नई दिल्ली: तेज हवाएं, एक दूसरे के समानांतर केबल जो आपस में उलझ सकती थी, जमीन से 400 फीट ऊपर लटकी हुई अस्थिर केबल कारें और एक संकरी खाई. ये कुछ कारण थे जिनकी वजह से झारखंड के देवघर स्थित त्रिकूट पहाड़ियों पर चलाया गया बचाव अभियान ‘बहुत अधिक चुनौतीपूर्ण’ मिशन के रूप में बदल गया. इसमें शामिल अधिकारियों के अनुसार, इस पूरे मिशन को अंजाम देने में 44 घंटे से भी अधिक समय लगा.
इससे पहले, रविवार दोपहर करीब साढ़े तीन बजे के आसपास रोपवे में खराबी आने के बाद 20 केबल कारें बीच हवा में रुक गईं, जिससे 76 से अधिक लोग उनमें फंस गए. इस हादसे में अलग-अलग घटनाओं के दौरान तीन लोगों की मौत हो गई – एक की मौत तब हुई जब एक ट्रॉली जमीन पर गिर गई और दो बचाव अभियान के दौरान मारे गए.
रविवार को, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फ़ोर्स – एनडीआरएफ) और स्थानीय प्रशासन ने स्थानीय लोगों और गाइडों की मदद से 28 लोगों को उन आठ ट्रॉलियों से मानवीय हस्तक्षेप के द्वारा बचा लिया जो कम ऊंचाई पर थे. लेकिन अन्य लोग 12 ट्रॉलियों में फंसे रहे.
इसके लिए एक बड़े ऑपरेशन की आवश्यकता हुई जिसमें भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के पांच हेलिकॉप्टर – दो एमआई -17 वी-5, एक एमआई -17, एक एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) और एक चीता हेलिकॉप्टर – शामिल थे, जिन्होंने आईएएफ के अलावा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), एनडीआरएफ, सेना और राज्य बलों के जवान 200 से अधिक कर्मियों की टीम के साथ 26 घंटे से अधिक समय तक उड़ान भरी.
सोमवार की सुबह से शुरू किये गए इस अभियान में उस दिन सात केबल कारों से दिन भर में 34 और लोगों को बचाया गया.
मंगलवार को शेष पांच केबल कारों से 13 और लोगों को बचा लिया गया और यह बचाव अभियान शाम 4 बजे तक समाप्त हो गया.
इस ऑपरेशन का नेतृत्व करने वाले एनडीआरएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह एक बहुत ही जटिल ऑपरेशन था. हालांकि, कुछ ट्रालियां 250-300 फीट पर लटकी थी, पर कुछ 400 फीट पर बोल्डर, चट्टानों के बीच एक गार्ज – जो एक संकरी घाटी है – में फंसी थीं. जमीन के रास्ते उन तक पहुंचना नामुमकिन था और इसीलिए वायुसेना के हेलीकॉप्टरों की बुलाना पड़ा.’
इस अधिकारी ने कहा, ‘हमने दो-तरफा दृष्टिकोण अपनाया . इनमें से एक वर्टिकल था – हेलिकॉप्टर का उपयोग करके ऊपर से बचाव कार्य – और दूसरा जमीन के रास्ते से हॉरिजॉन्टल (क्षैतिज) तरीके से. लेकिन हवा की रफ्तार इतनी तेज थी कि इसकी वजह से ट्रॉली से निकाले जा रहे लोग काफी तेजी के साथ हवा में झूल जा रहे थे.’
आईटीबीपी के प्रवक्ता विवेक कुमार पांडे ने दिप्रिंट को बताया कि इस सारी प्रक्रिया के दौरान न तो हेलिकॉप्टर और न ही ट्रॉलियां स्थिर रह पा रहीं थीं.
उन्होंने कहा, ‘लोग भी काफी डरे हुए थे, क्योंकि जो कोई भी ट्रॉली से बाहर निकला वह बुरी तरह हवा में झूल रहा था और उसके केबल तारों से टकराने और उलझने का डर था, जो इस बचाव कार्य में एक बड़ी बाधा और चुनौती थी.’
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‘एक चुनौतीपूर्ण काम’
भारतीय वायु सेना (आईएएफ) द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि बचाव दल में आईएएफ के पांच गरुड़ कमांडो शामिल थे, जिनके जिम्मे हेलीकॉप्टर की विंच केबल से जुड़े रहते हुए फंसी हुई ट्रॉलियों पर चढ़ने का ‘कठिन काम’ था. बाहर की तरफ से ट्रॉलियों तक पहुंचने के बाद उन्हें प्रत्येक बचे हुए व्यक्ति को अलग-अलग से विंच केबल बांधना था और फिर उन्हें ऊपर मंडराते हुए हेलीकॉप्टर में ले जाना था.‘
छोटे बच्चों को तो गरुड़ कमांडों स्वयं हेलीकॉप्टर तक ले गए. पहाड़ी इलाकों में तेज हवाओं वाली स्थिति में हेलीकॉप्टर चालक दल को भी अपनी तरफ से चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जहां उन्हें लगभग बिना किसी विज़ुअल रिफरेन्स के स्थिर रूप से मंडराते रहना था.
इसमें कहा गया है, ‘चालक दल अपना काम करने के लिए एक ट्रॉली से दूसरी ट्रॉली में गया, जो चालक दल के लिए भी उतना ही जोखिम भरा था जितना कि इस दुर्घटना में बचे लोगों के लिए.’
बयान में कहा गया है कि दो दिनों तक चले इस ऑपरेशन में दो दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं भी हुईं, जहां सुरक्षा बलों के द्वारा अपने सबसे बेहतरीन प्रयासों के बावजूद, ‘इस बचाव अभियान की स्वाभाविक रूप से कठिन प्रकृति के कारण सभी लोगों को सुरक्षित रूप से नहीं बचाया जा सका’.
‘लंबी और मुश्किल रातें’
रविवार और सोमवार की रातों के दौरान, सुरक्षा कर्मी एक दो फुट चौड़े प्लांक (तख्ते) – जिसे रोपवे कंपनी द्वारा ‘रखरखाव ट्रॉली’ के रूप में इस्तेमाल किया जाता था – पर चढ़ कर फंसे हुए लोगों के पास यह आश्वासन देने के लिए पहुंचे कि उन्हें वहां से सुरक्षित रूप से निकाला जाएगा. साथ ही खाने के पैकेट और पानी की बोतलें भी ट्रॉलियों के अंदर फेंकी गईं.
देवघर के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह प्लांक एक समानांतर रोपवे पर था, और इसके और फंसे हुए ट्रॉलियों के बीच कम-से-कम 20 मीटर की दूरी थी.’
मगर, यह प्लांक उन कुछ ट्रॉलियों तक नहीं पहुंच पा रहा था जो आगे और अधिक ऊंचाई पर अटकी हुई थीं. भजंत्री में कहा, ‘यह लगभग 770 मीटर का एक लंबा रोपवे है. हालांकि कुछ ट्रॉलियां शुरुआती बिंदु के पास थीं और उन तक रखरखाव ट्रॉली की मदद से पहुंचा जा सकता था, मगर अन्य रोपवे के अंतिम बिंदु की ओर कुछ अधिक दूरी पर थे, – और चूंकि यह एक खड़ी चट्टान थी, इसलिए वहां तक नहीं पंहुचा जा सकता था.’
उन्होंने कहा कि पूरी रात लोगों से शांत रहने की घोषणाएं की जा रही थीं.
उन्होंने बताया कि, ‘पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था की गई थी. हमने यह सुनिश्चित करने के लिए ड्रोन का उपयोग करने की भी कोशिश की कि खाने के पैकेट लोगों तक पहुंचे, लेकिन यह प्रयास बहुत सफल नहीं था, क्योंकि ट्रॉलियां बंद बक्से जैसे हैं और उनमें पैकेट गिराना काम नहीं कर रहा था.‘
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह भी कहा कि हालांकि ऐसा लगता है कि यह दुर्घटना तब हुई जब एक ‘धुरी उखड़ गई और एक चरखी की रस्सी दूसरे पर आ गई’- जिससे झटका लगा, और ट्रॉलियों रुक गईं, मगर घटना के असल कारण की जांच की जा रही है.
उन्होंने कहा, ‘घटना की जांच जारी है. एक बार जब यह पूरी हो जाएगी तो हमें पता चल जाएगा कि क्या और कैसे गलत हुआ.’
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