‘द रजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) नामक संगठन ने 22 अप्रैल को पहलगाम में जिस तरह खुल्लम खुल्ला हमला किया है वह 7 अक्टूबर 2024 को इज़रायल पर हमास के हमले से कम बर्बर नहीं था. यह दोनों कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों ने किए, यह तथ्य दुनिया भर के उन तमाम देशों को जगाने के लिए काफी होना चाहिए, जो उदारवाद की किसी निरर्थक धारणा के चलते आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों की निंदा करने से अभी भी कतरा रहे हैं. टीआरएफ और कुछ नहीं बल्कि अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद नया नाम और रूप धारण कर चुके लश्कर-ए-तैयबा का ही एक अलग मुखौटा है. इसके पीछे मंशा उस पर से इस्लामी कट्टरपंथ की छाप मिटाना और इसे स्थानीय अलगाववाद की उपज बताना है. केवल पुरुषों को जानबूझकर निशाना बनाना यही संकेत देता है कि इस हमले की कमान विदेश सूत्रों के हाथ में थी और इसे पक्की साजिश के साथ और समय सीमा के हिसाब से अंजाम दिया गया.
केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर हमेशा से आतंकवादियों के निशाने पर रहा है और ये हमले पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं की मदद और शह से किए जाते रहे हैं. बड़े आतंकवादी हमले हमेशा तब किए गए हैं जब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कोई आयोजन होने वाला था. इस बार भी कहानी कोई अलग नहीं थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकारी दौरे पर सऊदी अरब में थे, जबकि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस पहली बार भारत के दौरे पर थे. सऊदी अरब के साथ भारत की बढ़ती नज़दीकी मुस्लिम संसार में पाकिस्तान की स्थिति को कमज़ोर कर रही हैं. मुस्लिम संसार पाकिस्तान को निरंतर बढ़ते बोझ के रूप में देख रहा है. इस हमले से ठीक पहले पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने बेहद कड़वा भाषण दिया जिसने आतंकवादियों का हौसला निश्चित ही बढ़ाया होगा.
यह एक दुखद सच्चाई है कि इस तरह के क्रूर हमले कश्मीर में शांति भंग करने और विदेशी निवेशकों के मन में अस्थिरता का भाव पैदा करके भारत को अस्थिर करने तथा विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास के बीज डालने के मकसद से किए जाते हैं. दुनिया के तमाम देशों ने जबकि इस हमले की उकसाऊ सबसे कड़े शब्दों में भर्त्सना की है, पाकिस्तान की चुप्पी काबिल-ए-गौर है और यह उसकी ओर से अपराध की मौन स्वीकृति ही मानी जाएगी.
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अब आगे क्या हो?
यह आतंकवादी हमला करने के लिए जिस जगह को चुना गया वह भी महत्वपूर्ण है. वह न केवल प्रमुख पर्यटन स्थल है, बल्कि पवित्र अमरनाथ गुफा की यात्रा के मार्ग पर स्थित है. यह यात्रा जून के पहले हफ्ते से शुरू होने वाली है. ज़ाहिर है, यह हमला यात्रा से पहले और यात्रा के दौरान भी सुरक्षाबलों पर अतिरिक्त दबाव डालेगा. जो भी हो, यात्रा तो शुरू होगी ही और हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को हिंसा की ऐसी बेकाबू कार्रवाइयों का बंधक नहीं बनने दिया जा सकता.
हमारा जवाब क्या हो सकता है? और इस बात में कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि जवाब दिया जाएगा. वैसे, इस हमले के बाद ज़ाहिर है कि पाकिस्तान सावधान हो जाएगा क्योंकि उसे पता है कि अब वह निशाने पर होगा. उसे कुछ समय के लिए घबराहट में कैद रहने देना चाहिए, जब तक कि वह अंधेरे में तीर न चलाने लगे. इस बीच हमें अपनी जवाबी कार्रवाई के पक्ष में संचार के राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य माध्यमों के जरिए वैश्विक समर्थन जुटाने में लग जाना चाहिए. हमारी जवाबी कार्रवाई जब भी हो, वह कई दायरों में हो सकती है और गत्यात्मक अथवा गैर-गत्यात्मक किस्म की हो सकती है. वक्त आ गया है जब भारत को संयम बरतने की अपीलों या तीसरे पक्ष की ओर से मिलने वाले आश्वासनों के असर में न आते हुए अपने बघनखों को दस्तानों से बाहर निकाल लेने चाहिए. भारत अमेरिका या इज़रायल के उदाहरणों से सबक ले सकता है और अंतर्राष्ट्रीय कानून का सहारा ले सकता है, जो ऐसे जवाब की इजाजत देते हैं.
फ्रांसीसी लेखक और सेना के जनरल पियरे शोडर्लो डि लाक्लो ने कहा भी है कि प्रतिशोध एक ऐसा व्यंजन है जिसे ठंडा करके परोसना ही उसे लज़ीज़ बनाता है.
(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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