तमिल निर्देशक पीए रंजीत ने एक बार कहा था, ‘पृष्ठभूमि ही सब कुछ होती है…वो वहां रह रहे लोगों की कहानी कहती है. हर पृष्ठभूमि के पीछे एक कहानी होती है और मेरा मानना है कि उसका बहुत योगदान होता है’.
बरसों तक बॉलीवुड के जातिवादी फिल्मकार, बीआर आम्बेडकर के साथ किसी अछूत की तरह बर्ताव करते रहे. अग्रभाग को तो छोड़िए, लंबे समय तक उन्हें दृष्यों की पृष्ठभूमि से भी मिटाकर रखा गया.
मिसाल के तौर पर, 1982 की हॉलीवुड क्लासिक गांधी को ही ले लीजिए. न केवल आम्बेडकर का किरदार कहीं नहीं था, बल्कि साढ़े 3 घंटे की लंबी फिल्म के दौरान उनका कोई ज़िक्र भी नहीं हुआ. ये बेहद ताज्जुब की बात थी, अगर आप भारत के इतिहास में आम्बेडकर की हैसियत को देखें- भारत के संविधान के निर्माता, पहले क़ानून व न्याय मंत्री, और दबे कुचले वर्गों व महिलाओं के सबसे मुखर हिमायती.
किसी भी ऐतिहासिक हस्ती की जीवनी में उसे दर्शाए जाने के साथ, उसके प्रमुख विरोधियों को भी दिखाया जाता है. अपने सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक रुख को लेकर, आम्बेडकर गांधी को बचाव की मुद्रा में ले आने के लिए जाने जाते थे, जिससे अंत में दलितों का अलग चुनाव क्षेत्र बनाने के मुद्दे पर गांधी को आमरण अनशन पर उतरना पड़ा.
एक तरह से, निर्देशक रिचर्ड एटनबरो की गांधी हालांकि हॉलीवुड में बनी थी लेकिन वो एक बिल्कुल सही चित्रण बन गई, कि भारत के शासक वर्ग ने 90 के दशक तक, असल जीवन में आम्बेडकर के साथ कैसा बर्ताव किया था. आज़ादी के 40 वर्ष बाद तक, संसद के केंद्रीय हॉल में उनकी तस्वीर नहीं थी, इसके बावजूद कि वो भारत के संविधान के मुख्य निर्माता थे. आज़ादी के बाद आम्बेडकर को 32 वर्ष लग गए, भारतीय फिल्मों में नज़र आने में. स्कूल और कॉलेजों की पाठ्य पुस्तकों में भी, उनका या देश के प्रति उनके योगदान का, मुश्किल से ही उल्लेख होता था. बहुत लंबे समय तक वो टीवी, रेडियो, या किसी भी ऑडियो-विज़ुअल सामग्री से ग़ायब रहे.
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भारत की उच्च जातियों ने, जो शासक वर्ग होती थीं, आधुनिक भारत के निर्माता के तौर पर, आम्बेडकर के योगदान की ओर से आंखें मूंद ली थी. कुदरती तौर से हिंदी सिनेमा में भी यही झलकता था.
नगण्य प्रतिनिधित्व सवर्ण निर्माता-निर्देशकों की बनाई हिंदी फिल्मों की पृष्ठभूमि में, उच्च जाति या सवर्ण पृष्ठभूमि के राजनेताओं- जैसे महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, सुभाष चंद्र बोस, यहां तक कि स्वामी विवेकानंद की तस्वीरें, प्रमुख रूप से दिखाई जाती थीं.
अगर बॉलीवुड ने दलितों की कहानियां कभी दिखाईं भी- जो कि वैसे ही दुर्लभ था- तो आम्बेडकर उनमें से गायब होते थे.
इसकी बेहतरीन मिसाल है बिमल रॉय की फिल्म सुजाता (1959), जिसमें ब्रह्मण नायक अधीर चौधरी (सुनील दत्त) को, एक ‘अछूत’ सुजाता (नूतन) से प्यार हो जाता है. अधीर इतनी खुली सोच का है कि अपने घर में रवींद्र नाथ टैगोर, गांधी और विवेकानंद की तस्वीरें रखता है लेकिन आम्बेडकर की नहीं.
आप दलील दे सकते हैं कि 60 के दशक में एक ब्राह्मण को, भले ही वो प्रगतिशील हो, अपने घर में आम्बेडकर का फोटो क्यों रखना चाहिए. ये सही भी हो सकता है लेकिन फिर, मसलन, तपन सिन्हा की फिल्म जिंदगी ज़िंदगी (1972) ले लीजिए, जिसमें सुनील दत्त एक डॉक्टर का रोल करते हैं, जिनका ताल्लुक एक ‘अछूत’ परिवार से है. फिल्म में एक नहीं बल्कि दो अंतर्जातीय प्रेम कहानियां दिखाई जाती हैं लेकिन यहां भी आम्बेडकर पृष्ठभूमि में कहीं नजर नहीं आते.
हिंदी सिनेमा में उनकी मौजूदगी न सिर्फ प्रमुख किरदारों के घरों से गायब थी, बल्कि अदालत कक्षों, पुलिस थानों, और सरकारी दफ्तरों में भी नहीं थी.
लेकिन लीडर के जीवन पर बनी निर्देशक जब्बार पटेल की लोकप्रिय बायोपिक ने, धीरे-धीरे इसे बदलने की कोशिश की. अपनी अंग्रेजी-हिंदी फिल्म डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर (2000) में, उन्होंने आम्बेडकर के जीवन, उनकी शिक्षा और उनके राजनीतिक व प्रोफेशनल सफर का सजीव चित्रण किया है. उन्होंने आम्बेडकर के गांधी के साथ हुए मशहूर टकराव को शो केस किया है और दोनों के विपरीत राजनीतिक विचारों को बेहतरीन ढंग से पेश किया.
फिल्म कामयाब रही, हालांकि उसकी स्क्रीनिंग्स की संख्या कम रही और निर्माताओं ने उसका कई भाषाओं में रूपांतर करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. मसलन, तमिलनाडु में, फिल्म के पूरा हो जाने के तकरीबन 12 साल बाद भी, इसे आम लोगों के लिए रिलीज नहीं किया गया. कहा जाता है कि अधिकारी लोग इसे बड़ी संख्या में दर्शकों तक नहीं ले जाना चाहते थे.
मराठी फिल्म इंडस्ट्री से ताल्लुक़ रखने वाले पटेल, शायद पहले निर्देशक थे जिन्होंने अपनी फिल्म की पृष्ठभूमि में, आम्बेडकर की फ्रेम की हुई तस्वीरें इस्तेमाल की, जिसकी शुरुआत 1979 में उनकी क्लासिक राजतीनिक ड्रामा फिल्म सिंहासन से हुई. संयोग से ये वही साल था जब शरद पवार की अगुवाई वाली महाराष्ट्र सरकार ने आम्बेडकर के अप्रकाशित लेखों और भाषणों के वॉल्यूम्स छापने शुरू किए. आम्बेडकर जैसे किरदार की सर्वव्यापकता दिखाने के लिए किसी ने पृष्ठभूमि चित्रों का ऐसा शानदार इस्तेमाल नहीं किया, जैसा जब्बार पटेल ने.
स्मिता पाटित द्वारा अभिनीत उनकी मराठी फिल्म उंबर्था (1982) में, पाटिल के महिला आश्रम के दफ्तर की दीवार पर, आम्बेडकर की एक बड़ी तस्वीर देखी जा सकती थी. अंतर्जातीय प्रेम कहानी पर आधारित, पटेल की पुरस्कार विजेता फिल्म मुक्ता (1994) में, आम्बेडकर एक बार फिर पृष्ठभूमि में नज़र आए.
80 के दशक में बीएसपी का आश्चर्य
लेकिन, कुछ एक मराठी फिल्मों को छोड़कर, 1985 तक हिंदी सिनेमा को नहीं लगा कि आम्बेडकर फिल्मों की पृष्ठभूमि के लायक थे. ये वो समय था जब कांशीराम की अगुवाई में, ख़ासकर उत्तरी भारत में, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) एक मज़बूत राजनीतिक ताक़त बन कर उभरी.
बहुजन दावे की ये नई लहर आम्बेडकर की प्रतिमाओं की सूरत में प्रकट हुई, जो शहरों और कस्बों के कोने-कोने में स्थापित की जाने लगी, हालांकि बीएसपी 1995 तक औपचारिक रूप से सत्ता में नहीं आई थी. कांशीराम दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस4) और बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटी एंप्लॉइज फेडरेशन (बीएएमसीईएफ) का हिस्सा थे, जो एससी, एसटी और ओबीसी माइनॉरिटी एंप्लॉइज की एसोसिएशन थी. ये सब सरकारी बिल्डिंगों के अंदर अपने दफ्तरों की दीवारों पर, आम्बेडकर की तस्वीर टांग कर रखते थे.
जैसे-जैसे बीएसपी की लहर बढ़ी, हिंदी सिनेमा में धीरे-धीरे आम्बेडकर की गूंज नज़र आने लगी. मुख्यधारा की किसी बड़ी फिल्म में इसका पहला सबूत, 1985 में आई राजेश खन्ना और स्मिता पाटिल की फिल्म आख़िर क्यों? थी.
इस फिल्म में, पाटिल का किरदार प्रिया सरकार द्वारा चलाए जा रहे दूरदर्शन नेटवर्क में काम करती है, जहां उसके केबिन में ऑफिस की कुर्सी के ऊपर दीवार पर आम्बेडकर की तस्वीर लगी है. मुझे शक है कि निर्देशक जे ओम प्रकाश, जो जन्म से एक पंजाबी थे, पंजाब में पैदा हुए बहुजन लीडर कांशीराम और उनके काम के बारे में, कुछ जानकारी रखते होंगे.
1989 में राजीव गांधी की सरकार गिरने के बाद अगले प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने आम्बेडकर के ब्रांड को तेज़ी से आगे बढ़ाया और आखिरकार संसद के केंद्रीय हॉल में उनकी तस्वीर लगाई गई. 1991 में आम्बेडकर को मरणोपरांत भारत रत्न से भी नवाजा गया, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है.
इसके कुछ ही समय बाद, 1992-93 में सूचना व प्रसारण मंत्रालय और दूरदर्शन ने, आम्बेडकर के जीवन पर हिंदी में एक बायोग्राफिक सीरियल रिलीज़ किया जिसका शीर्षक था ‘स्पेशल फीचर ऑन डॉ. बीआर अंबेडकर’.
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मुख्यधारा में प्रतिनिधित्व
आम्बेडकर को मुख्यधारा में लाने की प्रक्रिया धीमी रही है लेकिन आज हिंदी फिल्मों में उनकी इमेज पहले से ज़्यादा नज़र आती है.
2017 के लिए भारत की ऑस्कर एंट्री, राजकुमार राव की न्यूटन में नायक के घर की दीवारों पर आम्बेडकर प्रमुखता से नज़र आते हैं. इसमें प्रमुख किरदार न्यूटन को छिपे तौर पर एक दलित व्यक्ति दिखाया गया है.
2017 में अक्षय कुमार की जॉली एलएलबी 2 के बहुत से दृश्यों में, जज के कक्ष में उसकी डेस्क के ठीक पीछे, गांधी के साथ आम्बेडकर की तस्वीर भी देखी जा सकती है.
चाहे वो न्यूटन (2017) हो, जॉली एलएलबी 2 (2017) हो, मुक्काबाज़ (2017) हो, आर्टिकल 15 (2019) हो, नेटफ्लिक्स सीरीज़ सेक्रेड गेम्स (2018) हो, या उसकी ताज़ा फिल्म रात अकेली है (2020) हो, हम देखते हैं कि आम्बेडकर की तस्वीर हिंदी फिल्मों में नियमित रूप से दिखने लगी है.
ज़ी एंटरटेनमेंट के & टीवी पर एक महानायक-डॉ बीआर अंबेडकर, और स्टार प्रवाह/हॉटस्टार पर मराठी सीरियल डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर: महामानवची गौरव गाथा, जिसके 250 से अधिक एपीसोड्स थे, हाल के सालों में बेहद लोकप्रिय हुए हैं. इन्हें बहुत सी दूसरी भाषाओं में डब करके प्रसारित किया गया है.
इस बीच मराठी फिल्म निर्देशक नागराज मंजुले ने, जब्बार पटेल की विरासत को अपनी सामाजिक रूप से संवेदनशील फिल्मों के जरिए, कामयाबी के साथ आगे बढ़ाया है, जिनमें समकालीन जातीय डायनामिक्स को खोजने की कोशिश है, जैसे कि पुरस्कार विजेता फैंड्री (2013) और सैराट (2016). फैंड्री का वो सीन भारतीय सिनेमा के सबसे मार्मिक दृश्यों में से एक है, जिसमें दलित किरदार जबया को, अपने स्कूल के सामने पड़े एक मुर्दा सुअर को उठाकर ले जाना पड़ता है, और वो पृष्ठभूमि में दीवार पर बने डायनामिक्स के भित्ति चित्र के आगे से गुज़रता है.
तमिल फिल्म निर्देशक पीए रंजीत भी बहुत सारगर्भित ढंग से दीवारों को कैनवास की तरह इस्तेमाल करते हैं. अपनी पहली मूवी अट्टाकत्थी (2012) में रंजीत आम्बेडकर की प्रतिमा, और स्कूल की दीवारों पर फ्रेम में लगी आम्बेडकर की फोटो, दोनों दिखाते हैं. कबाली (2016) और काला (2018) में, जो हिंदी में भी डब हुईं, रंजीत एक क़दम और आगे बढ़ते हैं, और आम्बेडकर व गांधी की तुलना करते हैं, और एक डायलॉग में दलित बहुजन अभिवादन ‘जयभीम’ का नारा भी देते हैं, जब एक पुलिस ऑफिसर एक प्रदर्शन में शामिल हो जाता है, और खुद को एक दलित दिखाता है. काला में किसी भारतीय फिल्म में पहली बार, एक बुद्ध विहार को दिखाया गया.
अभी और बदलाव की जरूरत
आज उन फिल्मों में भी, जिनके निर्देशक दलित नहीं हैं, या जो जाति की पहचान या भेदभाव के बारे में नहीं हैं, पृष्ठभूमि के हिस्से के तौर पर हम आम्बेडकर के चित्र देख सकते हैं- चाहे वो घरों की दीवारें हों, पुलिस थाने हों, या अदालत कक्ष हों. ये सब राष्ट्र निर्माण में आम्बेडकर की भूमिका की अधिक से अधिक स्वीकृति का संकेतक है.
विजुअल और पॉपुलर कल्चर में आम्बेडकर का कद, हो सकता है संयोगवश बीएसपी के उदय के साथ बढ़ा हो, लेकिन अब ये एक अलग स्तर पर पहुंच गया है. आज कोई भी सियासी पार्टी आम्बेडकर को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती, ख़ासकर इसलिए कि ओबीसी और मुसलमान भी उन्हें मानने लगे हैं.
वो अब सिर्फ एक दलित आइकॉन नहीं हैं. वो बहुजन दावे, महिला सशक्तीकरण, छात्र आंदोलन और उससे भी अहम मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक हैं. इसकी बानगी नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शनों में देखने को मिली, जब आम्बेडकर के पोस्टर्स, फोटोग्राफ्स, और लेख व्यापक रूप से साझा किए गए. उनकी तस्वीरों को न सिर्फ नई दिल्ली के शाहीन बाग में, बल्कि देशभर के प्रदर्शनों में प्रमुख जगह मिली. इतिहासकार रामचंद्र गुहा जैसे गांधीवादी भी, जब बेंगलुरू के टाउन हॉल के बाहर से गिरफ्तार हुए, तो उनके हाथ में आम्बेडकर की तस्वीर थी.
जैसा कि निर्देशक पीए रंजीत ने कहा, बैकड्रॉप्स की सिनेमा में बहुत ताक़त होती है, क्योंकि वो बिना किसी डायलॉग या संगीत के सामाजिक सच्चाइयों को पकड़ते हैं.
अपने बैकड्रॉप्स में आम्बेडकर को दिखाकर, हो सकता है कि निर्देशक उनकी राजनीतिक विचारधारा का, खुले रूप से समर्थन न कर रहे हों, इसी तरह जैसे उनके गांधी को दिखाने या उनका उल्लेख करने का, कोई ख़ास मतलब नहीं होता. अगर कुछ दिखता है तो वो ये कि निर्देशक अपने आसपास की सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकता से ज़्यादा वाक़िफ हैं, और उसे दिखाने की कोशिश कर रहे हैं.
यह भी पढे़ं: डॉ. आंबेडकर ने इस्लाम, ईसाई या सिख धर्म की जगह बौद्ध धम्म ही क्यों अपनाया
कारण कुछ भी हों, आम्बेडकर को साफतौर से मुख्यधारा में लाया जा रहा है, उस देश में, जिसने बहुत समय तक, रील और रियल लाइफ दोनों में, उनकी अनदेखी की.
अगर आम्बेडकर की सिर्फ एक तस्वीर टांगने में ही इतना समय लग गया, तो ज़रा कल्पना कीजिए कि उस लीडर, और जनमानस में उसकी समझ के बीच, अभी भी कितनी बड़ी खाई मौजूद है. अपनी दीवारों पर उनकी तस्वीर को जगह देने के लिए, आपको प्रगतिशील विचारों का होना पड़ेगा- यही बात दर्शाती है कि उन्हें अभी भी सामाजिक न्याय का नायक, या एक उग्र बहुजन लीडर समझा जाता है, न कि भारतीय गणतंत्र का संस्थापक. अभी हमारे सामने एक लंबी लड़ाई है, जिसके बाद ही हम उनके आदर्शों को औसत फिल्म निर्माताओं के प्लॉट्स और पटकथाओं में उतरता देख पाएंगे, और साथ ही अदाकारों, किरदारों और कथानकों में बहुरूपता.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(रवि रतन एक स्वतंत्र लेखक हैं और भारतीय सिनेमा, सामाजिक राजनीतिक मुद्दों पर आलोचना करते हैं और विविधता के लिए समर्थक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)
बहुत-बहुत अच्छा और सराहनीय लेख। आपका धन्यवाद।
जय भीम जय भारत।
आपका लेख बहुत अच्छा ़़़़जय भीम ़़़़जय भारत
Vry nice
Vry nice
बाबासाहेब डॉ आंबेडकर ही भारत के ओबीसी, एसी, एस टी, माई नॉटी के वास्तविक ईश्वर है
जय भिम जय भारत
आप बहुत अच्छा लिखते हैं
Ambedkar ji se isliye nafrat ki jati hai kyuki unhone low caste valo ko unke adhikar dilaye.
Agar yahi sacrifice unhone high cast ke logo ke liye kiya hota to vo jagah-2 puje jate aur unko bhagwan ka darja Diya jaata. India me log aapki degree aur mahaanta nhi dekhte , dekhte hai sirf jaati.
Aaj bhi kuch high cast ke log chahte hai ki low cast unki ghulami kare yahi soch hamare desh ko aviksit ghosit karti hai
JAI BHIM
बिल्कल सही
Right
Baba Sahab be able liye Kiya but unki chvi only AK dalit ki bnake rakhe hue h ye SB Congress or BJP dono Ka savrkar ko to vir kahte HR jagah dindyal ki BAAT krte h Kabhi Khushi se Baba Sahab Ka naam Nahi Lete Jo Baba Sahab be Kiya sayad itna koi Nahi or skta tha
Babasaheb is babasaheb no one can become like him.in the world
Jay bhim ???
डा. बाबा साहेब आंबेडकर पर आपने बिलकुल यथार्थ ,सटीक लेख लिखा है … मैं आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हूं..और वैचारिक क्रांति में संलग्न हू।
सही लिखा है । बाबासाहेब को और अधिक सम्मान मिलना चाहिए । ये उनका हक हैं ।Good .
बहुत अच्छी पोस्ट/लेख है।
दि प्रिंट बहुत अच्छे लेख प्रकाशित करता है।
जय भीम
Good information
Ambedkar ji ne vastav main sabhi vargon ko dhyan main rakhte hue sambhidhan main Adhikar diye hain der se sahi lekin ab sabhi log inko Jan rahe hai inke dwara likhe sambhidhan ko pad kar apne Adhikar कर्तव्यों को समझ रहे हैं फिल्म और टेलीविजन पर इनके ऊपर कम काम हुआ है और अधिक फिल्में और धारावाहिक बनाने की जरूरत है
आपका सुझाव बहुत ही बेहतर है यदि अमल लाया जाय तो और हाई लाइट हो जाएंगे।
Great job
Ye mera dard hai mai gumnam ho gaya
Log mughko samagh na sake you hi badanam ho gaya dekhega jab jamana piche mudkar mera duniya me kyo eitana nam ho gaya. Dar par mere jhukoge tum jab tumhari jindagi me ek Sam andheri aayegi.
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर समस्त मानव जाती कल्याण का कार्य करणे वाले बडे नेता रहे है।वो खुद्द महाराष्ट्र के एकदम अचूत समाज सें निकलकर शोषित वंचित स्त्रिया,कामगार,मजदूर,बेवा,मुस्लिम, ओबीसी, आदिवासी समाज घटक को उद्धार करणे का महांतम कार्य किया।भारतीय संविधान के आधार सें सभी मानव वर्ग को समान न्याय हाक दिलाय।देश में सब सें जादा पढे लिखे अर्थशास्त्र, न्यायशस्त्र, समाजशास्त्र, नैतिक शास्त्र, कानून, इतिहास आदी काई विषय में सर्वोत्तम काम किये।
आज भारत का का हार एक सामाजिक,राजकीय,न्यायिक पैलू ऊन के बिना नही है।देश की सभी वरगो को जीवन आधार बना भारतीय संविधान बाबासाहेब की देन है।जीसे हम भुला नही सकते।
जातिगत संघर्ष के कारण उन्हे प्राय दूर रखा गया।लेकिन आज शोषित वंचित,मजदूर,गरीब,आदिवासी, और औरतो के हक की लढाई का सबसे बडा नाम और मार्ग है डॉ भीमराव आंबेडकर।
Absolutely right sir
Very nice article
बहुत ही शानदार लेख है।बहुजन योद्धाओं के बारे में अधिक से अधिक लेख प्रकाशित किजीए।
Best thaught
यह सही है आज के भारत में बाबासाहेब को केवळ एक जात का लीडर ही मानते है आय मना जात है
Baba saheb ke bare me prachar karne ke liye me apko salute karta hun sir. Jay bhim Jay bharat namo budhaya.
Jay bhin
Jai bhim, Jai bhim
बहुत ही शानदार आर्टिकल बाबा साहेब ने जितना किया है उतना किसी ने नही किया देश और गरीब शोषित तबके लिए उनकी बराबरी करना किसी के बस की बात नही है जय भीम।
jo sanman ke hakdar hoga usko sanman milega naki mang ne pe….aur yeh sahi baat he ki wo sirf ek jati ke lie hi sab kie ….mere life me unka koi contribution he.
Jo tum azadi mehsus Kar rhe ho us samvidhan ke Nayak vahi the , Jo tumhe bolne ki azadi deta he
Jai bhim, Jai bhim
Very good post I really like this
*नमो बोधाथ जय भीम जय भारत,*
great
When I was a student of school we use to celebrate 15th Aug and 26th Jan in school.Leave aside 15th Aug even 26th Jan use to be celebrated without any mention of Dr B R Ambedkar though he was the architect of constitution.Actualy Upper caste Hindus hate him.
I think now they might have realised that by ignoring him they can’t go forward.
Right
Thank you sir for this information jai bhim
Baba saheb Amedkar ko logo ke bich lane wale phele Mhamanav Maney Kanshiram ji ka yogdan aham he jiske liye unhone kanyakumari se laker kasmir tak jo Bharat/India kha jata he baicycle dura gaon kasbo sharo se hote hue yatra ki aur Baba Shaeb Amedkar Bhartiya Svindhan ke rachiyata ke dwara S.C. ,S.T.,O.B.C.&other minorities as muslim sikh krisian bodh aur Bhartiye nariyon Ki istithi ko jan sabhaon ke dwsra batane wale ki desh ajad hone se phaele(1947 se phaele) kya adhikar the aur iske bad kya kya adhikar mile insabko batane me Manye Kansiram ji ka bhut bada yogdan he.unke period ka ek slogan bhujan loga ke dil dimak me abhi bhi bhara hua he ki Baba Saheb tera misan adhura Kansiram karenge pura.Aaj bhi bhujan log ese hi Kansiram jese insan ko khoj rahe ki phir se aakar punhe Baba saheb ke mission ko gati dede kyonki Mnye kansiram ji apne cader me B.S.P. ko ek parti na batakar ek moment batate the jis se Baba saheb Amedkar ke adhure sapne/mission ko pura karna he. Unki yad me do sabad jai bheem jai kansiram.
Sach me bahut Acha article Hai
Very true. JAI BHIM
Jai Bhim ?
Ham baba sahab ke bare adik janan chahte hai jai bhim
Bhut Sundar vivran Diya , ak mahan vicharak mahilayo ke sangraksak dalito pichdo ke devta baba sahab ambedker ji Jai .
Jai bhim, Jai bhim
Bhut Sundar vivran Diya , ak mahan vicharak mahilayo ke sangraksak dalito pichdo ke devta baba sahab ambedker ji Jai .
Jai bhim, Jai bhim
Itni achchhi aur great post share karne ke liye apko dil se Thanks aur Jay bheem. Bhagwaan apko hamesha khush aur sahi salamat rakhein. Jay bheem, Namo Buddhay
Very nice, Jay bhim
Dr. Babasahab ambedkar ek bohot bade vidhvan hai ye kisike samne sabit karne jarurat nahi , koi mane ya na mane Dr. Babasahab ambedkar hamare liye bhagwan hai, jay bhim .
Bahut bahut sadhubad aap yani writer ka karye such me mahan hai unhone anchhue pahluon ko chhua hai bah kabile tarref hai mai unki viddata aur spast badita ko salam karta hoon .lekh bahut sunder hai punk aabhar jaibhimNamobuddhay jai sambidhan Thakur premi baudh Bareilly MO.no.7017752125.
Bahut hi shandaar article h
बहुत सुंदर हैं, बहुत टाइम लगा बाबासाहेब आंबेडकर जी की तस्वर को सब के सामने लाने में लेकीन आगे हम सब मिलकर काम करेंगे और बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों को पूरे भारत में बढ़ाएंगे… जय भिम
Aap ka behad behad danyvad aapne Babasahab ke vicharo tatha unke karyoko desh ke nai pidhi ke samne rakha
Aap ka behad behad danyvad aapne Babasahab ke vicharo tatha unke karyoko desh ke nai pidhi ke samne rakha
Jay bhim ?
बहुत बढ़िया लेख THE PRINT प्रकाशित कर रहा है।
अब जिम्मेदारी बनती है उसको पढ़नेवाले की वी इसे अधिक से अधिक प्रसारित करे।
रवि रतन सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद की आप इस तरह के लेख लिख रहे हैं औए आशा करते हैं कि आगे भी लिखते रहेंगे।
जय भीम जय भारत
बहुत ही शानदार
बहोत ही शानदार आर्टीकल लिखा है.अब पूरा देश बाबासाहब अंबेडकरजीके काम पर फोकस कर रहा है और ऊन्हे समजने की कौशिश भी कर रहा है .जयभीम..
Good one
JAY bhim
JAY bhim
bahuat jyada achha likha hai aapne
शुक्रिया…….
अम्बेडकर सहाब की जय
Aap baba shahab ko RSS se jodkar btate hai , uske bad ek ke bad ek artical baba shahab ke upar likhte hai tum kis ke liye kam kerte ho RSS ke liye,,,,, BHIM ARMY ke liye ya Tum Ambedkar ki relations ko jyada dikhate ho khna kya chahte ho tum ,,,,,vaise artical achha hai
Very good sir
Aap baba shahab ko RSS se jodkar btate hai , uske bad ek ke bad ek artical baba shahab ke upar likhte hai tum kis ke liye kam kerte ho RSS ke liye,,,,, BHIM ARMY ke liye ya Tum Ambedkar ki relations ko jyada dikhate ho khna kya chahte ho tum ,,,,,vaise artical achha hai
हश
Thankue sir ye information dene ke liye
Bahut hi unda Viviran diya aur ek sachi samaj ki tasvir ko Dikhya jo abhi tk shayad hi kise n is aur Dyan akarshit kraya ho bahut baht shady baad jai been namo budhay
सर,
Dr. अम्बेडकर के जीवन को इतनी अच्छी तरह से प्रस्तुत किया कि मन पसन्न हो गया, यह सत्य है कि अगर कांशीराम जी साहब आगे नहीं आए होते तो शायद ही जो आज अम्बेडकर को लोग जानते शायद ही कोई जान पाता, और ना ही डॉ अम्बेडकर को भारत रत्न से (मरणोपरांत)नवाजा जाता, और आज जो दलितों, शोषितों, पिछड़ों की स्थिति हैं शायद हो पाती।
जय भीम जय कांशीराम
बहुत अच्छा लेख जत्र भीम
Very nice interpretation of indian films and dr Ambedkar.
The print ko vahut sara thank you
Sar apne ye information di
Ham sabhi ko unka mishan age badana haai vo sirf dalito ke liye hai sab kuch nahi karna chahte the unka maksad pure samaj ko lekar chalna th sabhi equal banan th
Vo ek ese rashtry ka nirman karna chahte the jisme sabhi ko brabri ka hak ho
Unka sapna Hamesha India ko ek modern rashtry bnana tha
Vo mere hamesha hero hai jab bhi mere padne me man nahi lagta hai me unko padta hun vahut energy milti hai vo mere ideal hai
जय भीम।
बाबासाहेब के विचारों को अपने लेख में प्रमुखता से स्थान देने के लिए तहे दिल से धन्यवाद
Thank you very much.
महान महानायक की जानकारी देने के लिये।जिन्होंने अपना जीवन समाज सेवा में समर्पित कर दिया। आज बाबा साहेब की सोच को कुछ मूर्खो और जाहिल गबार लोगों ने सीमित कर दिया है ये कह कर की वो केवल दलितों का उद्धारक थे। वास्तविक तो ये है कि जो भी पहचान है भारत की दुनिया के सामने, बाबा साहेब का ही देन हैं। फिर भी मुर्ख उनपर उँगली उठाते हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगो को। jai भीम
गुलामों को उनकी गुलामी का एहसास करा दो वह खुद अपने आप विद्रोह करना चालू कर देंगे,
बाबा साहब अंबेडकर
शिक्षा व शेरनी का दूध है जो जितना पिएगा उतना ही दहाड़े गा शिक्षा दो प्रकार की होती है बुद्धिमत्ता और चरित्रवान
बाबासाहेब आंबेडकर
Dr Br Ambedkar is great legends in the world.
लेख बहुत ही अच्छा एवं सराहनीय।
” जय भीम,जय संविधान,”
Jay bhim jay Bharat
Jay bhim
Dr. baba sahib ko aage badhava chaiya jay bhim jay Bharat
Jay Bharat Jay bheem aapane bahut achcha lekh likha hai kripya is tarah ke article aur bhi dete Rahe jisse hamen main aur hamare bacchon ko sanvidhan baba saheb ke vishay mein jankari milte Rahe
Jay Bharat Jay bheem aapne boht acha likha h ese hi or articles ham tk pohchate rhe jai bheem
Jay Bharat Jay bheem aapane bahut achcha lekh likha hai kripya is tarah ke article aur bhi dete Rahe jisse hamen main aur hamare bacchon ko sanvidhan baba saheb ke vishay mein jankari milte Rahe
Jay Bharat Jay bheem aapane bahut achcha lekh likha hai kripya is tarah ke article aur bhi dete Rahe jisse hamen main aur hamare bacchon ko sanvidhan baba saheb ke vishay mein jankari milte Rahe
बिल्कुल सही जय भीम
बहूतही जानकारी भरा लेख जिस व्यक्ती के करोडो समर्थक हो .जान देने की तयारी करनेवाला वर्ग हो ,ऊस महामानव का इतिहास जान बुचके दबाया गया आपके जैसे लेखक सत्य लिखकर हमारे जैसे लोगो को आपका फॅन बनाते है पंकज ढोणे नागपूर महाराष्ट्र
सर,
Dr. अम्बेडकर के जीवन को इतनी अच्छी तरह से प्रस्तुत किया कि मन पसन्न हो गया, यह सत्य है कि अगर कांशीराम जी साहब आगे नहीं आए होते तो शायद ही जो आज अम्बेडकर को लोग जानते शायद ही कोई जान पाता, और ना ही डॉ अम्बेडकर को भारत रत्न से (मरणोपरांत)नवाजा जाता, और आज जो दलितों, शोषितों, पिछड़ों की स्थिति हैं शायद हो पाती।
जय भीम जय कांशीराम
Right sahab
सत्य को कब तक छुपाया जा सकता है। आखिर एक न एक दिन बाहर आना ही है।
Great article sir.
बाबा साहेब से विचार से क्रांति हुई है बाबा साहेब अंबेडकर ने सामाजिक और आर्थिक भेदभाव दूर करने की कोशिश
बहुत ही अच्छा प्रयास है।
Jai bhim sir… Nice article
आप ने ड्रा अम्बेडकर के बारे में इतनी अच्छी सुसज्जित तरीके से लिखा पढ़कर मेरा मन ख़ुश हो गया। आप इसी तरह लिखते रहिए सर,।
जय भीम सर
सर,
Dr. अम्बेडकर के जीवन को इतनी अच्छी तरह से प्रस्तुत किया कि मन पसन्न हो गया, यह सत्य है कि अगर कांशीराम जी साहब आगे नहीं आए होते तो शायद ही जो आज अम्बेडकर को लोग जानते शायद ही कोई जान पाता, और ना ही डॉ अम्बेडकर को भारत रत्न से (मरणोपरांत)नवाजा जाता, और आज जो दलितों, शोषितों, पिछड़ों की स्थिति हैं शायद हो पाती।
जय भीम जय कांशीराम
Very nice Sir…. Jay Bhim
Baba saheb desh ke sabse great person the jinhone desh se achhuto ka bhed bhav mitaye .ye ek aise person the jo desh ke har person ko ek najariye se dekhte the .
Yes, this is really serious and realistic topic which must be discussed with needful seriousness. I thank the write for thinking in this effective way with a kind of research to get the fact. In fact more research should be done in this topic at university level and must be financially supported by Government of India, department of social justice.
Post is very important is such type of cituation where the fourth pillar of democracy working like Dog of Political parties due to which main problem of our country ? forget by the the Murda logo (Dead people) of our country……,
Jay bhim