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Saturday, 27 April, 2024
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आर के नगर का परिणाम तमिलनाडू की राजनीति में करेगा उथल-पुथल

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दिनाकरन की अप्रत्याशित जीत से सभी ताकतों के पुनर्निर्माण का रास्ता खुलेगा. किस तरह का नया समीकरण बनेगा, यह कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी.

तमिलनाडु का राजनीतिक नाटक अनपेक्षित मोड़ों और बदलावों के साथ जारी है. जे जयललिता की साथी वी शशिकला और उनके भतीजे टी टीवी दिनाकरन राजनैतिक परिदृश्य से ओझल होने को तैयार नहीं हैं.

आर के नगर के बहुप्रतीक्षित उपनचुनाव के नतीजे ने कई को आश्चर्य में डाला, क्योंकि मतदाताओं को रिश्वत देने के आरोप में भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे दिनकरन ने जयललिता की ही विधानसभा सीट पर कब्जा किया. यह भी आरोप है कि उनकी शानदार जीत के पीछे उनका धनबल जिम्मेदार था. उनकी जीत का अंतर जयललिता से भी अधिक था, जो अपनी मौत तक दो बार इस सीट से चुनी गयी थीं. एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते दिनाकरन ने एक रिकॉर्ड यह भी बनाया कि दूसरे 57 प्रत्याशियों को कुल मिलाकर जितने वोट आए, उनसे एक अधिक वोट उन्हें मिला.

नतीजों के आने से पहले ही दिनाकरन ने भविष्यवाणी की कि ई पलानीस्वामी-ओ पनीरसेल्वम की सरकार तीन महीनों में गिर जाएगी. दोपहर के पहले, भाजपा सासंद सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया, ‘दिनकरन ने जयललिता की मौत के बाद खाली आर के नगर सीट जीत ली है. मैं उम्मीद करता हूं कि अन्नाद्रमुक के दोनों धड़े एक होकर 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी करेंगे’.

नतीजे के मायने

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पहला, तमिलनाडु में राजनीतिक ताकतों का पुनर्संगठन होगा. परिदृश्य शायद और बदतर ही हो क्योंकि अस्थिरता बढ़ने से हॉर्स ट्रेडिंग के आसार हैं. पलानीसामी-पनीरसेल्वम गुट के लिए यह साथ सरकार बनाने के बाद पहली परीक्षा थी. हालांकि, अन्नाद्रमुक का दो पत्तियों वाला चुनाव-चिह्न जीतने के बावजूद वे उपचुनाव हार गए. शायद, लोग बेहतर शासन नहीं होने की वजह से नाराज़ थे.

तमिलनाडु में उपचुनावों के इतिहास में केवल एक बार ही सत्ताधारी दल चुनाव हारा है. अब अन्नाद्रमुक में क्या होगा, यह लगभग हरेक आदमी अनुमान कर सकता है. क्या यह सत्ता के लिए एक हो जाएंगे? क्या यह और बिखरेगा, जिसमें एक धड़ा द्रमुक के पास जाएगा, दूसरा शशिकला और दिनकरन के साथ? या पूरी पार्टी दिनकरन के साथ खड़ी होगी? पलानीसामी और पनीरसेल्वम को अपने लोगों को इकट्ठा रखना चाहिए, वरना दिनकरन अपने नव-अर्जित आत्मविश्वास से उन्हें लुभाएंगे.

सत्ताधारी अन्नाद्रमुक शायद इस बात में ही राहत ढूंढ सकती है कि कोई भी विधायक फिर से चुनाव का सामना नहीं करना चाहेंगे, जबकि अभी साढ़े तीन साल बचे हैं. जबकि शशिकला-दिनकरन धड़ा पहले ही अम्मा की विरासत पर दावा कर रहा है, शायद वे विरासत की लड़ाई भी हार जाएं.

दूसरी बात, द्रमुक पहले भले ही अन्नाद्रमुक के वोटों के तितरफा बंटवारे में लाभ की स्थिति में हो, लेकिन एम के स्टालिन के नेतृत्व पर मुहर नहीं लगी है. वह पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर काम संभालने के बाद अपनी पहली अग्निपरीक्षा में असफल हो गए. वह भी तब, जबकि 2जी मामले में ए राजा, कनिमोई और दूसरों को कोर्ट ने बरी कर दिया हो, जब कांग्रेस, विदुतलाई चिरुथाइलग काची (वीसीके) और वाम दलों के समर्थन औऱ समर्पित वोट-बैंक की वजह से अंकगणित भी आपके ही पक्ष में दिखाई दे रहा हो.

पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्रुमक प्रमुख एम करुणानिधि के निवास पर जाकर मुलाकात की और उन्हें दिल्ली आकर प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास में ठहर कर स्वास्थ्य-लाभ करने का न्योता दिया, तो कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों के बीच कुछ समझौता हो गया है. शायद यह कि द्रमुक नेताओं को छोड़ने के बदल द्रमुक 2019 के चुनाव से पहले राजग के साथ समझौता करेगी. रिहाई ने किसी हद तक इन अफवाहों को पुष्ट किया है. हालांकि, आर के नगर में पार्टी प्रत्याशी के जमानत जब्त होने की स्थिति में शायद दोनों ही दल पुनर्विचार करें. द्रमुक के पास 2019 के चुनाव के पहले कांग्रेस या भाजपा, दोनों ही के विकल्प खुले हैं.

तीसरे, कांग्रेस और वाम दलों के लिए यह निराशाजनक होगा कि उनके समर्थन के बावजूद द्रमुक सीट नहीं निकाल सकी. इस विधानसभा में नए तेवर वाली कांग्रेस के प्रभाव देखने को नहीं मिले.

चौथा, नतीजों से बाजेपी के राज्य में विस्तार के प्लान को बड़ा झटका लगा है. पार्टी को नोटा से भी कम वोट मिले और वह आखिरी स्थान पर रहीं. पार्टी का तमिलनाडू में विस्तार का सपना सपना ही रहा.

तमिलनाडु में भाजपा ने लगता है, सब गड़बड़ कर दिया है. पहले, इसने पनीरसेल्वम का समर्थन किया, जब वह जया की मौत के बाद मुख्यमंत्री बने. यहां तक कि जलीकट्टू विवाद सुलझाने में मदद की. फिर, इसने पलानीसामी-पनीरसेल्वम गुट और एकीकृत अन्नाद्रमुक का समर्थन किया. रिपोर्ट तो यह भी कहती है कि पिछले दरवाजे से सरकार तो दरअसल भाजपा ही चला रही थी.

जब इसने देखा कि सरकार स्थिर नहीं है, तो भाजपा ने द्रमुक की तरफ हाथ बढ़ाने का सोचा. इसीलिए, प्रधानमंत्री ने करुणानिधि से मुलाकात की. अब जब द्रमुक भी हार गयी है, तो भगवा पार्टी क्या करेगी? क्या यह दिनकरन के साथ समझौता करेगी, अगर वह अन्नाद्रमुक का नियंत्रण पा लेते हैं? या फिर, भाजपा दिनकरन को उनके भ्रष्टाचार के मामलों में उलझाने का प्रयास करेगी? या, क्या द्रमुक के साथ इसके समझौते की योजना दृढ़ है.

दिनकरन की आसान जीत से सभी ताकतों के पुनर्निर्माण का रास्ता सुनिश्चित होगा. किस तरह का नया समीकरण बनेगा, यह कहना थोड़ी जल्दी होगा लेकिन खिलाड़ियों के लिए सारे विकल्प खुले हैं.

कल्याणी शंकर एक स्तंभकार हैं, हिंदुस्तान टाइम्स की पूर्व राजनीतिक संपादक और वाशिंगटन संवाददाता रह चुकी हैं.

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