नई दिल्ली: गुलमर्ग और कश्मीर के बाकी हिस्सों में बर्फबारी न होने के कारण पर्यटक और स्थानीय निवासी निराश हैं, मौसम विशेषज्ञों ने इस स्थिति के लिए El Niño और जलवायु परिवर्तन की परस्पर क्रिया को जिम्मेदार ठहराया है, जिसके कारण कश्मीर में तापमान बढ़ गया है और बारिश नहीं हुई है.
अल नीनो, प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान के औसत से अधिक गर्म होने वाली एक वैश्विक मौसम घटना है, जो दुनिया भर में मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती है. भारत में, यह मानसून प्रणाली को प्रभावित करता है, जिससे देश के कुछ हिस्सों में वर्षा कम हो जाती है और अन्य में बाढ़ आ जाती है.
उदाहरण के लिए, उत्तर भारत में पिछले साल सदी का सबसे शुष्क अगस्त देखा गया. ऐसा तब हुआ जब उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण विनाशकारी भूस्खलन हुआ.
यह भी जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ अल नीनो के प्रभाव का परिणाम था.
यही कारण है कि, विशेषज्ञों के अनुसार, हिमालय की पीर पंजाल श्रृंखला में एक लोकप्रिय स्की रिसॉर्ट गुलमर्ग जैसे क्षेत्र इस वर्ष असामान्य रूप से शुष्क रहे हैं. मौसम पोर्टल वर्ल्ड वेदर ऑनलाइन के अनुसार, इस क्षेत्र में आमतौर पर जनवरी में औसतन 130.61 सेमी बर्फबारी होती है, लेकिन इस साल अभी तक कोई बर्फबारी नहीं हुई है.
समाचार एजेंसी एएनआई ने इस महीने की शुरुआत में आईएमडी के मौसम विज्ञान केंद्र, श्रीनगर के निदेशक मुख्तार अहमद के हवाले से कहा, “पूरा दिसंबर और जनवरी का पहला सप्ताह शुष्क रहा है.”
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कश्मीर में इस साल बर्फबारी क्यों नहीं हुई
जनवरी के पहले सप्ताह के दौरान कश्मीर में बर्फबारी कई कारकों के संयोजन का परिणाम है, प्राथमिक कारक पश्चिमी विक्षोभ है, जिसमें तूफ़ान जो भूमध्य सागर के ऊपर से उठते हैं और भारतीय उपमहाद्वीप तक पहुंचने से पहले मध्य पूर्व और ईरान से होते हुए पूर्व की ओर बढ़ते हैं.
जैसे-जैसे ये विक्षोभ हिमालय के पास आते हैं, नम हवा ऊपर की ओर बढ़ती है, और जैसे-जैसे यह ऊपर उठती है, यह ठंडी हो जाती है और संघनित हो जाती है, जिससे बादल बनते हैं. ये बादल अंततः बर्फ के रूप में गिरते हैं, विशेषकर कश्मीर के ऊंचे इलाकों में.
जनवरी की कड़ी सर्दी के महीने के दौरान, कश्मीर में तापमान आमतौर पर हिमांक बिंदु से नीचे होता है, खासकर गुलमर्ग जैसे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में. ये ठंडे तापमान यह सुनिश्चित करते हैं कि वर्षा कम ऊंचाई पर भी बारिश के बजाय बर्फ के रूप में गिरे.
यह पहली बार नहीं है कि कश्मीर में बर्फबारी नहीं हुई है. मौसम विज्ञान केंद्र लेह-लद्दाख द्वारा साझा किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2016 और 1998 भी गुलमर्ग के लिए शुष्क वर्ष थे.
भारत मौसम विज्ञान विभाग की वैज्ञानिक सोमा सेन रॉय ने दिप्रिंट को बताया, “यह निश्चित रूप से असामान्य है लेकिन ऐसा कुछ नहीं जो पहले नहीं हुआ हो. इसका मुख्य कारण कमजोर पश्चिमी विक्षोभ का होना है. इसका मतलब है कि वे अरब सागर से कम नमी लाए और इससे कम वर्षा हुई. इसमें El Niño का लगातार प्रभाव एक और कारण है.”
रॉय ने कहा, हालांकि नमी से भरी हवाएं भूमध्य सागर में उत्पन्न होती हैं, लेकिन अगर पश्चिमी विक्षोभ का आयाम पर्याप्त अधिक है, तो यह अरब सागर से भी नमी खींचती है.
दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) के सीनियर रिसर्च फेलो श्रेष्ठ तायल बताते हैं कि El Niño और ग्लोबल वार्मिंग के कारण संपूर्ण परिसंचरण पैटर्न प्रभावित हुआ है.
तायल ने दिप्रिंट को बताया, ”जिन स्थितियों के कारण भूमध्य सागर में मजबूत पश्चिमी विक्षोभ उत्पन्न होता, वे घटित नहीं हुए.”
तायल ने कहा कि अल नीनो का प्रभाव आमतौर पर कुछ वर्षों तक रहता है, यही कारण है कि पिछले साल भी हिमाचल में कम बर्फबारी हुई थी. आईएमडी, जम्मू-कश्मीर डिवीजन के पूर्व मुख्य अभियंता सोनम लोटस ने कहा कि चिंता की बात यह है कि इस साल सामान्य से अधिक गर्मी है.
मौसम विज्ञानी और आईएमडी, जम्मू-कश्मीर डिवीजन के पूर्व मुख्य अभियंता सोनम लोटस ने दिप्रिंट को बताया, “हवा अब उतनी बर्फीली नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी. लेकिन वर्षा और तापमान में ऐसे उतार-चढ़ाव असामान्य नहीं हैं. हमने उन्हें हिमालय के इतिहास में पहले भी देखा है.”
तायल ने हालांकि कहा कि जलवायु संकट और ग्लोबल वार्मिंग क्षेत्र में मौसम के पैटर्न में बदलाव को बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा, जलवायु संकट मौसम को अनियमित और अप्रत्याशित बना देगा.
उन्होंने कहा, “इसका (इस साल बर्फ की कमी का) मतलब यह नहीं है कि हमें आने वाले वर्षों में कम बर्फबारी देखने को मिलेगी, और ऐसा भी हो सकता है कि अगले साल हमें अत्यधिक बर्फबारी देखने को मिले.”
बर्फबारी कम होने का प्रभाव
बर्फबारी की कमी से गुलमर्ग में पर्यटन पर भारी असर पड़ा है, लेकिन बर्फबारी के बदलते पैटर्न के अन्य परिणाम भी हो सकते हैं, जैसे क्षेत्र में पानी की उपलब्धता पर इसका प्रभाव.
पिघलते ग्लेशियर और बर्फ सिन्धु-गंगा के मैदानी इलाकों में पानी का प्राथमिक स्रोत बनते हैं. उदाहरण के लिए, हिमाचल में पिघली हुई बर्फ कई आड़े-तिरछे झरनों में बदल जाती है.
तायल के मुताबिक बर्फबारी कम होने से इन झरनों पर असर पड़ सकता है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि बर्फबारी का कश्मीर और हिमाचल प्रदेश दोनों में सेब की खेती पर भी असर पड़ता है.
उन्होंने कहा, “सेब का पकना बर्फबारी पर निर्भर करता है. इस साल गुणवत्ता के साथ-साथ पैदावार भी प्रभावित होने की संभावना है.”
(संपादन: अलमिना खातून)
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