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Saturday, 16 November, 2024
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प्रियंका, पेंग्विन एनुअल लेक्चर और फिल्मी जगत में यौन उत्पीड़न का सवाल

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प्रियंका चोपड़ा के पेंग्विन एनुअल लेक्चर के संदर्भ में एक प्रश्न वाजिब है: क्या साहित्य का ‘बॉलीवुडीकरण’ हो गया है? जवाब है: आखिर बची क्या चीज है!

जब मेरा पहला उपन्यास ‘ऑलमोस्ट सिंगल’ छपा था, तो मेरी शायद ही व्यापार में कोई जान-पहचान थी. यह उस दशक की शुरूआत थी, जब चेन बुकस्टोर्स का युग आयाः प्राइम लोकेशन, फैंसी क्रोम एंड ग्लास, खूबसूरती से डिजाइन किए बुक-डिस्प्ले और छोटी-छोटी जगहें घूमने की (हैंगआउट).

मैंने अपनी पहली बुक लांच किसी बुक-स्टोर में पढ़नेवालों के बीच अनौपचारिक बातचीत के साथ करने की सोची. उचित समय आने तक मैने इस पर विचार किया. मेरी किताब छपी और संपादक ने कहा कि हमें एक समारोह करना चाहिए. उसके बाद आया मुख्य सवालः हम किस सेलिब्रिटी को लांच के लिए बुला रहे हैं?

अपने फोन की छोटी सी कांटैक्ट-लिस्ट देखते हुए मैं सेलिब्रिटी के बारे में सोच रही थी। मुझे कहां मिलेगी? और किसी किताब के लांच पर क्या किताब ही ‘सेलिब्रिटी’ नहीं होती?

लिटरेचर-फेस्टिवल हमारे यहां के ‘फैशन वीक’ की तरह हो गए हैं. हरेक कोने में, हरेक जगह। मैं एक वकील से मिली, जिन्होंने बताया कि वह कानूनी किताबों का फेस्टिवल कर रहे हैं. इस सुबह एक दोस्त ने फोन पर बताया कि अमेरिका में तकनीकी लोग एक लिटरेचर-फेस्टिवल को सहायता देना चाह रहे हैं. कुछ महीने पहले एक बातूनी राजनेता ने लिट-फेस्ट के ऐसे ही एक फोटो को अपनी वॉल पर ‘हैविंग गुड टाइम’ वाले कॉलम में डाला. उसमें सारे लोगों को टैग भी किया (जिसमें बॉलीवुड के लोग भी थे), सिवाय एक के. वह अपवाद थे, लेखक विक्रम सेठ, शायद दुनिया के रंगमंच पर भारत के बेहतरीन लेखकों में से एक.

क्योंकि प्रियंका चोपड़ा ने इस साल पेंग्विन का वार्षिक भाषण  दिया,  यही समय है यह प्रश्न पूछने का: क्या साहित्य के गलियारों का बॉलीवुडीकरण हो गया है? जवाब हैः क्या अछूता है? भाषणों की यह शृंखला पेंग्विन के 20 वर्ष पूरे होने की यादगार के तौर पर शुरू हुई, जब पेंग्विन ने विचारकों, लेखकों औऱ नेताओं को बुलाना शुरू किया. ठीक है, प्रियंका अपने तौर पर एक लीडर हैं. उनके साथ काम करने के बाद, मैं व्यक्तिगत तौर पर उनको एक सुलझी, बुद्धिमान, अति संवेदनशील और ऊर्जा से भरी महिला के तौर पर जानती हूं, जिसने अपनी मेहनत से कामयाबी की सीढ़ियां ने केवल भारत में, बल्कि अमेरिका में भी चढ़ीं. वह तीन भूमिकाओं- अभिनेत्री, डांसर और गायिका- में हैं औऱ अपने करियर और सार्वजनिक उपस्थिति की बढ़िया रणनीति बनायी है.

हालांकि, मैं अभी भी यह सोचने से खुद को रोक नहीं पाती कि पेंग्विन ने उनको मुख्यतः प्रियंका के बॉलीवुड कनेक्शन की वजह से बुलाया है. और, किताबों व प्रकाशनों का खबरों में बने रहना जरूरी है, क्योंकि मीडिया औऱ अन्य माध्यमों में उनके लिए जगह लगातार सिकुड़ रहा है, हालांकि असंख्य लिटरेचर फेस्टिवल हो रहे हैं.

ज़रा इसके बारे में सोचिए। यह वही साल है, जब टाइम मैगजीन ने घोषणा की है कि पर्सन ऑफ द इयर, वे महिलाएं होंगी, जिन्होंने ‘मी टू’ कैंपेन चलाया. पिछले कुछ महीनों में हॉलीवुड का सत्ता-समीकरण पूरी तरह बदल चुका है, मैट डैमन जैसे शहजादे जो शायद ही कभी गलत हो, को भी अपनी बोली की वजह से झेलना पड़ा. उस छत को भूल जाइए, जिसे तोड़ने की जरूरत है- ब्रेकिंग द सीलिंग…शीर्षक से प्रियंका का भाषण है- और यह शाद थोड़ा पुराना और घिसा-पिटा है. हम आज जहां खड़े हैं, वहां मौन का एक दुर्ग है, जो ग्लैमर इंडस्ट्री के खूंखार शिकारियों को हमेशा बचाता रहा है, ताकि वे महिलाओं का शिकार करते रहें.

चुकि प्रियंका का एक पैर बॉलीवुड में और एक हॉलीवुड में है, इस विषय पर बोलने के लिए आदर्श वक्ता वही हैं. यह कोई रहस्य नहीं है कि भारतीय फिल्मोद्योग में यौन-शोषण आम हैं, जो असंगठित क्षेत्र की तरह काम करती है, जिसमें काम कर रही महिलाओं के लिए कोई सुरक्षा नहीं है. प्रियंका खुद इस बारे में बोल चुकी हैं, भले ही उन्होंने विवरण नहीं दिया. वह यह सब इसलिए बोल सकीं क्योंकि, वह एक व्यक्ति के तौर पर जो भी हैं, उनका बॉलीवुड के बाहर भी अच्छा-खास करियर है. अब तक उनके अलावा बॉलीवुड की किसी भी शीर्षस्थ A लिस्ट वाली, हीरोइन ने इस बारे में बात नहीं की है.

नेता, विचारक, लेखक अपने शब्दों से समय को बदल देते हैं. विचारों के प्रवाह के लिए, जो दुनिया को बदल सके, जो लोगों को उनकी सुरक्षित नींद से निकाल सके, ‘लेक्चर’ एक कालबाह्य साधन है. हालांकि, यह लेक्चर भी एक मंच तो देगा ही.

‘ब्रेकिंग ग्लास सीलिंग’ पर बोलने प्रियंका जब मंच पर जाएं, तो मुझे उम्मीद है कि वह उन सब की बात करें जो ग्लैमर इंडस्ट्री में सतायी गयीं, जिनके साथ गलत हुआ. यहां या फिर विदेशों में, पहले या आजकल. मुझे उम्मीद है कि वह इस मंच का उपयोग हजारों मूकों की आवाज बनने में करेंगी, जो रोजाना इन छोटी चीजों से उलझते हैं. मुझे उम्मीद है कि वह ‘लेक्चर’ नहीं देंगी, बल्कि नैरेटिव को सबके सम्मान और उच्चतर प्रगति की दिशा में ले जाएंगी.

यही तो सच्चे लीडर करते हैं- पुरुष हों या महिला.

अद्वैत काला उपन्यासकार और फिल्मों की स्क्रिप्ट-लेखिका हैं.

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