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Sunday, 22 December, 2024
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लद्दाख में चीनी सेना का एजेंडा— भारत को हतोत्साहित करो, अपनी शर्तें मनवाओ

हतोत्साहित करने का चीनी भाषा में शब्द है— ‘वेई शे’. इसमें हतोत्साहित करने और कार्रवाई के लिए मजबूर करने की रणनीतियां समाहित हैं और उनमें कोई भेद नहीं किया जाता.

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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जब अमेरिका द्वारा 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर ‘छोटे बच्चे और मोटे आदमी’ (परमाणु बमों) को गिराकर पेश किए गए ‘उदाहरण’ का जिक्र किया, तब एक और परमाणु हमले की संभावना और प्रबल हो गई.

पुतिन ने जो कहा उसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों (आइआर) की भाषा में परमाणु संकेत या संकट के संकेत के रूप में, किसी देश के नेता के द्वारा अपने दुश्मन देश को परमाणु अस्त्र का प्रयोग करने के अपने इरादे को स्पष्ट करने के संकेत के रूप में जाना जाता है. यह संकेत सार्वजनिक बयान देकर, परमाणु अस्त्रों के प्रयोग के सैन्य अभ्यास के जरिए, वास्तविक परमाणु परीक्षण के जरिए, या परमाणु अस्त्रों के स्थानांतरण के जरिए दिया जाता है जिस पर दुश्मन देश का ध्यान जरूर जाए.

दुश्मन देश को कार्रवाई करने से हतोत्साहित करने या कार्रवाई करने को मजबूर करने के इरादों में फर्क करने की समझ लद्दाख में भारत को कार्रवाई करने से रोकने की चीनी सैन्य रणनीति को समझने के लिए बहुत जरूरी है.

हतोत्साहित करने की चीनी रणनीति

हतोत्साहित करने का चीनी भाषा में शब्द है— ‘वेई शे’, और यह इसके अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द से भिन्न है. इसमें हतोत्साहित करने और कार्रवाई के लिए मजबूर करने की रणनीतियां समाहित हैं और उनमें कोई भेद नहीं किया जाता. हतोत्साहित करने की रणनीति के तहत दुश्मन को अपनी धमकी पर अमल करने से रोका जाता है, जबकि कार्रवाई के लिए मजबूर करने की रणनीति में दुश्मन को युद्ध के दौरान अपने व्यवहार बदलने या उसे अपनी विदेश नीति संबंधी हितों को बदलने के लिए मजबूर किया जाता है. लेकिन चीनी रणनीति इन दोनों रणनीतियों को जोड़ देती है और परीक्षणों के प्रदर्शनों, तथा मीडिया के जरिए मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ा कर दुश्मन को अधिक सक्रियता से कार्रवाई करने को मजबूर करती है. चीनी सैन्य एवं सुरक्षा मामलों में शोध करने वाले डीन चेंग ने ‘एनएल आर्म्स नीदरलैंड्स एनुअल रिव्यू ऑफ मिलिटरी स्टडीज़ 2020’ में लिखा है, ‘परमाणु धमकी की रणनीति में परमाणु शक्ति का या उन्हें तैनात करने का डर दिखाया जाता है ताकि दुश्मन को भयभीत किया जा सके और उसकी सैन्य गतिविधियों को बाधित किया जा सके.’

चेंग ने आगे बताया है कि दुश्मन को हतोत्साहित करने की रणनीति की चीनी अवधारणा ‘आइआर’ के तहत इसकी ठेठ अवधारणा से किस तरह भिन्न है. अपनी पुस्तक ‘एन ओवरव्यू ऑफ चाइनीज़ थिंकिंग अबाउट डेटरेंस’ में उन्होंने लिखा है, ‘गौर करने वाली बात यह है कि चीनी साहित्य में न केवल क्षमता और संकल्प के महत्व का साफ जिक्र किया गया है बल्कि इन दोनों तत्वों से उसे भी अवगत कराने की बात कही गई है जिसे हतोत्साहित करने का इरादा हो.’

चीन ने हाल में अपनी परमाणु अस्त्र तकनीक और हाइपरसोनिक हथियारों को आधुनिक बनाने पर जो निवेश किया है उसे इसी रणनीति के संदर्भ में देखना चाहिए. चीनी शब्द ‘वेई शे’ मिसाइल के परीक्षण या परमाणु क्षमता के प्रदर्शन के मकसद को निर्धारित करने के लिए काफी महत्व रखता है. इसलिए हीं की मिसाइल सेना प्रदर्शन के लिए परीक्षण करती रहती है ताकि संभावित हमलावरों को चेताया जा सके और साथ ही, उन्हें अपना व्यवहार बदलने पर मजबूर किया जा सके.

साफ शुरू की ‘द साइंस ऑफ मिलिटरी स्ट्रेटेजी’ के 2005 के संस्करण में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के जनरल पेंग ग्वांगकीयान और जनरल याओ यूझी ने दुश्मन को हतोत्साहित करने की चीनी चाल को इस तरह स्पष्ट किया है, ‘धमकाने की दो मूल भूमिका होती है. एक तो दुश्मन को कुछ करने से हतोत्साहित करना; दूसरे, दुश्मन को वह करने के लिए मजबूर करना जो धमकी देकर आप उससे करवाना चाहते हैं; और दोनों का लक्ष्य यह है कि दुश्मन धमकाने वाले की मर्जी के आगे हथियार डाल दे.’

चीन ने ‘वीचैट’ और ‘वेइबो’ समेत कई नये मीडिया प्लेटफॉर्मों के उभार के जरिए धमकाने के सूत्रों में वृद्धि कर दी है. संकट का संकेत देने वाले पारंपरिक संकेत के संदर्भ में चीन पहले सरकारी मीडिया का इस्तेमाल करता था जिसमें ‘द पीपुल्स डेली’, ‘पीएलए डेली’, और ‘चाइना डेली’ शामिल थे. ‘रैंड’ कॉर्पोरेशन के शोधकरतेया नाथन ब्यूचेंप-मुस्तफागा तथा दूसरों का कहना है कि चीन की ओर से चेतावनी देने वाले संकेतों को समझने के लिए सरकारी मीडिया द्वारा ‘वीचैट’ और ‘वेइबो’ के इस्तेमाल को समझना काफी अहम है.

‘डेसिफरिंग चाइनीज़ डेटरेंस सिग्नलिंग इन द न्यू एरा’ नामक शोधपत्र में नाथन ब्यूचेंप-मुस्तफागा तथा दूसरों ने लिखा है कि ‘दक्षिण चीन सागर पर अपने दावों की अंतरराष्ट्रीय वैधता का मुकदमा जुलाई 2016 में हारने के बाद चीनी वायुसेना के एच-6के बमवर्षकों ने स्कारबरो शोल, जो फिलीपींस के साथ उसके विवाद का स्रोत एक है, के ऊपर उड़ान भरी और चीन ने इसकी सूचना सबसे पहले सोशल मीडिया ‘वेईबो’ पर दी, जो ट्वीटर का चीनी संस्करण है.

डोकलम में 2017 में टकराव के दौरान भी पीएलए ने यह तरीका अपनाया था.

नाथन ब्यूचेंप-मुस्तफागा तथा दूसरों ने लिखा है कि ‘तिब्बत के पठार पर पीएलए के सैन्य अभ्यास भी अपनी क्षमताओं, तैयारी, गतिविधियों का प्रदर्शन था, और उसका मकसद चीन की सैन्य बढ़त जाताना, भारतीय सेना के मनोबल को कमजोर करना और भारत को हमला करने से रोकना था.’


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ताइवान दौरा भावी कार्रवाई का संकेत

अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नान्सी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद चीन ने जो सैन्य गतिविधि शुरू की उससे संकेत मिलता है कि चीन भविष्य में किस तरह का संकट खड़ा कर सकता है. पेलोसी के दौरे को लेकर प्रतिक्रियाएं चीन के सोशल मीडिया पर तभी आने लगी थीं जब कि अधिकृत सरकारी मीडिया ने संदेश देना शुरू भी नहीं किया था. ताइवान के इर्दगिर्द पूरे पैमाने पर सैन्य अभ्यास शुरू करने और पीएलए द्वारा डीएफ-15 मिसाइल दागे जाने से पहले ही सरकारी मीडिया ने सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा दिया था. पीएलए ने पेलोसी के दौरे के दौरान संकट का संकेत देने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया और बाद में सरकारी मीडिया पर लिखे लेखों में चेतावनी और स्पष्ट रूप से दी.

राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वू कियान ने 2 अगस्त को कहा, “वे बहुत खतरनाक काम कर रहे हैं, जिसके गन्भ्हर परिणाम हो सकते हैं. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी हाई अलर्ट पर है और वह इसका जवाब देने, राष्ट्रीय संप्रभुता तथा भौगोलिक अखंडता की रक्षा करने, बाहरी दखल, ‘ताइवान की आज़ादी’ की कोशिशों का सामना करने के लिए कई सैन्य कार्रवाई कर सकती है.”

वार्षिक सैन्य अभ्यास और हथियारों के परीक्षण इस तरह के होते जा रहे हैं कि यह फर्क करना मुश्किल होता जा रहा है कि वास्तव में संकट का संकेत कब दिया जा रहा है. चीन लद्दाख और तिब्बत में अपने सैन्य अभ्यासों का खुला विज्ञापन कर रहा है, सरकारी मीडिया के अलावा भी संचार के चैनलों की संख्या बहुत बढ़ गई है. डोकलम में चीन अपना मकसद पूरी तरह हासिल नहीं कर सकता, हालांकि वह मौजूदा गतिरोध में यह हासिल करन चाहता है, इसलिए इसके मुक़ाबले लद्दाख में वह संकट का संकेत ज्यादा स्पष्ट रूप से दे रहा है.

लद्दाख में उसकी रणनीति यह दिखती है कि भारत को उस क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर की नयी परियोजनाएं लागू करके बराबरी हासिल करने से रोके और उसे नयी यथास्थिति को मंजूर करने के लिए मजबूर करे. चीन की दूसरी रणनीति यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार को अमेरिका और क्वाड से जुड़ने के इरादे को बदलने के लिए मजबूर करे.

जब चीनी राजनयिक यह कह रहे हों कि भारत-चीन सीमा विवाद ‘सामान्य’ स्थिति में पहुंच गया है, और चीनी सेना मिसालों के परीक्षण तथा सैन्य अभ्यास कर रही हो तब रणनीति यही लगती है कि दुश्मन को अपनी शर्तें मानने को मजबूर किया जाए. कूटनीति से मकसद हासिल करने की अपनी सीमाएं हैं; चीन भारत के संदर्भ में संकट को रणनीतिक लक्ष्य के तौर पर ले रहा है. लद्दाख के कुछ क्षेत्रों को लेकर विवाद को ‘संप्रभुता का मसला’ (चीनी सरकारी मीडिया के मुताबिक) बनाना भविष्य के टकरावों के लिए एक उदाहरण बन सकता है.

इन सारे संकेतों को समझना चीन की धमकाने वाली रणनीति और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भावी कार्रवाइयों का मतलब समझने के लिए निर्णायक साबित हो सकता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक एक स्तंभकार और एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो वर्तमान में स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज. लंदन यूनिवर्सिटी में चीन पर ध्यान केंद्रित करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एमएससी कर रहे हैं. वह पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीन मामलों के मीडिया पत्रकार थे. वे @aadilbrar से ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)


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