हो सकते हैं, अगले 12 महीने में भी.
(नेशनल इंट्रेस्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: आसिम मुनीर के दिमाग में क्या चल रहा है?