scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतCWC के बयान के 7 वाक्य, जो सोनिया-राहुल नेतृत्व की कमजोरियां उजागर करते हैं

CWC के बयान के 7 वाक्य, जो सोनिया-राहुल नेतृत्व की कमजोरियां उजागर करते हैं

कॉंग्रेस की मौजूदा दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है? अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी इससे ज्यादा जोरदार तरीके से यह संदेश नहीं दे सकती थीं कि गांधी परिवार इसके लिए जिम्मेदार नहीं है

Text Size:

नई दिल्ली: अभी खत्म हुए विधानसभा चुनावों में कॉंग्रेस पार्टी की भारी पराजय के लिए कौन जिम्मेदार है? या उसकी लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार है? रविवार की शाम कॉंग्रेस कार्य समिति (सीडब्लूसी) की पांच घंटे चले मंथन के बाद कॉंग्रेसी कार्यकर्ताओं को शायद अमेरिकी संगीतकर बॉब डायलन का 1960 के दशक का गाना ही हाथ लगा, जिसका अर्थ यह है कि ‘जवाब मेरे दोस्त, हवा में तैर रहे हैं’.

और आप के अरविंद केजरीवाल बड़ी खुशी और उम्मीद के साथ कुछ इस तरह का गाना गा सकते हैं—‘और एक पहाड़ (यानी कॉंग्रेस) को समुद्र में समा जाने तक कितने साल जीना पड़ेगा?’

विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद सोच रहे होंगे कि ‘कुछ लोगों (यानी कॉंग्रेसियों) को आज़ादी हासिल करने के लिए कितने साल जिंदा रहना पड़ेगा?’

और कपिल सिब्बल यह सोचकर जरूर परेशान हो रहे होंगे कि ‘कोई शख्स (यानी राहुल गांधी) कितनी बार यह दिखावा करने के लिए कितनी बार मुंह फेर सकता है कि उसे कुछ नज़र नहीं आ रहा?’

इन सारे सवालों के ‘जवाब मेरे दोस्त, हवा में तैर रहे हैं’.

कॉंग्रेस के पचड़े में आपको घसीटने के लिए हमें माफ कीजिएगा बॉब! लेकिन आपका गाना कॉंग्रेस नेता जितिन प्रसाद के जाने के बाद बचे ‘ग्रुप-22’ का ‘थीम सांग’ बनना चाहिए. इस ग्रुप ने 2022 में सोनिया गांधी को भेजे अपने पत्र में जो सवाल उठाए थे वे सीडब्लूसी की रविवार की बैठक के बाद जस के तस कायम हैं. इस बैठक ने जो जवाब दिए उन्हें कबूल करने वाला कोई नहीं है.

बलिदान के लिए तैयार

सो, मूल प्रश्न फिर सिर उठा रहा है, कि विपक्षी दल की आज जो दुर्दशा हुई है उसके लिए कौन जिम्मेदार है? इसकी अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी इससे ज्यादा जोरदार तरीके से यह संदेश नहीं दे सकती थीं कि गांधी परिवार इसके लिए जिम्मेदार नहीं है. सीडब्लूसी बैठक में शुरू से ही उन्होंने तीखे तेवर अपना लिये थे. उनका संकेत यह था कि अगर सीडब्लूसी के सदस्य, जिनमें सारे उनके द्वारा नामजद हैं, यह सोचते हैं कि कॉंग्रेस का जो कुछ हुआ है उसके लिए वे और उनके बच्चे जिम्मेदार हैं तो तीनों ‘बलिदान’ देने और ‘अलग हो जाने’ के लिए तैयार हैं. आपको याद है न कि 2019 के लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार के बाद जुलाई में राहुल गांधी ने अपना इस्तीफा ट्वीट करके भेजा था? उसमें ‘बलिदानों’ का भी जिक्र किया गया था क्योंकि उन्होंने हार के लिए पार्टी नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए लिखा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस से लड़ाई में वे ‘पूरी तरह अकेले’ पड़ गए थे.

इस बार भी, सोनिया ने ‘बलिदान’ को ‘ब्रह्मास्त्र’ के रूप में इस्तेमाल किया, और सीडब्लूसी के सदस्यों ने सिर झुका लिये. अगर गांधी परिवार ने इतना बलिदान दिया है, तो क्या कॉंग्रेस इस परिवार की खातिर खुद को बलिदान नहीं कर सकती? जायज सवाल है.

लेकिन यह सवाल कायम है कि कॉंग्रेस के लिए अपने वजूद का संकट अगर पैदा हो गया है, तो इसके लिए गांधी परिवार नहीं तो कौन जिम्मेदार है? इस सवाल के जवाब का संकेत बैठक के बाद जारी सीडब्लूसी के बयान में छिपा है. इसका हर वाक्य राज खोलता है, और इसके लिए वाक्यों में छिपे संकेतों को समझने की कोशिश करने की जरूरत नहीं है.

ज़िम्मेदारी का एहसास

बयान का पहला वाक्य देखिए— ‘पांच राज्यों की विधानसभा के हाल के चुनावों के नतीजे भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के लिए चिंता का कारण हैं.’ तो क्या, देश के मुख्य विपक्षी दल की चिंता हाल के चुनावों तक सीमित है. क्या उसे अपने वजूद पर संकट नहीं दिख रहा, उस पार्टी को जो पिछले आठ साल में 40 चुनाव हार चुकी है औए केवल पांच चुनाव जीत पाई है? पिछले दो चुनावों में वह लोकसभा की कुल सीटों में से 10 फीसदी सीटें भी नहीं जीत पाई है, और विपक्षी दल के नेता का ओहदा भी नहीं हासिल कर पाई है. लेकिन सीडब्लूसी अगर केवल हाल के चुनावों की बात कर रही है तो उसकी भी एक वजह है. वह यह नहीं देखना चाहती कि उसकी पराजयों में एक प्रवृत्ति जुड़ी हुई है. क्योंकि अगर यह प्रवृत्ति अस्तित्व के संकट को रेखांकित करती है तो इससे नेतृत्व की कमजोरियां, उसकी अक्षमता, अस्वीकार्यता, और ज़िम्मेदारी के एहसास की कमी उजागर हो जाएंगी.

दूसरा वाक्य कहता है— ‘पार्टी कबूल करती है कि अपनी रणनीति की खामियों के कारण हम चार राज्यों में भाजपा सरकारों के कुशासन को प्रभावी ढंग से उजागर नहीं कर पाए, और पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन के बाद कम समय मिलने की वजह से हम अपनी सरकार के खिलाफ जन असंतोष को दूर नहीं कर पाए.’ अब देखिए कि सीडब्लूसी का यह बयान गांधी परिवार द्वारा अपने अधिकार के लापरवाही भरे प्रयोग को किस तरह उचित ठहरा रहा है जबकि इसके चलते उसे पंजाब में चुनाव हारना पड़ा और ‘आप’ एक राष्ट्रीय विकल्प के रूप में उभरने का दावा करने की स्थिति में आ गई. कॉंग्रेस की रणनीति में ‘कोई खामी नहीं’ थी क्योंकि कोई रणनीति थी ही नहीं. सीडब्लूसी लोगों को यह यकीन कराना चाहती है कि गांधी परिवार ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के खिलाफ असंतोष को दूर करने के लिए उन्हें गद्दी से हटाकर सबसे अच्छा काम किया. इसलिए पंजाब में हार के लिए कैप्टन को ही दोषी माना जा सकता है और गांधी परिवार को शाबाशी दी जा सकती है. जाग जाओ बच्चे, कॉफी का स्वाद लो.

सीडब्लूसी के बयान का तीसरा वाक्य है— ‘देश में आज राजनीतिक तानाशाही हावी है उसके खिलाफ कॉंग्रेस लाखों भारतीयों की उम्मीदों का प्रतिनिधित्व करती है, और पार्टी को अपनी बड़ी ज़िम्मेदारी का पूरा एहसास है.’ तो राजनीतिक तानाशाही के खिलाफ मतदान करने वाले लाखों भारतीय कहां गायब हो गए? अगर कॉंग्रेस उत्तर प्रदेश में इसके खिलाफ लड़ रही थी तो मिसाल के लिए वहां के चुनाव नतीजों पर नज़र डाल लीजिए. 2022 में वहां की 399 सीटों पर चुनाव लड़कर वह 2.33 फीसदी वोट के साथ मात्र दो सीटें जीत पाई, जबकि 2017 में 114 सीटों पर चुनाव लड़कर उसने 6.2 फीसदी वोटों के साथ सात सीटें जीती थी. सीडब्लूसी का बयान कहता है कि कॉंग्रेस को ‘अपनी बड़ी ज़िम्मेदारी का पूरा एहसास है.’ क्या सचमुच? कैसे?

चौथे वाक्य में पांच राज्यों के कॉंग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं के प्रति आभहर व्यक्त किया गया है, जिन्होंने ‘पार्टी और उसके उम्मीदवारों के लिए अथक परिश्रम किया’. सीडब्लूसी यह देखने के लिए अपनी टीमें गांवों में भेज सकती है कि कितने कॉंग्रेस कार्यकर्ता और नेता पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों को समझाने के लिए जनता के बीच पहुंचे.

कॉंग्रेस अपने अतीत में झांके

सीडब्लूसी की बैठक में पढ़ा गया पांचवां वाक्य था— ‘विधानसभा चुनावों के ताजा दौर में जनादेशों को विनम्रता से स्वीकार करते हुए कॉंग्रेस पार्टी अपने कार्यकर्ताओं और देश की जनता कोआश्वस्त करना चाहती है कि वह सतर्क तथा सक्रिय विपक्ष बनी रहेगी.’ पार्टी एक सक्रिय विपक्ष ‘बनने’ का वादा करती तो यह समझा जा सकता था लेकिन यह कहना हास्यास्पद लगता है कि वह ‘सक्रिय विपक्ष बनी रहेगी.’

छठा वाक्य कहता है— ‘जिन राज्यों में 2022 और 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं उनमें, और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कॉंग्रेस पार्टी चुनावी चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार रहेगी.’ अब जबकि अगस्त-सितंबर से राहुल गांधी कॉंग्रेस की कमान संभालेंगे, तब अतीत में किए गए उनके वादों पर नज़र डाली जा सकती है. दिसंबर 2013 में पार्टी जब दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव हारी थी तब राहुल ने पार्टी को इस तरह ‘बदल देने’ का वादा किया था जिसकी ‘आप अभी कल्पना तक नहीं कर सकते’. बेशक, अगला मौका तो हमेशा बना रहता है.

सीडब्लूसी के बयान का सातवां वाक्य है— ‘सीडब्लूसी श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में अपनी आस्था एकमत से दोहराती है और कॉंग्रेस अध्यक्ष से अनुरोध करती है कि अब वे आगे बढ़कर नेतृत्व करें, संगठन की कमजोरियों को दूर करें, राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए संगठन में जरूरी तथा व्यापक परिवर्तन करें.’

यह अंतिम वाक्य शायद यह झलक दिखाता है कि कॉंग्रेस के नेताओं के मन में क्या चल रहा है. वे चाहते हैं कि सोनिया गांधी अब ‘आगे बढ़कर नेतृत्व करें’.  क्या इसे अनजाने में दिल की बात जबान पर फिसल आना कहा जा सकता है? यह नेपथ्य में रहकर काम करने की राहुल गांधी की नीति का अस्वीकार है. फिर भी, सीडब्लूसी के सदस्य राहुल गांधी से कमान संभालने के लिए कह ही सकते हैं.

सीडब्लूसी के बयानों को फिर से पढिए तो पहले सवाल का जवाब मिल जाएगा कि कॉंग्रेस की मौजूदा हालत के लिए कौन जिम्मेदार है. जैसा कि सीडब्लूसी कहती है, गांधी परिवार जिम्मेदार नहीं है. कोंगरे के कार्यकर्ता और नेता भी नहीं हो सकते क्योंकि सीडब्लूसी उन्हेनुंके ‘अथक परिश्रम’ के लिए धन्यवाद दे रही है. तब मतदाता ही जिम्मेदार हो सकते हैं. है कि नहीं? अगर मतदाताओं को कॉंग्रेस को खारिज करने की गलती का एहसास हो जाए तो पार्टी को ‘चिंतन शिविर’ करने या मंथन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. और जब वे ‘चिंतन’ के लिए बैठक करेंगे तब तय मानिए कि उन्हें कमरे में बैठा हाथी नहीं नज़र आएगा, वह यह कि गांधी परिवार कॉंग्रेस के लिए अपरिहार्य हो सकता है, लेकिन मतदाताओं के सामने कई विकल्प मौजूद हैं.

(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर है. वह @dksingh73 से ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी है.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें- ‘चोरी का आरोप और माओवादी समर्थक’: झारखंड में आदिवासियों के खिलाफ बदस्तूर जारी ‘पुलिसिया दमन’


 

share & View comments