क्या सपने पूरे करने की कोई उम्र होती है? आप सभी कहेंगे नहीं… लेकिन बात अगर किसी महिला के सपने की हो तो कई बार उम्र, परिवार, रिश्ते उनके सपनों की बीच आ जाते हैं और खास कर सही समय पर सही मार्गदर्शन और परिवार का साथ न मिलने की वज़ह से न जाने कितनी ही महिलाओं के सपने पीछे छूट जाते हैं. लेकिन मां बनने के बाद जिम्मेदारियां और अपना सपना पूरा करने में कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं.
NASSCOMM की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 18% स्टार्टअप महिला संस्थापक या फिर सह-संस्थापक के नेतृत्व से चलाए जा रहे हैं. यही नहीं वो महिलाएं ही हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती हैं. इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के अनुसार भारत में 20.37% महिलाएं एमएसएमई मालिक हैं, जो लेबर फोर्स का 23.3% हिस्सा हैं.
देश की दो तिहाई कामकाजी महिलाएं अपना काम चलाने के लिए अपना ही कोई कारोबार करती हैं. हालांकि, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में ज़्यादातर महिला कारोबारी असंगठित क्षेत्र में हैं. वो छोटे-मोटे काम करती हैं, जिसमें मुट्ठी भर लोग काम करते हैं चाहें वो घर से खाना सप्लाई करने का काम हो या फिर अचार बनाने का या फिर बात करें सिलाई कढ़ाई या फिर खेती किसानी की. महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे ये कारोबार पारंपरिक रूप से धीमी रफ्तार से विकास और कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों के ही होते हैं.
“मैं एक मार्केटिंग की स्टूडेंट रही हूं और मेरा सपना हमेशा से अपना कोई बिज़नेस या फिर काम शुरू करने का था. लेकिन कई बार या तो इसके लिए सही गाइडेंस नहीं मिली या फिर सही आईडिया नहीं मिला जिस पर मैं काम करती जो मुझे अपनी तरफ अट्रैक्ट करता.” यह कहना है सुपर बॉटम्स कंपनी की फाउंडर और सीईओ पल्लवी उतागी. जिंदगी के किसी भी पड़ाव पर आकर एक औरत अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं अगर उसे सही मेंटरशिप और परिवार का साथ मिले तो.
उतागी ने अपनी कंपनी की शुरुआत एक मां बनने के बाद की. उनकी ये कंपनी छोटे बच्चों के लिए नैपी या फिर डाइपर बनाती है. वह कहती हैं, “जब मैं नई- नई मां बनी तो मुझे इस बात का एहसास हुआ कि डाइपर का इस्तेमाल बच्चे की त्वचा के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं है और वहीं अगर हम थोड़ा पीछे जाएं तो लंगोट के भी इस्तेमाल से इन्फेक्शन का खतरा रहता ही था और इसे ज्यादा बार इस्तेमाल नहीं कर सकते है.
इसी दौरान आईडिया आया और फिर उतागी ने डायपर और लंगोट को एक साथ मिलाकर कपडे़ के बने डायपर बनाने का आईडिया सोचा कि कैसे इसे लंबे समय तक री-यूज़ किया जा सकता है.
हम जब कोई नया काम शुरू करते हैं तो शुरुआत में हमारे सामने कोई भी मुश्किल या फिर रुकावट न आए ऐसा तो शायद ही होता है. और अगर बात महिलाओं की करें तो बिना मुश्किलों का सामना किए तो उन्हें वैसे भी कुछ हासिल नहीं होता है.
फंडिंग है बड़ी समस्या
पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों में ज्यादा मुनाफा देखा गया है. ये मुनाफा 19 फीसदी की तुलना में 31 प्रतिशत होने के बाद भी महिलाओं को कर्ज और फंड दिए जाने में बैंक तो हिचकती ही है इन्वेस्टर भी उसे खारिज कर देते हैं. महिलाओं के कर्ज़ खारिज किए जाने का अनुपात कहीं ज़्यादा यानी- पुरुषों के 8 प्रतिशत की तुलना में 19 फ़ीसद है और वो सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को सरकारी बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कुल क़र्ज़ का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर पाती हैं.
कैस्पियन डेप्ट के एमडी और सीईओ अविषेक गुप्ता कहते हैं, “वुमेन इंटरप्रेन्योर जब भी कुछ करना चाहती हैं या फिर आगे बढ़ना चाहती हैं तो उनके सामने सबसे बड़ी बाधा फंडिंग की आती है.”
अपने शुरुआती दिनों के अनुभव को साझा करते हुए पल्लवी ने कहा कि शुरुआत में सब सेट करने में बहुत सारी दिक्कतें आईं, एम्प्लॉय ढूंढ़ना और फंडिंग के लिए लोगों को मनाना एक टास्क जैसा होता है.
पल्लवी ने कहा, “मेरी इस जर्नी और खास कर इसके शुरुआत में मुझे बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. हालांकि, मेरे परिवार और मेरे पति ने हर कदम पर मेरा साथ दिया लेकिन बहुत सी जगह पर मुश्किलें भी आईं जैसे की कंपनी के लिए एक टीम बनाना और सब एक टीम की ही तरह काम करें ये देखना, साथ ही फंडिंग के लिए इन्वेस्टर ढूंढ़ना और कस्टमर बनाना एक बड़ा चेलेंज रहा.”
महिलाएं बड़े सपने देखने की हिम्मत रखती हैं
कैस्पियन डेप्ट की रिसर्च के अनुसार अवसरों और संसाधनों की कमी के बावजूद महिलाएं बड़े सपने देखने की हिम्मत रखती हैं. भारतीय महिलाएं लगातार डोमेन और उद्योगों में अपनी पहचान बना रही हैं. वो आत्मविश्वास से नेतृत्व की भूमिका निभा रही हैं, समाज के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में महिला उद्यमियों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है.
बात चाहें भारत की महिला उद्यमी ने देश के साथ-साथ अपनी काबिलियत का सिक्का पूरे विश्व में भी जमाया है. इनकी ओर से शुरू की गई कम्पनीज आज पूरे विश्व में नाम कमा रही हैं. यही नहीं ये महिलाएं आज देश ही नहीं दुनिया में रोल मॉडल बन चुकी हैं. बात चाहें नायका की फाल्गुनी नायर की करें या फिर बात करें वंदना लूथरा या फिर शहनाज की इन महिलाओं ने सौंदर्य प्रसाधनों की दुनिया में अलग नाम कमाया है जबकि किरण शॉ मजूमदार, सूची मुखर्जी, ऋचा कर. वाणी कोला. उपासना टाकू, शायरी चहल कई नाम हैं जो कुछ अलग कर रही हैं और सफलता ने इन्हें नए मुकाम पर पहुंचाया है.
आईएलएसएस की सीईओ और संस्थापक अनु प्रसाद महिलाओं के सामने आने वाली परेशानियों के बारे में बात करते हुए कहा कि, “महिलाओं के सामने मार्गदर्शन के साथ-साथ एक बड़ी समस्या उनके आत्मविश्वास के कमी की आती है.सामाजिक ताने-बाने और हमारी संस्कृति के कारण महिलाओं उद्यमियों में हमेशा से ही एक संकोच रहता है, कि वो शुरुआत कैसे करेंगी और क्या उन्हें समाज और परिवार का साथ मिलेगा.”
अनु प्रसाद कहती हैं, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज के समय में महिला लीडर के पास सभी क्षेत्रों में बहुत सारी संभावनाएं हैं. यह सही समय है कि प्रत्येक क्षेत्र को महिलाओं के नेतृत्व को सीमित करनेवाली सरंचनात्मक और सांस्कृतिक बाधाओं की पहचान करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, और महिलाओं के समर्थन एवं प्रगति के लिए काम करना चाहिए.”
अपना अनुभव शेयर करते हुए पल्लवी ने बताया कि एक महिला होने के नाते एक ही समय पर परिवार और बिज़नेस को संभालना बहुत मुश्किल होता है. लेकिन अगर हमें थोड़ा सा सपोर्ट और साथ मिले तो ये काम आसान हो जाता है.
महिलाओं के लीडरशिप को बढ़ाने की बात करते हुए अनु ने बताया कि भारतीय विकास क्षेत्र में महिलाओं के लीडरशिप पर किए गए शोध में अधिकांश महिलाओं का मानना है कि उनकी लीडरशिप यात्रा को आगे बढ़ाने में सही समय पर मिले साथ और मेंटरशिप में उन्हें आगे बढ़ने में बहुत मदद की है. सही मेंटरशिप के कारण ही महिलाएं सही समय पर व्यक्तिगत और व्यवसायिक निर्णय लेने में समर्थ होती हैं.
उन्होंने कहा एक महिला लीडर की सफलता सनिुनिश्चित करने के लिए समर्थन का होना बहुत महत्वपूर्ण होता है.
पल्लवी कहती हैं, “अगर महिलाएं अपना सपना पूरा करना चाहती हैं तो वो चाहे जिंदगी के किसी भी मोड़ पर क्यों न हो पहला कदम बढ़ाना सबसे ज्यादा जरूरी है. हमारा पहला कदम ही हमें आगे का रास्ता दिखाता है.”
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