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Friday, 29 March, 2024
होममत-विमतकर्नाटक में 'मोदी लहर' के बावजूद अभी से 2019 में विपक्ष को कमजोर समझना जल्दबाजी

कर्नाटक में ‘मोदी लहर’ के बावजूद अभी से 2019 में विपक्ष को कमजोर समझना जल्दबाजी

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राजनीतिक दृष्टिकोण से कर्नाटक आखिरी कांग्रेस शासित प्रदेश है जो “मोदी लहर” में साफ हुआ है जिसकी शुरुआत 2014 में हुई थी।

कर्नाटक चुनावों के परिणाम ने भले ही पहले से कमजोर कांग्रेस को एक और झटका दिया हो और साथ ही जिसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता की जनता में पुष्टि की हो, लेकिन अभी भी 2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष को पूरी तरह से ख़ारिज करना जल्दबाजी है।

सबसे पहले, राजनीतिक दृष्टिकोण से कर्नाटक आखिरी कांग्रेस शासित प्रदेश है जोकि “मोदी लहर” में साफ हुआ है जिसकी शुरुआत 2014 में हुई थी – अगर मिजोरम को नजरंदाज़ कर दिया जाये जहाँ दिसम्बर में चुनाव होने हैं।

ये लहर अपने चरम पर है खासकर वहाँ जहाँ कांग्रेस को विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है और वो लहर जोकि मोदी द्वारा लाये जाने वाले परिवर्तन की उम्मीद की वजह से और बढ़ गयी है – ये कुछ वैसा ही है जैसा अमेरिका में 2008 में देखा गया था जब बराक ओबामा राष्टपति बनने की दौड़ में शामिल हुए थे। एक के बाद एक सभी राज्यों में जनता मोदी के व्यक्तित्व और उनके गढ़े हुए विकास के मुद्दे से अभिभूत थी जिसपर हिंदुत्व और जातियों के ध्रुवीकरण का रंग चढ़ा था।

लेकिन मोदी लहर अब कुछ राज्यों में हलकी पड़ती दिख रही है जहाँ बीजेपी को विरोधी लहर का सामना करना पड़ा, जैसा कि पंजाब और गोवा में हुआ।

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अगर बीजेपी कर्नाटक में सरकार बनाने में सफल होती है तो ये बाईसवां (22) राज्य होगा जहाँ बीजेपी की सरकार होगी। लेकिन इस जीत का एक दूसरा पहलू भी है। अगर हम उन चार राज्यों की बात करें जहाँ चुनाव होने वाले हैं – राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम – 2019 में बीजेपी को बाईस (22) राज्यों में विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा। ये दिसम्बर में और भी साफ़ हो जायेगा जब तीन बीजेपी शासित राज्यों में चुनाव होने हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कर्नाटक के नहीं बल्कि आगे होने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजे ज्यादा बेहतर तरीके से स्थिति को समझा पाएंगे। इन सबके बावजूद भी इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी अभी भी देश में सबसे लोकप्रिय नेता हैं और उनके विरोध में अभी कोई और विपक्षी नज़र नहीं आ रहा।

दूसरा, मोदी लहर सबसे ज्यादा शक्तिशाली तब होती है जब विपक्ष एकजुट होकर नहीं लड़ता। जहाँ दूसरी और सभी ने देखा कि जब 2015 में बिहार के विधानसभा चुनावों में जब एक महागठबंधन, जो कि विभिन्न जातियों की अगुवाई कर रहा था, ने मोदी लहर को रोक दिया था।

कर्नाटक में भी कुछ ऐसा ही समीकरण बनता अगर कांग्रेस और जेडीएस साथ चुनाव लड़ते। चुनाव के पहले गठबंधन होने की स्थिति में इन्हें 222 में से 150 सीटें मिलतीं। बीजेपी विरोधी सभी पार्टियों का महा गठबंधन 2019 में बीजेपी के लिए खतरा हो सकता है। लेकिन ये जानने के बाद भी बहुत कम ही दल अपने व्यक्तिगत लाभों और आपसी विरोधों के चलते ऐसे गठबंधन की तरफ झुकाव रखते हैं।

तीसरा, अलग-अलग सर्वे के मुताबिक अधिकांश लोग केंद्र में बीजेपी सरकार के कार्यों से खुश हैं लेकिन वहीँ दूसरी ओर वही सर्वे यह भी बता रहे हैं कि जो लोग बीजेपी के कार्यों से खुश नहीं हैं उनकी संख्या में भी इजाफ़ा हो रहा है। 2019 में जनता से समर्थन मांगते वक़्त बीजेपी के सामने जवाब देने के लिए कई कठिन सवाल होंगे जैसे – रोजगार पैदा करना, कला धन, कृषि संकट और दलितों पर अत्याचार।

चौथा, 2014 में बीजेपी गठबंधन ने उत्तर और पश्चिम भारत में विपक्ष का लगभग सूपड़ा साफ़ कर दिया था – जहाँ उत्तर प्रदेश में 80 में से 73 सीट, महाराष्ट्र में 48 में 42, राजस्थान में 25 में 25 और ऐसे ही कई और राज्यों की सूची है। 2019 में सत्ताधारी पार्टी को इन्हीं परिणामों को दोहरा पाना काफी मुश्किल होगा। पूर्वोतर भारत में भी बीजेपी ने अच्छी छवि बनायी है पर इस क्षेत्र से लोकसभा में केवल 25 सांसद जाते हैं। बीजेपी जोर शोर से पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और केरल जैसे राज्यों में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन अभी वो इस मुकाम तक नहीं पहुँच पाई है जहाँ वो उत्तर और पश्चिम भारत में पहुँचने वाले नुकसानों की भरपाई इन राज्यों से कर पाए।

आने वाले दिनों में बीजेपी के सामने और भी बड़ी अड़चनें आ सकती हैं पर इस बात में कोई दो राय नहीं कि मोदी भारतीय राजनीति में एक विलक्षण शख्सियत हैं। बाकी आंकड़े और समीकरण ज्यादा मदद नहीं कर पाएंगे अगर हम इस बात का आंकलन लगायें कि 2019 में मोदी लहर कितना असर डालेगी।

Read in English: Despite ‘Modi wave’ in Karnataka, it’s too early to write off opposition parties for 2019

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