अगर आप एयर इंडिया के इकॉनमी क्लास के डोमेस्टिक पैसेंजर हैं तो आपने नोटिस किया होगा कि 20 जून, 2017 के बाद से आपके नाश्ते से ऑमलेट गायब हो गया और लंच और डिनर में हमेशा से मिलने वाला चिकन डिश बंद हो गया. अब आप या तो कटलेट खाएं या इडली या उपमा या पनीर की सब्जी या ऐसा ही कुछ.
लेकिन अगर आप एयर इंडिया में बिजनेस क्लास के पैसेंजर हैं तो आपको नॉन वेज खाना मिलेगा. इंटरनेशनल रूट पर एयर इंडिया अपने तमाम यात्रियों को नॉन वेज की च्वाइस दे रही है. तो आखिर एयर इंडिया चाहती क्या है? वह कहीं वेज और कहीं प्योर नॉन वेज क्यों हैं?
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आज इस राज से पर्दा उठ गया है. सिविल एविएशन मिनिस्ट्री ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया है कि इसकी चार वजहें हैं.
1. खर्चा बचाना. सरकार का कहना है कि इस फैसले से साल में वह 8 से 10 करोड़ रुपए बचाएगी.
2. खाने को बर्बाद होने से बचाना. चूंकि खाना एक तरह का होता है, तो यात्रियों की च्वाइस के कारण उसके बर्बाद होने की आशंका कम होगी.
3. सर्विस बेहतर बनाना. ये कैसे होगा, ये सरकार ने नहीं बताया है.
4. वेज और नॉन वेज खाना आपस में मिल न जाए, इसकी गारंटी करना. हालांकि बिजनेस क्लास के लिए तो उसी प्लेन में नॉन वेज खाना होगा, उसे मिलने से जाने कैसे रोका जाएगा. और इंटरनेशनल फ्लाइट में खाना मिल जाए तो क्या कोई बात नहीं?
सरकार ने इसी सवाल के जवाब में बताया है कि ऐसा करने के पीछे आस्था या विश्वास की कोई बात नहीं है और न ही उसका इरादा अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट में ऐसा करने का है. लेकिन ये तो सार्वजनिक बयानबाजी की बात है.
सरकार दरअसल शाकाहार को बढ़ावा देने के पक्ष में है. इसलिए आप पाएंगे कि सरकारी स्कूलों के पोषाहार में अंडा हटा दिया गया है. ज्यादातर बीजेपी शासित राज्य बच्चों को मिड-डे मील में उबला अंडा नहीं देते. हालांकि कुछ गैर भाजपा शासित राज्य जैसे पंजाब और दिल्ली भी बच्चों को मिड-डे मील में अंडा नहीं देते. स्कूलों ने बच्चों को खाने में अंडे देने की शुरुआत तमिलनाडु में 1989 में हुई, जिसके बाद कई राज्यों ने इसे अपना लिया. लेकिन गुजरात और मध्य प्रदेश राज्यों में जहां बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषित हैं, वहां सरकार बच्चों को उबला अंडा नहीं देती. इसका आधार ये बताया जाता है कि इससे शाकाहारियों की भावना को चोट पहुंचेगी.
पिछले दिनों स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने एक ट्वीट में ये बताने की कोशिश की थी कि नॉन वेज खाना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है. इसलिए सरकार बेशक लोकसभा में कह रही है कि नॉन वेज बंद करने का आस्था और विश्वास से कोई संबंध नहीं है, लेकिन सरकार का वश चले तो वह पूरे देश का वेजिटेरियन बना दे.
जबकि भारत के ज्यादातर लोग नॉन वेजिटेरियन हैं. कई राज्य तो 90% से ज्यादा नॉनवेजिटेरियन हैं और वे मुस्लिम बहुल राज्य नहीं है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक कोलकाता के सिर्फ 4 परसेंट, चेन्नई में सिर्फ 6 परसेंट, हैदराबाद में 11 परसेंट और दिल्ली में 30 परसेंट लोग ही शाकाहारी हैं.
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देश की 70 फीसदी जनता बेशक नॉनवेजिटेरियन है, लेकिन देश के प्रधानमंत्री वेजिटेरियन हैं. जब वे यूनाइटेड अरब अमीरात की यात्रा पर गए थे तो वहां की सरकार ने वहां वेज खाना बनाने के लिए खास तौर पर शेफ संजीव कपूर को बुलाया था. सत्ताधारी बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह भी जैन हैं और शुद्ध शाकाहारी हैं. मुमकिन है कि आरएसएस का शीर्ष नेतृत्व भी वेजिटेरियन हो.
हालांकि न्यायपालिका की राय इस बारे में स्पष्ट है. सईद अहमद बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मुकदमे (6871/2017) में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा है कि जो खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, उसे खराब पसंद नहीं ठहराया जा सकता. क्या सरकार चाहती है कि जनता भी उसकी तरह का खाना खाए?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)