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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतप्रधानमंत्री जी! आप फुले-आंबेडकर के पिछड़े हैं या सावरकर-गोलवरकर के?

प्रधानमंत्री जी! आप फुले-आंबेडकर के पिछड़े हैं या सावरकर-गोलवरकर के?

प्रधानमंत्री जी, बताइए यह यदि वर्ण-व्यवस्था ही हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना का मूलाधार है, तो फिर किसी पिछड़े (शूद्र) का अपमानित होना स्वाभाविक बात है. यह तो मनुस्मृति कहती है.

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प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक बार फिर खुद को पिछड़ी जाति के साथ जोड़ा है और पिछड़ी जाति के चलते अपमानित होने की बात की है. यह ऐतिहासिक सच है कि आज की अधिकांश ओबीसी जातियां अतीत में शूद्र समुदाय में शामिल रही हैं और उन्हें शूद्र समुदाय में जन्म लेने के चलते द्विजों द्वारा अपमानित किया जाता रहा है. आज भी उनमें से अधिकांश तमाम तरह के अपमान का शिकार हैं.

प्रधानमंत्री जी! प्रश्न यह है कि आप खुद को मनु के अनुयायी और वर्ण-जाति व्यवस्था के समर्थक सावरकर-गोलवरकर के विचारों को मानने वाले पिछड़े (शूद्र) हैं या कि फुले-आंबेडकर की जाति विनाश की विचारों को मानने वाले पिछड़े (शूद्र) हैं.

प्रधानमंत्री जी! आपको पता होगा कि संघ और आपके आदर्श नायक बी.डी. सावरकर अपनी किताब ‘हिंदुत्व’ में साफ शब्दों में लिखते हैं कि ‘वर्ण व्यवस्था हमारी राष्ट्रीयता की लगभग मुख्य पहचान बन गयी है.’ इतना ही नहीं, वे यह भी कहते हैं कि ‘जिस देश में चातुर्यवर्ण नहीं हैवह म्लेच्छ देश है. आर्यावर्त अलग है.’

जिस हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए आप आजीवन संघर्ष करते रहे हैं, उसके संदर्भ में सावरकर का कहना है कि ‘चातुर्यवर्ण या वर्ण व्यवस्थाहिंदू राष्ट्र की परिकल्पना का मूलाधार है.’ ‘वे यहीं नहीं रुकते, इससे भी आगे बढ़कर वे कहते हैं कि ‘ब्राह्मणों का शासनहिंदू राष्ट्र का आदर्श होगा.’ वे पेशावाओं के शासन को हिंदू राष्ट्र का आदर्श रूप मानते थे.

प्रधानमंत्री जी, बताइए यह यदि वर्ण-व्यवस्था ही हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना का मूलाधार है, तो फिर किसी पिछड़े (शूद्र) का अपमानित होना स्वाभाविक बात है. यह तो मनुस्मृति कहती है.


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अब जरा आपके दूसरे नायक गोलवरकर जी को लेते हैं. वर्ण-व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए उन्होंने मुंबई से प्रकाशित मराठी दैनिक ‘नवा काल के 1 जनवरी, 1969 के अंक में कहा है कि ‘वर्णव्यवस्था ईश्वर की निर्मिती है और मनुष्य कितना भी चाहेउसे नष्ट नहीं कर सकता.’ ईश्वर निर्मित व्यवस्था शूद्र तो अपमानित होंगे ही. स्वयं विष्णु के अवतार राम ने शंबूक का वध किया था.

इतना ही नहीं जिस संविधान के चलते आप प्रधानमंत्री हैं, उसके बारे में संघ के मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’, (30 नवम्बर, 1949. पृष्ठ-3) में संघ की ओर से लिखा गया था कि ‘हमारे संविधान में प्राचीन भारत में विलक्षण संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है. मनु की विधि संहिता स्पार्टा के लाइकरगुस या पर्सिया के सोलोन के बहुत पहले लिखी गई थी. आज तक इस विधि की जो ‘मनुस्मृति’ में उल्लेखित है, विश्वभर में सराहना की जाती रही है और यह स्वतःस्फूर्त धार्मिक नियम-पालन तथा समरूपता पैदा करती है. लेकिन, हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए उसका कोई अर्थ नहीं है.’

आरक्षण के संदर्भ में गोलवलकर ने कहा है ‘यह हिंदुओं की सामाजिक एकता पर कुठाराघात है और उससे आपस में सद्भाव पर टिके सदियों पुराने रिश्ते तार-तार होंगे.’ इस बात से इंकार करते हुए कि निम्न जातियों की दुर्दशा के लिए हिंदू समाज व्यवस्था जिम्मेदार रही है. उन्होंने दावा किया कि उनके लिए संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने से आपसी दुर्भावना बढ़ने का खतरा है. (गोलवलकर, बंच ऑफ थाट्स, पेज-363, बंगलौर : साहित्य सिन्धु, 1996)

प्रधानमंत्री जी, उन्हीं के बताए रास्ते पर चलते हुए आप ने सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देकर आरक्षण की मूल भावना को ही नष्ट कर दिया. आंबेडकर द्वारा प्रस्तुत हिंदू कोड बिल के विरोध की अगुआई गोलवरकर ने की थी, जिन्होंने इसी मुद्दे पर अकेले दिल्ली में 79 सभाओं-रैलियों का आयोजन किया था, जिसमें ‘हिंदू संस्कति और परम्परा पर आघात करने के लिए’ नेहरू और आंबेडकर के पुतले जलाए गए थे.

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आंबेडकर की प्रतिमा के सामने नरेंद्र मोदी/ट्विटर

प्रधानमंत्री जी, संघ और आपके ये आदर्श नायक मनुस्मृति और वर्ण-जाति व्यवस्था की भूरि-भरि प्रशंसा करते है और वर्ण-जाति व्यवस्था पर आधारित आदर्श की स्थापना करना चाहते हैं. आप जानते ही हैं कि मनु ने पिछड़ों या शूद्रों के लिए क्या कहा है. उसने साफ शब्दों में कहा है कि ‘ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म है. इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है, उसका कर्म निष्फल होता है.’

तो मनु के नियम से आप सेवक ठहरे, फिर आपका अपमान तो एक धार्मिक कर्तव्य हुआ!

प्रधानमंत्री जी, एक तरफ संघ और उसके नायक वर्ण-जाति व्यवस्था कायम रखना और हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना अपना चरम लक्ष्य मानते हैं. वहीं दूसरी तरफ, फुले और आंबेडकर वर्ण-जाति व्यवस्था का विनाश और हर हालात में इस देश का हिंदू राष्ट्र बनने से रोकना अपना सबसे बड़ा लक्ष्य मानते हैं. आंबेडकर के गुरु जोतीराव फुले का कहना था कि ब्राह्मणवाद-मनुवाद के विनाश के बिना शूद्रों-अतिशूद्रों, महिलाओं और किसानों को मुक्ति नहीं मिल सकती है और न वर्ण-जाति व्यवस्था का विनाश हो सकता है. उनकी किताब ‘गुलामगिरी’ को ब्राह्मणवाद के विनाश को घोषणा-पत्र कहा जाता है.

फुले के शिष्य आंबेडकर के लिए हिंदू राष्ट्र का सीधा अर्थ द्विज वर्चस्व की स्थापना था यानी ब्राह्मणवाद की स्थापना था. वे हिंदू राष्ट्र को मुसलमानों पर हिंदुओं के वर्चस्व तक सीमित नहीं करते थे. जैसा कि भारत का प्रगतिशील वामपंथी या उदारवादी लोग करते हैं. उनके लिए हिंदू राष्ट्र का मतलब दलित, ओबीसी और महिलाओं पर द्विजों के वर्चस्व की स्थापना था.

इसलिए उन्होंने अपनी किताब ‘पाकिस्तान ऑर दि पार्टिशन ऑफ इण्डिया’ (1940) में चेताया था कि ‘अगर हिंदू राज हकीकत बनता है, तब वह इस मुल्क के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा. हिंदू कुछ भी कहें, हिंदू धर्म स्वतंत्रता, समता और बन्धुता के लिए खतरा है. उस आधार पर वह लोकतन्त्र के साथ मेल नहीं खाता है. हिंदू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए.’

प्रधानमंत्री एक तरफ आपके पितृ संगठन संघ और उसके नायकों सावरकर-गोलवरकर के विचार हैं. जो हिंदू राष्ट्र के नाम पर द्विज वर्चस्व को कायम रखना चाहते हैं. दूसरी तरफ फुले और आंबेडकर हैं, जो ब्राह्मणवाद-मनुवाद का विनाश करके वर्ण-जाति व्यवस्था का खात्मा करना चाहते थे.


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आप बताएं आप किसके पिछड़े (शूद्र) हैं? सावरकर-गोलवरकर के या फुले-आंबेडकर के? प्रधानमंत्री जी! गुजरात के मुख्यमंत्री और पिछले पांच वर्षों से भारत के प्रधानमंत्री के रूप में आप ने यह साबित कर दिया है कि आप सावरकर-गोलवरकर के पिछड़े (शूद्रों) हैं, जो इस देश में ब्राह्मणवाद-मनुवाद कायम रखने के लिए जिम्मेदार हैं, जिसके चलते शूद्रों को अपमान सहना पड़ता है और द्विजों की गालियां सुननी पड़ती हैं. अभी हाल में आपने भाजपा का संकल्प-पत्र ( चुनावी घोषणा-पत्र) जारी किया है, जिसमें अपने तीन नायकों श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीरें रखी हैं. तीनों वर्ण-जाति व्यवस्था के समर्थक हैं. आपको एक भी पिछड़ा या दलित नायक के रूप में नहीं मिला?

प्रधानमंत्री जी! फुले-आंबेडकर का स्वाभिमानी पिछड़ा (शूद्र) बनने का दिखावा मत कीजिए. अगर सचमुच में फुले-आंबेडकर का पिछड़ा बनना है तो सावरकर-गोलवरकर के संघ से नाता तोड़िए और फुले-आंबेडकर का पिछड़ा बनकर द्विज वर्चस्व को तोड़ने के लिए दलित-बहुजनों के साथ आइए, जो आपसे होगा नहीं.

(लेखक हिंदी साहित्य में पीएचडी हैं और फ़ॉरवर्ड प्रेस हिंदी के संपादक हैं.)

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