scorecardresearch
Tuesday, 23 April, 2024
होमदेशदिल्ली दंगों के 7 में से 6 मामलों में अभियुक्त की पहचान नहीं कर पाए गवाह, सुबूत भी हैं कमज़ोर

दिल्ली दंगों के 7 में से 6 मामलों में अभियुक्त की पहचान नहीं कर पाए गवाह, सुबूत भी हैं कमज़ोर

फरवरी 2020 के उत्तरपूर्वी दिल्ली दंगों के मामले में, विशेष अदालत के समक्ष 7 में से केवल 1 मामले में अभियोजन साक्ष्य पूरा हो पाया है.

Text Size:

नई दिल्ली: फरवरी 2020 के उत्तरपूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े जिन सात मामलों में सुनवाई शुरू हुई है, उनमें से छह में सामग्री गवाह कोर्ट के अंदर उन हमलावरों की शिनाख़्त नहीं कर पाए, जो कथित रूप से उस भीड़ का हिस्सा थे, जिसने सांप्रदायिक उन्माद के दौरान उनकी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाया था.

ये छह केस वो हैं जो उन दंगों के बाद, जिनमें 53 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे, उत्तरपूर्वी ज़िले के दयालपुर, करावल नगर, और गोकलपुरी के स्थानीय पुलिस थानों में दर्ज किए गए थे.

इन सात मामलों की सुनवाई दंगों के डेढ़ साल से अधिक समय के बाद, पिछले महीने एक विशेष अदालत में शुरू हुई. इस कोर्ट में अभी तक लगभग 150 केस सुनवाई के लिए आए हैं; ये स्थिति पुलिस के आरोप पत्र दाख़िल करने के बाद आई है.

ये सभी प्राथमिकियां भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत हैं, जिनमें दंगों, घर तबाह करने की नीयत से चोरी, आग या विस्फोटक पदार्थों से शरारत, 50 रुपए से अधिक का नुक़सान करने की शरारत, और किसी सरकारी अधिकारी के आदेश की अवहेलना से जुड़े अनुभाग शामिल हैं. इन सभी अपराधों के लिए 2 से 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान है.

दंगों के बाद कुल 750 केस दर्ज किए गए थे. उनमें से क़रीब 400 मामलों में आरोप पत्र दाख़िल कर दिए गए हैं. अधिकतर मामले पुलिस के पास ही रहे, लेकिन जिनमें हत्या के आरोप लगाए गए थे, उन्हें अपराध शाखा को सौंप दिया गया था. बाद में, क्राइम ब्रांच के हवाले किए एक केस को, जिसमें एक बड़ी साज़िश का आरोप शामिल था, गहराई से जांच के लिए दिल्ली पुलिस के विशिष्ट स्पेशल सेल के हवाले कर दिया गया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

अभी तक, क़रीब 57 मामलों में आरोप तय किए जा चुके हैं, जबकि नौ मामलों को वापस मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया गया है, चूंकि पुलिस द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों के आधार पर जो अपराध तय किए गए थे, उन्हें सेशंस कोर्ट में मुक़दमा चलाए जाने के लायक़ नहीं माना गया. इसका अर्थ है कि वो जघन्य प्रकृति के नहीं थे.


यह भी पढ़ें: दिल्ली दंगे ‘विभाजन के बाद सबसे भयानक दंगे’ थे, राष्ट्र की अंतरात्मा में एक ‘घाव’ था : दिल्ली की सत्र अदालत


गवाहों ने क्या कहा है

जिन सात मामलों की विशेष अदालत में सुनवाई शुरू हुई है, और जिनकी दिप्रिंट ने जांच की है, उनमें से केवल एक केस में अभियोजन साक्ष्य पूरे हो पाए हैं. अभी तक दर्ज किए गए सुबूत कमज़ोर नज़र आते हैं.

इनमें से छह मामलों में, शिकायतकर्त्ता/गवाहों ने कहा है कि जब हेल्पलाइन नंबर 100 पर कॉल की गई, तो पुलिस की ओर से तुरंत कोई जवाब नहीं मिला.

बयानों से, जिन्हें दिप्रिंट ने देखा है, पता चलता है कि कुछ गवाह उस जगह उस समय मौजूद ही नहीं थे, जब मोटरबाइक्स या स्कूटर जैसे उनके सामान, और दुकान जैसी संपत्तियां तोड़फोड़ का शिकार हुईं. उनमें से अधिकतर उस जगह को छोड़कर, या तो किसी रिश्तेदार के यहां रहने चले गए, या उस जगह जहां पुलिस ने उन्हें पहुंचाया. जिन लोगों ने नुक़सान होते देखा, उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार किया कि उन्होंने अभियुक्त को, उनके सामान को जलाते या क्षतिग्रस्त करते देखा था.

दो एफआईआर्स दिनेश नाम के एक व्यक्ति के खिलाफ आरोपों से जुड़ी हैं, जबकि एक में शकील और अन्य के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं.

सात में से सिर्फ एक मामला ऐसा है जिसमें शिकायतकर्त्ता ने, प्रवीण गिरी नाम के एक अभियुक्त के खिलाफ सकारात्मक बयान दिया है. यही व्यक्ति तीन और एफआईआर्स में भी नामित है, लेकिन उनमें अभी तक उसकी हमलावर के तौर पर शिनाख़्त नहीं हुई है.

गोकलपुरी में एफआईआर 64/2020 और 141/2020

गोकलपुरी में एफआईआर 64/2020 और 141/2020 में दिनेश को अभियुक्त नामित किया गया है. 64/2020 में उसपर शिकायतकर्त्ता के घर में तोड़फोड़ करने, उसकी बाइक जलाने, और उसके घर से सामान चुराने का आरोप है.

शिकायतकर्त्ता और उसके परिवार के सदस्यों ने हलफ उठाकर कहा है, कि उन्होंने किसी दंगाई को संपत्ति को नुक़सान पहुंचाते नहीं देखा, क्योंकि वारदात के समय वो मौक़े पर मौजूद नहीं थे.

इस केस में अभी तक तीन पुलिसकर्मियों समेत, 10 गवाहों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं.

तीन पुलिसकर्मियों में से इलाक़े के बीट कॉन्सटेबल ने मौक़े पर दिनेश की शिनाख़्त की. सिपाही ने कोर्ट को बताया कि केवल चार-पांच दंगाई थे, जो बिना मास्क के थे, और दिनेश उन्हीं में एक था. पुलिसकर्मी ने इन व्यक्तियों को शिकायतकर्त्ता के घर में घुसकर, उसमें आग लगाते हुए भी देखा था.

लेकिन, एक सवाल के जवाब में सिपाही ने स्वीकार किया, कि उसने घटना के बारे में स्थानीय पुलिस स्टेशन को सूचित नहीं किया था, और उसने ये भी माना कि अभियुक्त की शिनाख़्त के बारे में, उसने जांच अधिकारी को सूचित नहीं किया था.

एक अन्य पुलिसकर्मी के बयान के अनुसार, इस मामले में दिनेश की गिरफ्तारी, एक दूसरी एफआईआर नंबर 78/2020 में दर्ज उसके बयान के बाद की गई थी.

इसी तरह, एफआईआर 141/2020 में शिकायतकर्त्ता और उसके परिवार के सदस्यों ने, इस बात से इनकार किया कि उन्होंने दिनेश को आगज़नी करते हुए देखा था. जब उन्हें पुलिस के सामने दिए गए उनके अपने बयानात दिखाए गए, तो वो उनमें दर्ज बातों से मुकर गए.

फिर भी, शिकायतकर्त्ता ने कहा कि ये कहना ग़लत था, जैसा कि बचाव पक्ष ने किया था, कि उसने वारदात होते हुए, या उसका घर तोड़ने वाले व्यक्ति को नहीं देखा था. दो पुलिसकर्मियों ने जो इस एफआईआर में गवाह थे, कोर्ट को बताया कि उन्होंने अपनी आंखों से अभियुक्त को शिकायतकर्त्ता का घर जलाते हुए नहीं देखा. इस केस में तेरह गवाहों ने अपने बयानात दर्ज कराए.

दयालपुर में एफआईआर 131/2020

दयालपुर में दर्ज एफआईआर 131/2020 में, पुलिस ने दो दुकानों को जलाए जाने की घटनाओं का ज़िक्र किया है, जिनमें एक पेस्ट्री शॉप और एक ऑटोरिक्शा था.

तीन गवाह जिन्होंने अभी तक गवाही दर्ज कराई है, वो दंगों के दौरान क्षतिग्रस्त हुई तीन संपत्तियों के मालिक हैं. लेकिन उनमें से किसी ने कोर्ट में अभियुक्त की शिनाख़्त नहीं की. तीनों गवाहों ने कहा कि वो घटना के समय, मौक़ा-ए-वारदात पर मौजूद नहीं थे. इसलिए, उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि कोर्ट में मौजूद अभियुक्त अस्ली अपराधी थे कि नहीं.

दोनों दुकान मालिकों ने कहा कि उन्होंने अपने शटर्स गिरा दिए थे, क्योंकि माहौल तनावपूर्ण हो गया था. उनमें से एक ने आगे कहा कि उसे घटना के चार दिन बाद, अपनी दुकान के जलाए जाने का पता चला था.

करावल नगर में एफआईआर्स 108/2020, 90/2020 और 96/2020

इन तीन एफआईआर्स में पुलिस ने प्रवीण गिरि को अभियुक्त बनाया है. जहां एफआईआर 108/2020 में अभी तक नौ गवाहों के बयान दर्ज हो चुके हैं, वहीं 90/2020 में छह, और 96/2020 में आठ गवाहों के बयान दर्ज हुए हैं.

एफआईआर 108/2020 में नौ में से एक गवाह ने भी, कोर्ट में गिरी की शिनाख़्त नहीं की. जिनकी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाया गया था, उन्होंने कहा कि घटना के समय वो मौक़ा-ए-वारदात पर मौजूद नहीं थे.

एक चश्मदीद गवाह जिसने उपद्रवी भीड़ को चढ़ाई करते हुए देखने की बात मानी थी, कोर्ट को बताया कि गिरी उस भीड़ का हिसा नहीं था. उसने साफतौर पर कहा कि गिरी उन लोगों में नहीं था, जिन्हें उसने मौक़े पर देखा था, और कुछ दिन बाद पुलिस स्टेशन में, हमलावर के तौर पर पहचाना था.

एफआईआर 90/2020 में भी, गवाहों ने कहा कि उन्होंने अपने सामान और संपत्ति को क्षतिग्रस्त किए जाते नहीं देखा था, और उन्हें किसी और से इस बारे में पता चला था.

इसी तरह, एफआईआर 96/2020 में हालांकि गवाहों ने दंगों से पहले के घटनाक्रम का विस्तार से वर्णन किया है, लेकिन उनमें से किसी ने भी, गिरि के शामिल होने की पुष्टि नहीं की है.

तीनों एफआईआर्स में केवल पुलिस अधिकारियों ने शिकायतों में दर्ज सामग्री की पुष्टि की है.

करावल नगर में एफआईआर 120/2020- अकेला केस जिसमें अभियुक्त की शिनाख़्त हुई

इस केस में शिकायतकर्त्ता ने अभियुक्तों का विस्तृत ब्योरा दिया है, जिनमें गिरी भी शामिल है. कोर्ट के समक्ष अपने बयान में शिकायतकर्त्ता ने कहा, कि दंगाई टीका लगाए हुए थे, और ‘जय श्री राम’ के नारे लगा रहे थे.

शिकायतकर्त्ता ने पुलिस थाने में गिरी की शिनाख़्त की थी, और जब कोर्ट में उसे शिनाख़्त की पुष्टि करने के लिए कहा गया, तो उसने गिरी की ओर देखते हुए पुष्टि कर दी. लेकिन, शिकायतकर्त्ता की पत्नी और एक अन्य गवाह गिरी को नहीं पहचान सके.

अन्य तीन गवाह जो इस केस में अभी तक गवाही दे चुके हैं, वो करावल नगर थाने के पुलिसकर्मी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: दंगों में मुसलमान ज़्यादा मरते हैं, फिर गिरफ्तार भी वही ज़्यादा होते हैं ये नई बात नहीं है: महमूद मदनी


 

share & View comments