नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर के अनुसार, कोरोनावायरस संकट के मद्देनज़र दुनिया ‘अभूतपूर्व चुनौती’ का सामना कर रही है और इससे हुए ‘नुकसान के बारे’ में अभी भी सब कुछ ‘अस्पष्ट’ है.
आसियान-भारत नेटवर्क ऑफ थिंक टैंक के छठे राउंड टेबल के अपने वर्चुअल संबोधन में मंत्री ने कहा, ‘दुनिया एक अभूतपूर्व चुनौती का सामना कर रही है. और मेरा विश्वास करिए ‘अभूतपूर्व’ शब्द अतिशयोक्ति नहीं है. हम में से किसी ने भी पहले इस तरह का संकट नहीं देखा है, यह वास्तव में इस स्तर की अनिश्चितता है. यह महामारी कैसे और कब समाप्त होगी, यह अभी भी एक बहुत ही बड़ा प्रश्न है.’
उन्होंने कहा, ‘कई महीनों के बाद भी, जीवन और आजीविका के नुकसान के संदर्भ में इसके विनाश का सही स्तर स्पष्ट नहीं है. कोरोनावायरस का प्रभाव हमारी सामूहिक कल्पना से परे है.’
मंत्री ने कहा कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 6.5 प्रतिशत से 9.7 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है, जो कि 5.8-8.8 ट्रिलियन डॉलर का घाटा साबित होगी.
उन्होंने कहा, ‘सिकुड़ती विश्व अर्थव्यवस्था की भविष्यवाणी की जा रही है, निश्चित रूप से ग्रेट डिप्रेशन के बाद ये सबसे बड़ा होगा.’
मंत्री ने कहा कि न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि दुनिया सुरक्षा, कनेक्टिविटी और राजनीति के क्षेत्र में भी प्रभावित हुई है.
उन्होंने 10 सदस्यीय आसियान समूह- सिंगापुर, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड, म्यांमार, इंडोनेशिया, फिलीपींस, लाओस, कंबोडिया और ब्रुनेई से आग्रह किया कि वे भारत-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान दें.
उन्होंने कहा, ‘हम न केवल एक दूसरे के निकट हैं बल्कि साथ मिलकर एशिया और दुनिया को आकार देने में मदद करते हैं. यह महत्वपूर्ण है कि इस मोड़ पर, हम एकजुट रहें. भारत-प्रशांत समेत बहस के कई वैचारिक मुद्दे हैं. ‘
उन्होंने कहा, ‘जैसे ही हम इस महामारी से बाहर आ रहे हैं, हमें एक तथ्य पर स्पष्ट होना चाहिए. दुनिया फिर कभी पहले जैसी नहीं रहेगी. इसका मतलब है कि नई सोच, नए विचार, अधिक कल्पना और अधिक खुलापन. हमें व्यापार, राजनीति या सुरक्षा के मामलों में पुराने तौर-तरीकों से आगे बढ़ने की जरूरत है.’
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आसियान-भारत संबंधों को सामाजिक परिभाषाओं से आगे बढ़ना चाहिए
आसियान-भारत संबंधों पर, जयशंकर ने कहा कि संबंध ‘वैश्वीकरण में साझा हित’ के आधार पर स्थापित किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘एशिया में कम से कम, आसियान उस प्रक्रिया का अग्रणी था और भारत को इसमें लाने में मदद की. लेकिन आज जैसे यह तनाव में है, हमें इसकी आर्थिक और सामाजिक परिभाषाओं से परे जाने की जरूरत है. वैश्वीकरण को व्यापार, यात्रा और वित्तीय प्रवाह के रूप में परिलक्षित किया जा सकता है. लेकिन वास्तव में, यह इससे कहीं बड़ा है.’
जयशंकर ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ‘सामूहिक समाधान’ की तलाश में मिलकर काम करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘दुनिया के सामने अर्थव्यवस्था की स्थिति ही सिर्फ बड़ा मुद्दा नहीं है बल्कि समाज और शासन के स्तर पर चुनौती है. यह वास्तव में वैश्विक मामलों की भविष्य की दिशाओं और व्यवस्था को लेकर बहस है.’
जयशंकर के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ ‘विश्वास’ है.
उन्होंने कहा, ‘महामारी ने अब स्वास्थ्य सुरक्षा के महत्व को बढ़ा दिया है. वास्तव में, सामरिक स्वायत्तता की अवधारणा जो कभी एकध्रुवीय दुनिया में फैशनेबल थी, अब वैश्विक आपूर्ति के संदर्भ में एक बार फिर प्रासंगिक हो गई है.’
उन्होंने आसियान और दुनिया से ‘सहयोग के अधिक सकारात्मक और व्यावहारिक मॉडल’ के साथ आने का आग्रह किया.
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