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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशबहुत खास है भारत की यह ट्राइसोनिक विंड टनल, रॉकेट लॉन्च में कैसे सहायता करेगी

बहुत खास है भारत की यह ट्राइसोनिक विंड टनल, रॉकेट लॉन्च में कैसे सहायता करेगी

सीरीज का दूसरा और तीसरा भाग विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में टीडब्ल्यूटी के बारे में बात करता है जो 3 अलग अलग स्पीड की हवाओं को चला सकता है. इसे टाटा प्रोजेक्ट्स, कनाडा की एयोलोस इंजीनियरिंग कॉर्प और अन्य द्वारा बनाया गया था.

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मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने 1,800 करोड़ रुपये की संयुक्त लागत वाली तीन नई अंतरिक्ष परियोजनाओं की घोषणा की. परियोजनाओं की घोषणा केरल के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में की गई, जहां भारत के पहले चार अंतरिक्ष यात्री उम्मीदवारों के नाम भी घोषित किए गए. घोषित परियोजनाओं में से एक अंतरिक्ष केंद्र के भीतर ही एक नई फेसिलिटी है, जिसे ट्राइसोनिक विंड टनल कहा जाता है. दिप्रिंट तीन भाग की श्रृंखला के दूसरे भाग में बता रहा है कि यह फेसिलिटी क्या करेगी.

बेंगलुरु: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने केरल के तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में अपनी तरह की पहली बड़ी ट्राइसोनिक विंड टनल (टीडब्ल्यूटी) का औपचारिक रूप से उद्घाटन किया है, जिसका उपयोग रॉकेट के एयरोडायनमिक्स परीक्षण के लिए किया जाएगा ताकि उनको ज्यादा सक्षम बनाया जा सके.

हैदराबाद में एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल कॉम्प्लेक्स में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के एचडब्ल्यूटी और बेंगलुरु में राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं में 1.2 मीटर टीडब्ल्यूटी के बाद टीडब्ल्यूटी भारत की तीसरी हाइपरसोनिक विंड टनल (एचडब्ल्यूटी) है.

TWT तीन अलग अलग गति वाली हवा के रेंज पर काम करने में सक्षम है: ध्वनि की गति से नीचे (सबसोनिक), ध्वनि की गति से (ट्रांसोनिक), और ध्वनि की गति से ऊपर (हाइपरसोनिक). यह फेसिलिटी एक साल से परीक्षण कर रही है और इसमें सफलताएं मिल रही हैं. इसरो इस फेसिलिटी का उपयोग रॉकेटों को एयरोडायनमिक रूप से बेहतर बनाने और मुख्य रूप से स्केल-डाउन मॉडल का उपयोग करके अंतरिक्ष यान में पुनः प्रवेश करने के लिए करेगा.

यह यूनीक उपकरण इसरो को लॉन्च वाहनों के समग्र परीक्षण और विकास के साथ-साथ वायुमंडल में जलने वाले रि-एंट्री कैप्सूल के लिए लागत कम करने में मदद करेगा.

अमेरिका और फ्रांस के बाद भारत उन तीन देशों में से एक है जहां विंड टनल है जो ध्वनि की गति से भी अधिक गति पैदा कर सकती है.

विंड टनल क्या हैं?

विंड टनल का उपयोग एयरफ्लो प्रॉपर्टीज़ और एयरोडायनमिक फोर्स, तापमान और दबाव भिन्नता, टेस्ट की जा रही वस्तु की संरचनात्मक स्थिरता आदि का परीक्षण करने के लिए किया जाता है. इनका उपयोग मुख्य रूप से उन वीकल का परीक्षण करने के लिए किया जाता है जो उड़ते हैं, जैसे विमान और रॉकेट, लेकिन कारों और ट्रकों जैसे सड़कों पर उच्च गति वाले वाहनों का भी परीक्षण करने के लिए उपयोग किया जाता है.

इनका उपयोग हवा में हिलने वाली इमारतों और पुलों का परीक्षण करने के लिए भी किया जाता है. इन टनल्स के भीतर हवा बिल्कुल धीरे से लेकर हल्के झोंकों और ध्वनि की गति से कई गुना अधिक (हाइपरसोनिक) तक की गति से जा सकती है.

ये बेलनाकार विंड टनल उत्पन्न हवा के वेग और वीकल के आकार के आधार पर विभिन्न आकारों में आती हैं.

टनल की लंबाई 160 मीटर और व्यास 5.4 मीटर है. इसे ट्राइसोनिक कहा जाता है, क्योंकि इसमें ध्वनि के संबंध में तीन गति सेटिंग्स हैं: ध्वनि की गति से नीचे, ध्वनि की गति पर, और ध्वनि की गति से ऊपर.

फोटो: इसरो

यह ध्वनि की गति (1360 मीटर प्रति सेकंड) से चार गुना की अधिकतम हवा की गति की स्थिति तक पहुंच सकता है, जबकि न्यूनतम गति ध्वनि की गति से 0.2 गुना (68 मीटर प्रति सेकंड) तक पहुंच सकती है. इसमें हवा के विभिन्न वेग के लिए अलग-अलग सेक्शन हैं.

विंड टनल का निर्माण टाटा प्रोजेक्ट्स द्वारा कनाडा में एयोलोस इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन के साथ मिलकर किया गया था. कई इंडस्ट्री प्लेयर्स और छोटे स्टार्ट-अप्स जैसे वालचंदनगर इंडस्ट्रीज (पुणे), समिट्स हाइग्रोनिक्स (कोयंबटूर), एकॉस्टिक इंडिया (त्रिची), हाइड्रोकेयर फ्लूइड पावर सिस्टम्स (बेंगलुरु), आर्टसन इंजीनियरिंग (नासिक), सीमेंस एनर्जी (अहमदाबाद), और अन्य ने भी ने भी इसके घटकों के निर्माण में भाग लिया.

वीएसएससी के बारे में

टीडब्ल्यूटी वीएसएससी के परिसर में स्थित है, जो इसरो के विभिन्न अनुसंधान और परीक्षण केंद्रों में से एक है. यह केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित है. इसका मुख्य परिसर थुम्बा (तिरुवनंतपुरम के भीतर तटीय क्षेत्र) में स्थित है, और इसे पहले थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) के रूप में जाना जाता था.

थुम्बा की भूमध्य रेखा से निकटता ने इसे भारत के पहले लॉन्च स्टेशन के लिए पसंदीदा बना दिया, और इसका उपयोग 1960 के दशक से साउंडिंग रॉकेट (सबऑर्बिटल) को उड़ाने के लिए किया जाता था.

टीईआरएलएस को 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा संयुक्त राष्ट्र को समर्पित किया गया था, और यह दशकों से कई देशों के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों का स्वागत करने वाला घर रहा है. 1970 से 1990 के दशक के दौरान यहां से 1,000 से अधिक यूएसएसआर वेदर रॉकेट लॉन्च किए गए थे.

अब-वीएसएससी इसरो की सबसे बड़ी फेसिलिटी में से एक है, और एक संपूर्ण फेसिलिटी है जो इसरो के सभी रॉकेट्स के विकास पर काम करती है. अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला, जो वायुमंडल की परतों पर शोध करती है, वह भी वीएसएससी के परिसर में स्थित है.

वीएसएससी के पास अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों में भी फेसिलिटीज़ हैं. वलियामाला एक इंटीग्रेशन फेसिलिटी है जबकि वट्टियूरकावु में मटीरिटल डेवलेपमेंट की सुविधा है. अलुवा ठोस प्रणोदक ईंधन के उत्पादन का केंद्र है.

वर्तमान इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ 2022 तक वीएसएससी के पूर्व निदेशक थे. केंद्र का नेतृत्व वर्तमान में डॉ. एस. उन्नीकृष्णन नायर कर रहे हैं, जो पहले बेंगलुरु में मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र के निदेशक थे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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