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Friday, 22 November, 2024
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मुज़फ्फरनगर दंगे के 18 मुकदमे वापस लेकर जाटों को साधने में लगी योगी सरकार

2013 में हुए इन दंगों में 60 लोग मारे गए थे और हजारों लोग बेघर हो गए थे. मुज़फ्फरनगर ज़िला प्रशासन को 18 मुकदमों को वापस लेने के लिखित आदेश दिए गये हैं.

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लखनऊ: लोकसभा चुनाव से पहले योगी सरकार ने मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों में दर्ज हुए 18 मुकदमों को वापस लेने का फैसला किया है. 2013 में हुए इन दंगों में 60 लोग मारे गए थे और हजारों लोग बेघर हो गए थे. योगी सरकार की ओर से मुज़फ्फरनगर ज़िला प्रशासन को इन दंगों के दौरान दर्ज हुए 18 मुकदमों को वापस लेने के लिखित आदेश दिए हैं.

ये मामले दंगा, आर्म्स एक्ट और डकैती के आरोपों के तहत दर्ज किए गए थे. कोई भी जनप्रतिनिधि उनमें से किसी में भी आरोपी नहीं है. हालांकि, कई जानकार इसे जाटों को साधने के लिए योगी सरकार की सियासी चाल भी बता रहे हैं.
कई दिनों से चल रहा था प्रयास

2013 में हुए मुज़फ्फरनगर दंगों में हत्या, लूट डकैती, रेप आगजनी आदि गंभीर धाराओं में 500 से ज़्यादा मुकदमे लिखे गए थे. 4500 से ज़्यादा लोग नामज़द और 1480 लोग गिरफ्तार हुए थे. एसआईटी की जांच में 54 मुकदमों में 418 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया. 175 मामलों में चार्जशीट दाखिल हुई थी.

बता दें कि कि पिछले वर्ष फरवरी महीने में पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद संजीव बालियान के नेतृत्व में खाप चौधरियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर मुकदमों की वापसी की मांग की थी. जिसके बाद कुछ लोगों को राजनीति का शिकार मानते हुए सरकार ने मुकदमे वापस लेने का आश्वासन दिया था.

इन दंगों में योगी सरकार में मंत्री सुरेश राणा, पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बलियान, सांसद भारतेंदु सिंह और पार्टी नेता साध्वी प्राची के खिलाफ भी मामले दर्ज हैं. हालांकि, जिन 18 मुकदमों को वापस लिया जा रहा है उनमें से कोई नेता के खिलाफ नहीं है.

यूपी शासन ने डीएम राजीव शर्मा को पत्र भेजा है. जिसमें दंगे के दौरान किए गए मुकदमों में से 18 मुकदमे वापस लिए जाने को लेकर कोर्ट में अपील दायर करने का निर्देश दिया है. एडीएम प्रशासन अमित कुमार ने बताया कि शासन ने मुकदमे वापस लेने के लिए कुल 13 बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी. प्रशासन ने इन बिंदुओं पर विचार कर 18 मुकदमों की वापसी का निर्णय लिया है. उनके पास अभी सूची नहीं आई है, लेकिन एकल आदेश आने की जानकारी है.

ये थी दंगे की वजह

27 अगस्त 2013 को मुज़फ्फरनगर ज़िले के जानसठ कस्बे के गांव कवाल में सचिन, गौरव व शाहनवाज की हत्या हुई, जिसके बाद हिंसा भड़की थी. हालांकि तब कहा गया कि छेड़छाड़ की वजह से दो पक्षों के बीच तनाव फैला. इसके बाद ज़िले में दोनों समुदायों की महापंचायतें होने लगी. 7 सितंबर 2013 को सिखेड़ा के नंगला मंदौड़ कॉलेज के मैदान में हुई बहू-बेटी सम्मान बचाओ रैली की समाप्ति के बाद जनपद में कई जगह दंगे भड़क उठे. दंगे में 60 लोगों की मौत हुई, वहीं हज़ारों लोगों को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा था. दंगे के बाद हत्या, हमला, आगजनी, तोड़फोड़, हिंसा, बलात्कार आदि के 500 से अधिक मुकदमे दर्ज हुए थे, जिनमें साढ़े छह हज़ार से अधिक लोगों को नामजद किया गया था. इनमें 1,480 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था.

तत्कालीन सपा सरकार ने दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था, जिसने सुबूतों के अभाव में 54 मुकदमों में 418 लोगों को बरी कर दिया था. एसआईटी ने शेष मुकदमों में से 175 में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी. इनमें से 50 मुकदमे कवाल कांड से संबंधित थे, जबकि 125 मुकदमे दंगे के दौरान हिंसा, तोड़फोड़, आगजनी, पथराव व अन्य मामलों के थे, जो पुलिस की ओर से दर्ज किए गए थे.

एसआईटी की जांच के बाद कितने हैं मामले

– 175 मुकदमों में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की गई
– इनमें से 50 मुकदमे चर्चित कवाल दंगे से जुड़े थे
– 125 पुलिस की ओर से दर्ज किए गए थे जो कि तोड़फोड़, आगजनी, पथराव व अन्य मामलों के थे
– शासन ने जिन 18 मुकदमों को वापस लेने का निर्णय लिया है, वे पुलिस की ओर से ही दर्ज किए गए थे
– अभी 157 मुकदमे चल रहे हैं, जिनकी सुनवाई प्रयागराज हाइकोर्ट में हो रही है

ये है सियासी एंगल

दरअसल, मुज़फ्फरनगर दंगों को लेकर तत्कालीन सपा सरकार और बीजेपी में खींचतान काफी हुई. इन दंगों के बाद सबसे ज़्यादा जाट समुदाय के लोग जेल गए थे. 2013 में हुई हिंसा के बाद मुज़फ्फरनगर सियासत का केंद्र बन गया था. सभी राजनीतिक दलों ने वहां जाकर एक-दूसरे को हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था. एसपी और बीजेपी में तो वाकयुद्ध छिड़ गया था. इसे ‘जाट बनाम मुस्लिम’ दिखाया गया. 2014 व 2017 में बीजेपी को इसका लाभ भी मिला. जाट बहुल्य इलाकों में बीजेपी ने जीत हासिल की.

वहीं रालोद (आरएलडी) व सपा को काफी नुकसान हुआ. अपना जनाधार खिसकने के बाद आरएलडी के अध्‍यक्ष अजित सिंह और जयंत चौधरी लगातार जाटों को साधने में जुटे गए. बाप-बेटे ने सद्भावना मुहिम चलाई. इसका असर कैराना उपचुनाव में दिखा. जाटों का रुझान बीजेपी से हटकर फिर से आरएलडी की तरफ हो गया. इसके अलावा सपा-बसपा-आरएलडी के बीच महागठबंधन का भी औपचारिक ऐलान हो गया. ऐसे में योगी सरकार द्वारा जाटों को साधने के लिए 18 मुकदमे वापस लेने का फैसला माना जा रहा है.

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