आज, गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) वाला शासन अपने तीसरे साल में प्रवेश कर रहा है. जीएसटी को लागू करने की चुनौतियों को कुछ बाहरी बातों और बढ़ा-चढ़ाकर की गई टिप्पणियों से जटिल बना दिया गया था. जीएसटी के कार्यान्वयन और प्रभाव/परिणामों का विश्लेषण करने के लिए दो वर्ष पीछे जाकर देखना सही होगा.
पूर्व जीएसटी शासन
एक संघीय ढांचे में, केंद्र और राज्य दोनों सरकारें वस्तुओं पर अप्रत्यक्ष कर लगाने के हकदार थीं. राज्यों के पास कई कानून थे जो उन्हें अलग-अलग पॉइंट्स पर टैक्स लगाने का हकदार बनाते थे. दोहरी चुनौतियां थीं. सबसे पहले, राज्यों का सहमत होना क्योंकि उनमें से कुछ ने महसूस किया कि वे कर के लिए अपनी राजकोषीय स्वायत्तता खो रहे हैं और दूसरी बात, संसद में सहमति बनाने के लिए. राज्यों को अज्ञात डर से डाराया गया था.
जीएसटी ने इन सभी 17 अलग-अलग कानूनों को मिला दिया और एक एकल कर व्यवस्था बनाई. वैट के लिए मानक दर के रूप में पूर्व-जीएसटी दर 14.5% थी व 12.5% पर उत्पाद शुल्क था. उपभोक्ता द्वारा देय कर 31% था. राज्यों द्वारा मनोरंजन कर 35% से 110% लगाया जा रहा था.
इसके अलावा अक्षमता का सामना करना पड़ा- ट्रक राज्य की सीमाओं पर पूरी तरह से फंसे हुए थे. जीएसटी ने इस परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया. आज, केवल एक कर है, ऑनलाइन रिटर्न, नो एंट्री टैक्स, ट्रकों की कोई कतार नहीं और कोई अंतर-राज्यीय बाधाएं नहीं हैं.
उपभोक्ता और एसेस्सीज फ्रैंडली
दो साल बाद, कोई भी बिना विरोधाभास के डर के विश्वास कर सकता है कि जीएसटी उपभोक्ता और एसेस्सीज दोनों के लिए अनुकूल है. पूर्व जीएसटी युग के उच्च टैक्स व्यवस्था ने उपभोक्ताओं की जेब को प्रभावित किया और कर लागू करने के खिलाफ एक नुकसान पहुंचाने वाला काम किया. पिछले दो वर्षों में जीएसटी परिषद की प्रत्येक बैठक में उपभोक्ताओं पर कर का बोझ कम करते हुए देखा गया है क्योंकि कर संग्रह में सुधार हुआ है. एक कुशल कर प्रणाली निश्चित रूप से बेहतर अनुपालन की ओर ले जाती है. 31% कर, जो अस्थायी रूप से 28% था, ने सबसे बड़ा एकल सुधार देखा है. उपभोक्ता फायदे की अधिकांश वस्तुओं को 18%, 12% और यहां तक कि 5% श्रेणी में लाया गया है. सिनेमा टिकट पर पहले 35% से 110% कर लगता था, अब इसे 12% और 18% तक लाया गया है. दैनिक उपयोग की अधिकांश वस्तुएं शून्य या 5% स्लैब में हैं.
कर आधार और उच्च राजस्व को बढ़ाना
पिछले दो वर्षों में एसेस्सीज आधार में 84% की वृद्धि हुई है. जीएसटी द्वारा कवर की गई संख्या लगभग 65 लाख से 1.20 करोड़ पहुंची है. यह स्पष्ट रूप से उच्च राजस्व संग्रह की वजह से है. 2017-18 (जुलाई से मार्च) के आठ महीनों में, प्रतिमाह औसत राजस्व 89,700 करोड़ रुपये एकत्र किया गया था. अगले वर्ष (2018-19) में, मासिक औसत लगभग 10% बढ़कर 97,100 करोड़ रुपये हो गई है. आज राज्यों का डर यह है कि पहले पांच वर्षों के लिए उन्हें 14% वृद्धि की गारंटी मिलती है. संदेह है कि पांच साल बाद क्या होगा? यदि आवश्यक हुआ तो प्रत्येक राज्य को मुआवजे के फंड से भी कर का हिस्सा दिया गया है. हमने अभी जीएसटी के दो साल पूरे किए हैं. दूसरे वर्ष के बाद, 20 राज्य स्वतंत्र रूप से अपने राजस्व में 14% से अधिक की वृद्धि दिखा रहे हैं और क्षतिपूर्ति निधि आवश्यक नहीं है.
सरलीकरण और अनुपालन
40 लाख रुपये तक के सालाना कारोबार पर जीएसटी में छूट मिलती है. 1.5 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाले लोग कंपोजिशन स्कीम का उपयोग कर केवल एक प्रतिशत टैक्स का भुगतान कर सकते हैं. अब एक एकल पंजीकरण प्रणाली है जो ऑनलाइन काम करती है और व्यापार और व्यवसाय के लिए प्रक्रियाओं की नियमित रूप से समीक्षा और सरलीकरण किया जाता है.
कुछ गलत विचारों की प्रतिक्रिया
कई लोगों ने हमें चेतावनी दी है कि जीएसटी लागू करना राजनीतिक रूप से सुरक्षित नहीं हो सकता है. कई देशों में, जीएसटी के कारण सरकारें चुनाव हार गईं. यह भारत में सबसे सहज परिवर्तन था. कार्यान्वयन के पहले कुछ हफ्तों के भीतर, नई प्रणाली शुरू हो गई. सूरत में कुछ विरोध प्रदर्शन हुए. मसले हल हो गए. गुजरात चुनाव में सूरत में भाजपा ने सभी विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की. 2019 में, भाजपा ने देश में सबसे अधिक अंतर से सूरत सीट जीती. जिन लोगों ने एक एकल स्लैब जीएसटी के लिए तर्क दिया, उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि एक एकल स्लैब केवल अत्यंत समृद्ध देशों में ही संभव है जहां कोई गरीब लोग नहीं हैं. उन देशों में एकल दर लागू करना असंगत होगा जहां गरीबी रेखा से नीचे बड़ी संख्या में लोग हैं. प्रत्यक्ष कर एक प्रगतिशील कर है. जितना अधिक आप कमाते हैं, उतना अधिक भुगतान करते हैं. अप्रत्यक्ष कर एक प्रतिगामी कर है.
पूर्व-जीएसटी शासन में, अमीर और गरीब, विभिन्न वस्तुओं पर, एक ही कर का भुगतान करते थे. उदाहरण के लिए, एक हवाई चप्पल और एक मर्सिडीज कार पर एक ही दर से कर नहीं लगाया जा सकता है. इसका मतलब यह नहीं है कि स्लैब को सुंसगत बनाने की आवश्यकता नहीं है. वह प्रक्रिया पहले से ही चालू है. विलासिता और मादक सामानों को छोड़कर, 28% स्लैब को लगभग समाप्त कर दिया गया है. शून्य और 5% स्लैब हमेशा रहेंगे. राजस्व में और वृद्धि होने पर, यह नीति निर्माताओं को संभवत: 12% और 18% स्लैब को एक दर में विलय करने का अवसर देगी, इस प्रकार, जीएसटी को प्रभावी रूप से दो दर वाला कर बना देगा.
जीएसटी परिषद की भूमिका
जीएसटी परिषद भारत की पहली वैधानिक संघीय संस्था है. केंद्र और राज्य संयुक्त रूप से बैठकर निर्णय लेते हैं. दोनों ने एक साझा बाजार बनाने के लिए एक सामूहिक फोरम में अपने राजकोषीय अधिकार हासिल किए हैं. जीएसटी काउंसिल की अध्यक्षता करते हुए दो वर्षों का मेरा अपना अनुभव यह था कि राज्यों के वित्त मंत्रियों ने, अपनी राजनीतिक परिस्थितयों के बावजूद, उच्च स्तर की राजनीतिक जिम्मेदारी निभाई है और परिपक्वता के साथ काम किया. परिषद ने सर्वसम्मति के सिद्धांत पर काम किया. इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया की विश्वसनीयता में इजाफा हुआ है, मुझे यकीन है कि यह प्रवृत्ति भविष्य में भी जारी रहेगी.