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Monday, 23 December, 2024
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2019 लोकसभा चुनाव: कांग्रेस के नए ‘मणि’ हैं सैम पित्रोदा

इसबार जब कांग्रेस के एक नेता ने अपना इन चुनावों में मुंह बंद रखा तो दूसरे ने कमी पूरी कर दी. 2014 के मणि 2019 के सैम के रूप में सामने आये हैं.

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इस चुनाव में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां है. संसद में 44 पर पहुंचे आंकड़ें को बढ़ाना, कमज़ोर पड़े संगठन रूपी पैरों को मज़बूती देना और जनता को विश्वास दिलाना कि पार्टी अब भी देश चला सकती है. विश्वास बहाली के लिए 400 + सीटों पर अपने उम्मीदवार कांग्रेस ने खड़े किए हैं. पार्टी की कमान संभालने के लिए बाद से ही राहुल गांधी और बहन प्रियंका के साथ जी-जान लगाकर प्रचार में जुटे हैं. उनकी आवाज़ में नया जोश है और वो फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं. हांलाकि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में गठबंधन न कर पाना ज़रूर पार्टी के लिए एक समस्या है. पर चुनावी मैदान में इन सब के अलावा पार्टी को अपने भीतर के दुश्मन से भी निपटना पड़ रहा है.

 झल्लाने से काम नहीं चलेगा- हुआ तो हुआ

इन चुनावों में दो बार बयान दे कर सैम पित्रोदा ने पार्टी को बचाव की मुद्रा में ला खड़ा किया. सैम पित्रोदा ने कहा था कि ‘1984 में जो ‘हुआ तो हुआ’ पिछले पांच साल में क्या हुआ इस पर बात करिए.’ एक पत्रकार के सवाल पर झल्लाते हुए उन्होंने ऐसा कह तो दिया पर उनके इस बयान को भाजपा ने पूरी तरह से न केवल पकड़ा बल्कि खूब भुनाया भी. एक फुल टॉस डिलिवरी को बाउंड्री के बाहर छक्के में भाजपा ने तब्दील कर दिया. सैम पित्रोदा राहुल के करीबी माने जाते हैं, भाजपा ये बताने से नहीं चूक रही कि वे राहुल के ‘गुरु’ हैं. भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘पित्रोदा राजीव गांधी के साथी और राहुल गांधी के गुरु हैं. अगर गुरु ऐसा है तो ‘चेला’ कैसा होगा? कांग्रेस यही कर रही है. पूरी तरह से जनता की भावनाओं के प्रति असंवेदनशील.’


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पर गुरुजी ने फिर अपने मुख से ऐसी वाणी निकाली की चेले की मुसीबत ही बढ़ गई और इतनी बढ़ी कि राहुल गांधी को खुद कहना पड़ रहा है कि पित्रोदा को माफी मांगनी चाहिए. पित्रोदा ने जो ‘कहा सो कहा’ कह कर छूटा नहीं जा सकता. क्योंकि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में 12 मई और 19 मई को कुल 30 सीटों पर चुनाव बचे हैं और सिख दंगो पर इस असंवेदनहीन बोल से पित्रोदा ने पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है. पित्रोदा के बयान ने भानुमति का पिटारा खोल दिया है. राजीव गांधी के बयान कि जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो ज़मीन हिलती है – इस पीढ़ी के मतदाताओं को याद दिलाया जा रहा है. दिल्ली के बोटक्लब में राजीव ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों पर ये टिप्पणी की थी.

कांग्रेस नेताओं की कथित भूमिका पर एक बार फिर ध्यान आकृष्ट किया गया और चुनाव प्रचार में 1984 के दंगे, राजीव और कांग्रेस की भूमिका का इस्तेमाल शुरू हो गया, एक बार फिर मोदी सरकार के काम पर बहस की जगह बहस पुराने इतिहास पर केंद्रित हो गई.

 बालाकोट स्ट्राइक पर बयान देकर खड़ी कर चुके हैं मुश्किलें

इससे पहले राष्ट्रवाद को मुद्दा बना चुनाव लड़ रही भाजपा को कांग्रेस के इन्हीं पित्रोदा साहब ने एक और औज़ार दे दिया था. उन्होंने बालाकोट स्ट्राईक के सत्यापन पर सवाल खड़े कर कांग्रेस की मुसीबत बढ़ा दी थी. विदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने ‘पुलवामा आतंकी हमले’ के जवाब में भारतीय वायुसेना द्वारा किए गए ‘बालाकोट एयर स्ट्राइक’ के दौरान हुई मौत के आंकड़ों पर सवाल उठाया था.


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एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘अगर उन्होंने (वायु सेना) 300 लोगों को मारा है, ठीक है. मैं सिर्फ ये कह रहा हूं कि आप मुझे और तथ्य दीजिए और इसे साबित कीजिए.’ बालाकोट पर विदेशी मीडिया की खबरों पर विश्वास, करते हुए पित्रोदा ने भारत सरकार और सेना के दावों पर सवालिया निशान लगा दिया.

उस बार भी कांग्रेस को सफाई दे कर मामला संभालना पड़ा और पित्रोदा विपक्षी भाजपा के लिए एक अस्त्र साबित हुए.

मणिशंकर अय्यर की चुप्पी पर उठ रहे हैं सवाल

सोशल मीडिया पर लोग बीच में मणिशंकर अय्यर की चुप्पी पर सवाल उठा रहे थे. कुछ तो उनकी सेहत को लेकर चुटकी भी ले रहे थे. मणि शंकर अय्यर इससे पहले गाहे-बगाहे भाजपा की मदद अपने बयानों से करते रहे हैं. ‘चाय वाला’ का मज़ाक (2014) और ‘नीच’ आदमी (गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान) जैसे बयानों ने मोदी के कैंपेन को पैना करने में मदद की थी. बाद में बयान को तोड़ मड़ोड़ के पेश करने का मीडिया पर सैम पित्रोदा की ही तरह मणि शंकर अय्यर ने भी आरोप लगाया था. लेकिन तब तक चुनावी गंगा में बहुत पानी बह चुका था और मोदी इस बयान का खुद के लिए पार्टी के लिए बड़ा फायदा उठा चुके थे.

इसबार जब कांग्रेस के एक नेता ने अपना इन चुनावों में मुंह बंद रखा तो दूसरे ने कमी पूरी कर दी. 2014 के मणि 2019 के सैम के रूप में सामने आये हैं. कांग्रेस को किसी विरोधी की क्या ज़रूरत जब उसके ही नेता उसे डुबाने में लगे हों.  शायद सैम और मणि जैसे नेता चुनाव को मैच की प्रेक्टिस की तरह देखते हैं और परखने की कोशिश करते हैं कि विरोधी के वार से पार्टी के निपटने की तैयारी कैसी है – औऱ खुद ही ये वार कर डालते हैं.

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