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Tuesday, 5 November, 2024
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इन्फ़ेक्शन पकड़ने वाले एक्स-रे से वर्चुअल ओपीडी तक- एआई के ज़रिए कोविड से कैसे लड़ रहा है एनआईसी

एक एआई मॉडल विकसित किया जा रहा है, जो इंसान के सीने का एक्सरे देखकर, कोरोनावायरस इन्फ़ेक्शन के लक्षण पकड़ पाएगा.

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नई दिल्ली: नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) सीने के एक्सरे का इस्तेमाल करके कोविड-19 का जल्दी पता लगाने के लिए आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस पर आधारित, एक डाइग्नोस्टिक मॉडल पर काम कर रहा है.

इसकी जानकारी रखने वाले सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि इस मौलिक समाधान में रिमोट डायग्नोसिस के ज़रिए इन्फ़ेक्शन का जल्दी पता लगाया जा सकता है, जिससे मरीज़ों को समय रहते आईसोलेशन में रखकर, उनके जल्द ठीक होने के लिए, इलाज का प्लान तैयार किया जा सकता है.

नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) का सेंटर ऑफ एक्सिलेंस इन आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, जो इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से जुड़ा है, इस मॉडल पर काम कर रहा है.

ये काम अभी शुरूआती दौर में है, लेकिन एनआईसी अधिकारियों को लगता है कि इससे कोविड-19 का पता लगाने में क्रांति आएगी, क्योंकि रेडियोलॉजिस्ट्स और डॉक्टर बिना लक्षण वाले मरीज़ों में इन्फ़ेक्शन का पता लगा पाएंगे और अपने इलाज की प्राथमिकता तय कर पाएंगे. फिलहाल स्वास्थ्य कर्मियों के सामने, बिना लक्षण वाले मरीज़ों में कोविड-19 का पता लगाना, एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है.

एनआईसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘एआई मॉडल को बहुत सारे आंकड़ों (एक्सरे तस्वीरों) का इस्तेमाल करके प्रशिक्षित किया जाएगा, जिसके बाद इसे रेडियोलॉजिस्ट्स और डॉक्टर्स की सहायता के लिए लगाया जा सकता है. एक बार ट्रेनिंग देने के बाद, एआई मॉडल बहुत कम समय में, एक्सरे की तस्वीरों के लिए भविष्यवाणी कर पाएगा.’

दुनिया भर में, यूरोप, अमेरिका और जापान समेत बहुत से देश, एक ऐसा एआई मॉडल तैयर करने में जुटे हैं, जो कोविड-19 का पता लगाने के लिए, सीने के एक्सरे का इस्तेमाल करता है.

एनआईसी अपने कोर्स (कोलैबडीडीएस ऑनलाइन रेडियोलॉजिकल सर्विसेज़) प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करेगा, जो इसके उन्नत टेलीरेडियोलॉजी एप्लिकेशन एवं कोलैबडीडीएस (कोलैबोरेटिव डिजिटल डायग्नोस्टिक सिस्टम) पर आधारित है. ये प्लेटफॉर्म एक्सरे की तस्वीरों और डाइकॉम डेटा को विज़ुअलाइज़ करने के लिए, रियल टाइम सहयोगपूर्ण परिवेश मुहैया कराता है, ताकि रेडियोलॉजिकल डायग्नोसिस की जा सके.

केंद्रीय विचार मंच नीति आयोग इस परियोजना पर सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ समन्वय कर रहा है. नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये एक संभावित क्षेत्र है. ये एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो संभव है. सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में इसपर काम हो रहा है. आईआईटीज़ जैसे दूसरे संस्थानों ने भी ऐसी तकनीक विकसित करने में दिलचस्पी दिखाई है.’

एआई मॉडल कैसे काम करेगा

अस्पताल, हेल्थ केयर सेंटर या अन्य किसी के द्वारा छाती के एक्सरेज़ अपलोड किए जाने के बाद, उन्हें सुरक्षित तरीक़े से एनआईसी के डेटा सेंटर को भेज दिया जाएगा, जहां केवल मरीज़ की आईडी से ही उसकी पहचान होगी, जिससे कि भविष्यवाणी को वापस अपलोडिंग यूनिट के पास भेजा जा सकेगा.


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शुरू में, एनआईसी की देश के कुछ मेडिकल संस्थानों से बात चल रही है कि मॉडल को ट्रेन करने के लिए वो अपने मरीज़ों के छाती के एक्सरेज़ उसके साथ साझा करें. एनआईसी के दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘मॉडल को भारतीय जनसंख्या के हिसाब से प्रशिक्षित करने के लिए, हमें कुछ बेसिक एक्सरेज़ की ज़रूरत होगी. एक बार मॉडल की ट्रेनिंग हो जाए, तो आईसीएमआर की मंज़ूरी के बाद इसे काम में लगाया जा सकता है.’

अधिकारी ने ये भी कहा, ‘कोविड-19 महामारी लोगों की सेहत के लिए एक वैश्विक चुनौती बन रही है, इसलिए सरकार कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में, टेक्नोलॉजी द्वारा नयापन लाने के प्रति पूरी तरह समर्पित है. एनआईसी को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में अगर नतीजे संतोषजनक रहे तो सरकार कोविड-19 मरीज़ों का जल्द पता लगाने के लिए, बहुत से राज्यों में एआई मॉडल्स तैनात किए जाने का समर्थन करेगी.’

कोविड-19 के खिलाफ़ लड़ाई में किस तरह एआई का प्रयोग कर रहा है एनआईसी

ये एक अकेला तरीक़ा नहीं जिससे सरकार, कोविड-19 के ख़िलाफ लड़ाई में एआई का इस्तेमाल कर रही है.

एआई का इस्तेमाल करते हुए, एनआईसी कुछ अस्पतालों में वर्चुअल ओपीडी (बाह्य रोगी विभाग) सुविधाएं मुहैया कराने पर भी काम कर रहा है.

एक बार वर्चुअल ओपीडी सिस्टम तैयार हो जाए, जिसमें इंटरेक्टिव वॉयस रेस्पॉन्स सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा, तो अस्पताल की ओर से दिए गए समय पर अपनी बीमारी पर राय लेने के लिए मरीज़ लैण्डलाइन या मोबाइल फोन पर, डॉक्टर्स अथवा स्पेशलिस्ट को कॉल कर सकेंगे.

उसके लिए मोबाइल फोना रखना अनिवार्य होगा, क्योंकि मरीज़ को एसएमएस के ज़रिए एक नुस्ख़ा भेजा जाएगा. इससे ये सुनिश्चित होगा कि अपने नुस्ख़े को आगे बढ़ाने के लिए, मरीज़ को अस्पताल नहीं जाना पड़ेगा.

कॉलर की तसदीक़ करने के बाद डॉक्टर मरीज़ को ईमेल या एसएमएस के ज़रिए नुस्ख़े भेज पाएंगे. चैटबॉट का इस्तेमाल करते हुए मरीज़ भी, पोर्टल पर जाकर कोविड-19 के बारे में जानकारी हासिल कर सकता है.

इसके अलावा एनआईसी ने मेघालय सरकार के लिए, तीन भाषाओं-अंग्रेज़ी, खासी और गारो- में एक चैटबॉट विकसित किया है, जिससे स्थानीय निवासों की ओर से, कोविड-19 के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब हासिल किए जा सकते हैं. चैटबॉट में ये जानकारी भी दी गई है कि कोविड-19 किस कारण से होता है, इसके लक्षण क्या हैं, अगर किसी को लक्षण हैं तो वो कहां जाए, और हेल्पलाइन नम्बर आदि. मेघालय के बाद एनआईसी, अब अंग्रेज़ी और हिंदी में इसी तरह का चैटबॉट विकसित करने में, झारखंड सरकार की सहायता कर रहा है.

एनआईसी के उप-महानिदेशक नागेश शास्त्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘जैसे-जैसे नई महामारियां सामने आ रही हैं, वैसे-वैसे दुनिया नए विचार अपना रही है, जैसे कि जल्दी से वैक्सीन तैयार करने के लिए, वायरस और उसके म्यूटेंट्स के जिनोमिक अध्य्यन का इस्तेमाल.’ उन्होंने आगे कहा, ‘बहुत सारी जानकारी ऐसी है, जिसका समावेश करके, उसमें पैटर्न्स तलाशना, इंसान के बस की बात नहीं है. यही वो काम है जिसमें एआई का इस्तेमाल करके इंसान की समझ को बढ़ाया जा सकता है और टेक्नोलॉजी की समझ रखने वाली संस्था के नाते, हमारा प्रयास है कि कोविड-19 के खिलाफ़ लड़ाई में, भारत सरकार की सहायता करें.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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