scorecardresearch
Tuesday, 23 April, 2024
होमदेशइस्लामिक विद्वानों के संगठन ने कहा, 'हर जुल्म सहेंगे, लेकिन देश पर आंच नहीं आने देंगे'

इस्लामिक विद्वानों के संगठन ने कहा, ‘हर जुल्म सहेंगे, लेकिन देश पर आंच नहीं आने देंगे’

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपने राष्ट्रीय शासी निकाय की दो दिवसीय बैठक में भारत में 'मुसलमानों के खिलाफ नफरत और दुश्मनी की बढ़ती घटनाओं' को रोकने के लिए समाधान के तौर पर एक प्रस्ताव भी पारित किया.

Text Size:

लखनऊ: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने शनिवार को जेयूएच की दो दिवसीय राष्ट्रीय शासी निकाय की बैठक को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम हर जुल्म सहेंगे, हर दुख सहेंगे लेकिन अपने देश पर आंच नहीं आने देंगे.’

यह मुस्लिम विद्वानों का एक संगठन है, जो मार्च 2008 में दो समूहों में विभाजित हो गया था. अरशद (मदानी) के ग्रुप को ‘ए’ और महमूद के ग्रुप को ‘एम’ से जाना जाता है.

‘पूजा स्थल अधिनियम’ पर हालिया विवाद, वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के शाही ईदगाह से जुड़े मुकदमों के बीच इस बैठक में देश भर के लगभग 5000 मुस्लिम विद्वानों ने भाग लिया.

मदनी ने कहा, ‘ हम कमजोर हैं, हमें साहस और ताकत की जरूरत है. कमजोरी का मतलब यह नहीं है कि किसी तरह की चापलूसी का सहारा लिया जाए. अगर जमीयत उलेमा ने फैसला किया कि हम अमन और शांति के संदेशवाहक हैं, तो ठीक है. अगर जमीयत उलेमा ने तय किया है कि हमने हर जुल्म, हर दुख को सह लेंगे , लेकिन अपने मुल्क पर आंच नहीं आने देंगे तो जमीयत का यह फैसला किसी कमजोरी के कारण नहीं, बल्कि जमीयत की ताकत की वजह से है. और यह ताकत हमें कुरान और अल्लाह ने दी है.’

जेयुएच ने ‘देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत और दुश्मनी के बढ़ते मामलों’ पर काबू पाने के लिए कुछ उपाय अपनाए जाने की बात कही. इसके लिए शनिवार को एक प्रस्ताव भी पारित किया गया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इस प्रस्ताव में 2017 में विधि आयोग (हेट स्पीच) की 267वीं रिपोर्ट की सिफारिशों के अनुरूप तत्काल कदम उठाए जाने की मांग की. इस रिपोर्ट में हिंसा के लिए उकसाने वाले लोगों को दंडित करने के लिए एक अलग कानून का मसौदा तैयार करने और सभी अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के सामाजिक और आर्थिक अलगाव के उद्देश्य से किसी भी गतिविधि पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास शामिल हैं. प्रस्ताव में हर साल 15 मार्च को इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने का भी आह्वान किया गया.

जेयूएच ने प्रस्ताव में कहा कि उस दिन ‘दुनिया भर में मानवीय गरिमा का संदेश दिया जाएगा और नस्लवाद और धार्मिक भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन के लिए हमारी साझा प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया जाएगा.’

जेयुएच के मुताबिक, इस स्थिति (‘इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरोधी भावनाओं’) को संबोधित करने के लिए जमीयत की ओर से ‘भारतीय मुसलमानों के लिए न्याय एवं अधिकारिता की पहल’ नामक एक स्थायी विभाग की स्थापना की गई है. इसका मुख्य उद्देश्य देश में शांति और न्याय के लिए रणनीति विकसित करना है.

जेयूएच ने कहा कि देश में नफरत और दुश्मनी के बढ़ती घटनाएं लोकतंत्र के समानता और न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है. इन पर काबू पाने के लिए सरकार का इस ओर ध्यान आकर्षित किए जाने की जरूरत है. और साथ ही सभी शांतिप्रिय और देशभक्त ताकतों का आह्वान करना होगा कि वे बदला लेने और भावुक होने के बजाय राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर चरमपंथी और फासीवादी ताकतों से लड़ने के लिए एकजुट हों.


यह भी पढ़ें : मस्जिद की जगह मंदिर की पुनर्स्थापना का तर्क मानने से पहले इन चार बातों को सोच लें


इस्लामी संस्कृति और मुसलमानों के खिलाफ प्रचार चरम पर

जेयूएच ने प्रस्ताव में कहा, ‘मौजूदा समय में नफरत और धार्मिक कट्टरता ने हमारे देश को जकड़ा हुआ है. कपड़े, भोजन, आस्था, त्योहार या भाषा और अर्थव्यवस्था आदि के नाम पर भारतीयों को अपने ही देशवासियों के खिलाफ खड़ा किया जाता है. युवाओं को रचनात्मक कार्यों में लगाने की बजाय, उन्हें देश में कहर बरपाने के लिए एक साधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है’

उन्होंने कहा कि आज सरकार इन विनाशकारी गतिविधियों को सह दे रही है और यह इस दुखद गाथा का सबसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा’ यह है कि इसने बहुसंख्यक समुदाय के लोगों के दिलो-दिमाग में जहर घोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. इसके अलावा, राष्ट्रीय मीडिया सनसनी और लोगों के बीच नफरत फैलाने का एक प्रभावी साधन बन गया है. मुसलमानों, मुस्लिम शासकों और इस्लामी संस्कृति आदि के खिलाफ निराधार प्रचार अपने चरम पर पहुंच चुका है. सरकार नफरत फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के बजाय उन्हें संरक्षण दे रही है.

कुछ धर्म संसदों में दिए गए कथित नफरत भरे भाषणों का जिक्र करते हुए, जेयूएच के महासचिव, नियाज अहमद फारूकी ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा ‘सबसे बड़ा मुद्दा धार्मिक स्थलों का हो गया है. हालांकि यह सबसे बड़ा मुद्दा नहीं है, जैसा इसे (ऐसे में) बनाया जा रहा है.’

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर एक सवाल का जवाब देते हुए फारूकी ने कहा कि मामला विचाराधीन है और इसे (अदालत के बाहर) सड़कों पर नहीं लाया जाना चाहिए.

जेयुएच ने यह भी घोषणा की है कि वह देश भर में एक हजार से ज्यादा सद्भावना संसद (सद्भावना बैठकें) आयोजित करेगा, ताकि कथित तौर पर धर्म संसदों और कुछ संगठनों और लोगों द्वारा फैलाई जा रही नफरत के बढ़ते ज्वार को रोका जा सके.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : चुनावी फायदे के लिए BJP ज्ञानवापी को बाबरी भले ही बना ले, लेकिन ये भारत को काले इतिहास की तरफ ले जाएगा


 

share & View comments