फिल्म के ट्रेलर और गानों में महिलाओं को पुरूषों की तरह दिखाया गया है जैसे कि बॉलीवुड में दशको से पुरुषो को महिलाओ के प्रति।
हाल ही में रिलीज हुए मल्टी स्टारर फिल्म वीरे दी वेडिंग के ट्रेलर में नई उम्र की भारतीय महिलाओं को चित्रित करने और उनके आपसी सम्बन्धो के जश्न को दिखाया गया हैं।
हमेशा से जिस प्रकार फिल्मों में महिलाओं को दिखाया जाता है उसके विपरीत महिलाओं पर केन्द्रित इस फिल्म में महिलाओं के उत्थान और सशक्तीकरण को स्पष्ट रूप से दिखाने का प्रयास किया गया है। इस फिल्म में भारतीय शहर की शांत और समृद्ध महिलाएं अपने आप को 21 वीं सदी के पोस्टर बच्चों के रूप में दिखाने की कोशिश करती हैं। यह महिलाएं शराब पीतीं हैं, क्लबों में जाती हैं, ड्राइव करती हैं और काम-वासना से शर्मिंदा नहीं होती है, उनके चारों ओर स्थित पुरूषों द्वारा उनको परिभाषित नहीं किया गया है।
फिल्म में “तारीफां” नामक एक गाने को रखा गया है, जिसमें फिल्म की सभी महिलाओं को मुख्य किरदार में दिखाया गया है।
शुरुआत में गाने और ट्रेलर का चित्रण काफी प्रगतिशील लगता है, लेकिन इसकी वास्तविकता काफी गहराई से उलझी हुई है और भाषा इतनी दुर्व्यवहारिक है कि फिल्म की मुख्य थीम से भटक रही है।
लेकिन बहुत ही महत्वपूर्ण और परेशान करने वाली बात यह है कि यह हमारी लिंग और सशक्तीकरण की बेतुकी समझ का प्रतिबिंब है।
गाने में पुरूषों को भी वैसे ही दिखाया गया है जैसे दशकों से बॉलीवुड में महिलाओं को दिखाया जाता है। इस फिल्म में कई दृश्य हैं जिसमें करीना के साथ बिस्तर पर आधा-नंगा लेटा हुआ चेहराविहीन आदमी है और एक आदमी योजनाबद्ध तरीके से केवल तौलिया लपेटकर कमरे में प्रवेश करता है जिसे सोनम कपूर देख लेती हैं। एक जगह स्वरा भास्कर आकस्मिक रूप से एक आदमी के कूल्हे को थपकी देती हैं।
किसी को इस हद तक चित्रित करना कैसे सामान्य हो सकता है? क्या दूसरों पर हावी होने की आदत और जबरदस्ती, जैसा कि हम सभी महिलाओं में तलाश करते हैं, बेवकूफी नहीं है?
गीत के साथ मेरी समस्या ‘सशक्तिकरण’ का चित्रण भी है। महिलाएं पारंपरिक मर्दाना विशेषताओं के साथ में और भी बहुत कुछ प्रस्तुत करने का पूरा प्रयास करती हैं। उनको कई बार बहुत ही नियंत्रण में, पुरूषों के ध्यान और स्नेह का केन्द्र दिखाया जाता है, जिनको एक बार में भौतिक रूप से एक दूसरे से लड़ते हुए दिखाया गया है।
सशक्त महसूस करवाने के लिए सबसे खराब और बुरे पुरूषों के व्यवहार को क्यों चित्रित किया जाता है? मजे और ताकत की हमारी परिभाषा हमेशा पुरूषों द्वारा किए जाने वाले घृणित मानकों से क्यों आती है? एक साधारण और संवेदनशील चरित्र शक्तिशाली क्यों नहीं हो सकता है? अगर देखा जाए तो हम केवल महिला का चेहरे लगाकर नारित्व का जश्न मना रहे हैं।
“तारीफां” गाने के शब्द बहुत ही कष्टदायक हैं। एक आदमी महिला के लिए गाता है कि “होर दस्स किन्नीयां तारीफें चाहिदियां तैंनू” (अर्थ – मुझे बताइये आपको और कितना तारीफें चाहिए)। यह लैंगिक रूढ़िवादों का क्लासिक सुदृढ़ीकरण है। यह इस बात की धारणा दे रहा कि एक महिला का दिल केवल तारीफों से जीता जा सकता है और इससे उसकी हामी भी पाई जा सकती है।
बादशाह का गाना तो बहुत ही परेशान करने वाला है– एक महिला की जीन्स को निशाना बनाते हुए उनका कहना है कि “जीन्स है डल्ली जो वो तेरी बॉडी पे है टाइट (अर्थ – जो आपने जीन्स पहन रखी है वह आपके कूल्हों पर कसी हुई है)। फिर वह महिलाओं के उस अंग के बारे में बोलते हैं जिसको वह सही और दूसरे दोषपूर्ण समझते हैं, कैमरा सोनम कपूर के स्तनों पर जूम किया जाता है (लोग इसको टकटकी बाँध कर देखते हैं. यह हम हैं?)
यह सब और भी मजाकिया हो जाता है, कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि गीत व्हाट्सप के पति-पत्नी चुटकलों से प्रेरित था कि नहीं। बादशाह पूछते हैं, “डाइटिंग पे है तो क्यों खाती भाव (अर्थ- डाइटिंग पर है तो भाव “घमंड” क्यों खा रही है)।
जैसे ही गाना समाप्त होता है, मैं आश्चर्चचकित हो जाती हूँ – क्या हमने इतनी हद तक स्त्री – द्वेष को आंतरिक किया है कि हम इसे पहचान नहीं सके? बॉलीवुड को बेहतर शिक्षा की जरूरत है। शायद समाजशास्त्र की क्लास की?