सुप्रीम कोर्ट के निर्णय स्पष्ट हैं: जिस किसी के पास भी बहुमत बनता हुआ प्रतीत होता है गवर्नर को उसे आमंत्रित करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये निर्णय और उनके उदाहरण स्पष्ट हैं कि कर्नाटक के राज्यपाल को क्या करना चाहिए। उनका कार्य यह मूल्यांकन करना है कि बहुमत किसके पास होगा: एच.डी. कुमारस्वामी या बी.एस. येदियुरप्पा ? राज्यपाल को केवल एक ही सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं करना है बल्कि उन्हें उसे आमंत्रित करना चाहिए जिसके पास बहुमत हो।
कांग्रेस और जेडी (एस) ने स्पष्ट और सार्वजनिक रूप से चुनाव के बाद गठबंधन बनाया। यदि दोनों पार्टियों की सीटें जोड़ी जाएं तो उनकी सीटों की संख्या बहुमत से ऊपर है। राज्यपाल को इस गठबंधन को सरकार बनाने और सदन में अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
कांग्रेस और भाजपा का पाखंड कोई नया मुद्दा नहीं है। पिछले साल जब गोवा की राज्यपाल ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि कांग्रेस एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी थी और इसके बजाय भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया, तो उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि भाजपा पहले से ही बहुमत हासिल कर चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के फैसले को यह कहते हुए बरकरार रखा था कि, “जब कोई भी राजनीतिक दल बहुमत में नहीं है तो यह देखना राज्यपाल का बाध्य कर्तव्य है कि सरकार कौन बना सकता है। यदि ऐसा कुछ नहीं होता है तो राज्यपाल एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी को बुलाने के लिए कर्तव्यनिष्ठ है, लेकिन यदि कोई पार्टी अपने समर्थकों के साथ राज्यपाल के पास जाती है तो यह पूरी तरह से एक अलग मुद्दा है।”
मणिपुर में कुछ ऐसा ही हुआ था। स्वाभाविक रूप से राज्यपाल किसी भी पार्टी को त्रिशंकु विधानसभा में आमंत्रित करने के लिए बाध्य नहीं है। राज्यपाल के पास यह निर्णय लेने का विवेकाधिकार है कि कौन बहुमत साबित कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार जोर देकर कहा है कि सदन में जल्द से जल्द बहुमत साबित करना चाहिए।
इस प्रथा का इतिहास कर्नाटक के साथ भी सरोकार रखता है। अप्रैल 1989 में कर्नाटक के 11 वें मुख्यमंत्री एसआर बोमाई को राज्यपाल की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति ने बर्खास्त कर दिया था। राज्यपाल ने यह सिफारिश इसलिए की थी क्योंकि सत्ता पक्ष के एमएलए बार-बार राजभवन जाकर यह दावा कर रहे थे कि बहुत से विधायक सरकार से अपना समर्थन वापस ले रहे हैं।
अपदस्थ मुख्यमंत्री सुप्रीम कोर्ट गए, जिसने 9 न्यायाधीशों की संवैधानिक न्यायपीठ की स्थापना की। इस न्यायपीठ ने अन्य बातों के साथ इस बात का भी ध्यान दिया कि बहुमत केवल सदन में ही साबित किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, कर्नाटक के तत्कालीन राज्यपाल को मुख्यमंत्री बोमाई से राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने से पहले सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए कहा जाना चाहिए था।
बोमाई के फैसले ने अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकारों की आकस्मिक बर्खास्तगी समाप्त कर दी। लेकिन इस फैसले ने इस बात पर भी प्रभाव डाला कि त्रिशंकु विधानसभा के मामले में राष्ट्रपति या राज्यपाल को क्या करना चाहिए। ऐसी स्थिति में राज्यपाल को बहुमत साबित करने की संभावना वाली पार्टी को आमंत्रित करना होता है और फिर उस पार्टी को सदन में बहुमत साबित करना होता है।
वर्ष 2006 में रामेश्वर प्रसाद बनाम भारतीय संघ के एक मामले में इस विचार को और परिष्कृत किया गया था, जहां सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि यदि राज्यपाल यह सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं कि बहुमत किसके पास है तो उनको क्या करना चाहिए। हालांकि, कर्नाटक के परिणामों के मामले में ऐसी कोई अनिश्चितता नहीं है। यह बिलकुल स्पष्ट है कि चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडी (एस) गठबंधन के पास बहुमत है।
अगर जेडी (एस) ने अपने पत्ते नहीं खोले होते और कांग्रेस एवं बीजेपी दोनों ने सरकार बनाने का दावा किया होता तो अनिश्चितता का मामला हो सकता था। ऐसे मामले में रामेश्वर प्रसाद के मामले में आया फैसला यह दर्शाता है कि राज्यपाल को यह सुनिश्चित करते हुए कि बहुमत के साथ कोई चुनाव-पूर्व गठबंधन नहीं है, एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी को आमंत्रित करना चाहिए।
सरकार बनाने के लिए सबसे बड़ी पार्टी को असावधानीपूर्वक आमंत्रित करने में समस्या यह है कि यदि बहुमत साबित नहीं हो पाया तो सरकार गिर सकती है। राज्यपाल का काम यह सुनिश्चित करना है कि जितनी जल्दी हो सके एक स्थिर और व्यवहारिक सरकार हो।
1989 में कांग्रेस नेता राजीव गांधी ने त्रिशंकु लोकसभा में एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बनाने का फैसला लिया था। उन्हें यह यकीन नहीं था कि वह गठबंधन के साथ बहुमत साबित कर पाएंगे ।
1996 में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था क्योंकि उनकी पार्टी भाजपा के पास सबसे जादा सांसद थे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मात्र 13 दिनों में ही गिर गई।
1998 में, वाजपेयी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिए आमंत्रित किया गया लेकिन यह केवल तब हुआ जब राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने गठबंधन से समर्थन पत्र ले लिए थे। नारायणन यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि वाजपेयी के पास बहुमत था और यह वह सदन में साबित कर पाएंगे। राष्ट्रपति नहीं चाहते थे कि 1996 में जो हुआ वो फिर से हो।
दूसरे शब्दों में, निर्णायक सिद्धांत यह है कि ‘बहुमत किसके पास है?’ चूंकि कांग्रेस ने जेडी (एस) को लिखित रूप में पहले से ही समर्थन घोषित कर दिया है, इससे यह स्पष्ट है कि एच.डी. कुमारस्वामी को अधिकांश विधायकों का समर्थन प्राप्त है जो कि बीएस येदियुरप्पा को नहीं है। यही कारण है कि कर्नाटक के राज्यपाल को कुमारस्वामी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
Read in English:Why the Karnataka Governor must invite HD Kumaraswamy to be chief minister