श्रीनगर: श्रीनगर में अपने दोपहिया वाहन को लगी टक्कर के बाद एक महिला सड़क पर गिरी पाई गई. उस ‘अनजान महिला’ को शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज लाया गया. अगर डॉक्टर वहां मौजूद नहीं होते तो वह बच नहीं पाती.
जब राहगीर उसे अस्पताल लेकर आए तो डॉक्टरों ने देखा कि उसके सिर पर गंभीर चोटें हैं. उसका तुरंत ऑपरेशन का निर्णय लिया गया. लेकिन अनुच्छेद 370 के हटने के बाद शहर में संचार माध्यम बंद थे. जिसकी वजह से उस महिला की पहचान स्थापित करने और फीस के लिए उसके परिवार से संपर्क करने का कोई तरीका नहीं था.
महत्वपूर्ण समय गंवाने के बजाय एक वरिष्ठ न्यूरोसर्जन ने उन सर्जरी में उपयोग की जाने वाली सामग्रियों को खरीदने का फैसला लिया, जिससे सर्जरी समय पर हो सके. बाद में पता चला कि जिस महिला का ऑपरेशन कर जान बचाई गई है वह महिला जापान में रह रहे अपने बेटे को फोन करने जा रही थी, जिस समय उसका एक्सीडेंट हुआ.
यह कोई अनोखा या इकलौता मामला नहीं है. जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाने वाले अनुच्छेद 370 के ख़त्म होने के बाद कश्मीर में कर्फ्यू जैसे हालात के दौरान भी डॉक्टरों के पास ऐसे मरीज आते रहे हैं. डॉक्टर अपनी स्वेच्छा से मरीजों की जान बचाने के लिए खुद की जेब से पैसे देकर मरीजों को बचाने में जुटे हैं.
कश्मीर में शेर ए कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में की दुर्घटना और आपातकालीन सेवा विंग | फोटो साभार : प्रवीण जैन/ दिप्रिंट
शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के एक वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर ने दिप्रिंट को बताया कि ‘हम में से कुछ ने पैसे इकट्ठा करके एक आकस्मिक निधि बनाई है.’
‘सभी सिर में चोट के मामले हमारे पास आते हैं. चूंकि परिवार वालों से संवाद स्थापित नहीं हो पा रहा है ऐसे में हम एक भी व्यक्ति को मरने नहीं दे सकते.
एक अन्य डॉक्टर के अनुसार 5 अगस्त के बाद से एसकेआईएमएस में डॉक्टरों की उपस्थिति 90 प्रतिशत से अधिक रही है. वह भी तब जब अनुच्छेद 370 के ख़त्म होने के बाद आवाजाही काफी हद तक प्रतिबंधित थी.
एक दूसरे डॉक्टर ने कहा, ‘हममें से कुछ लोग रास्ते में पथराव के बीच फंस जाते थे, लेकिन फिर भी हम अस्पताल आते रहे.’
इसी तरह की कहानियां श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल, जोकि श्रीनगर का बड़ा अस्पताल है, से आ रही हैं. अस्पताल के क्रिटिकल केयर संभाग के एक डॉक्टर उन डॉक्टरों के बारे में बताते है, जिन्हें गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीज़ों से मिलने उनके घर जाना पड़ा जो बंदिशों की वजह से अस्पताल नहीं आ सकते थे. एक डॉक्टर कहते हैं कि ‘हम में से कई अपनी ड्यूटी से भी आगे बढ़ कर अपने मरीज़ों का ख्याल रखते हैं.’
बढ़ा हुआ तनाव
श्रीनगर के सरकारी अस्पतालों का कहना है कि संघर्षरत इलाके में काम से उपजे तनाव ने उन पर गहरा असर छोड़ा है. एसएमएचएस के एक दूसरे डॉक्टर कहते हैं ‘2016 के बाद उपजे तनाव के बाद ( जब हिज़बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी मारे गए थे) हमारा अस्पताल कम उम्र के पेलेट से घायल मरीज़ों से भर गया था. डॉक्टर होने के नाते हमे इसकी आदत डालनी पड़ती है पर कहीं न कहीं इसका आपके दिलो-दिमाग पर असर होता है.’
कई डॉक्टरों का कहना है कि उनको लगता है कि इससे निपटने के लिए उनकी काउंसलिंग हो तो अच्छा रहेगा. एक डॉक्टर का कहना था कि ‘ये बेहद तनावपूर्ण होता है और मैं जानता हूं कि मेरे कुछ साथी डॉक्टर एंटी एंग्ज़ाइटी (तनाव कम करने वाली) दवाई लेते हैं.’
एक अन्य डॉक्टर ने बताया कि कैसे वे डर गई थी जिस रात फोन और इंटरनेट काट दिया गया था. वे बताती है ‘मैं रात की शिफ्ट में काम कर रही थी जब मेरे सहयोगी ने कहा कि कुछ खाने-पीने के सामान का इंतज़ाम कर लो, कल कुछ दिक्कत हो सकती है.’
‘मैंने घर पर बात करने की कोशिश की पर लाइन नहीं कनेक्ट हुई. मैने इंटरनेट समाचार के लिए चालू किया पर वो नहीं चला. मुझे पता ही नहीं था कि मेरे आसपास क्या हो रहा है. ‘ उन्होंने बताया कि ‘तनाव को कम करने के लिए मैने एक गोली ले ली.’
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