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Saturday, 12 April, 2025
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26/11 हमला: तहव्वुर राणा से पूछताछ में NIA को वह काम पूरा होने की उम्मीद जिसे हेडली की गवाही ने शुरू किया

तहव्वुर राणा से पूछताछ के बाद आखिरकार एनआईए के आरोपपत्र में नामित सात पाकिस्तानी नागरिकों के बारे में पता चल सकता है, जिनसे पाकिस्तान ने भारतीय जांचकर्ताओं को पूछताछ करने की अनुमति कभी नहीं दी.

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नई दिल्ली: 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के मुख्य आरोपियों में से एक तहव्वुर हुसैन राणा को गुरुवार को भारत प्रत्यर्पित कर दिया गया और देर रात पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया, जहां राष्ट्रीय जांच एजेंसी को उससे पूछताछ करने के लिए 18 दिन की हिरासत दी गई.

हालांकि, राणा का प्रत्यर्पण 16 साल से ज़्यादा वक्त तक चली लंबी कानूनी और कूटनीतिक लड़ाई के बाद हुआ है, लेकिन यह अभी भी इस नृशंस हमले के पीड़ितों के लिए “समापन” नहीं ला सकता है — यह इस दिशा में एक कदम मात्र है.

2008 के हमलों में शामिल कई हाई-प्रोफाइल व्यक्ति भारत की पहुंच से बाहर हैं. सबसे खास बात यह है कि हमलों का एक मुख्य साजिशकर्ता डेविड कोलमैन हेडली भारतीय अधिकारियों द्वारा बार-बार किए गए प्रयासों के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक दलील समझौते के कारण प्रत्यर्पण से बच रहा है, लेकिन इसमें बदलाव की संभावना नहीं है. फिलहाल, भारत को राणा के साथ ही काम चलाना होगा.

हालांकि, राणा की गिरफ्तारी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे एनआईए को 26/11 की पहेली को सुलझाने में मदद मिलने की उम्मीद है, क्योंकि इससे अमेरिका में 2010 में हेडली से पूछताछ के बाद खाली रही जगह को भरने में मदद मिलेगी. उससे पूछताछ से लॉजिस्टिक नेटवर्क-स्थानीय संपर्क, फंडिंग के स्रोत और हैंडलर-के बारे में पता चलने की संभावना है, जिन्होंने राणा के इशारे पर भारत में हेडली के ऑपरेशन को सुविधाजनक बनाया, लेकिन अभी तक इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.

इसके अलावा, जांचकर्ताओं के अनुसार, राणा से पूछताछ से रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) सहित जांच एजेंसियों को 26/11 ऑपरेशन में पाकिस्तान की इंटर सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) की भूमिका और योजना बनाने में शामिल अन्य प्रमुख लोगों को उजागर करने में भी मदद मिलेगी. इन व्यक्तियों के खिलाफ 2011 में एनआईए ने आरोप पत्र दाखिल किया था, लेकिन वह वर्तमान में पाकिस्तान में हैं.

जांचकर्ताओं का यह भी मानना ​​है कि यह प्रत्यर्पण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) जैसे वैश्विक मंचों पर भारत के मामले को मजबूत करने में मदद कर सकता है, जो आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह के रूप में पाकिस्तान की भूमिका पर प्रकाश डालकर मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण और संबंधित खतरों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक निर्धारित करता है.

इस प्रत्यर्पण के महत्व को देखते हुए, जो मुंबई हमलों से संबंधित कई अनसुलझे सवालों को हल कर सकता है, तहव्वुर राणा इस हफ्ते दिप्रिंट का न्यूज़मेकर है.


यह भी पढ़ें: 26/11 को लेकर NIA तहव्वुर राणा से करेगी पूछताछ, कोर्ट ने दिए 18 दिन की हिरासत और मेडिकल जांच के आदेश


राणा कौन है और उसकी भूमिका क्या थी?

तहव्वुर राणा ने पाकिस्तानी सेना में बतौर डॉक्टर अपना करियर शुरू किया और 1997 में कनाडा चला गया. तीन साल बाद, उसने शिकागो में इमिग्रेशन बिजनेस खोला. 2011 के एनआईए चार्जशीट के अनुसार, यह वह कारोबार था जिसका इस्तेमाल हेडली मुंबई में खुद को स्थापित करने और हमला किए गए स्थानों की रेकी के लिए कर रहा था.

अमेरिकी अधिकारियों के सामने अपनी गवाही में — जिसे बाद में पब्लिक किया गया — डेविड हेडली ने राणा को “बहुत पुराना दोस्त” बताया और रिश्ते को पाकिस्तान में हाई स्कूल से जोड़ा. हेडली ने स्वीकार किया कि उसने राणा को “भारत में संभावित लक्ष्यों की खोज” करने के अपने मिशन के बारे में बताया था.

एनआईए के एक सूत्र के अनुसार, राणा को 26/11 हमलों की योजना बनाने में एक प्रमुख व्यक्ति माना जाता है. मुंबई में टोही करने के बाद, हेडली अमेरिका लौट आया और आतंकी साजिश पर चर्चा करने के लिए राणा से मिला.

सूत्र ने बताया, “इसमें ताज महल पैलेस होटल के पास आतंकवादियों के उतरने के स्थानों की पहचान करना और सिद्धिविनायक मंदिर, बंदरगाह क्षेत्र, रेलवे स्टेशन और मंत्रालय जैसे प्रमुख स्थानों का दौरा करना शामिल था.”

अधिकारी ने कहा कि राणा को और भी अधिक फंसाने वाली बात हेडली के साथ 7 सितंबर 2009 को एफबीआई द्वारा पकड़ी गई बातचीत है. इसमें राणा ने हेडली से कहा कि जब वह दुबई में था, तो उसे 26/11 हमलों के बारे में एक गुप्त सूचना मिली थी. उसने यह भी कहा कि भारतीय सेना द्वारा मारे गए नौ लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के गुर्गों को मरणोपरांत पाकिस्तान के सर्वोच्च सैन्य सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए.

राणा की भूमिका के बारे में विस्तार से बताते हुए अधिकारी ने बताया कि हेडली ने निगरानी के लिए मुंबई में फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज की एक शाखा खोलने के लिए राणा की मंजूरी ली थी — राणा की कंपनी का शिकागो और अन्य जगहों पर कार्यालय है.

सूत्र ने कहा, “राणा ने कागज़ी कार्रवाई पूरी करने में मदद की, हेडली को दक्षिण-पूर्व एशिया कार्यालय के लिए क्षेत्रीय प्रमुख के रूप में नामित किया और (मल्टीपल-एंट्री) वीज़ा प्रक्रिया को आसान बनाया. यह सब 26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज़ सईद के इशारे पर किया गया था, जो पाकिस्तान से काम कर रहा था.”

आरोपपत्र में यह भी कहा गया है कि हेडली को भारत में इमिग्रेशन लॉ सेंटर स्थापित करने के लिए पाकिस्तानी खुफिया ऑपरेटिव मेजर इकबाल से 25,000 डॉलर मिले थे.

अधिकारी ने कहा, “राणा ने मुंबई में अपने नेटवर्क का इस्तेमाल हेडली को किराये का घर देखने, रहने और यहां तक ​​कि उसके भारतीय वीज़ा को दस साल के लिए बढ़ाने में मदद करने के लिए किया.”

अधिकारी ने कहा कि यह कहना गलत होगा कि राणा को साजिश के बारे में पता नहीं था क्योंकि हेडली लगातार उसके साथ संपर्क में था. एनआईए रिकॉर्ड दिखाते हैं कि हेडली ने आठ यात्राओं में 200 से अधिक बार राणा से संपर्क किया.

राणा को पहली बार 26/11 हमलों के सिलसिले में 2009 में अमेरिका में गिरफ्तार किया गया था. हालांकि, अमेरिकी अभियोजक मुंबई हमलों में उसकी प्रत्यक्ष भूमिका को निश्चित रूप से स्थापित नहीं कर सके, लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि उसने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा को “सामान से मदद” दी थी.

पाकिस्तान से संबंध

जांचकर्ताओं के अनुसार, राणा का प्रत्यर्पण एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जिससे 26/11 की साजिश की पूरी हद का पता चलने की उम्मीद है, जिसमें ISI की संलिप्तता भी शामिल है.

हमलों के बाद, भारतीय अधिकारियों ने पाकिस्तान को औपचारिक लेटर्स रोगेटरी (LRs) भेजे, जिसमें NIA के आरोपपत्र में नामित सात पाकिस्तानी नागरिकों की जांच में मदद मांगी गई.

लेटर रोगेटरी एक देश की अदालत से दूसरे देश की अदालत को एक औपचारिक अनुरोध है, जिसमें आपराधिक मामले में न्यायिक सहयोग मांगा जाता है.

लगातार कूटनीतिक दबाव के बाद, पाकिस्तान ने वरिष्ठ लश्कर कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी सहित सात व्यक्तियों को गिरफ्तार किया. हालांकि, मामले में गिरफ्तारी से आगे बहुत कम प्रगति हुई. यह भी साफ नहीं है कि व्यक्तियों को कभी मुकदमे में लाया गया था या नहीं.

भारत द्वारा कई डोजियर और साक्ष्य प्रस्तुत करने के बावजूद, पाकिस्तान ने भारतीय जांचकर्ताओं को किसी भी आरोपी से पूछताछ करने की अनुमति नहीं दी है.

जांच से परिचित एक दूसरे सूत्र ने कहा, “इन लोगों के खिलाफ कोई सार्थक कार्रवाई नहीं की गई. राणा की पूछताछ से हमें हेडली से मिली जानकारी से कहीं ज़्यादा जानकारी मिल सकती है, खासतौर पर उन अभियुक्तों की भूमिका के बारे में, क्योंकि राणा भी संचालकों के साथ लगातार संपर्क में था.”

सूत्र ने कहा कि अब तक, जांच हेडली की गवाही पर काफी हद तक निर्भर थी.

मूल जांच में शामिल एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “हम अनुमान के आधार पर काम कर रहे थे क्योंकि हम हेडली से पूछताछ पर निर्भर थे. अब ज़रूरत है राणा से व्यापक और वैज्ञानिक रूप से कठोर पूछताछ की, जिससे साजिश की पूरी तस्वीर फिर से बनाने में मदद मिल सकती है.”

अधिकारी ने कहा, “अभी भी कई कमियां हैं जिन्हें भरा जाना है. दोनों मूल रूप से एक दूसरे की परछाई थे, जो कुछ भी हम हेडली से नहीं पा सके, अब हम राणा के ज़रिए उसे उजागर करने की उम्मीद करते हैं.”

अब आगे क्या?

अब राणा 18 दिनों के लिए NIA की हिरासत में है, उससे कई पहलुओं पर पूछताछ की जाएगी और वर्षों से एकत्र किए गए साक्ष्यों का सामना कराया जाएगा.

पूछताछ पूरी होने के बाद, उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाएगा और NIA नए साक्ष्यों का हवाला देते हुए पूरक आरोपपत्र दाखिल करेगी.

जब पूछा गया कि क्या 26/11 मामले में अमेरिका में राणा के बरी होने से भारत में कार्यवाही प्रभावित हो सकती है, तो उक्त अधिकारी ने कहा कि यह “बेहद असंभव” है, क्योंकि भारत सह-साजिशकर्ता के रूप में उसकी भूमिका को देख रहा है और इसे साबित करने के लिए उसके पास पर्याप्त सबूत हैं. राणा के खुलासे से मामला और मजबूत होगा.

मुकदमा कितना लंबा चलेगा, यह मालूम नहीं, लेकिन राणा के प्रत्यर्पण ने निस्संदेह 26/11 की जांच को नया जीवन दिया है. जांच से क्या पता चलता है, मुकदमा कैसे आगे बढ़ता है और क्या उसे दोषी ठहराया जाता है या जैसा कि कुछ लोगों को उम्मीद है, उसे फांसी दी जाती है — यह देखना बाकी है. अभी के लिए, यह 26/11 के पीड़ितों के लिए समापन के करीब एक कदम हो सकता है, लेकिन यह अभी भी उससे बहुत दूर है.

(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस न्यूज़मेकर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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