नई दिल्ली: पांच साल की प्रांशी खतूरिया छत की ओर देख रही हैं और अपने बांहों से बड़े दिखने वाले इंजेक्शन के लगते ही अपनी आंखें बंद कर लेती हैं. लेकिन वह डर नहीं रहीं. दिप्रिंट को उन्होंने बताया, ‘मुझे इंजेक्शन से डर लगता है, लेकिन कोविड मुझे और अधिक डराता है. मम्मा ने कहा कि यह मुझे कोविड से बचाएगा, तो मैंने कहा ठीक है.’
प्रांशी 2-6 वर्ष आयु वर्ग के 175 बच्चों में से एक हैं, जो स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन का निर्माण करने वाली हैदराबाद स्थित फार्मा कंपनी भारत बायोटेक द्वारा आयोजित किए जा रहे कोवैक्सीन परीक्षणों के लिए वॉलंटियर कर रही हैं. प्रांशी की मां प्रिया खतूरिया का कहना है कि अपनी बहुत कम उम्र के बावजूद उसे पूरी तरह से समझ मे आ रहा है कि क्या हो रहा है.
प्रिया ने कहा, ‘वह जानती है कि एक बीमारी चारों तरफ फैली है यही वजह है कि स्कूलों बंद हैं और उसे अपने कंप्यूटर पर घर पर पढ़ाई करनी पड़ रही है. बच्चों को अपने परिवेश को लेकर मिली-जुली भावनाएं हैं. यहां तक कि उसे ट्रायल के लिए लाने से पहले, मैंने यह सुनिश्चित किया कि उसे इसके बारे में अच्छे से पता है. अगर मैंने उसे अंधेरे में रखा होता तो वह ज्यादा घबराहट होती.’
पूरे देश में कोवैक्सीन की इम्यूनोजेनिसिटी के परीक्षण के लिए सात स्थानों पर मल्टी-सेंट्रिक स्टडी चल रही है. ये स्था हैं- एम्स दिल्ली; ईएसआई अस्पताल, बसीदारपुर (दिल्ली); एम्स पटना; कानपुर में प्रखर अस्पताल; मैसूर मेडिकल कॉलेज और मैसूर में अनुसंधान संस्थान; हैदराबाद में प्रणाम अस्पताल; और नागपुर में चिकित्सा विज्ञान संस्थान.
इस अध्ययन में 552 स्वस्थ बच्चों पर ट्रायल किया जाएगा, जो तीन आयु वर्ग – 2-6 वर्ष, 6-12 वर्ष और 12-18 वर्ष में विभाजित होंगे.
माता पिता के लिए, अपने बच्चों को इन परीक्षणों में भाग लेने के लिए लाने के पीछे कई कारण हैं, इनमें सबसे बड़ा कारण है आसानी से टीकाकरण.
‘मैंने कोवैक्सीन परीक्षणों में अपने दोनों बच्चों को एनरोल किया क्योंकि तीसरी लहर आने वाली हैं और लोगों का कहना है कि यह बड़े स्तर पर प्रभावित करेगा. अपने बच्चे का टीकाकरण करवाना उसके लिए वायरस से बचाव है. 12 साल के बच्चों को एमआरएनए टीके बहुत से देशों में दिए गए हैं और सुरक्षित पाए गए हैं.
अपनी छह साल की बेटी कनक के साथ आए कपिल नेमा ने कहा, ‘उनकी तुलना में कोवैक्सीन का पारंपरिक फॉर्मूला ज्यादा सुरक्षित है. नीमा का 12 साल का बेटा कार्तिक के ऊपर भी ट्रायल किया जा रहा है.’
एक अन्य माता-पिता, जिनकी पांच साल की बेटी परीक्षण का हिस्सा है, ने कहा, ‘कोवैक्सीन पहले से ही एक बड़ी आबादी को दिया जा चुका है, इसलिए मुझे विश्वास है कि यह मेरे बच्चे के लिए भी सुरक्षित होगा. लेकिन दूसरी लहर आने के बाद वैक्सीनेशन के लिए काफी दौड़-भाग मची हुई थी. मैं अपने बच्चे के लिए वैक्सीन स्लॉट बुक कराने के लिए इधर-उधर के चक्कर नहीं काटना चाहती. मुझे लगता है कि यह एक बेहतर तरीका है जिससे मैं अपने बच्चे को टीका लगवा के उसे सुरक्षित कर सकती हूं.’
सहमति और पात्रता
जहां एक तरफ ऐसी बातें की जा रही हैं कि तीसरी लहर बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगी. ऐसे में अधिकतर देश में कम उम्र की आबादी के वैक्सीनेशन के लिए तेज़ी से काम कर रहे हैं. हालांकि, परीक्षणों ने एक नैतिक दुविधा को बढ़ा दिया है क्योंकि विशेष रूप से सबसे कम उम्र के बच्चों से टेस्टिंग के लिए सहमति प्राप्त करना मुश्किल है.
एम्स दिल्ली में कोवैक्सीन परीक्षणों की देखरेख कर रहे डॉ संजय राय का कहना है कि उन्होंने सभी आयु वर्ग के लिए माता-पिता की सहमति ले ली है, लेकिन 12 और उससे अधिक आयु के बच्चों से भी व्यक्तिगत सहमति ली जा रही है.
कार्तिक नेमा ने दिप्रिंट को बताया कि ट्रायल के लिए एनरोल होने से पहले उसने सब कुछ समझ लिया था और उसके माता-पिता ने भी उसे सारी प्रक्रिया समझा दी थी. उनके पिता कपिल ने कोवैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षणों में भाग लिया था.
उन्होंने कहा, ‘मैं परीक्षणों में भाग लेने के लिए उत्साहित था क्योंकि दुखी होने की तुलना में सुरक्षित होना ज्यादा ठीक है. मुझे खुशी है कि मुझे वैक्सीन मिल गया है, और वॉलंटियर करके, मुझे ऐसा लगता है कि मैं देश के लिए भी कुछ करने में लायक हूं. हालांकि, मैं अपने दोस्तों के साथ लंबे समय तक खेलने के लिए इंतजार नहीं कर सकता. मुझे इसकी कमी महसूस होती है.’
चूंकि इन परीक्षणों के जरिए कोवैक्सीन द्वारा इम्यून रिस्पॉन्स को ट्रिगर करने की क्षमता के बारे में पता किया जा रहा है न कि यह कि यह कोरोनावायरस के खिलाफ काम कितने प्रभावी तरीके से काम करेगा, ऐसे में सभी वॉलंटियर्स को आरटीपीसीआर और एंटी बॉडी टेस्ट में निगेटिव पाए जाने के बाद वैक्सीन दी जा रही है.
प्रिया खतूरिया, जिनकी बेटी एम्स दिल्ली में ट्रायल किए जाने वाले बच्चों के समूह का हिस्सा है, ने कहा कि इस प्रक्रिया में हॉस्पिटल माता-पिता के प्रति काफी सपोर्टिव रहा.
उन्होने कहा, ‘वे नियमित रूप से हमें फोन करके बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी लेते हैं. यहां तक कि एनरोल किए जाने के पहले हमें इससे जुड़े खतरों के बारे में बताया गया और एक लंबे स्क्रीनिंग प्रोसेस के बाद बच्चों को इस ट्रायल के लिए स्वीकार किया गया. हमें बताया गया है कि यह एक नौ महीने की लंबी प्रक्रिया है जिसमें बच्चे के स्वास्थ्य पर नजर रखी जाएगी, और हमें कहा गया कि इस दौरान किसी भी प्रकार के साइड-इफेक्ट का या ली गई किसी अन्य दवा के बारे में रिकॉर्ड रखना होगा. किसी भी दुष्प्रभाव या किसी अंय दवाओं है कि हमारे बच्चों को इस अवधि में ले का एक रिकॉर्ड रखने के लिए कहा गया है.’
ट्रायल में हिस्सा लेने वाले बच्चों ने बताया कि इसके लिए उन्हें 1000 रुपये दिए जाते हैं इसके अलावा कोई और मौद्रिक सहायता नहीं दी जाती.
डॉ राय ने कहा कि चूंकि विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चे परीक्षण में भाग ले रहे हैं, इसलिए इसमें ‘कोई अतिरिक्त मौद्रिक प्रोत्साहन शामिल नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘जो लोग मीडिया में हमारे विज्ञापन को देखते हैं वे अपने बच्चे को लेकर वॉलंटियर करने के लिए आगे आते हैं. वॉलंटियर करने वाले लोग सिर्फ एक ही सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से नहीं हैं.
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‘बच्चों के लिए सुरक्षित है टीका’
एम्स के सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन में प्रोफेसर डॉ राय ने कहा कि बच्चों को दी जा रही वैक्सीन की डोज वही है जो कि वयस्कों को दी गई थी. अभी तक उन्हें सुरक्षा संबंधी कोई चिंता नहीं हुई है.
‘हमें रिक्रूटमेंट में किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा सारा काम समय रहते ही हो गया. माता-पिता हम पर भरोसा कर रहे हैं और खुशी से अपने बच्चों को वॉलंटियर करवा रहे हैं.
‘टीके का सफलतापूर्वक वयस्कों पर परीक्षण किया गया है और बच्चों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित रहने की संभावना है. गौरतलब है कि, दुनिया में ज्यादातर टीकों को केवल छोटे बच्चों को दिया गया है. हम बच्चों पर परीक्षण करते समय आईसीएमआर के नैतिक दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं, और उन्हें वही खुराक दे रहे हैं जो हम वयस्कों को देते हैं.
जब उनसे पूछा गया कि क्या बच्चों को ज्यादा खतरा होने की संभावना है तो उन्होंने कहा, ‘सामान्य रूप से कोवैक्सीन का कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं है. इसके अलावा, बच्चों का उपयोग टीकाकरण के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है. हमने अभी तक कोई भी गंभीर साइड इफेक्ट नहीं देखा है, केवल सामान्य बुखार जो कि वैक्सीनेशन के बाद एक सामान्य बात है.
हालांकि, शोधकर्ताओं ने बच्चों पर वैक्सीन के परीक्षण को लेकर कुछ पूर्वाग्रह हैं क्योंकि उनकी इम्युनिटी का स्तर अलग हो सकता है और इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि यह पूरी तरह से सुरक्षित है.
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अन्य देशों में परीक्षण
अन्य देशों में भी फाइजर और मॉडर्ना ( 6 महीने की उम्र के बच्चों पर) द्वारा बच्चों पर परीक्षण किए गए हैं. भारत में ज़ाइडस कैडिला ने बच्चों पर परीक्षण किया है.
एस्ट्राजेनेका द्वारा परीक्षण को अप्रैल में रोक दिया गया था, जबकि भारत ने बच्चों पर नोवावैक्स को इसकी कोवोवैक्स वैक्सीन के परीक्षण को मना कर दिया था क्योंकि देश में इसके फार्मूले को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है.
पूर्वाग्रहों के बावजूद, यह माना जाता है कि कोविड-पूर्व जैसी स्थितियों को वापस लाने और स्कूल व शैक्षणिक संस्थानों को फिर से खोलने में टीके काफी महत्तवपूर्ण साबित हो सकते हैं.
अमेरिका में, मॉडर्ना और फाइजर के टीकों को 12-15 साल की आयु के बच्चों पर उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई है. फाइजर को संयुक्त अरब अमीरात और कनाडा में इस्तेमाल के लिए भी मंजूरी दी गई थी, जबकि यूरोपीय आयोग ने 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों पर इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
फाइजर ने 2014 में बाल चिकित्सा केंद्र फॉर एक्सीलेंस का गठन किया था और नैदानिक परीक्षणों को बच्चों के लिए सुरक्षित बनाने के लिए विभिन्न हितधारकों द्वारा प्रदान की गई अंतर्दृष्टि का उपयोग करके संयुक्त राज्य अमेरिका में 160 अस्पतालों के साथ भागीदारी की थी.
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