गुरुग्राम: इस हफ्ते की शुरुआत में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर सरकार द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि हरियाणा में 18-19 वर्ष आयु वर्ग के कुल मतदाताओं में महिलाओं की संख्या केवल एक-तिहाई है.
हरियाणा (22 जनवरी, 2024 तक) में निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के साथ रजिस्टर्ड इस आयु वर्ग के 3,43,908 वोटर्स में से 2,30,544 पुरुष, 1,13,346 महिलाएं और 18 ट्रांसजेंडर हैं.
यह राज्य में मतदाताओं के बीच समग्र लिंग संतुलन के बिल्कुल विपरीत है. हरियाणा के कुल 1.97 करोड़ मतदाताओं में से 1.05 करोड़ (53.3 प्रतिशत) पुरुष और 92.5 लाख (47.7 प्रतिशत) महिलाएं हैं.
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि उच्च आयु समूहों में लैंगिक असमानता अपने आप संतुलित होने लगती है. 20 से 29 वर्ष आयु वर्ग में कुल मतदाताओं में 40 फीसदी महिलाएं हैं. 30-39, 40-49, 50-59 वर्ष और उससे अधिक आयु समूहों में इस स्थिति में काफी सुधार होता है.
राज्य में अधिक महिलाओं को मतदाता के रूप में रजिस्टर्ड करवाने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से सरकार ने पहली बार महिला वोटर्स को लैपटॉप, स्मार्टफोन और पेन ड्राइव देने की पिछले साल अक्टूबर में एक योजना की घोषणा की थी. इस योजना में दो श्रेणियां थीं — एक सभी आयु समूहों के लिए और दूसरी 18 से 19 वर्ष के समूह के लिए – और विजेताओं का चयन लकी ड्रा के जरिए किया गया था.
दिलचस्प बात यह है कि विजेताओं में फरीदाबाद की 53-वर्षीय अनवरी, रोहतक की 52-वर्षीय गणवती, पानीपत की 51-वर्षीय सावित्री और 47-वर्षीय उषा, जिंद की 48-वर्षीय रुमाली, करनाल से 42-वर्षीय सविता देवी और सोनीपत से 41 वर्षीय कुसुम शामिल थीं — जिन्होंने पहली बार मतदाता के रूप में रजिस्ट्रेशन कराया था.
हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने दिप्रिंट को बताया, “मैंने लिस्ट देखी है और मैं आंकड़ों से हैरान भी हूं. यह निश्चित रूप से चिंता का कारण है. हम देखेंगे कि इतनी सारी नई महिला मतदाताओं का रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं हो सका.”
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन एसोसिएशन (एआईडीडब्ल्यूए) की उपाध्यक्ष जगमती सांगवान के अनुसार, युवा महिला मतदाताओं की कम संख्या ने हरियाणा में समाज की पितृसत्तात्मक मानसिकता को प्रदर्शित किया है.
सांगवान ने दिप्रिंट को बताया, “हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में लोगों की आम मानसिकता यह है कि लड़की एक पराया धन है. इस कारण से माता-पिता ने लड़की को मायके वाले घर में मतदाता के रूप में इस तर्क के साथ रजिस्टर्ड नहीं कराया कि शादी के बाद उसे उसके ससुराल वालों द्वारा एक बार मतदाता के रूप में नामांकित किया जाएगा.”
उन्होंने कहा, “एक और कारक जो माता-पिता को बेटियों को मतदाता बनाने से हतोत्साहित करता है, वह है चुनाव के दौरान, खासकर स्थानीय स्तर पर उत्पन्न होने वाले संघर्ष और हिंसा का डर.”
उन्होंने बताया, “खासकर पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव अक्सर ग्रामीणों के बीच दुश्मनी पैदा करते हैं और माता-पिता को लगता है कि अपनी बेटियों को मतदाता के रूप में नामांकित न करके वे उन्हें ऐसी दुश्मनी में पड़ने से बचा रहे हैं.”
दिप्रिंट द्वारा संपर्क किए जाने पर हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) अनुराग अग्रवाल ने कहा कि इस बार सरकार ने लड़कियों को उनके मतदान अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में एक विशेष अभियान चलाया था, लेकिन किसी कारण से, वे अच्छी संख्या में रजिस्ट्रेशन कराने के लिए आगे नहीं आईं.
उन्होंने कहा, “इस बार हमारे पास जिलों में शिक्षा विभाग से एक सहायक निर्वाचन अधिकारी थे, जिनका कर्तव्य स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों के बीच जागरूकता पैदा करना था.”
अग्रवाल ने कहा कि मतदाताओं के रूप में महिलाओं के रजिस्ट्रेशन के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि हरियाणा सरकार ने पहली बार मतदाताओं के रूप में प्रोत्साहन के लिए जिन लोगों को चुना, उनमें 53-वर्ष की एक महिला थी, जबकि कई अन्य 40 वर्ष की थीं.
अग्रवाल ने कहा, मतदाता लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण में 5,25,615 नए मतदाता शामिल हुए, जिनमें से 1,41,290 18-19 वर्ष की आयु के युवा मतदाता थे.
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‘पितृसत्तात्मक मानसिकता’
एआईडीडब्ल्यूए की जगमती सांगवान, ने याद किया कि जब वह मतदान करने की उम्र में पहुंची, तो उनके माता-पिता भी झिझक रहे थे.
हालांकि, उन्होंने कहा कि 18-19 वर्ष आयु वर्ग में महिला मतदाताओं के कम प्रतिशत के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक कारक ही एकमात्र कारण नहीं हो सकते हैं.
सांगवान ने कहा, “किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि 2011 की जनगणना में बाल-लिंग अनुपात (0 से 6 वर्ष) 834 था, जो उसी जनगणना में दर्ज 879 के समग्र लिंग अनुपात से भी कम था. खराब बाल-लिंग अनुपात अब मतदाता पंजीकरण में दिखाई दे रहा होगा क्योंकि उस समय के बच्चे अब पात्र मतदाता हैं.”
एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम के महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रोफेसर उर्मिला शर्मा ने कहा कि हालांकि, हरियाणा सरकार ने बेटियों को बचाने और शिक्षित करने के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान शुरू किया है, लेकिन अब समय आ गया है जब समाज को खुद यह सुनिश्चित करने के लिए आगे आना चाहिए कि महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाए.
उन्होंने दावा किया कि हरियाणा में कई लोग अपनी बेटियों के लिए मतदाता के रूप में पंजीकरण कराना जरूरी नहीं समझते क्योंकि उन्हें शादी के बाद अंततः अपने पति के घर जाना होता है.
उन्होंने कहा, “मेरे विचार में, 18 वर्ष की आयु में बच्चों का पंजीकरण उसी तरह अनिवार्य किया जाना चाहिए जैसे जन्म और मृत्यु का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है.”
इस बीच, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र में लिंग अध्ययन केंद्र की पूर्व निदेशक रीचा तंवर ने दिप्रिंट से कहा, “मुझे हैरानी है कि क्या उस (18-19) आयु वर्ग की कई महिलाओं ने ग्रामीण हरियाणा की मानसिकता को देखते हुए मतदाताओं के रूप में पंजीकरण नहीं कराया है. महिलाओं से न तो अपनी बात कहने की अपेक्षा की जाती है और न ही उन्हें अपने मन की बात कहने की इजाजत है.”
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उस आयु वर्ग के पुरुष स्वयं जाएंगे और मतदान के लिए पंजीकरण कराएंगे लेकिन युवा महिलाओं के लिए पहल करने की जहमत कोई नहीं उठाता.
तंवर ने कहा, “दूसरी बात यह है कि हरियाणा में यह असामान्य नहीं है कि अविवाहित महिलाओं को उनके माता-पिता के गांव में इस आधार पर पंजीकृत नहीं किया जाता है कि उन्हें शादी के बाद वहां जाना होगा.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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