scorecardresearch
Saturday, 23 November, 2024
होममत-विमतप्यार को प्यार ही रहने दो...

प्यार को प्यार ही रहने दो…

Text Size:

नफरत की राजनीति के इस दौर में प्यार की बातें. गुरमेहर कौर बता रही हैं राजनीतिक विरोधियों से उनकी डेटिंग के खट्टे-मीठे अनुभव.

‘‘यह गर्मियों की एक खूबसूरत दोपहर थी जब मैंने उसे पहली बार देखा था. वह अपने कुछ दौस्तों के साथ एक्जिबीशन हॉल की सीढ़ियां चढ़ रहा था.,’’ मेरी 20 वर्षीया फेमिनिस्ट-लिबरल (नारीवादी, उदार) सहेली ने मुझे यह बताया.

‘‘प्रभावशाली ऊंचे कद, फैब इंडिया के नारंगी कुर्ता, लड़के वाले आकर्षण और तीखे नाक-नक्श के कारण वह अपनी ‘एमयूएन’ टीम के औसत रूप-रंग वाले लड़कों में सबसे अलहदा दिख रहा था. जैसे ही वह मुस्कराया, मुझे लग गया कि मैं अपनी बाकी जिंदगी चुटकुले बनाते बिता सकती हूं ताकि उसके चेहरे से वह मुस्कराहट कभी नहीं उतरे.

‘‘मेरा ख्याल है उसके बाएं गाल पर अभय देओल जैसी डिंपल बनती थी. यह एलएसआर में शाहरुख-गौरी, और मीरा-शाहिद की प्रेम कहानी के बाद सबसे हसीन प्रेम कहानी की शुरुआत हो सकती थी. लेकिन तभी जिंदगी आड़े आ गई,’’ वह आह भरते हुए बोली.

मैंने जल्दी-जल्दी नोट लिखते हुए पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘हम व्हाट्सअप पर चैटिंग करते रहे, तीन महीने तक स्नैपचैट स्ट्रीक बनाए रखी लेकिन तभी मुझे वह पता लगा, जो मैं नहीं चाहती थी कि मालूम हो,’’ उसने सामान्य होने के लिए अपने कंधे ढीला छोड़ते हुए गहरी सांस ली.

‘‘मैं ग्लोबल सिटिजन कोल्डप्ले कन्सर्ट के लिए मुंबई गई थी. मैंने उसे वहां के मैदान और मंच की फोटो भेजी. यह बस मौज-मस्ती का खेल था, कि उसने मुझे संदेश भेजा कि मैं भाग्यशाली हूं कि मैंने मोदी का भाषण उनसे सीधे सुना. जोश में होश खोकर मैंने तुरंत उसे लिखा- ‘मुझे मालूम है. लेकिन मुझे लगता है कि यह कार्यक्रम न रखा जाता तो हमें गरमी में 30 मिनट ज्यादा खड़े न रहना पड़ता.’’ लेकिन मुझे बाद में एहसास हुआ कि उसने गंभीरता से संदेश भेजा था. मैंने अपने साझा मित्रों को एसओएस भेजे. पता चला कि वह पक्का संघी है. किसी ने पूछा- ‘तुम अब तक क्यों नहीं समझ पाई? क्या वह हरेक महत्वपूर्ण आयोजनों में नारंगी रंग का कुर्ता पहनकर नहीं आता है?’’

पूरे सप्ताह वह चीखती, शिकायतें करती रही, कभी-कभी डरावनी हंसी हंसती रही और अस्तित्वादी संबंधों के बारे में इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री भेजती रही.

वैलेंटाइन डे पर मैं छात्र राजनीति की बजाय केवल छात्रों पर कुछ लिखना चाहती थी. एक काली नोटबुक और ब्लू पेन लिये मैं कॉलेज में घूम कर अपने दोस्तों से डेटिंग के उनके अनुभवों के बारे में बातें करती रही और यह पूछती रही कि अपना पार्टनर चुनने में क्या उनका राजनीतिक झुकाव या पसंद कोई भूमिका अदा करती है, या किस हद तक अदा करती है.

मेरी उस सहेली ने थोड़ा कांपते हुए कहा, ‘‘मैंने उस घटना के बाद उसे कोई संदेश नहीं भेजा.’’ यानी अगर वह राजनीति में विपरीत खेमे के किसी लड़के के साथ दिख जाती तो इससे बुरी कोई बात नहीं होती. आखिर हम उन्हीं लोगों के साथ घुलते-मिलते हैं न, जो हमारी पसंद-नापसंद से इत्तफाक रखते हैं. इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मेरे अधिकतर दोस्तों की राजनीति काफी हद तक मेरी राजनीति से मेल खाती है.

मैं यह जानने को उत्सुक थी कि एक उदार-नारीवादी युवती डेटिंग की दुनिया में किस तरह विचरण करती है. क्या निजी (जीवन) और राजनीति (विचार) को अलग किया जा सकता है? क्या निजी, राजनीतिक हो सकता है? क्या राजनीति, निजी हो सकती है? मेरे कानों में साठ वाले दशक के नारीवादी और छात्र आंदोलन के यु्द्धघोष गूंजने लगे.

‘‘मुझे नहीं लगता कि मैं उतनी सख्त हूं. मैं उदार हूं तभी तक, जब तक सामने वाला इतना स्मार्ट हो कि वह अपनी पसंद की पार्टी या नेता के पक्ष में ठोस, विचारसम्मत तर्क प्रस्तुत करे, भले ही मैं उस पार्टी या नेता से नफरत करती होऊं. मुझे बहुत अच्छा लगेगा कि ऐसे लोग भी हैं, जो देश में राजनीति की चिंता तथा खबर रखते हैं. वैसे भी अक्षय और ट्विकल में खूब बनती है, इसलिए यह कोई उतनी बड़ी अड़चन नहीं है.’’

एक उदार-नारीवादी दोस्त है, जो ट्रंप के घोर समर्थक के साथ डेटिंग कर रही है. जब वे दोस्तों के साथ होते हैं तब उसकी बेबाक टिप्पणियों के कारण निरंतर असहज स्थिति बन जाया करती है. लेकिन कोई बात है कि उनकी दोस्ती जम गई है. उसका कहना है कि भिन्न मत वाले व्यक्ति का साथ दिलचस्प होता है.

हमारी टोली तीन लोगों से बढ़कर सात की हो गई है. लहरदार झुमके वाली ने आंखों घुमाते हुए कहा, ‘‘लड़के तो खा जाते हैं, हमें लड़कियों के साथ डेटिंग करनी चाहिए.’’ हम ठहाका लगा देते हैं. किसी ने कहा, ‘‘धारा 377 को मत भूलो!’’ ठहाके और तेज हो जाते हैं.

बेशक, दुनिया में राजनीति से कुछ भी अछूता नहीं है, खासकर प्रेम. जिस देश में समलैंगिकता अपराध है, लव जिहाद के नाम पर हत्याएं होती हैं, डेटिंग करने वालों को पकड़ने के लिए एंटी रोमियो दस्ते घूमते रहते हैं वहां क्या हम और हमारा प्यार राजनीति से अछूता रह सकता है?

इस बातचीत में सहजता थी, हालांकि इसमें आज की विस्फोटक राजनीति पर भी बातें हुईं. अंत में, लंचब्रेक के दौरान घास के मैदान पर किशोरों का झुंड बैठा रह गया था और नफरत के इस माहौल में प्यार के सवाल पर हमारी चर्चा में भाग ले रहा था, जब कि जीना और प्यार करना कठिन होता जा रहा है.

क्या मैं कभी यह चाहूंगी कि मेरे सभी दोस्त सामूहिक तौर पर इस बात पर सहमति दें कि हम ऐसे किसी शख्स के सामने अपना जीवन और दिल खोल कर नहीं रखेंगे, जो अलग विचारधारा का हो? हो सकता है. लेकिन हमने इस विषय पर जितनी ज्यादा बात की उतना ही यह एहसास बढ़ता गया कि पहले ही कई तरह के ठप्पे हैं; जाति, धर्म, लिंग, वर्ग के नाम पर खांचे हैं. जब बात प्यार की आती है तब हमें आपस में और बांटने के लिए राजनीतिक विचारधारा के नए खांचे की जरूरत नहीं है. प्रेम का काम तो टूटे हुए को जोड़ना है. तो उसे जटिल क्यों बनाएं?

मैं जब अपना बैग उठाकर चलने को हुई तो मेरी दोस्त पूछ बैठी, ‘‘गुरमेहर, तुमने अपनी राय नहीं बताई.’’

मैंने कहा, ‘‘हरेक पंजाबी लड़की के बचपन के चहेते रणदीप हुड्डा ने जब ट्वीटर पर मुझे ओछी बातें कही, तो मेरे दिल के लाखों टुकड़े हो गए. मुझे लगता है कि मैं उससे अभी उबर नहीं पाई हूं.’’

share & View comments