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Sunday, 17 November, 2024
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कक्षा XII के बोर्ड एग्ज़ाम में बढ़ते अंकों के साथ, क्या भारत के कॉलेजों में 70 प्रतिशत लाने वालों के लिए कोई जगह है ?

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रविवार को सीबीएसई ने अपने कक्षा XII के बोर्ड परिणामों की घोषणा की। ऑल इंडिया टॉपर ने चौकाने वाले 99.8 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। 2017 में, अधिकतम अंक प्राप्त करने वाले को 99.6 प्रतिशत अंक मिले थे; 2016 में यह प्रतिशत 99.4 था; और 2015 में यह 99.2 प्रतिशत था।

दिप्रिंट का सवाल: कक्षा XII के बोर्डों में बढ़ते अंक के साथ, क्या भारत के कॉलेजों में 70 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले लोगों के लिए जगह है?


 

हमें निष्कासन नहीं बल्कि एक चयन आधारित कॉलेज प्रवेश प्रणाली की जरूरत है|

अशोक गांगुली

सीबीएसई के पूर्व अध्यक्ष

कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा में शामिल होने वाले 7 प्रतिशत से अधिक छात्र 90 प्रतिशत एवं  उससे अधिक प्राप्तांकों के साथ परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं, निश्चित रूप सेयह परिदृश्य अच्छा नहीं है।यह स्थिति विद्यालयों के लिए छात्रों का सामान्य वितरण प्रदान नहीं कर रही है बल्कि एक विषम वितरण प्रदान कर रही है जो हमारी परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता, स्थिरता और वैधता पर सवाल उठाता है। यह सभी बोर्डों में हो रहा है। यह भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक विरोधाभास को इंगित करता है।

यह कहकर, सम्पूर्ण भारत में आईआईटी पाठ्यक्रमों के अलावा तृतीयक शिक्षा के साथ एकमात्र उम्मीद अब दिल्ली विश्वविद्यालय पर टिकी है। मांग और आपूर्ति के बीच एक बड़ा अंतर है और संपूर्ण प्रवेश प्रणाली निष्कासन की प्रक्रिया पर आधारित है। भारत के प्रमुख कॉलेजों में 70 प्रतिशत अंक हासिल करने वाले लोगों को वास्तव में कोई उम्मीद नहीं है। उनमें से कुछ शायंकाली कक्षाओं या व्यावसायिक कॉलेजों में शामिल होने की उम्मीद करते हैं। कुछ विदेशी पाठ्यक्रमों में शामिल होने पर विचार कर सकते हैं।

कक्षा 12 की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों की बढ़ती संख्या के लिए सर्व शिक्षा अभियान को धन्यवाद, भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली का विस्तार करने का समय आ गया है। बढ़ती आकांक्षाओं के लिए अधिक निजी कॉलेजों को कदम उठाना चाहिए। शुल्क संरचना पर कुछ प्रतिबंधों की आवश्यकता हो सकती है लेकिन उन्हें काम करने दिया जा सकता है। यह कम से कम उन छात्रों के हित में है जो शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ हैं लेकिन व्यावसायिक कॉलेजों से बचना चाहते हैं।

कक्षा 12 की परीक्षा उत्तीर्ण छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सिर्फ इसलिए रोकने में कोई बात नहीं है, कि वे तथाकथित ‘उच्च अंक’ नहीं प्रापत कर पाए। यह निष्कान की बजाय चयन की प्रक्रिया के आधार पर स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के बारे में भी सोचने का समय है।


 

एक मार्क शीट अब किसी के प्रदर्शन का आईना नहीं है.

श्याम लाल गांगुली

आदित्य बिड़ला समूह के साथ मुख्य शिक्षा अधिकारी

आइए स्पष्ट करें कि ये अंक नहीं हैं, ये नकली अंक हैं. मैं एक पेपर सेटर और एक मुख्य परीक्षक रहा हूं।मैं किसी छात्र द्वार 90 प्रतिशत की स्कोरिग के बारे में सोच नहीं सकता. मेरा विषय विज्ञान है, जहां अभी भी शत प्रतिशत स्कोर करना संभव है। यही कारण है कि छात्रों का अंग्रेजी, इतिहास और अर्थशास्त्र में पूर्ण अंक प्राप्त करना आश्चर्यजनक है।

एक मार्क शीट अब किसी के प्रदर्शन का आईना नहीं है अपितु वह मार्कशीट उनको केवल  एक विकृत छवि देती है। एक बच्चा जिसकी मार्कसीट पर 100 अंक है, वास्तविकता में उसके द्वारा प्राप्त अंक केवल 80 हो सकते हैं।पहले, जब एक बच्चा 60 प्रतिशत स्कोर प्राप्त करता था, तो पूरा समुदाय जश्न मनाता था। 75 प्रतिशत अंक विशिष्टता होती थी और यह दस लाख में से एक को प्राप्त होती था. आजकल, हर कोई केवल तभी जश्न मनाता है जब बच्चे ने 95 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किये हो।

एक तरफ, हम इस बात की डींग हाकते है कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है, और दूसरी तरफ, हम अंक बढ़ा रहे हैं। सभी परीक्षाओं को मानकीकृत किया जा रहा है, जो अनिवार्य रूप से हमारी शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता को कम करता है। यह विभिन्न स्तरों पर किया जाता है। सबसे पहले पेपर सेटिंग होती है, जहां मॉडरेटर पेपर को आसान बनाने के लिए हल्का करते हैं। फिर, मार्किंग स्कीम हल्की हो जाती है। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है की छात्रों द्वारा प्राप्त कम प्रतिशत परीक्षा को विफल बना देता है।और इस प्रकार,अंक बढाये जाते हैं।

शुरुआत में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा था कि यह डीयू का दोष नहीं था कि बहुत सारे छात्रों को दाखिला नहीं मिल सका| उन्होंने अधिक अंक देने के लिए सीबीएसई को दोषी ठहराया था जो कि अंशतः सच था क्योंकि सीबीएसई और आईसीएसई अपनी अंकन व्यवस्था में बहुत उदार है|

चूंकि सीबीएसई और आईसीएसई के लिए अंक बढ़े इसलिए राज्य बोर्डों ने इसका पालन किया| उन्होंने ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया कि उनके छात्रों को भी शीर्ष विद्यालयों में प्रवेश मिल सके|हालाँकि बाद में ये टॉपर्स स्नातक स्तर पर संघर्ष करते हैं| यह प्रणाली हमारे कॉलेजों और छात्रों दोनों के लिए हानिकारक है। हम अपने बच्चों के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं।


 

बच्चो के लिये “योग्यतम की अतिजीविता” की स्थिति अच्छी नहीं है।

अशोक अग्रवाल

प्रसीडेंट, आल इंडिया पेरेंट्स असोसिएशन

इस मुद्दे के दो पक्ष हैं।

सकारात्मक रूप से छात्रों के मनोबल को बढ़ावा मिलता है ,जब वे परीक्षा में इतनी अच्छी तरह स्कोर करते हैं। उच्च स्कोर को पुरस्कार के रूप में देखा जा सकता है जो बच्चों और उनके माता-पिता को खुश कर सकता है। हालात तब खराब हो जाते हैं, जब उच्च स्कोरिंग के बावजूद, बच्चे को अच्छे कॉलेज में सीट नहीं मिलती है। चूंकि कट ऑफ का प्रतिशत बढ़ता है, इसलिए छात्रों पर दबाव भी बढ़ता है। प्रणाली पहले की तुलना में कहीं अधिक प्रतिस्पर्धी बन गई है। यह एक विकट मुद्दा है। बच्चो के लिये “योग्यतम की अतिजीविता”की स्थिति अच्छी नहीं है। आर्थिक रूप से, माता-पिता परेशान होते हैं क्योंकि बच्चों को बढ़ते ग्रेड को हासिल करने हेतु मदद के लिए उन्हें ट्यूशन में निवेश करना पड़ता है।

जीवन बच्चों के लिए मैकेनिकल बन जाता है, जहां वे घड़ी की तरह चलते हैं, स्कूल से ट्यूशन और वहा से अन्य कक्षाओं के लिये और फिर घर वापस आते हैं। यह वह जीवन नहीं है जो हम अपने बच्चों के लिए चाहते हैं। यह एक समस्या है जिसे सरकार को संज्ञान में लेना चाहिए। यह सीटों की संख्या में वृद्धि कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है  कि छात्र एक उचित और उच्च शिक्षा तक पहुच सके। स्कूलों और कॉलेजों में, शिक्षण शायद ही कभी अच्छी अवस्था में रहा हो। हमें एक ईमानदार सरकारी नीति की आवश्यकता है जो इस मुद्दे को हल कर सके।


 

दिप्रिंट की पत्रकार, दीपक भारद्वाज द्वारा संकलित।

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