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Monday, 23 December, 2024
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स्पेनिश फ्लू के 100 साल बाद भारत में आई कोरोनावायरस की आफत

पहली बार अमेरिका में 1918 में एक सैनिक में इस वायरस की पहचान हुई और अमेरिका में ही इसके शिकार होकर 6.75 लाख लोगों की मौत हो गई थी.

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ठीक सौ साल पहले 1918-19 में स्पेनिश फ्लू ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई थी. उस समय इस महामारी से भारत में करीब 1.8 करोड़ लोग मारे गए, जो भारत की उस समय की कुल आबादी का 6 प्रतिशत थे. एच1एन1 वायरस के कारण फैली इस महामारी से पूरी दुनिया की एक तिहाई के करीब आबादी यानी 50 करोड़ लोग प्रभावित हुए और 5 करोड़ लोगों की मौत हुई. पहली बार अमेरिका में 1918 में एक सैनिक में इस वायरस की पहचान हुई और अमेरिका में ही इसके शिकार होकर 6.75 लाख लोगों की मौत हो गई थी.

अब कोरोनावायरस यानी कोविड-19 ने पूरी दुनिया में तबाही मचाना शुरू कर दिया है. चीन के वुहान प्रांत से फैले इस वायरस ने विश्व के 200 देशों में कहर मचा रखा है और 12 अप्रैल तक के विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक 16,14,951 लोगों में कोरोना की पुष्टि और 99,887 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. इस हिसाब से देखें तो अब तक भारत में प्रभावित लोगों की संख्या कम नजर आ रही है.

भारत में हो सकती है भयावह स्थिति

अभी तक के आंकड़े भले ही बेहतर संकेत दे रहे हैं, लेकिन भारत का भविष्य बेहतर नजर नहीं आ रहा है. कोविड-19 के मामले भारत में जांच बढ़ने के साथ लगातार बढ़ रहे हैं. भारत से पड़ोसी देश चीन से रिश्ते मधुर नहीं रहे हैं, जिसके कारण दोनों देशों में आवाजाही कम है. भारत में पहला केस बेशक चीन से आए व्यक्ति का था लेकिन ज्यादातर मामले उन लोगों के हैं जो ईरान, इटली, अमेरिका आदि से लौटे हैं.

भारत से लोगों के विदेश जाने का लंबा इतिहास रहा है. 2015 तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत के 1.56 करोड़ लोग विदेश में रहते हैं. अगर हम विस्थापन के वैश्विक आंकड़े देखें तो भारत से सबसे ज्यादा 35 लाख लोग संयुक्त अरब अमीरात में गए हैं और दूसरे स्थान पर अमेरिका है, जहां 20 लाख लोग गए हैं. अन्य खाड़ी देशों में भी बड़े पैमाने पर लोग नौकरियां करने जाते हैं. उन देशों में कोरोना संकट बढऩे पर बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूर/भारतीय भारत की ओर भागे. भारत ने वुहान, तेहरान और मिलान से सैकड़ों नागरिकों को विमान भेजकर भारत बुलाया. इनके अलावा हवाई यातायात सेवा चालू रहने के कारण बड़ी संख्या में लोग भारत आए, जिनकी पहचान भी नहीं की गई कि वे कहां गए और वह स्वस्थ हैं या सैकड़ों लोगों को कोरोनावायरस फैला चुके हैं.


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सिर्फ तबलीगी जमात का मरकज प्रकाश में आया, जिनके कुछ सौ सदस्य ही विदेश गए या विदेश से इस दौरान भारत आए. तबलीगी जमात और उनसे जुड़े लोगों की संक्रमित संख्या ही फिलहाल सामने आ पाई है. जनवरी से लेकर मार्च के बीच लाखों की संख्या में जो लोग तमाम देशों से भारत आए हैं, उनमें कितने कोरोना पीड़ित हैं, इसका कोई आंकड़ा अब तक भारत सरकार ने जारी नहीं किया है कि वे क्वारेंटाइन किए गए, बीमार हैं, या कितने लोगों को उन्होंने बीमारी फैलाई है.

कुछ छिटपुट मामले सामने आए हैं, जिनमें गायिका कनिका कपूर का मामला सबसे ज्यादा चर्चित रहा. वह 9 मार्च को लंदन से भारत आईं, और होली से लेकर 20 मार्च तक लखनऊ में कई समारोहों में शामिल हुईं. लेकिन अब तक साफ नहीं हुआ कि इन 11 दिनों में उनसे संपर्क में आए कितने लोगों को संक्रमण हुआ है या नहीं हुआ है.

मध्य प्रदेश की प्रमुख स्वास्थ्य सचिव और डिप्टी डायरेक्टर कोरोना संक्रमित पाई गईं. प्रमुख स्वास्थ्य सचिव पल्लवी जैन गोविल, बेटे के अमेरिका से घर आने के बावजूद, मुख्यमंत्री व अफसरों के साथ मीटिंग में शामिल होती रहीं. वहां स्वास्थ्य विभाग के कई अधिकारियों व कर्मचारियों के कोरोना पाजिटिव होने की बात सामने आई है.


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मध्य प्रदेश के ही मुरैना जिले के सुरेश और उनकी पत्नी कोरोना पाजिटिव पाए गए हैं. दुबई से लौटे सुरेश  ने 20 मार्च अपनी मां की तेरहवीं में दिए भोज में 1,500 लोगों को खाना खिलाया. उसके 23 रिश्तेदारों के टेस्ट में 10 को कोविड-19 प्रभावित पाया गया.

आगरा के एक डॉक्टर दंपति ने लंदन से लौटे अपने बेटे में कोरोना का लक्षण मिलने पर खुद इलाज शुरू कर दिया. उस डॉक्टर दंपति के अलावा उनके हॉस्पिटल के कर्मचारी और उन्होंने जिन-जिनका उस दौरान इलाज किया है, सभी खतरे में आ गए.

लखनऊ की एक महिला डॉक्टर टोरंटो से लौटी. उसके सास-ससुर को कोरोना हुआ, उसके ढाई साल के बेटे को भी कोरोना हो गया. उसका चचेरा भाई संक्रमित है.

सामने आए उपरोक्त मामले सिर्फ नजीर हैं. इस तरह के करीब 15 लाख लोग फरवरी-मार्च में भारत आए हैं. संभव है कि जो लोग लौटे हैं, उन्हें खांसी जुकाम के बाद कुछ न हुआ हो, क्योंकि वैश्विक आंकड़े बताते हैं कि 90 प्रतिशत लोग खुद-ब-खुद ठीक हो जाते हैं. लेकिन हो सकता है कि उन लोगों ने अपने संपर्क में आने वाले लोगों को यह वायरस बड़े करीने से बांटा होगा.

तबलीगी जमात के माध्यम से कोरोना संक्रमित लोगों के आंकड़े डरावने हैं.

सरकार के लिए यह ढूंढना कोई कठिन काम नहीं था कि कितने लोग भारत आए हैं और वह कहां हैं. वजह यह है कि सरकार के पास हर किसी की ट्रैवल हिस्ट्री है कि उसके हवाईअड्डों पर कौन कब आया. साथ ही जो लोग विदेश गए थे, बाकायदा उनका पासपोर्ट होते हैं, जिनमें उनका पूरा पता और थाने का नाम दर्ज होता है. लेकिन सरकार ने इन संभावित संक्रमित लोगों को क्वारेंटाइन करने, उनकी निगरानी करने या उनका इलाज करने के बजाय उसकी सजा 1.3 अरब भारतीयों को लॉकडाउन करके दे दी, जिसकी कीमत मुख्य रूप से गरीब और प्रवासी मजदूर उठा रहे हैं.

अगर जांच व इलाज के साथ क्वारेंटाइन की व्यवस्था नहीं की गई, तो भले ही इस वायरस को अमेरिका के राष्ट्रपति ने चाइनिज वायरस नाम दिया है, लेकिन यह सबसे ज्यादा तबाही भारत में मचा सकता है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल ठीक नहीं है.

(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.यह लेख उनका निजी विचार है.)

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1 टिप्पणी

  1. शिव कुमार धुर्वे गोरखपुर जिला डिंडोरी

    मेरे मेरे प्यारे भाइयों lockdown के दौरान पड़ोसी का भी ख्याल रखना है कहीं क्रोना वायरस से ज्यादा भूख से ना मर जाए नाराज मत होना ध्यान दें स्वच्छता की घर से बाहर ना घूमें धन्यवाद

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