राहुल गांधी कहां हैं? अभी तमिलनाडु में पोंगल समारोहों में लाजवाब भोजन ही कर रहे हैं? बेशक, मेरे सवाल भारतीय जनता पार्टी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ‘एएस’—जिनका जिक्र अर्णब गोस्वामी की बार्क के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता के साथ कथित व्हाट्सएप चैट में आया था—पर लक्षित होने चाहिए. लेकिन एक राजनीतिक विश्लेषक के नाते मैं सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट रूप में, केवल तथ्यों के आधार पर सवाल उठा सकती हूं और उम्मीद करती हूं कि कोई इन्हें पढ़ेगा और इन पर संज्ञान लेगा.
लेकिन आक्रोश जताने पर तो विपक्ष का एकाधिकार है. यदि यह उम्मीद की जाती है कि हम ही उनकी ओर से आवाज उठाएं तो भारत सिर्फ एक राजनीतिक दल वाला छद्म लोकतंत्र बन सकता है. विपक्ष की ओर से होने वाले तीखे सवाल कहां हैं? और पाक-साफ होने दावा करने वाला टेलीविजन मीडिया कहां हैं, जिनके एंकर अपने दर्शकों को रिया चक्रवर्ती, दीपिका पादुकोण, सुशांत सिंह राजपूत और अन्य के फोन से लीक हुए चैट संदेशों को पढ़कर सुना रहे थे? बेशक, टाइम्स नाउ अर्णब की लीक व्हाट्सएप चैट पर कार्यक्रम चला रहा है, लेकिन यह कवरेज अर्णब गोस्वामी के मैसेज में बतौर संदर्भ शामिल एएस (जिसे कथित तौर पर गृह मंत्री अमित शाह माना रहा है) द्वारा नविका कुमार को ‘कचरा’ कहे जाने को ‘भुनाने’ से ज्यादा कुछ नहीं है.
अर्णब गोस्वामी की कथित व्हाट्सएप चैट वाले नवीनतम खुलासे, जिसे मुंबई पुलिस ने टीआरपी घोटाले में अपने पूरक आरोपपत्र के साथ कोर्ट में पेश किया है, से दो संभावनाएं सामने आती हैं. या तो भारत का विपक्ष खुद बेहद संशय की स्थिति में है क्योंकि राजनेताओं के सीने में तमाम राज दफ्न होते हैं. या फिर जैसा स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव कहते रहे हैं, ‘कांग्रेस को खत्म होना चाहिए’, कांग्रेस खत्म हो गई है.
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अर्णब के लिए कोई चुनौती नहीं
‘प्रमुख’ ‘राष्ट्रीय’ विपक्षी दल स्पष्ट तौर पर मुर्दा शांति से भर गया है—या फिर टुकड़ों में बिखर गया है—और इसीलिए हम पार्टी में निर्णय लेने में सक्षम किसी व्यक्ति को मुंह खोलते नहीं देखते हैं (इसे गांधी के तौर पर पढ़ें). बेशक, पृथ्वीराज चह्वाण, पी. चिदंबरम और मनीष तिवारी जैसे पार्टी के अन्य लोग ‘अर्णबगेट’ के बारे में बोल रहे हैं, लेकिन फिर सवाल यही उठता है कि पार्टी के भीतर वे कितनी हैसियत रखते हैं?
इन चैट के कारण अर्णब गोस्वामी के खिलाफ सामने आए इतने जबर्दस्त सबूतों—जैसे उदाहरण के तौर पर बालाकोट हवाई हमलों के बारे में पहले से जानकारी होना—के बावजूद शायद ही किसी भी विपक्षी दल में इतनी हिम्मत है कि वह अर्णब गोस्वामी के बारे में बात करे या फिर यह सवाल उठाए कि उन्हें सैन्य खुफिया जानकारी कैसे मिली थी.
ये स्थिति भाजपा के एकदम उलट है जो 2009 में पूर्व कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया, राजनेताओं और पत्रकारों के बीच टेलीफोन वार्ता के ऑडियो लीक होने के दौरान विपक्ष में थी. भाजपा ने सुनिश्चित किया कि हर राजनीतिक रैली और 2014 के लोकसभा चुनाव के पूरे प्रचार अभियान के दौरान कथित 2जी घोटाले का उल्लेख हो. लगातार विपक्षी दबाव के साथ-साथ मीडिया का पूरा जोर भी 2जी घोटाले के आरोपों के इर्द-गिर्द केंद्रित रहने की वजह से ही 2011 में द्रमुक प्रमुख करुणानिधि की बेटी कनिमोई और पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा को गिरफ्तार किया गया. और तब यह मुद्दा गर्माने के लिए अर्णब गोस्वामी तो थे ही. सभी आरोपी 2017 में बरी हो गए थे.
तब से ही, अर्णब गोस्वामी रिपब्लिक टीवी और रिपब्लिक भारत पर अपने शो में बुरी तरह गांधी परिवार के पीछे पड़े रहे हैं. उन्होंने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गांधी का अपमान करने में मर्यादा की तमाम सीमाएं भी लांघ दीं. और अब, जब एक्सपोज हो जाने के कारण वह बैकफुट पर हैं, विपक्ष उन्हें शांति से बैठे रहने, चुप्पी साधे रखने और बुरी तरह फंसा देने वाली चैट पर सवालों से बचने का पूरा मौका दे रहा है.
एक तरफ गांधी परिवार जहां अपने आदर्शों वाला रास्ता अपना रहा है और अर्णब गोस्वामी पर ‘हमलावर’ नहीं हो रहा है, वहीं अर्णब इस शिष्टाचार का भी सम्मान नहीं कर रहे हैं. अर्णब की लीक चैट पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से आए बयान के जवाब में रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था कि कंपनी का कांग्रेस पार्टी से आग्रह है कि ‘जानबूझकर या अनजाने में पाकिस्तान सरकार के साथ मिलकर काम न करे.’ जाहिर है, अर्णब ये भ्रम पाले बैठे हैं कि वे पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं, और इस तरह सैन्य खुफिया जानकारी पर उनकी गैरजिम्मेदाराना चैट पर टिप्पणी करने वाला कोई भी व्यक्ति, उनके मुताबिक ‘भारत-विरोधी’ है. उनके लिए बेहतर यही होगा कि इस भ्रम की स्थिति से जल्द बाहर आ जाएं.
Few days back he returned the Prestigious Rajeev Gandhi Khel Ratna Award in Solidarity .
Today He is Serving langar with us !
He is the one who deserves immense respect !Big Hug @boxervijender Bhai ❤️
Thanks for all support.#FarmersProtest #HaryanaKeLadke pic.twitter.com/4YVLgGyvUM— Bhupender Chaudhary ਭੁਪਿੰਦਰ ਚੌਧਰੀ (@bhupenderc19) December 18, 2020
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महात्मा सिंड्रोम
वह कोई अलग ही दुनिया होगी जहां गांधी परिवार को बदले की कोई भावना न रखने के कारण एक ‘महात्मा’ का दर्जा दिया जा सकता हो. लेकिन यह 2021 है. इसमें एक राम मंदिर निर्मित हो रहा है और भारत के शीर्ष अभिनेताओं में से एक लोगों से इसके लिए चंदा देने को कह रहा है. हम एक महामारी से गुजर रहे हैं और ऐसे टीकों की शुरुआत कर रहे हैं जो क्लीनिकल ट्रायल के सभी चरणों से नहीं गुजरे हैं और हमने चीन के साथ लगभग युद्ध जैसी स्थिति देखी है. महात्मा बनने का समय बीत चुका है. मिशेल ओबामा का ‘गो हाई’ मोदी के भारत में चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त नहीं है.
लेकिन लगता है कि बुद्ध जैसी चुप्पी साधना कांग्रेस की आदत बन गई है. कांग्रेस का तौर-तरीका सुस्ती भरा होने में कुछ भी नया नहीं है. हमेशा ऐसा लगता है कि इसके नेता उस समय प्रहार करना भूल जाते हैं जब लोहा गर्म होता है. जब किसान आंदोलन शुरू हुआ तो कांग्रेस नेतृत्व का कहीं अता-पता नहीं था—निश्चित तौर पर सड़कों पर कहीं नहीं था. यह केवल उनके समय और सुविधा पर निर्भर करता है जिसे वह खुद सामने आने के लिए चुनते हैं—जिस तरह से प्रियंका और राहुल पिछले हफ्ते दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल के आधिकारिक निवास के बाहर कृषि संबंधी बिल वापस लेने के लिए ‘संघर्ष’ करते नजर आए. पिछले 50 दिनों से वे कहां थे जब देश के विभिन्न हिस्सों के आए किसान अन्य प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुट होने के लिए दिल्ली पहुंचने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें सीमाओं पर ही रोक दिया? हरियाणा में पार्टी के नेताओं जैसे जो लोग सामने आए भी, उन पर कोई ध्यान या समर्थन नहीं दिया गया.
विपक्ष की समस्या
कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी समस्या यह कि काम छोटा हो या बड़ा कुछ भी करने के लिए वह पूरी तरह गांधी परिवार पर आश्रित है. कांग्रेस में कई लोग केवल पार्टी संगठन के अंदर आगे बढ़ने के लिए काम करते हैं और फिर राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक बन जाते हैं, जबकि वे जो वास्तव में राजनीतिक रूप से प्रासंगिक होना चाहते हैं/पार्टी के भीतर अप्रासंगिक बना दिए जाते हैं. ऐसे में चुप्पी साधे रखना हर किसी की मजबूरी बन जाती है क्योंकि बोलने का मतलब है मुसीबत मोल लेना. दो प्रकार के कांग्रेसी नेता हैं—एक वे जो गांधी परिवार को ओवरशैडो करना चाहते हैं और दूसरे वे जो उनसे चिपके रहना चाहते हैं. इसकी तुलना भाजपा से करें, तो वह पार्टी और इसकी प्रोपगैंडा मशीनरी के लिए थोड़ा-बहुत योगदान देने वाले को भी पुरस्कृत करती है. इसमें अचरज की कोई बात नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी सोशल मीडिया पर कुछ सबसे ज्यादा शातिर ट्रोल और फेक न्यूज पेडलर्स को फॉलो करते हैं. यह सब उनके प्रयासों को समर्थन और मान्यता देने के लिए है.
मीडिया ने भी स्पष्ट रूप से चुप्पी साध रखी है और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि यदि किसी ने इनक्रिप्ट्रेड चैट संदेशों को ज्यादा कुरेदना शुरू किया तो तमाम पत्रकार पत्रकारिता के बजाये पीएमओ में अपने कनेक्शन जरिये ‘व्यवसाय’ की कोशिश करने वाले दलालों के रूप में बेपर्दा हो जाएंगे.
लेकिन विपक्ष की चुप्पी हर किसी को अपनी-अपनी तरह से खेलने का मौका दे रही है. क्योंकि, सब चंगा सी.
लेखिका एक राजनीतिक पर्यवेक्षक और लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं
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