अंबानी बंधुओं की कहानी में एक और मोड़ आ गया है. 2005-06 में भाई-भाई के कटु झगड़े और बंटवारे में अनिल ने जिस रिलायंस कम्युनिकेशन को अपने बड़े भाई मुकेश से हासिल कर लिया था उसकी अधिकांश परिसंपत्तियों को उन्होंने मुकेश की रिलायंस इंडस्ट्रीज के हाथों 240 अरब रुपये में बेच दिया है.
एक तरह से यह दो केरियरों का उत्कर्ष और अपकर्ष दर्शाता है. 60 साल के मुकेश 2017 को एक ऐसे साल के रूप में याद कर सकते हैं जिसमें उन्होंने अपनी जियो सर्विस शुरू करके दूरसंचार उद्योग में हड़कंप मचा दिया, जबकि उनसे दो साल छोटे अनिल नकदी जुटाने के लिए एक के बाद एक व्यवसाय को बेचते रहे. आरकॉम की परिसंपत्तियों से पहले वे मुंबई बिजली वितरण व्यवसाय को 190 अरब रु. में अडानी को बेच चुके हैं. छोटी बिक्रियों में डीटीएच का कारोबार, रेडिया व टीवी के व्यवसाय और बिग सिनेमाज हैं. फिर भी बड़ा कर्जा बाकी है इसलिए अब आरकॉम की जमीन-जायदाद की भी बिक्री हो सकती है.
जब पिता धीरूभाई अंबानी जीवित थे तब अनिल की चमकदमक बरकरार थी और वे स्मार्ट सौदे कर रहे थे. वे मीडिया से मुखातिब नजर आ रहे चेहरे थे, जबकि मुकेश ठोस संपत्तियों को जमीन पर जमाने में जुटे थे. धीरूभाई के गुजरने के बाद अनिल ने पाया कि मुख्य कंपनी में करने के लिए उनके पास कुछ नहीं है. सो, अपरिहार्य बंटवारे में उन्हें उनकी रिलायंस कैपिटल और रिलायंस एनर्जी (पुरानी बीएसईएस) जैसी छोटी कंपनियों के अलावा बहुत कुछ की पेशकश नहीं की गई.
नतीजतन, भारी झगड़ा शुरू हो गया और इसकी गंदगी सरेआम भी हुई. अंततः मुकेश ने अपनी नई चहेती परियोजना को बेमन से छोड़ने का फैसला किया. इस तरह, रिलायंस इन्फोकॉम आरकॉम बन गई. इसके बाद बंटवारे में कुछ समानता तो आई लेकिन मुकेश बड़े खिलाड़ी बने रहे. उनका कुल कारोबार 1,181 अरब रु. मूल्य का था, तो अनिल का 763 अरब रु मूल्य का था. वास्तविक असमानता तो और भी बड़ी थी क्योंकि बिक्री और मुनाफे के लिहाज से कुल कारोबार में मुकेश का हिस्सा 90 प्रतिशत से ज्यादा का था.
इसके बावजूद शुरू में अनिल ही तेज चल रहे थे. एक समय ऐसा था जब ग्राहको की बढ़ती संख्या के कारण उनका दूरसंचार व्यवसाय 1,690 अरब रु. मूल्य का था. आज बाजार में हिस्सेदारी घटने के कारण यह मात्र 100 अरब रु. मूल्य का रह गया है. 2008 के शुरू में शेयर बाजार में भारी तेजी के दौर में रिलायंस पावर ने शानदार पब्लिक इशु जारी किया था. जिस कंपनी के पास न तो राजस्व था और न नकदी की आवक थी, उस कंपनी का मूल्य 1,018 अरब रु. आंका गया था. आज यह 141 अरब रु. रह गया है. दोनों कंपनियों को मुकेश की चुनौती का सामना करना पड़ा. आरकॉम को छलांग मारने से रोकने के लिए दक्षिण अफ्रीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी एमटीएन का अधिग्रहण किया गया, क्योंकि मुकश ने कहा कि किसी शेयर की बिक्री पर पहला दावा उनका है. अनिल की बिजली परियोजनाओं को गैस आपूर्ति को लेकर जो पारिवारिक समझौता हुआ था उसके खिलाफ भी मुकेश ने अदालत में मुकदमा जीत लिया.
लेकिन तकदीरों में फर्क दूसरी वजहों से भी आया. अपने उत्कर्ष के दौर में अनिल के व्यवसायों का मूल्य करीब 4,000 अरब रु. आंका गया था लेकिन आज इसमें 80 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आ गई है और इसे 730 अरब रु. बताया जाता है. इसकी तुलना में मुकेश की रिलायंस इंडस्ट्रीज करीब 6,000 अरब रु. मूल्य की आंकी जाती है. निजी संपदा के मामले में फोर्ब्स ने मुकेश को 38 अरब डॉलर का मालिक बताते हुए एशिया का सबसे अमीर व्यक्ति माना है, जबकि 3.1 अरब डॉलर की निजी संपत्ति के साथ अनिल भारत में अमीरों की सूची में 45वें नंबर पर हैं.
तेल तथा गैस और खुदरा व्यापार में मुकेश के नए व्यवसाय बहुत सफल नहीं रहे हैं, जबकि दूरसंचार कारोबार को यह साबित करना होगा कि वह पूंजी पर अच्छा लाभ दिला सकता है. पेट्रोरसायन और तेलशोधन उद्योग तो दुधारू गाय हैं ही. हालांकि रिलायंस में निवेश करने वालों को लंबे समय तक धैर्य करना पड़ा, अनिल के लिए चुनौती यह होगी कि वे परिसंपत्तियों को जमीन पर जमा कर नकदी उगाहने की जो कला उनके भाई में है उसका प्रदर्शन करें. रिलायंस इन्फ्रा सड़के, पुल, मेट्रो आदि बना रही है; रिलायंस पावर करीब दर्जन भर बिजाी परिय¨जनाएं लगा रही है, और रक्षा के क्षेत्र में भी जहाजरानी तथा उड्डयन के क्षेत्र में कलपुर्जे बना रही है. अगर अनिल तुलनात्मक रूप से नए खेल से हाथ खींचते भी हैं तब भी उन्हें भारी कर्ज का भुगतान करना है. उधर मुकेश के पास तो नकदी बह कर आ रही है.