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Monday, 11 August, 2025
होममत-विमतरिपोर्ट लीक हुई, मारे गए पायलटों पर एयर इंडिया क्रैश का ठीकरा फोड़ा गया—लेकिन तस्वीर अब भी साफ नहीं

रिपोर्ट लीक हुई, मारे गए पायलटों पर एयर इंडिया क्रैश का ठीकरा फोड़ा गया—लेकिन तस्वीर अब भी साफ नहीं

भारत और विदेशों में पायलट एसोसिएशनों ने यह सही तौर पर उठाया है कि रिपोर्ट को जिस तरह से तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, वह गलत है. लेकिन बहुत कम लोगों ने यह सवाल उठाया है: क्या रिपोर्ट लीक करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए?

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चूंकि यह कॉलम अहमदाबाद एयरपोर्ट पर हुए दुखद एयर इंडिया क्रैश के बारे में है, इसलिए आगे बढ़ने से पहले मैं कुछ बातें साफ कर देना चाहता हूं.

मैं किसी भी तरह से विमानन विशेषज्ञ नहीं हूँ। लेकिन फिर, जिन 95 प्रतिशत लोगों ने इस हादसे पर टिप्पणी की है, दोष तय किया है, दावा किया है कि उन्हें असल में क्या हुआ, ये सब पता है या फिर एयर इंडिया की आलोचना की है — वे भी विशेषज्ञ नहीं हैं.

इस विषय पर लिखने की मेरी एकमात्र योग्यता यह है कि मैं हर हफ्ते लगभग दो बार उड़ान भरता हूं. ज्यादातर उड़ानें एयर इंडिया की होती हैं. तो अगर हवाई यात्रा — खासकर बोइंग विमान या एयर इंडिया के साथ — इतनी असुरक्षित और अनिश्चित है, तो मुझे भी यह जानने में व्यक्तिगत दिलचस्पी है कि असल में क्या हुआ.

लेकिन दिक्कत यह है: कई दिन बीत जाने और क्रैश की जांच रिपोर्ट आने के बाद भी, मैं पहले से ज्यादा उलझन में हूं.

मुझे चिंता इस बात की है:

अंतरिम जांच रिपोर्ट बताती है कि यह हादसा विमान के इंजनों तक फ्यूल की सप्लाई रुकने के कारण हुआ. रिपोर्ट कहती है कि ईंधन प्रवाह को नियंत्रित करने वाले स्विच पहले बंद किए गए और फिर दोबारा चालू किए गए. लेकिन जब तक पायलटों ने फ्यूल की सप्लाई बहाल करने की कोशिश की, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. विमान क्रैश हो गया.

रिपोर्ट के मुताबिक, पायलटों ने ईंधन की कमी को महसूस किया. इसमें कॉकपिट की बातचीत का एक अंश दिया गया है जिसमें एक पायलट दूसरे से पूछता है कि क्या उसने फ्यूल की सप्लाई बंद की थी. जवाब आता है: नहीं, उसने ऐसा नहीं किया.

यह रिपोर्ट भारतीय जनता को जारी किए जाने से पहले, जिसकी ओर से और जिसकी कीमत पर जांच की गई थी, किसी ने इसे विदेशी मीडिया को लीक कर दिया—कम से कम कुछ हिस्सा तो जरूर. किसने लीक किया? क्यों? क्या इस लीक की कोई जांच हुई? हमारे पास कोई जवाब नहीं है. और ऐसा भी नहीं लग रहा कि कोई जवाब मिलेगा. यह नाकामी भारत के विमानन अधिकारियों और जांच प्रक्रिया की ईमानदारी के बारे में क्या बताती है? आप खुद निष्कर्ष निकाल सकते हैं.

जिन लोगों को यह रिपोर्ट लीक की गई, उन्होंने इसे पश्चिमी मीडिया संग साझा किया—अपनी व्याख्या के साथ। उस व्याख्या को सीधे शब्दों में कहें तो यह था: “इन बेवकूफ भारतीय पायलटों ने खुद ही फ्यूल बंद कर दिया. विमान में कोई खराबी नहीं थी. गलती पायलटों की थी.”

कुछ अपवादों को छोड़कर—जो ज्यादा सावधानी से रिपोर्ट कर रहे थे—बाकी पश्चिमी मीडिया ने ‘बेवकूफ भारतीय पायलटों ने विमान गिरा दिया’ वाली कहानी तीन दिन तक धड़ल्ले से चलाई. रिपोर्ट सोमवार को तैयार होने की चर्चा थी. मंगलवार को ही पश्चिमी मीडिया में ‘पायलटों की गलती’ वाली खबरें आने लगीं. जब यह कहानी पूरी दुनिया की प्रेस में बेरोकटोक चली, तब भारत सरकार ने रिपोर्ट जारी की—चुपचाप, रात के अंधेरे में.

न कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस. न कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण. कुछ नहीं.

यहां तक कि रिपोर्ट में विमान या इंजन निर्माताओं के लिए कोई सिफारिश तक नहीं दी गई थी. इसे व्यापक रूप से, और गलत भी नहीं कहा जाए तो, इस रूप में लिया गया कि विमान और उसके इंजन में कोई खराबी नहीं थी.

तो आम धारणा, जिसकी अगुवाई पश्चिमी मीडिया कर रहा था—जिसे रिपोर्ट लीक हुई थी—यह बनी कि हादसा पायलट की गलती से हुआ. और हमारे लिए शर्म की बात है कि भारत का बड़ा मीडिया—टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक—इसी लाइन को दोहराता रहा.

लेकिन असली बात यह है: रिपोर्ट साफ तौर पर पायलटों को दोष नहीं देती. और आप यह भी कह सकते हैं कि कॉकपिट बातचीत का जो हिस्सा रिपोर्ट में है, वह पायलटों को बेकसूर साबित करता है: उन्हें अचानक ईंधन बंद होने पर हैरानी हुई थी और उन्होंने इससे इनकार किया कि उन्होंने ऐसा कुछ किया.

मरे हुए पायलटों को दोष देना गलत है—वे खुद का बचाव नहीं कर सकते—जबकि उनके पास हजारों घंटे का उड़ान अनुभव और बेदाग रिकॉर्ड था. लेकिन ‘पायलटों की गलती’ वाला सिद्धांत एयर इंडिया की प्रतिष्ठा को भी बड़ा नुकसान पहुंचाता है. क्या अंतरराष्ट्रीय यात्री उस एयरलाइन से उड़ान भरना चाहेंगे जो ‘नाकाबिल पायलटों’ को नौकरी देती हो?

भारत और विदेशों में पायलट संघों ने, बिल्कुल सही तरीके से, इस रिपोर्ट की व्याख्या के तरीके पर आपत्ति जताई है. लेकिन इतने लोग उस गंभीर सवाल को नहीं उठा रहे: उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही जिन्होंने रिपोर्ट को खास लोगों को लीक किया, और भारतीय विमानन, इसके पायलटों और एयर इंडिया की साख को ठेस पहुंचाई? क्या यह नौकरी से निकाले जाने लायक अपराध नहीं है?

एक यात्री के नजरिए से देखें तो अब भी कुछ साफ नहीं है. क्या पायलटों ने गलती से ईंधन बंद कर दिया और फिर चालू किया? यह अब और भी अविश्वसनीय लगता है. यह कोई एक बटन दबाने का मामला नहीं है, इसमें कई चरण होते हैं. हमसे कहा जा रहा है कि पायलटों ने दोनों ईंधन स्विच बंद किए, फिर चालू किए, फिर विमान को स्थिर करने की कोशिश की—यह सब विमान के 30 सेकंड तक उड़ान में रहने के दौरान हुआ. हो सकता है. लेकिन यह बहुत संभव नहीं लगता.

अब सोशल मीडिया पर एक और सिद्धांत तैर रहा है: कि पायलटों ने यह जानबूझकर किया. मैं इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा, सिवाय इसके कि दोनों में से किसी के रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे लगे कि वे सामूहिक हत्या कर सकते हैं. और मान लें कि उनमें से कोई आत्मघाती था—जिसका कोई सबूत नहीं है—तो भी वह ऐसा क्यों करता? मरने के और भी आसान तरीके हैं, जो इतने विनाशकारी नहीं होते.

तो फिर क्या हुआ?

डरावनी सच्चाई ये है: हमें कुछ पता नहीं है.

संभव है कि किसी तकनीकी खराबी की वजह से फ्यूल वाल्व बंद हो गया हो या फिर स्विच ही खराब रहा हो. कुछ दूसरे विमानों में भी ऐसे ही मामले सामने आए हैं. लेकिन रिपोर्ट इन संभावनाओं को खारिज कर देती है और विमान और उसके सिस्टम को पूरी तरह क्लीन चिट दे देती है.

मैं वही गलती नहीं करना चाहता जो पश्चिमी मीडिया ने की — बिना सबूत किसी को बलि का बकरा बना देना. लेकिन हादसे के बाद से ही बोइंग पर सवाल उठते रहे हैं. हाल के वर्षों में बोइंग की साख पर सवाल उठे हैं कि कंपनी ने पैसे बचाने और मुनाफा बढ़ाने के लिए सुरक्षा के साथ समझौता किया. कंपनी अभी तक 737 मैक्स स्कैंडल से उबर नहीं पाई है, और उसके सीनियर अधिकारियों को अमेरिकी संसद की समितियों के सामने शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है.

अगर इस क्रैश का कोई हिस्सा बोइंग की लापरवाही से जुड़ा हुआ निकला, तो इससे कंपनी को ऐसा झटका लग सकता है जिससे वह कभी उबर न पाए.

तो क्या रिपोर्ट बोइंग ने लीक की? क्या बोइंग ने ‘पायलट की गलती’ वाला नैरेटिव फैलाया? उसके पास मीडिया को प्रभावित करने की ताकत है और भारतीय अफसरों को खरीदने लायक पैसे भी.

लेकिन मैं वो खेल नहीं खेलने वाला. जैसे बिना सबूत पायलट्स को दोषी ठहराना गलत है, वैसे ही बोइंग को भी बिना ठोस सबूत के दोषी ठहराना गलत है.

और हम मुसाफिर वहीं खड़े हैं जहां से शुरू किया था.

एक विमान रहस्यमयी हालात में क्रैश हुआ. एक अंतरिम रिपोर्ट लीक हुई और उसे दो मृत पायलटों को दोषी ठहराने के लिए तोड़ा-मरोड़ा गया. और हम अब भी यही पूछ रहे हैं: क्या अब उड़ना पहले से ज्यादा सुरक्षित है? क्या हम भरोसे से कह सकते हैं कि ऐसा दोबारा नहीं होगा?

अब भी हमारे पास कोई जवाब नहीं है.

वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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