scorecardresearch
Saturday, 23 November, 2024
होममत-विमतअग्निपथ की दिशा सही है लेकिन अमित शाह को राजी तो करवाए मोदी सरकार

अग्निपथ की दिशा सही है लेकिन अमित शाह को राजी तो करवाए मोदी सरकार

गृह मंत्रालय को अपना पारंपरिक रुख बदल कर रास्ता दिखाना होगा. यह ऐसी शर्त है जो राजनीतिक जिम्मेदारी है. अल्पावधि सेवा का अधिकतम उपयोग करना सेना की जिम्मेदारी है. दोनों को पूरा किया जा सकता है.

Text Size:

ऐसा शायद ही होता है कि एक अच्छे-से नाम वाली योजना अपने नाम को शब्दशः चरितार्थ कर देती हो. ‘अग्निपथ’ योजना के साथ ऐसा ही होता दिख रहा है. इसकी घोषणा होते ही देश मानो अग्निपथ पर चल पड़ा है. बेरोजगारों की भड़की हुई भावनाएं खुल कर सामने आ रही हैं और नरेंद्र मोदी सरकार के उन रक्षा सुधारों को निशाना बनाया जा रहा है जिनके तहत युवाओं को देश की सेवा का मौका देने का वादा किया गया है.

विडंबना साफ उभरकर सामने आई है.

भावी ‘अग्निवीरों’ को लग रहा है कि सरकार ने उनके साथ बुरा किया है और सरकारी नौकरी के मुख्य आकर्षण, रोजगार की स्थिरता और पेंशन के वादे को खत्म कर दिया है.

इस योजना के तहत चुने गए युवाओं को तीनों सेना में चार साल की नौकरी देने का वादा किया गया है लेकिन केवल उनमें से 25 प्रतिशत को ही स्थायी नौकरी देने की व्यवस्था की गई है जिससे सेवानिवृत्त होने पर जीवनभर पेंशन, स्वास्थ्य सेवा तथा सेना की कैंटीन आदि की सेवाओं का लाभ मिलता है.

सेना में दो साल के लिए भर्ती पर लगी रोक और इस योजना के लिए 17-21 साल की उम्र सीमा के चलते कई युवक इस योजना के लिए अयोग्य हो गए और सेना की वर्दी धारण करने की उनकी उम्मीदें टूट गईं.


यह भी पढ़ें: वफादार सेवक खोजने के सिवाए CDS के लिए ‘च्वाइस पूल’ का विस्तार नहीं करना चाहिए


कामचलाऊ उपायों से बात नहीं बनेगी

हिंसा को रोकने के लिए मोदी सरकार ने तुरंत कई कदमों की घोषणा की, जिनमें अग्निवीरों को रक्षा मंत्रालय, सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेज़ और असम राइफल्स की नौकरियों में 10 फीसदी का आरक्षण और राज्यों की पुलिस सेवा और मर्चेन्ट नेवी में रोजगार के अवसरों में भी मौका देने का वादा शामिल है. इनमें कुछ शैक्षणिक और हुनर विकास के अवसरों के साथ कॉर्पोरेट सेक्टर में भी नौकरी देने का वादा शामिल है.

17 जून को घोषणा की गई कि एक बार के लिए उम्र सीमा बढ़ाकर 23 साल की जा रही है, हालांकि इससे रक्षा सुधारों के इस लक्ष्य पर कुछ हद तक प्रतिकूल असर पड़ेगा कि सैनिकों की औसत उम्र घटाई जाए.

लेकिन इनमें से किसी उपाय ने अग्निवीरों को राहत और रोजगार का आश्वासन नहीं दिया. गृह मंत्रालय ने यह आश्वासन देने से मना कर दिया, हालांकि रक्षा मामलों की संसदीय स्थायी कमिटी ने इसकी सिफारिश की थी. ऐसा लगता है कि रोजगार का आश्वासन देने वाला मुख्य मंच, गृह मंत्रालय ‘अग्निपथ’ योजना पर झुकने को तैयार नहीं है.

जब तक यह आश्वासन नहीं मिलता तब तक सेना में चार साल सेवा देकर निकले युवाओं को पुलिस या किसी दूसरे महकमे में आरक्षण का वादा रोजगार की निरंतरता को लेकर उनके डर को दूर नहीं करेगा. इस आश्वासन के साथ उन्हें चार साल की सेवा करने के बाद वरिष्ठता की सुरक्षा का भी आश्वासन मिलना चाहिए. सरकार को इस बारे में तुरंत फैसला करना होगा और यह न केवल पुलिस में बल्कि केंद्र तथा राज्य सरकारों के दूसरे विभागों में भी खाली पदों के बारे में करना होगा.


यह भी पढ़ें: कश्मीरी पंडितों पर हमले सिर्फ बातचीत से रुक सकते हैं, सेना से नहीं, मगर पहले जम्मू-कश्मीर को राज्य तो बनाइए


मानव क्षमता का उपयोग

‘अग्निपथ’ योजना के तहत भारत के लिए अवसर यह है कि सेना के लिए पूरी उम्र तक सेवा करने वाली सर्वश्रेष्ठ मानव शक्ति उपलब्ध कराई जाए. यह तभी संभव है जब दूसरे मंत्रालय केंद्र तथा राज्यों के स्तरों सहयोग करें. सेना से कर्मचारियों का दूसरे सरकारी महकमों में निरंतर व्यवस्थित प्रवाह इस योजना का मूल पहलू होना चाहिए. ऐसा नहीं हुआ तो उम्मीदवार बड़ी संख्या में होंगे और वे बड़ी कमजोरी के शिकार होंगे. गुणवत्ता के लिहाज से भर्ती का स्रोत सिकुड़ेगा और उपलब्ध क्षमताओं का पूरा उपयोग नहीं हो पाएगा.

यह तो स्पष्ट ही है कि भारत प्रगति के लिए मानव क्षमता का उपयोग करने में विफल ही रहा है. नीति के लिहाज से, ‘अग्निपथ’ योजना सही दिशा में है. देश की सेनाओं के लिए जोशीले और शिक्षित युवाओं की जरूरत है जिनका चयन अखिल भारतीय स्तर पर व्यावहारिक और समतापूर्ण भर्ती व्यवस्था के तहत हो. इस योजना ने फिलहाल तो भर्ती व्यवस्था को अछूता छोड़ा है. जाहिर है, तीनों सेनाओं के हाथ में जो चयन प्रक्रिया है उसकी इस दृष्टि से समीक्षा करने की जरूरत है कि चयन का स्तर सेना की जरूरतों को पूरा करता हो.

चुनौती यह है कि सेना का नेतृत्व ऐसी भर्ती प्रक्रिया के लिए चयन की कसौटी के बारे में फैसला करें और उसे लागू करें जो प्रक्रिया इस योजना को लागू करने में सबसे अच्छी तरह काम आए. आदर्श स्थिति तो यह होगी कि जो साधन अपनाया जाए वह सेना में किसी पद के लिए समान अवसर उपलब्ध कराता हो.

उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय स्तर पर वाहन ड्राइवरों की भर्ती एक व्यापार के तौर पर सबके लिए खुली हो. सेना में सामान्य ड्यूटी के लिए नियुक्त व्यक्ति के साथ क्षेत्र, जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव न किया जाए.

यह सब कहना आसान है, करना मुश्किल. इसके लिए मौजूदा भर्ती व्यवस्था की आमूल जांच जरूरी है. केवल तीन महीने में ऐसी व्यवस्था तैयार कर लेना बड़ी महत्वाकांक्षा ही मानी जाएगी लेकिन इसे तेजी से तैयार करना होगा क्योंकि इस योजना की शुरुआत यहीं से होती है.


यह भी पढ़ें: गलवान के दो साल बाद चीनी सरकार और मीडिया ने लोगों को क्या बताया


चुनौती क्या है

‘अग्निपथ’ योजना तभी सफल हो सकती है जब सरकार के नजरिए को व्यावहारिक संपूर्णता में आगे बढ़ाया जाए और पूरा किया जाए.

मेरा मानना है कि इस योजना से परिवर्तन की जिस दिशा की ओर जाने की कोशिश की जा रही है, उसे समर्थन देने की जरूरत है क्योंकि इससे सेना को प्रभावी बनाया जा सकता है, उसके पेंशन बिल को कम किया जा सकता है और युद्धक यूनिटों को अखिल भारतीय स्तर का स्वरूप दिया जा सकता है.

पेंशन बिल में हुई बचत से बेशक निकट भविष्य में सेना के आधुनिकीकरण के लिए वित्तीय साधन नहीं हासिल हो सकता, क्योंकि अब तक भर्ती किए गए 16 साल बाद ही सेवानिवृत्त होंगे. इसलिए, चुनौती यह है कि इस योजना को अपनाते और लागू करते हुए सेना की प्रभावशीलता को कायम रखा जाए.

सेना में अल्पावधि वाले कैरियर के अवसर उपलब्ध कराने और उसे रोजगार की मांग के साथ जोड़ने की जरूरत की सही पहचान की गई है और उसे महत्व देने की कोशिश की जा रही है. इसे लागू करने के लिए सेना के अलावा विभिन्न महकमों और सरकार के विभिन्न स्तरों पर मानसिकता बदलनी होगी. अपना मैदान और अपनी मान्यताएं सुरक्षित रखने की मानसकिता छोड़नी होगी और देश की बड़ी जरूरतों की कीमत पर किए जाने वाले बदलावों का विरोध करने की मानसिकता बनानी होगी.


यह भी पढ़ें: अग्निपथ योजना इस बात का प्रमाण है कि मोदी सरकार बदलाव ला सकती है, लेकिन खुला दिमाग लेकर आगे बढ़ें


गृह मंत्रालय राह बनाए

‘अग्निपथ’ योजना को तभी सफल बनाया जा सकता है जब अल्प अवधि के बाद सेना से बाहर होने वालों को दूसरे विभागों में भेजने की प्रक्रियाएं तय हों.

गृह मंत्रालय को अपना पारंपरिक रुख बदल कर रास्ता दिखाना होगा. यह ऐसी शर्त है जो राजनीतिक जिम्मेदारी है.

अल्पावधि सेवा का अधिकतम उपयोग करना सेना की ज़िम्मेदारी है. दोनों को पूरा किया जा सकता है, अगर इस योजना में किए जाने वाले बदलावों की पहचान की जाए और उन्हें लागू किया जाए. एक बार जब ‘अग्निवीरों’ के प्रवास को कबूल कर लिया जाता है तो उनकी सेवा को बढ़ाकर पांच से सात वर्ष का किया जा सकता है. यह ‘अग्निवीरों’ को संभालने की जो चुनौती सेना के सामने होगी वह आसान हो जाएगी.

चार साल की अवधि शायद इसलिए रखी गई कि इससे आगे बढ़ने पर श्रम कानून के प्रावधान लागू हो जाते और ग्रेच्युटी देने की बाध्यता लागू हो जाती.

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज के डायरेक्टर हैं; वे नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट के पूर्व सैन्य सलाहकार भी हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी है)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: अग्निपथ विरोधी आंदोलनकारियों के घरों पर बुलडोजर क्यों नहीं चला रही है BJP सरकार


 

share & View comments