नई दिल्ली: एसबीआई के पूर्व अध्यक्ष प्रतीप चौधरी को इस हफ्ते की शुरुआत में जिस मामले में गिरफ्तार किया गया था, वह 14 साल पहले जैसलमेर के एक होटल प्रोजेक्ट से जुड़ा है.
एसबीआई ने 2007 में गोदावन समूह के एक प्रोजेक्ट—गढ़ रजवाड़ा में—के लिए 24 करोड़ रुपये का कर्ज मंजूर किया था. हालांकि, प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका और गोदावन समूह के मालिक दिलीप सिंह राठौर का अप्रैल 2010 में निधन हो गया, और कंपनी कथित तौर पर लोन डिफाल्टर बन गई.
चौधरी पर आरोप है कि उन्होंने अल्केमिस्ट एसेट रिकंस्ट्रक्शन नामक एक कंपनी के साथ ‘सांठगांठ’ की और ‘भारतीय रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों का उल्लंघन’ करते हुए इस लोन को गलत तरीके से गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया, और कंपनी की 200 करोड़ रुपये की संपत्ति को 25 करोड़ रुपये में बेच दिया.
राठौर के बेटे हरेंद्र सिंह राठौर ने बताया कि चौधरी, जो दो साल के कार्यकाल के बाद सितंबर 2013 में एसबीआई अध्यक्ष के पद से रिटायर हुए, अक्टूबर 2014 में अल्केमिस्ट एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एआरसी) के बोर्ड में शामिल हुए.
2015 में दर्ज प्राथमिकी के बाद इस मामले में राजस्थान पुलिस की तरफ से यह कहते हुए क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई थी कि कुछ व्यक्तियों के बीच एक ‘सिविल मामला’ था, और चौधरी के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनाया गया.
हालांकि, गोदावन समूह के मौजूदा प्रमोटर हरेंद्र राठौर की तरफ से 2016 में दायर एक प्रोटेस्ट पिटीशन—जिसमें उन्होंने इस मामले में पुलिस की कार्रवाई और उसकी जांच को चुनौती दी—पर एक स्थानीय अदालत के आदेश के बाद चौधरी को गत 31 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था.
आदेश 12 फरवरी 2020 को जारी हुआ था, लेकिन कोविड महामारी के कारण इस पर अमल रोक दिया गया था.
कोर्ट के आदेश, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, में कहा गया है कि आरोपी ने संपत्तियों की नीलामी में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया और इसे ‘जल्दबाजी’ में किया गया. इसमें कहा गया है कि पूरी प्रक्रिया एसबीआई के पूर्व अध्यक्ष की ‘साजिश’ प्रतीत होती है, जो कि एल्केमिस्ट और एसबीआई अधिकारियों की साठगांठ से ‘संपत्ति को हासिल करने’ के लिए रची गई.
इसमें आगे कहा गया है कि संपत्तियों की कीमत आरक्षित मूल्य की तुलना में बहुत कम आंकी गई और एसबीआई अधिकारी ने ‘अपने पद का दुरुपयोग किया.’ कोर्ट के मुताबिक, गोदावन समूह को समय से काफी पहले ही एनपीए घोषित कर दिया गया था.
चौधरी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति हथियाने), 409 (लोक सेवक, या बैंकर, व्यापारी या एजेंट द्वारा आपराधिक विश्वासघात) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
इस मामले में सह-आरोपी अल्केमिस्ट एआरसी के आलोक धीर को शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट से ट्रांजिट अग्रिम जमानत मिल गई. उन्हें 9 नवंबर तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. धीर ने दिप्रिंट की फोनकॉल का कोई जवाब नहीं दिया.
चौधरी के खिलाफ आरोपों को खारिज करते हुए उनके वकील विपिन व्यास ने दिप्रिंट से कहा कि संपत्तियों की नीलामी में सारी प्रक्रिया का उचित तरह से पालन किया गया था और इसमें कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है.
एसबीआई की तरफ से जारी एक बयान में भी कहा गया है कि बिक्री में बैंक की नीतियों के अनुरूप निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया गया था.
बैंक ने कहा कि उसने प्रोजेक्ट पूरा किए जाने से लेकर बकाया राशि की वसूली तक के लिए कई कदम उठाए लेकिन उसे वांछित परिणाम नहीं मिले. इसलिए, बैंक के वसूली प्रयासों के हिस्से के तौर पर बकाया राशि वसूली के लिए मार्च 2014 में एआरसी को सौंप दी गई थी.
बयान में आगे कहा गया है कि उधारकर्ता को एआरसी द्वारा दिवाला और दिवालियापन संहिता प्रक्रिया में रखा गया और दिसंबर 2017 में एक एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी) ने संपत्ति का अधिग्रहण कर लिया. इस दौरान भी एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल), दिल्ली के आदेशों के तहत नियत प्रक्रिया का पालन किया गया.
इस बीच, अल्केमिस्ट एआरसी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि डिफॉल्ट करने वाले कर्जदार ऋणदाताओं और कंपनी की तरफ से शुरू की गई ‘वसूली प्रक्रिया को विफल’ करने की कोशिश कर रहे हैं.
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‘साजिश’
एआरसी विशिष्ट वित्तीय संस्थान होते हैं जो बैड लोन के मामले बैंकों से अपने हाथ में ले लेते हैं और ‘ऋण या संबंधित प्रतिभूतियों को खुद हासिल करने का प्रयास करते हैं.’
गोदावन समूह के कर्ज को जून 2010 में एनपीए घोषित कर दिया गया था.
2015 में दर्ज एफआईआर के अनुसार, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, 2010 में ऋण को एक ‘साजिश’ के तहत एनपीए घोषित किया गया था.
हरेंद्र राठौर का प्रतिनिधित्व कर रहे कंवर राज सिंह ने कहा, ‘असल में चौधरी ने कंपनी को एनपीए घोषित किया और फिर यह सुनिश्चित किया कि संपत्ति बहुत कम कीमत पर अल्केमिस्ट को मिल जाए. ऐसा उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद का अपना जीवन सुरक्षित करने के गलत इरादे से किया था.’
एफआईआर में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि चौधरी ने आतिशी कंसल्टेंसी के मालिक देवेंद्र जैन, आलोक धीर के अलावा अन्य लोगों के साथ मिलकर उनकी संपत्तियों को ‘कौडियों के भाव’ बिकवा दिया.
एफआईआर के मुताबिक, 2013 में जैन ने हरेंद्र से मुलाकात की और उसे बताया कि एसबीआई में उसके अच्छे संपर्क हैं और वह उसे कम लागत पर कर्ज निपटाने में मदद कर सकता है.
कंवरराज सिंह ने कहा, ‘2013 में एक अन्य बैठक में हरेंद्र को बताया गया कि एसबीआई से सेवानिवृत्त होने जा रहे चौधरी जल्द ही एल्केमिस्ट में शामिल होंगे. उन्हें बताया गया था कि धीर चेयरमैन के करीबी थे और उस समय (ब्याज सहित) 40 करोड़ रुपये का ऋण 20-25 करोड़ रुपये में निपट जाएगा.
उन्होंने बताया, ‘इस मामले को निपटाने के लिए धीर ने एक शर्त रखी कि वह सालाना 25 प्रतिशत ब्याज के रूप में लेगा और जब संपत्ति अंततः बेची जाएगी तो वह भी एक लाभार्थी होगा.’
उन्होंने कहा, ‘हरेंद्र उस पैसे को ब्याज के रूप में नहीं देना चाहते थे. जैन ने हरेंद्र को एक एग्रीमेंट भी भेजा और उसे इस पर हस्ताक्षर करने और अल्केमिस्ट को देने के लिए कहा, लेकिन शिकायतकर्ता ने इनकार कर दिया.’
सिंह के मुताबिक, कंपनी उन्हें बताती रही कि मामला सुलझा लिया जाएगा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
एफआईआर में कहा गया है कि हरेंद्र की तरफ से एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने से इनकार के बाद, उन्हें 23 दिसंबर 2013 को जैन का एक ईमेल मिला, जिसमें कहा गया था कि बैंक के साथ उनकी कंसल्टेंसी ने उनकी संपत्ति को 25 करोड़ रुपये में एल्केमिस्ट को बेच दिया है.
उन्होंने कहा, ‘संपत्तियों की नीलामी भी नहीं की गई थी. हरेंद्र से कहा गया था कि अगर अल्केमिस्ट की शर्तों पर राजी नहीं हुए तो उन्हें उसके नतीजे भुगतने होंगे और वही हुआ.’
सिंह ने आगे कहा, ‘एक एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी के रूप में अल्केमिस्ट का काम कंपनी को पुनर्जीवित करना था न कि इसे अधिग्रहीत करना. यह औने-पौने दामों पर संपत्तियों को हथियाने की स्पष्ट साजिश नजर आती है.’
राठौड़ ने यह भी आरोप लगाया है कि एसबीआई ने ऐसी संपत्ति भी बेची जिसे गारंटी के तौर पर नहीं रखा गया था.
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‘कोई मामला नहीं बनाया’
2015 में दर्ज कराई गई प्राथमिकी की जांच राजस्थान पुलिस ने की थी.
जांच के बारे में जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, पुलिस ने ‘चौधरी के खिलाफ आरोपों की जांच की’ लेकिन ‘कोई आपराधिक’ मामला नहीं पाया जिसके बाद एक क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई.
अधिकारी ने कहा, ‘हमने मामले की जांच की और पाया कि यह दो पक्षों के बीच एक दीवानी मामला था और कोई आपराधिक मामला नहीं बना. इसलिए, हमने मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है.’
अधिकारी ने कहा, ‘शिकायतकर्ता ने जांच के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया और कहा कि चौधरी के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले की जांच की जानी चाहिए, इसके बाद ही अदालत ने हमें गिरफ्तारी का आदेश दिया.’
चौधरी के वकील विपिन व्यास ने बताया कि शिकायतकर्ता ने 2017 में इसी तरह के आरोपों के साथ जयपुर में दूसरी एफआईआर दर्ज की थी, लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों को विस्तार से सुना और उस एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि हर कार्यवाही कानून के मुताबिक की जाती है और एनसीएलटी को इसकी निगरानी करनी चाहिए और उसकी निगरानी में यह जारी रहना चाहिए.’
व्यास ने कहा, ‘अगर हितों का टकराव होता, या फिर संपत्ति को किसी साजिश के तहत बेचा गया होता, तो क्या एनसीएलटी इस पर गौर नहीं करता? मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है और हमें यकीन है कि यह मामला भी जल्द ही खारिज हो जाएगा.’
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