scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमदेशक्यों उत्तराखंड 20 हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करना और 24 अन्य से निजात पाना चाहता है

क्यों उत्तराखंड 20 हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करना और 24 अन्य से निजात पाना चाहता है

पुनर्जीवित की जाने वाली परियोजनाएं उनमें से हैं जिन्हें एससी ने 2013 की बाढ़ के तुरंत बाद रोक दिया था. केंद्र के साथ सक्रिय रूप से दो अविवादित परियोजनाओं का अनुसरण किया जा रहा है

Text Size:

देहरादून: उत्तराखंड सरकार 21,000 मेगावाट से ज्यादा की संयुक्त क्षमता वाली 20 बिजली परियोजनाओं को फिर से शुरू करने पर विचार कर रही है. उसका मकसद अपने लगभग 1,000 हजार करोड़ रुपए के सालाना बिजली के बिलों में कटौती करने का है.

ये परियोजनाएं उन कुल 44 प्रोजेक्ट्स का हिस्सा हैं जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ के तुरंत बाद रोक लगा दी थी. उस दौरान बाढ़ ने रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी जिलों पर खासा कहर बरपाया था.

2013 की बाढ़ से अत्यधिक प्रभावित भागीरथी और अलकनंदा घाटियों में परियोजनाओं के एनवायरमेंटल और इकोलॉजिकल प्रभावों का अध्ययन करने के लिए एक सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेषज्ञ समिति (EB-I ) का भी गठन किया था.

EB-I ने उसी साल अपनी रिपोर्ट देते हुए दो घाटियों में प्रस्तावित 10 परियोजनाओं को गैर-विवादित रूप से मंजूरी दे दी थी, जबकि 24 अन्य पर प्रतिबंध लगा रहने दिया. अन्य 10 परियोजनाओं को EB-I और एक अन्य विशेषज्ञ समिति से प्रतिकूल टिप्पणी मिली और उन्हें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में स्थित पाया गया.

गंगा और अलकनंदा घाटियों पर प्रस्तावित हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स (HEPs) के मूल्यांकन के लिए 2014 में दूसरी विशेषज्ञ समिति (EB-II) बनाई गई. ईबी-II ने अपनी रिपोर्ट में 24 प्रतिबंधित एचईपी में से 10 के खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की थी.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंधित इन 10 निर्विवाद परियोजनाओं को समिति से हरी झंडी मिलने के बाद उत्तराखंड सरकार ने भी उनकी अनिवार्य मंजूरी के लिए केंद्र से संपर्क किया है. सरकार अन्य 10 परियोजनाओं को पर भी काम शुरू करने का विचार कर रही है, जिन्हें दूसरी विशेषज्ञ समिति से प्रतिकूल टिप्पणी नहीं मिली थी.

उत्तराखंड की बिजली सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम 20 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने पर काम कर रहे हैं… इन्हें केंद्रीय बिजली मंत्रालय की सहमति से मामले-दर-मामले के आधार पर शुरू किया जाएगा. इन परियोजनाओं के लिए 2014 में ईबी-II और अन्य एजेंसियों ने कोई प्रतिकूल टिप्पणी न देते हुए हरी झंडी दिखा दी थी.’

उन्होंने कहा, ‘बाद में, केंद्र ने कार्यान्वयन के लिए परियोजनाओं को सूचीबद्ध किया जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंध हटाने के अधीन है.’

बिजली सचिव ने कहा, सरकार केंद्र के साथ दो गैर-विवादित परियोजनाओं पर सक्रिय रूप से काम कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने जिन 10 परियोजनाओं पर रोक लगाई थी उनमें से तीन निर्माणाधीन हैं. एक प्री-कंस्ट्रक्शन स्टेज पर है और छह अंडर डवलपमेंट हैं. अधिकारियों ने कहा कि अन्य 10 गैर-विवादित परियोजनाएं अंडर डवलपमेंट हैं.

जिन महत्वपूर्ण जल विद्युत परियोजनाओं को फिर से शुरू किया जाना है उनमें 300 मेगावाट बोवाला नंदप्रयाग, 300 मेगावाट अलकनंदा, 320 मेगावाट कोटलीभेल 1बी, 190 मेगावाट तमक लता, 100 मेगावाट नंदप्रयाग लंगासु, 171 मेगावाट लता तपोवन और 128 मेगावाट जेलम तमक शामिल हैं. ये सभी हाइड्रो इलैक्ट्रिक प्रोजेक्ट अलकनंदा और उसकी सहायक नदियों पर बनाए जाएंगे.

पुष्कर सिंह धामी सरकार की नजर पिंडर पर 252 मेगावाट की देवसारी और भागीरथी पर 195 मेगावाट की कोटलीबेल 1ए अन्य परियोजनाएं पर भी है.

24.3 मेगावाट मेलखेत (पिंडर पर), 24.3 मेगावाट भूंदर गंगा (भ्युंदर गंगा पर), 24मेगावाट भिलंगना आईआईए और भिलंगना आईआईबी (भागीरथी पर) सहित 11 परियोजनाएं स्मॉल कैटेगरी यानी 25 मेगावाट से कम क्षमता वाली है.

उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (UJVNL) के प्रबंध निदेशक संदीप सिंघल ने कहा, ‘उत्तराखंड में 70 पनबिजली परियोजनाओं में से 20 पहले से ही काम कर रही हैं जबकि छह निर्माणाधीन है. सुप्रीम कोर्ट ने चालीस परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी और अलकनंदा और भागीरथी घाटियों पर पारिस्थितिक प्रभावों का अध्ययन करने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल का गठन किया था. समिति ने 10 परियोजनाओं को सही ठहराया था और 24 प्रतिबंधित परियोजनाओं की पहचान की थी.’

यूजेवीएनएल पर उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजनाओं की निगरानी का जिम्मा है.

सिंघल ने कहा, ‘चूंकि दूसरे समिति ने पहले प्रतिबंधित 24 परियोजनाओं में से 10 के खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की थी. हमने उन पर से प्रतिबंध हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है. इन 10 परियोजनाओं को बिजली मंत्रालय लागू करना चाहता है, उन्हें मंजूरी देने के लिए एक हलफनामा दायर किया गया है.’


यह भी पढ़ें: सिंगल यूज प्लास्टिक बैन के लिए बना कंट्रोल रूम, सोमवार से उल्लंघन करने वालों पर होगी सख्ती


केंद्र राज्य की पहल के खिलाफ नहीं

केंद्र भी इन 10 परियोजनाओं को मंजूरी देने को तैयार है क्योंकि किसी भी एजेंसी ने इनके खिलाफ कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की थी.

बिजली मंत्रालय ने 24 जनवरी को उत्तराखंड सरकार को लिखा था, ‘जिन हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स के संबंध में EB-II की कोई प्रतिकूल सिफारिश नहीं है या राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) द्वारा रद्द नहीं किया गया है या एससी या किसी अन्य संगठन द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया गया है उनको अनुमति दी जा सकती है. कार्यान्वयन वैधानिक मंजूरी के अनुपालन के अधीन है.’

उसमें आगे लिखा गया,’ 24 एचईपी में से जिन 10 एचईपी की निर्माण गतिविधि पर एससी ने रोक लगा दी थी लेकिन किसी कार्यकारी एजेंसी ने उन पर प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की थी. उन्हें एनेक्सर-II में रखा गया है. अगर अदालत भविष्य में इन पर लगी रोक को हटाने का फैसला करती है तो इन परियोजनाएं पर काम शुरु किया जा सकता है.’

दूसरी ओर सरकार उन दो दर्जन परियोजनाओं को स्थगित कर देगी जिन पर एनजीआरबीए ने भारतीय वन्यजीव संस्थान की प्रतिकूल टिप्पणियों के बाद प्रतिबंध लगा दिया था. ये प्रोजेक्ट भागीरथी इको सेंसिटिव जोन (बीईएसजेड) और अलकनंदा घाटी के कुछ संरक्षित क्षेत्रों में आ रही थीं.

सुंदरम ने कहा, ‘चौबीस परियोजनाओं को स्थगित कर दिया जाएगा क्योंकि ये प्रोजेक्ट या तो बीईएसजेड या अलकनंदा घाटी के संरक्षित क्षेत्रों में आते हैं. उनका पीछे लगे रहने का कोई मतलब नहीं है.’

बिजली सचिव ने यह भी बताया कि कैसे उत्तराखंड ने पिछले 22 सालों में अपनी पनबिजली क्षमता के पांचवें हिस्से से भी कम का दोहन किया है.

सुंदरम ने कहा, ‘जब साल 2000 में राज्य बनाया गया था तो इसकी कुल अनुमानित बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 21,000 मेगावाट थी. हम केवल 4,000 मेगावाट का उपयोग करने में सक्षम हैं. यह कुल क्षमता का 20 प्रतिशत से कम है. अगर इन परियोजनाओं पर काम शुरू हो गया तो यह राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी छलांग साबित होने के साथ-साथ राष्ट्रीय बिजली उत्पादन में एक बड़ा योगदान देंगी.

चूंकि पनबिजली क्षमता का पूरी तरह से दोहन नहीं किया जा रहा है उत्तराखंड अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बाहर से बिजली खरीदता है. अधिकारियों का कहना है कि इससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है.

23 जून को पीएम नरेंद्र मोदी को लिखे अपने पत्र में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उन्हें बताया था कि उत्तराखंड हर साल खुले बाजार से करीब 1,000 करोड़ रुपए की बिजली खरीदता है. धामी ने लिखा, ‘इस खर्च के कारण वित्तीय संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है.’ उन्होंने पीएम से परियोजनाओं के लिए केंद्र की मंजूरी प्राप्त करने में मदद करने का आग्रह किया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: बख़्तियारपुर के नामकरण को लेकर क्यों हो रहा विवाद, ये इतिहास का नहीं बल्कि राजनीति का मसला है


share & View comments