नरेंद्र मोदी सरकार ने एक ऐसी योजना को मंजूरी दी है जो पिछले कुछ समय से नवीकरणीय ऊर्जा की वकालत करने वालों और इंडस्ट्री के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है, जो कि इस नए जमाने के ईंधन को मुख्य धारा में लाने की वादा करता है.
4 जनवरी को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 19,744 करोड़ रुपये के विशाल बजट के साथ ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी. यह एक ऐसा प्रोग्राम है जिसका उद्देश्य 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन स्वच्छ हाइड्रोजन ईंधन का उत्पादन करना है.
देश की आकांक्षाओं और जरूरतों के मुताबिक भारत को सतत विकास के रास्ते पर लाने के वाली ऊर्जा बताते हुए सरकार द्वारा इस योजना की तारीफ की गई है. उद्योग जगत की ओर से भी इसकी काफी प्रशंसा की जा रही है, क्योंकि इसे लगता है कि कार्बन फुटप्रिंट को कम करते हुए ग्रोथ को बनाए रखा जा सकता है. इस सेक्टर में करीब 8 लाख करोड़ रुपये निवेश होने की संभावना है.
भारत के दो सबसे बड़े समूह – रिलायंस इंडस्ट्रीज और अडानी ग्रुप – हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने की दौड़ में तब से हैं जब एक साल पहले प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को इस मिशन की घोषणा की थी.
इस ईंधन को लेकर काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. कैबिनेट की मंजूरी के कुछ दिन पहले ही, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साल के अंत ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनें लाने की घोषणा की थी और एनटीपीसी ने कहा था कि उसने गुजरात में ग्रीन हाइड्रोजन ब्लेंडिंग की शुरूआत की है.
अगले आठ वर्षों में, हरित हाइड्रोजन के उत्पादन से अतिरिक्त 125 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता लाने और छह लाख रोजगार सृजित होने की उम्मीद है.
लेकिन इस स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने का विचार एक चीज पर टिका है: भारत के डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाना. सरकार को उम्मीद है कि ग्रीन हाइड्रोजन की दौड़ भारत के 2.7 बिलियन टन विशाल कार्बन उत्सर्जन को लगभग 55 मिलियन से टन कम कर देगा. इसके साथ ही भारत के पास सौर, पवन, जलविद्युत और परमाणु जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों ग्रीन हाइड्रोजन भी होगा.
हरित हाइड्रोजन का उत्पादन, भारत के नवीकरणीय और ग्रीन एनर्जी के स्रोतों को अपनाने की दिशा में सरकार का एक बड़ा कदम का हिस्सा है. अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत में, मोदी सरकार ने 2022 के अंत तक अक्षय ऊर्जा क्षमता के 175 GW के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा की. वह समय सीमा बीत चुकी है, और लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया, लेकिन बीच की अवधि में इस क्षमता में काफी वृद्धि हुई. अक्टूबर 2015 में 38 GW से, भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2022 के अंत तक बढ़कर 116 GW हो गई. जीवाश्म ईंधन से अलग इस कदम में ग्रीन हाइड्रोजन सही बैठता है और इसीलिए यह दिप्रिंट का द वीक का न्यूज़मेकर है.
यह भी पढ़ेंः ‘सरकार ने पर्यावरणीय मानदंडों को बदलने के लिए कानून के दायरे से बाहर काम किया’
ग्रीन हाइड्रोजन क्या है?
यह समझने के लिए कि हाइड्रोजन हाइप क्या है, यह जानना आवश्यक है कि यह कैसे काम करता है. हाइड्रोजन एक रंगहीन, गंधहीन गैस है जो हमारे आस-पास के वातावरण में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है. लेकिन इसे ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए इसे निकालना पड़ता है.
एक खास निष्कर्षण या निकालने की विधि के कारण ही ग्रीन हाइड्रोजन ‘ग्रीन’ है. नवीकरणीय स्रोतों के उपयोग से जीरो एमिशन को सुनिश्चित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एक किलो कोयला जो कि भारत में बिजली का प्राथमिक स्रोत है, उसे जलाने पर लगभग 2.4 किलो कार्बन उत्सर्जन होता है.
ग्रीन हाइड्रोजन को इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया के माध्यम से निकाला जाता है, जिसमें एलीमेंट्स को अलग करने के लिए एक तरल के माध्यम से करंट पास करना होता है. अन्य तरीकों में कोयले का गैसीकरण या स्टीम मीथेन रिफॉर्मेशन (एसएमआर) शामिल हैं. हालांकि, इन विधियों में में कार्बन और अन्य ग्रीनहाउस गैसें भी रिलीज होती हैं जो कि इसे अधारणीय बनाती हैं. विधि और रिलीज होने वाली ग्रीनहाउस गैस की मात्रा के आधार पर अंततः निकलने वाली हाइड्रोजन को ‘भूरा’, ‘ग्रे’ या ‘नीला’ कहा जाता है.
हरित हाइड्रोजन का हाइप इस बात पर निर्भर करता है कि यह स्टील और सीमेंट जैसी कार्बन-हैवी मटीरियल अथवा जेट विमानों या जहाजों को पावर देने वाले जीवाश्म ईंधन में से किसको रिप्लेस करने की क्षमता रखता है. तेल और गैस भारत के जीवाश्म ईंधन के आयात का 85 प्रतिशत हिस्सा हैं. घरेलू उत्पादन और ग्रीन हाइड्रोजन के निर्यात से इसमें एक संतुलन स्थापित किया जा सकता है जैसी कि मोदी सरकार को उम्मीद है.
लेकिन चूंकि इसकी लागत बहुत ज्यादा है इसलिए फिलहाल, कम से कम छोटे प्लेयर्स के लिए इसका उत्पादन कर पाना कठिन है. एक किलोग्राम हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में 300-400 रुपये की लागत आती है, और इसे ज्यादा से ज्यादा 100 रुपये प्रति किलोग्राम की लागत तक ही उत्पादन को व्यवहार्य माना जाता है.
फरवरी 2022 में, सरकार हरित हाइड्रोजन में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एक नीति लेकर आई, 25 वर्षों के लिए सौर या पवन ऊर्जा के लिए अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन शुल्क पर छूट की पेशकश की और परियोजना मंजूरी के लिए सिंगल-विंडो पोर्टल स्थापित करने का वादा किया.
बुधवार को सरकार ने इस पेशकश में कई रियायतें जोड़ीं. “ग्रीन हाइड्रोजन ट्रांजिशन प्रोग्राम (SIGHT) के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप के तहत, दो अलग-अलग वित्तीय प्रोत्साहन तंत्र – इलेक्ट्रोलाइज़र के घरेलू निर्माण और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को टारगेट करना – मिशन के तहत प्रदान किया जाएगा,” एक प्रेस विज्ञप्ति में घोषणा की गई, कि “उभरते एंड-यूज़ सेक्टर्स और प्रोडक्शन पाथवेज़ की पायलट परियोजनाओं” तक इसका पहुंचेगा.
सरकार ने वादा किया है कि हाइड्रोजन हब वहीं बनाए जाएंगे जहां उनकी व्यवहार्यता सबसे ज्यादा होगी. और स्पष्ट नियम, नीतियां व रूपरेखा इच्छुक खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करेंगी.
क्या हाइड्रोजन हाइप सिर्फ हवाई बात है?
कई बड़ी घोषणाएं – जैसे कि रिन्यूएबल एनर्जी इक्विपमेंट बनाने के लिए रिलायंस की 8 बिलियन डॉलर की पहल और इलेक्ट्रोलाइज़र स्थापित करने के लिए अदानी ग्रीन की फ्रांस की टोटल एनर्जी के साथ 50 बिलियन डॉलर की डील, पर काम होना अभी बाकी है.
एक इकोनॉमिस्ट लेख के अनुसार ग्रीन हाइड्रोजन के लिए यह उत्साह पहली बार नहीं है जब उद्योग एक वैकल्पिक ईंधन के नेतृत्व वाले भविष्य के वादों से खुश है. 2000 के दशक में हाइड्रोजन ईंधन से चलने वाली कारों का एक क्रेज था जो कि धीर-धीरे ठंडा पड़ गया.
आलोचकों का कहना है कि कार्बन-भारी उद्योगों की के लिए हाइड्रोजन का उपयोग मुश्किल हो सकता है क्योंकि बैटरी, विमानों और जहाजों इत्यादि की तुलना में कार्बन भारी उद्योगों काफी गैस की जरूरत पड़ेगी. हाइड्रोजन को लिक्विफाई करने में भी काफी ऊर्जा की खपत होती है. इसकी वजह से भी हाइड्रोजन के उपयोग में बाधा आ सकती है.
ऊर्जा सलाहकार माइकल लिब्रीच ने पिछले साल ब्लूमबर्ग लेख में लिखा था,”हाइड्रोजन में एक बहुत अच्छा गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा घनत्व है यानी प्रति यूनिट वजन में ऊर्जा की मात्रा है. इस वजह से, हाइड्रोजन डीजल, पेट्रोल और जेट ईंधन की तुलना में लगभग तीन गुना और एलएनजी की तुलना में लगभग 2.7 गुना बेहतर है – यही कारण है कि इसे रॉकेट के लिए बेहतरीन ऊर्जा माना जाता है.” हालांकि, “इसका ऊर्जा घनत्व यानी प्रति इकाई आयतन में ऊर्जा की मात्रा बहुत ही कम है. यह याद रखने योग्य है कि जबकि एक घन मीटर पानी का वजन 1,000 किलोग्राम होता है; एक घन मीटर हाइड्रोजन का वजन केवल 71 किलोग्राम होता है. वॉल्यूमेट्रिक आधार पर, हाइड्रोजन का ऊर्जा घनत्व जेट ईंधन का एक चौथाई है और एलएनजी का केवल 40 प्रतिशत है.
लेकिन अंतरराष्ट्रीय रुझानों और ऊर्जा क्षेत्र को बदलने की तत्काल आवश्यकता से उत्साहित, विशेषज्ञों ने कहा है कि हरित हाइड्रोजन के व्यावहारिक उपयोग में दृढ़ विश्वास पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है. नीति आयोग के अनुसार, 2050 तक भारत में हरित हाइड्रोजन की मांग चार गुना से अधिक बढ़ने का अनुमान है.
लेकिन मूल बात यह है कि भारत कितनी आसानी से मिशन को लागू करने और इस बढ़ती मांग को पूरा करने में सक्षम है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः कैसे गुजरात लिख रहा है भारत में सबसे बड़ी सौर ऊर्जा क्रांति की कहानी, दूसरे राज्य ले सकते हैं सबक