scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमततो 40 साल बाद मिल सकता है दिल्ली को दूसरा सिख सांसद?

तो 40 साल बाद मिल सकता है दिल्ली को दूसरा सिख सांसद?

दिल्ली सरकार में मंत्री रहे अरविंदर सिंह लवली को कांग्रेस ने ईस्ट दिल्ली सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. 1980 में चरणजीत सिंह बने थे दक्षिणी दिल्ली से सांसद.

Text Size:

क्या दिल्ली लगभग 40 सालों बाद फिर से किसी सिख को अपना सांसद चुनने जा रही है? दिल्ली सरकार में मंत्री रहे अरविंदर सिंह लवली को कांग्रेस ने ईस्ट दिल्ली सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. इसलिए एक संभावना अवश्य बनी है कि 1980 के बाद दिल्ली से कोई सिख लोकसभा में जा सकता है. 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दक्षिण दिल्ली सीट से एक अनाम शख्स को अपना उम्मीदवार बनाया था. उसका किसी ने नाम तक नहीं सुना था. कम से कम राजनीतिक हलकों में तो नहीं. वो नाम था चरणजीत सिंह का.

तब राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी कि ये चरणजीत सिंह नाम के सज्जन कौन हैं? ये कहां से प्रकट हो गए? कांग्रेसी हलको में भी चरणजीत सिंह के बारे में दबी जुबान से पूछा जाने लगा. वो कांग्रेस में इंदिरा गांधी और संजय गांधी का दौर था. किसमें मजाल थी कि कोई इन से पूछ ले कि ये चरणजीत सिंह कौन हैं?


यह भी पढ़ेंः जब नई दिल्ली सीट से एक मलयाली अटल जी को हराने वाला था


7वीं लोकसभा यानी 1980 का आम चुनाव देश पर थोपा ही गया था. केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार अपने शिखर नेताओं के आपसी कलह-क्लेश के कारण गिर गई थी. इसलिए देश फिर से नई लोकसभा को चुन रहा था. जिस जनता पार्टी को देश ने पूरे जोश के साथ 1977 में केन्द्र की सत्ता की चाबी सौंपी थी, उससे देश की जनता नाराज थी.

बहरहाल चरणजीत सिंह कोका कोला कंपनी के भारत में मालिक थे. वो अरबपति इंसान थे. उनके पिता सरदार मोहन सिंह ने भारत में कोका कोला का बिजनेस शुरू किया था. वो नई दिल्ली नगरपालिका (एनडीएमसी) के भी नामित उपाध्यक्ष रहे थे. मतलब हर लिहाज से ताकतवार इंसान थे. उस जमाने में लखपति होना भी बड़ी बात थी. तब जिसकी 1500 रुपये सैलरी होती थी उसे सम्पन्न मान लिया जाता था. तब तक देश में आर्थिक उदारीकरण का दौर आना बाकी था. इसलिए चरणजीत सिंह के मैदान में आने से जिज्ञासा तो बढ़ गई. दिल्ली उनके बारे में जानने को उत्सुक थी.

उधर, जनता पार्टी ने मैदान में उतारा था दिल्ली के पुराने तपे हुए नेता प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा को. तब तक भारतीय जनता पार्टी का गठन नहीं हुआ था. मल्होत्रा 1977 में भी इसी सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. उनकी साफ-सुथरी छवि थी. कभी दिल्ली की लाइफलाइन समझी जाने वाली 87 किलोमीटर लंबी रिंग रोड को वे ही लेकर आए थे. ये उनकी परिकल्पना थी.

विजय कुमार मल्होत्रा ने दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद के पद पर रहते हुए 1967 में रिंग रोड का विचार तब के उप राज्यपाल एएन झा के सामने रखा था. फिर ये दोनों प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले. उसके बाद रिंग रोड के निर्माण पर काम चालू हो गया. ये 1970 की बातें हैं. तो पहली नजर में दक्षिणी दिल्ली में मुकाबला कांटे का होता नजर आ रहा था. कहने वाले कह रहे थे कि मल्होत्रा जी आराम से सीट निकाल लेंगे. 91 साल के मल्होत्रा कहते हैं कि जनता पार्टी के बिखरने से देश की तरह दिल्ली भी नाराज थी. मतदाता अपना को ठगा महसूस कर रहे थे. उन्हें लग रहा था कि भारत में गैर-कांग्रेसवाद का प्रयोग सफल ही नहीं हो सकता. उस चुनाव के कैंपेन में भी कांग्रेस काफी आक्रामक थी. दूसरी तरफ जनता पार्टी शुरू से ही कमजोर नजर आ रही थी. उसके उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं को समझ नहीं आ रहा था कि वे कैसे जनता के चुभने वाले सवालों के जवाब दें. मल्होत्रा यह भी कहते हैं कि दक्षिण दिल्ली के सिख मतदाताओं ने लगभग शत प्रतिशत वोट चरणजीत सिंह को दिया.

उधर, चरणजीत सिंह अपनी चुनावी सभाओं में वक्ता के रूप में कोई छाप नहीं छोड़ पा रहे थे. पर चूंकि वो कांग्रेस से थे इसलिए उनके पक्ष में माहौल तो बन गया था. तब कुछ जानकार कह रहे थे कि अगर वे हारे भी तो बहुत कम अंतर से हारेंगे. वो अपने कैंपेन में पैसा भी खूब खर्च कर रहे थे. उस दौर में चुनाव आयोग का चाबुक आज की तरह से नहीं चलता था. तब चुनावों में उम्मीदवारों के खर्च पर आज के समय की तरह नजर भी नहीं रखी जाती थी.


यह भी पढ़ेंः तो आजाद उम्मीदवारों से वंचित रहेगी लोकसभा?


कैंपेन के बाद मतदान 3 जनवरी और फिर वोटों की गिनती 6 जनवरी, 1980 को हुई. पहली बार राजनीति की दुनिया में कदम रखने वाले चरणजीत सिंह ने विजय कुमार मल्होत्रा को शिकस्त दी. उन्हें 150513 और विजय कुमार मल्होत्रा को 146413 वोट मिले. तो इस तरह दिल्ली ने पहली बार लोकसभा में किसी सिख सांसद को भेजा. महत्वपूर्ण ये भी उस लोकसभा चुनाव में सिर्फ नई दिल्ली सीट से अटल बिहारी वाजपेयी विजयी हुए थे. शेष छह सीटों पर कांग्रेस को ही विजय मिली थी. पर चरणजीत सिंह एक कीर्तिमान बना गए. उनसे पहले या बाद में कभी दिल्ली से कोई सिख लोकसभा नहीं पहुंचा. तो क्या इस बार चरणजीत सिंह का कीर्तिमान टूटने जा रहा है? उन्होंने 1980 का चुनाव जीतने के बाद राजनीति से तौबा कर ली. उनका कुछ साल पहले निधन भी हो गया था.

(वरिष्ठ पत्रकार और गांधी जी दिल्ली पुस्तक के लेखक हैं )

share & View comments