अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बहुप्रतीक्षित बैठक 14 नवंबर को संपन्न हुई, जिसमें दोनों नेताओं ने आपसी संंबंधों को सुधारने के लिए खुलापन दिखाया. इंडोनेशिया के बाली में ग्रुप-20 शिखर सम्मेलन के दौरान, दोनों नेताओं ने यूक्रेन में युद्ध, ताइवान जलडमरूमध्य में तनाव और उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों पर चर्चा की. बैठक पर दुनिया भर की उत्सुक निगाहें थीं, सिर्फ इस वजह से नहीं कि दोनों के बीच की प्रतिद्वंद्विता जटिल है, बल्कि इसलिए भी कि दोनों देशों के बीच पहले की एक कूटनीतिक भेंट संवाददाताओं के सामने मुठभेड़ के समान प्रतिस्पर्धा में बदल गई थी.
पिछले साल एंकोरेज बैठक में, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलीवन के साथ चीन के सबसे वरिष्ठ विदेश नीति अधिकारी यांग जिएची और विदेश मंत्री वांग यी की बातचीत कड़वे माहौल में हुई. यांग जिएची ने ‘अमेरिकी पक्ष के लहजे’ पर विरोध जताया था, जिसने बाइडेन प्रशासन के तहत अमेरिका- चीन रिश्तों की शुरुआत को मुश्किल बना दिया था.
नई रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिकी अनुवादक ने कम से कम सात गलतियां की थीं, जिनकी वजह से अमेरिकी अधिकारियों का लहजा वास्तविकता से कहीं ज्यादा कड़ा और कम कूटनीतिक लगा. यह घटना बहुभाषी दुनिया में जोखिम भरी है जहां इतिहास का संतुलन शब्दों की अलग- अलग व्याख्याओं पर निर्भर करता है. जहां कुछ लोगों ने तर्क दिया कि नाटकीय बातचीत ने स्पष्ट संवाद का रास्ता तैयार किया, वहीं सच ये भी है कि गलत अनुवाद से दोनों पक्ष एक- दूसरे के इरादों पर संदेह कर सकते थे.
अनजाने में किए गए उकसावों पर काबू पाना
एक अनुवादक की नौकरी की खासियत बारे में, साहित्यिक अनुवादक और दुभाषिया ऐना असलान्यान लिखती हैं कि धारणाओं में अंतर और सांस्कृतिक मान्यताओं की वजह से आए फर्क अक्सर अनुवादकों को सिर्फ अपने फैसले पर भरोसा करने के लिए मजबूर कर सकते हैं.
दशकों के वैज्ञानिक शोध ने मानव इंद्रियों और जानकारियों की प्रोसेसिंग की क्षमता की सीमाओं के बारे में बताया है. हर इंसान अपनी जानकारी के आधार पर कई पूर्वाग्रह रखता है जिसका असर फैसले लेने और समस्याओं को सुलझाने पर पड़ता है, और यही पहलू विशेषज्ञता का महत्व कम करके राजनयिक वार्ताओं पर नकारात्मक असर डालता है.
शोध ने यह भी दिखाया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) व्यापक रूप से उपलब्ध प्रौद्योगिकी के तौर पर उभर रहा है, और अगर इसका उचित ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो यह कूटनीति में महत्वपूर्ण फायदे दिला सकता है. एआई डेटा की बहुत बड़ी मात्रा, शायद इंसानों की तुलना में कहीं अधिक डेटा, का समन्वय करके उसका सार सामने ला सकता है,जिससे फैसले लेने और नीतियां बनाने में तेजी आ सकती है.
नतीजतन, यह जानकारी जुटा और छांट सकता है, संभावित परिणामों का पूर्वानुमान कर सकता है और ऐसी सिफारिशें कर सकता है जो कूटनीति से अधिकतम फायदे की कोशिशों को सुधार सकती हैं. अगर रणनीति बनाकर इसका इस्तेमाल किया जाए, तो ये प्रौद्योगिकी जवाब देने में लगने वाले समय और मानवीय भूल को कम कर सकती हैं. उदाहरण के लिए, एआई- संचालित पहनने योग्य गैजेट की मदद से राजनयिक अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में मानवीय अनुवाद की खामियां दूर कर सकते हैं.
ये गैजेट विदेशी भाषा के बड़े से बड़े व्याख्यान का सारांश दे सकते हैं. इनमें बातचीत के दौरान मानवीय भावना में किसी बदलाव को महसूस कर राजनयिक को तुरंत सूचित करने की क्षमता भी है, और यह काफी फायदेमंद खासियत है क्योंकि असलान्यनान ने बताया है कि अनुवादक की असली चिंता शब्द नहीं, बल्कि भाव हैं.
वार्ताएं कूटनीति का आधार होती हैं जिनके विषय होते हैं मौजूदा गतिरोध. उदाहरण के लिए बाली में, आशावाद संतुलित था क्योंकि बाइडेन और शी ने व्यापार प्रतिबंधों, ताइवान में चीन के हितों या बीजिंग के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर असहमति जैसे महत्वपूर्ण विषयों को नहीं सुलझाया, लेकिन खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों पर सहयोग करने पर सहमत हुए.
एक साथ कई समस्याओं का समाधान देने वाली एआई विकसित करने के लक्ष्य से, गूगल डीपमाइंड डिप्लोमेसी नामक बोर्ड गेम का ऐसा मॉडल बना रही है, जिसमें मिश्रित उद्देश्यों और कई एजेंटों के साथ बातचीत की जरूरत होती है. सिर्फ बड़ी टेक कंपनियां ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ खुद 200 से ज्यादा एआई एप्लिकेशंस विकसित कर रहा है.
2020 में, यूएन ग्लोबल पल्स ने डब्ल्यूएचओ रीजनल ऑफिस फॉर अफ्रीका (WHO/AFRO) के साथ मिलकर कोविड- 19 से जुड़े झूठ के बारे में एक परियोजना शुरू की. शोधकर्ताओं का मानना है कि समाज में फैल रही सूचनाओं की बड़ी मात्रा फैसले लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है क्योंकि उन सूचनाओं की गुणवत्ता जांचने के लिए वक्त की कमी है.
यह भी पढ़ेंः ‘नेताजी’ मुलायम सिंह यादव—SP के संस्थापक जिनके सहयोगी, प्रतिद्वंद्वी हमेशा अटकलें लगाते रह जाते थे
तकनीक के साथ व्यक्तिगत संबंधों का मेल
इन सभी मामलों में, एआई आंकड़ों की बाढ़ में से सार्थक चीजें निकालने में नीति- निर्माताओंकी मदद कर सकता है,और उन्हें साझा उद्देश्यों का समन्वयन करने और संकटों को रोकने में सहायक हो सकता है. इनमें से हर उद्देश्य इंसानियत की सेवा के लिए एकजुट प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है.
इस सवाल के पीछे कि क्या एआई इंसानों की जगह ले लेगा, यह धारणा है कि एआई और इंसानों में एक जैसी विशेषताएं और योग्यताएं हैं. एआई- आधारित मशीनें तेज, ज्यादा सटीक, और तर्कसंगत हैं लेकिन उनमें अंतर्ज्ञान, आकर्षण और दूसरों को मनाने की क्षमता नहीं है.
शोध में पाया गया है कि जब बिना छांटे डेटा का इस्तेमाल किया जाता है, तब एआई एल्गोरिदम में नस्लीय, लैंगिक या धार्मिक आधार पर अवांछित पूर्वाग्रह बड़े पैमाने पर आ जाते हैं. वैश्विक राजनीति में, ये प्रौद्योगिकी कई बड़े नैतिक और व्यावहारिक चुनौतियां पेश करती हैं जिन पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों की जरूरत है.
इन समझौतों के लिए राष्ट्रों के बीच तकनीकी विषमताओं, गोपनीयता संबंधी चिंताओं और जासूसी की संभावना पर विचार करने की आवश्यकता होगी. जहां यह टेक्नोलॉजी इंसानों की प्राकृतिक सीमाओं को सफलतापूर्वक पार कर सकती है, इसे एक ऐसे समुदाय द्वारा अपनाए जाने के पहले अच्छे- खासे वक्त की जरूरत होगी जो सिर्फ एक- दूसरे के साथ रिश्तों की परंपरा पर बना है.
बाली के लिए निकलने से पहले बाइडेन ने मीडिया से कहा, ‘मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूं, वो मुझे जानते हैं.’ बाइडेन ऐसे राजनेता हैं जो व्यक्तिगत संबंधों के साथ राजनीतिक संबंधों को मिलाकर कूटनीतिक संबंधों को विकसित करने की अपनी क्षमता पर गर्व करते हैं.
तीन घंटे लंबी चर्चा रचनात्मक थी जो अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक वार्ताओं के लिए अधिक संभावनाओं का संकेत दे रही थी. हो सकता है कि विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन अनजाने में उकसावे से बचने के लिए अपने अनुवादकों को एआई पर भरोसा करने के लिए जोर दें, जब वो अगले साल की शुरुआत में चीन का दौरा करेंगे.
(शिबानी मेहता कार्नेगी इंडिया में सिक्योरिटी स्टडीज प्रोग्राम में सीनियर रिसर्च एनालिस्ट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः मौत के 18 महीने बाद घर में व्यक्ति का ‘ममीकृत शव’ मिलने के बाद कानपुर पुलिस ने जांच शुरू की