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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमत“पद्मावत” के विरोध में हो रहा पागलपन ठीक वैसा ही जैसा कुरान की आलोचना पर

“पद्मावत” के विरोध में हो रहा पागलपन ठीक वैसा ही जैसा कुरान की आलोचना पर

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यह बहुत ही दुखद बात है कि हिन्दू कट्टरपंथी भी मुस्लिम कट्टरपंथियों के समान व्यवहार कर रहे हैं. लेकिन फिर कट्टरपंथी तो कट्टरपंथी ही होते हैं.

फिल्म पद्मावत पर जारी विरोध प्रदर्शन किसी को भी काफी भयभीत या निराश करने वाला है. सबसे पहले फिल्म का सेट जलाया गया और इसके बाद पोस्टरों को आग लगाने का मामला सामने आया. फिर करणी सेना ने इस फिल्म में रानी पद्मावती की भूमिका निभा रही मुख्य नायिका दीपिका पादुकोण को नाक काटने की धमकी दी और फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली का सिर काटने वाले को पाँच करोड़ रूपये का इनाम देने की बात कही. यह विरोध प्रदर्शन ठीक वैसा ही है जैसा कि कुरान या इस्लाम की आलोचना करने, पैगम्बर मोहम्मद साहब का चित्र बनाने या उनपर कोई फिल्म बनाने, पर किया जाता है.

फिल्म पद्मावत राजस्थान के चित्तौड़ की रानी पद्मिनी पर आधारित है. रानी के जीवन की कहानियां और काल्पनिक लोकोक्तियाँ वहां के आम लोकसाहित्य हैं. दिल्ली का सुल्तान, अलाउद्दीन खिलजी, चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए गया जहाँ पर वह रानी पद्मिनी को देखकर उनकी सुंदरता पर मंत्रमुग्ध हो गया और रानी से विवाह करना चाहा. रानी पद्मिनी ने खिलजी और उसकी विजयी सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करने के बजाय चित्तौड़ की अन्य विधवा महिलाओं के साथ जौहर कर लिया.

संजय लीला भंसाली द्वारा बनाई गई फिल्म ‘पद्मावत’ सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखित एक महाकाव्य ‘पद्मावत’ पर आधारित है, और यही कारण है कि फिल्म का नाम इसके मूल नाम ‘पद्मावती’ से बदलकर पद्मावत रख दिया गया है. ‘पद्मावत’ नाम के सुझाव का श्रेय केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को जाता है, जिसने फिल्म के कई दृश्यों को हटाने की सिफारिश भी की और निर्देशक द्वारा उन सिफारिशों का नम्रतापूर्वक पालन भी किया गया.

इतिहासकारों ने खिलजी द्वारा चित्तौड़ पर कब्जा किए जाने और उसके द्वारा हिंदू पुरुषों की हत्या का उल्लेख किया है लेकिन उन्होंने रानी पद्मिनी के जौहर के बारे में नहीं लिखा है. इसको कभी भी जौहर का समर्थन कर रहे लोगों के अपमान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. भंसाली ने स्पष्ट कर दिया है कि इस फिल्म में खिलजी और पद्मिनी के स्वप्न चित्रण का कोई भी द्रश्य नहीं है लेकिन फिर भी करणी सेना इस बात से सहमत नहीं है.

यह दुख की बात है कि हिंदू कट्टरपंथी अपने मुस्लिम समकक्षों के समान ही व्यवहार कर रहे हैं. इस प्रकार की असहिष्णुता मेरे लिए कोई नई बात नहीं है क्योंकि मैं इसे लगभग तीन दशकों से देख रही हूँ. मैं इस बात को लेकर काफी आश्चर्यचकित हूँ, हालांकि इसमें आश्चर्यचकित होने वाली कोई बात नहीं है.

मेरे मामले में, अलग-अलग दलों के राजनेताओं को कट्टरपंथी लोगों द्वारा की गई अप्रजातंत्रवादी, अनैतिक और तर्कहीन मांगों का सामना करना पड़ता है, जो न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं बल्कि महिला विरोधी भी हैं, चाहे ये बांग्लादेश हो, पश्चिम बंगाल हो या भारत के कुछ अन्य राज्य हों. अब जब पद्मावत पर किया गया विरोध प्रदर्शन अपनी चरम सीमा पर है, तो राजनेताओं ने हिंदू कट्टरपंथियों से हार मान ली है.

करणी सेना द्वारा पद्मावत पर प्रतिबंध लगाने की मांग के चलते कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा फिल्म को मंजूरी दिए जाने से पहले ही इस पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. एक मुख्यमंत्री द्वारा इस फिल्म को लेकर एक अजीब ही घोषणा की गई जो कि बहुत ही चकरा देने वाली है. उन्होंने अपने राज्य में इस फिल्म को दिखाए जाने से पहले स्वयं उस फिल्म को देखने की मांग की. और यह बड़े ही आश्चर्य की बात है कि कई मुख्यमंत्रियों ने इस फिल्म को लेकर कुछ ऐसी ही घोषणाएं की.

कुछ ऐसा ही व्यवहार मेरे साथ भी किया गया, जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मेरे द्वारा लिखित एक स्क्रिप्ट पर आधारित एक बड़े धारावाहिक को प्रसारित करने से मना कर दिया. ‘दुह्साहाबास’ सीरीज के लिए जो पोस्टर, कोलकाता की सड़कों पर चिपकाए गए थे, उन्हें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश पर हटा दिया गया था. इतना ही नहीं, उन्होंने वहाँ की पुलिस का गलत तरीके से इस्तेमाल करते हुए, ‘चैनल 8’ के निर्माता और कर्मीदल को भी धमकी दी थी.

फिर से यह एक ऐसा मामला था कि जब अपराध को जाने बिना ही किसी को सजा दी गई थी. ममता बनर्जी, उस टीवी सीरियल की कहानी के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी फिर भी उन्होंने उस सीरियल पर प्रतिबंध लगा दिया था. जाहिर तौर पर, इसका मतलब मुट्ठी भर मुस्लिम कट्टरपंथियों के तुष्टिकरण से था. लेकिन अचम्भे वाली बात है कि यह वही ममता बनर्जी हैं जो अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर इतनी अधिक उदार हो गई हैं कि उन्होंने यह घोषणा भी कर दी है कि चाहे किसी अन्य राज्य में पद्मावत की स्क्रीनिंग की जाए या न की जाए, पर बंगाल में यह फिल्म ज़रूर दिखाई जाएगी.

जब महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और गुजरात राज्यों के मंत्री दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों का पक्ष ले रहे हैं, उस समय ममता बनर्जी ने एक कलाकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का साथ दिया है. यह भारत की वास्तविकता है कि कुछ लोग मुस्लिम कट्टरपंथियों को और कुछ हिंदूओं को खुश करने का प्रयास करते हैं. जिसका एक मात्र उद्देश्य वोट, मात्र वोट और अधिक से अधिक वोट प्राप्त करना है. बहुत ही कम राजनेता ऐसे होते हैं जो वास्तव में देश और देश के लोगों की भलाई के बारे में सोचते हैं.

भारत में मुस्लिम आक्रमणकारी बाहर से आए थे, उन्होंने हिंदूओं के घरों और मंदिरों को नष्ट किया, हिन्दू घरों को लूटा, हिन्दू पुरुषों का कत्ल किया और उनकी महिलाओं को अपने हरम में रखा. उसके बाद वे सुल्तान और सम्राट बन गए. मुस्लिम आक्रमणकारियों ने शताब्दियों तक भारत पर शासन किया और उन हिन्दुओं से जजिया कर वसूल किया, जिनके पास जमीने थीं. हिन्दुओं को गैर-मुस्लिम होने के कारण जजिया कर का भुगतान करना पड़ता था. यह इतिहास है; वो सुल्तान या सम्राट अब मौजूद नहीं हैं.

जिस प्रकार मुस्लिम कट्टरवादी, मुस्लिम बहुसंख्यक राष्ट्रों पर शासन करना चाहते हैं, ठीक उसी प्रकार भारत भी हिंदू बहुसंख्यक राष्ट्र है जिसपर हिंदू कट्टरपंथी शासन करना चाहते हैं. भारत के हिन्दू इस बात से डर रहे हैं कि भारत में ‘तेजी से बढ़ रहे’ मुसलमान देश को उनकी पहुंच से दूर ले जाएंगे. भारत एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ पर हिन्दू बहुसंख्यक हैं. यही कारण है कि कट्टरपंथी हिन्दू, अलाउद्दीन खिलजी की भूमिका के सामने रानी पद्मिनी की थोड़ी सी भी आलोचना नहीं देखना चाहते हैं.

उन्होंने, रानी पद्मिनी को, अपने आप को मुस्लिम शासकों को सौंपने के बजाय जौहर को चुनने के लिए महिमामंडित किया है. रानी पद्मिनी द्वारा किये गए इस जौहर ने आजतक राजपूतों के जातीय-स्वाभिमान को जीवित रखा है. यदि आज सती प्रथा कानूनन वैध होती तो ये लोग आज भी उन महिलाओं को आदर देते जो सती हो जातीं या जौहर कर लेतीं.

देश के संविधान को सबसे ऊपर बनाए रखने के लिए मंत्री, प्रधानमंत्री और विधायक शपथ लेते हैं, लेकिन उन्हें इस प्रावधान के उल्लंघन का कोई पछतावा नहीं है: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार इसकी गारंटी है. सरकार को जनता के लिए भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल इत्यादि प्रदान करने की आवश्यकता होती है लेकिन जब वह इन सभी चीजों को पूरा करने में असफल हो जाती है तब वह हिन्दू और मुसलमानों के बीच विभाजनकारी और ध्रुवीकरण की राजनीति करना प्रारंभ कर देती है. राजनेता दोनों पक्षों के कट्टरपंथियों को एक दूसरे पर आक्रमण करने की पूरी छूट देते हैं. इसके फलस्वरुप सरकारें तथा अदूरदर्शी राजनीतिज्ञ चुनावों के दौरान विभाजन की इस पकी फसल को काटते हैं.

भारत ने हिंदू और मुसलमानों के बँटवारे के समय से बहुत सारे दंगों को देखा है, जब दस लाख हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा एक दूसरे के बेरहमी से टुकड़े कर दिए गए थे. राजनेताओं ने पहले भी विभाजनकारी राजनीति का फायदा उठाया है. स्वयं विभाजन ने इस घिनौनी राजनीति को शिखर पर पहुँचाया है. दुर्भाग्य से, आज के राजनेता उस खून-खराबे से कोई भी सबक नहीं ले रहे हैं.

जिन लोगों को अहिंसा के सिद्धांत को सीखना चाहिए था, वो लोग अब लोकतंत्र के सार- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला कर रहे हैं. भारतीय शुभचिंतक यह सब देख कर विस्मित हैं. आज, पद्मावत के रिलीज होने की बात करना परेशानियों को दावत देने जैसा है. राजस्थान में एक पुराने किले में किसी को मार कर लटका दिया गया था. दीपिका पादुकोण और संजय लीला भंसाली को पुलिस की सुरक्षा लेनी पड़ी.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि फिल्म पूरे भारत में दिखाई जाएगी और कोई भी राज्य सुरक्षा की चिंताओं को लेकर इसे प्रतिबंधित नहीं कर सकता. दूसरी ओर, करणी सेना सिनेमाघरों में आगजनी कर रही है. राजस्थान और गुजरात दोनों राज्यों का फिल्म रिलीज़ के लिए विरोध हुआ है.

बहुत कम कलाकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों, नेताओं ने भारतीय कट्टरपंथियों (हिंदू और मुस्लिम दोनों) का विरोध किया है. वे या तो दक्षिणपंथी हैं या वामपंथी. जो लोग मुस्लिम कट्टरपंथियों का समर्थन करते हैं, वो लोग हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा हमला किए जाने पर सामने खड़े हो जाते हैं, लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा हमला किये जाने पर वो एक शब्द भी नहीं बोलते. न सिर्फ राजनेता, बल्कि कलाकार और बुद्धिजीवी भी बेईमान हैं, दो चेहरे वाले हैं और सिर्फ अच्छे समय के दोस्त हैं. वे केवल उन्हीं राजनीतिक दलों के प्रति वफादार हैं जो उनकी मदद करते हैं.

कोलकाता में टॉलीवुड की मांग है कि पद्मावत फिल्म को दिखाया जाना चाहिए. यह एक स्वागत करने योग्य माँग है. लेकिन ये बुद्धिजीवी और कलाकार तब कहाँ थे जब ममता बनर्जी ने मेरे मेगा-शो ‘दुह्साहाबास’ पर रोक लगा दी थी? अगर कोई व्यक्ति किसी भी गलत मुद्दे के विरुद्ध बोलता है, तो उसे सभी गलत मुद्दों के खिलाफ बोलना चाहिए. लेकिन अगर आपने कुछ चुने हुए विषयों का विरोध राजनीतिक लाभ पाने के लिए किया है, तो यह खतरनाक है. शायद वो अदूरदर्शी राजनीतिज्ञ सिर्फ वहीँ विरोध करते हैं जहाँ उन्हें अपना फायदा दिखाई देता है.

मुझे मुस्लिम बहुसंख्यक देश में मुस्लिम रुढ़िवादिता का विरोध करने पर उनका सामना करना पड़ा. मुझे हिंदू बहुसंख्यक देश, भारत में हिंदू कट्टरपंथियों के खिलाफ बोलने के लिए गलत समझा जाता है, जिस देश को मैं एक उदार देश मानती हूँ और अपने दिल से प्यार करती हूँ. मैं इस कट्टरता को समाप्त करुंगी चाहे यह कट्टरता मेरे स्वयं के धर्म में हो, चाहे उस देश में जहाँ की मैं निवासी हूँ.

मैं किसी से भी यह नहीं कह रही कि कोई मुझसे अभिव्यक्ति की आजादी के बारे में आकर सीखे. कोई भी व्यक्ति, लोकतंत्र से अभिव्यक्ति की आजादी के बारे में जान सकता है. कोई भी व्यक्ति अभिव्यक्ति की आजादी को समझ सकता है, यदि कोई लोकतंत्र को समझता है तो, उसी लोकतंत्र से जिसपर वह गर्व करता है.

तस्लीमा नसरीन एक जानी-मानी लेखिका तथा टिप्पणीकार हैं.

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