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बुधवार, 23 अप्रैल, 2025
होमलास्ट लाफअर्थव्यवस्था के लिए ऊंघते बजट के बीच एक सवाल, क्या महात्मा गांधी भी चाहते थे नोटबंदी और जीएसटी

अर्थव्यवस्था के लिए ऊंघते बजट के बीच एक सवाल, क्या महात्मा गांधी भी चाहते थे नोटबंदी और जीएसटी

चयनित कार्टून पहले अन्य प्रकाशनों में प्रकाशित किए जा चुके हैं. जैसे- प्रिंट मीडिया, ऑनलाइन या फिर सोशल मीडिया पर.

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दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गये दिन के सबसे अच्छे कॉर्टून

आज के फीचर कार्टून में अलोक निरंतर ने निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए केंद्रीय बजट पर निशाना साधा है. निरंतर ने अपने कार्टून में यह दिखाने की कोशिश की है कि आर्थिक मंदी को रोकने और इकोनोमिक रिफॉर्म के लिए कोई बड़ी योजना देने में नाकामयाब रहीं हैं वित्त मंत्री.

सीतारमण के बजट को अरिंदम मुखर्जी नहाने के साबुन के लोकप्रिय टेलीविजन विज्ञापन से प्रेरित है..उसमें वह कह रहे हैं ये लो बजट- नहाने का बड़ा साबुन.

मिका अज़ीज ने सीतारमण को बजट पेश किए जाने को सर्कस की रस्सी पर चलने जैसा बताया है.जिसमें उन्हें रोजगार, टैक्स, ग्रोथ, जीडीपी आदि का बैलेंस बनाते हुए चलना है…यह एक कठिन डगर है.

मंजुल ने हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में टिप्पणी की, जिसमें अगले वित्त वर्ष में 6-6.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान बताया गया है.

भारत में व्याप्त समस्याओं के लिए वैश्विक आर्थिक मंदी को जिम्मेदार ठहराते हुए, सजिथ कुमार ने आर्थिक सर्वेक्षण और मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन पर भी कटाक्ष किया. विडंबना यह है कि जनवरी में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) प्रमुख गीता गोपीनाथ ने वैश्विक आर्थिक मंदी के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया था.

सतीश आचार्य सप्ताह की दो महत्वपूर्ण घटनाओं – बीमार अर्थव्यवस्था के लिए केंद्रीय बजट और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शूटिंग का चित्रण करते हैं.

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) महात्मा गांधी की इच्छाओं को पूरा करता है, कीर्तिश भट्ट अपने कार्टून में एक गंभीर सवाल पूछ रहे हैं – क्या वह भी ‘नोटबंदी’ और ‘जीएसटी’ चाहते थे?

(इस कार्टून को अंग्रेजी में पढ़ा जा सकता है, यहां क्लिक करें)

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