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Thursday, 25 April, 2024
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आईआईएमसी में संस्कृत पत्रकारिता का कोर्स करने के लिए क्यों नहीं आ रहे छात्र?

फरवरी 2018 में शुरू हुए इस कोर्स का पहला बैच पूरा हो चुका है. लेकिन एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी यह कोर्स दोबारा शुरू नहीं हो सका है.

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नई दिल्ली: आईआईएमसी यानी भारतीय जनसंचार संस्थान. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाले इस संस्थान में पत्रकारिता के विभिन्न कोर्स पढ़ाए जाते हैं. पिछले साल यहां संस्कृत भाषा में भी डिप्लोमा देने का प्रयास शुरू किया गया था लेकिन एक साल से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद भी यह कोर्स दोबारा शुरू नहीं हो सका है.

लोकसभा में 28 जून को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक सवाल के जवाब में बताया कि आईआईएमसी ने संस्कृत पत्रकारिता में तीन महीने के उच्च प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम को संचालित करने के लिए सितंबर 2017 में लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) संपन्न किया है.

यह कोर्स फरवरी 2018 में शुरू किया गया है. दोनों संस्थानों द्वारा संयुक्त रूप से प्रमाणपत्र दिया जाता है. कोर्स के शुरू होने पर आईआईएमसी के तत्कालिन महानिदेशक केजी सुरेश ने कहा था, ‘संस्कृत मीडिया विकास प्रक्रिया में है और जो लोग इसमें रुचि रखते हैं. पत्रकार बनना चाहते हैं, उन्हें बेहतर तैयारी की ज़रूरत होती है.’


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धरातल पर क्या है 

आईआईएमसी के एकेडमिक कोऑर्डिनेटर राघवेंद्र चावला ने बताया, ‘2018 में इस कोर्स के पहले बैच में 15 छात्रों ने दाखिला लिया था जिसमें 12 छात्रों ने अपना डिप्लोमा पूरा किया. वहीं तीन छात्र अनुपस्थित होने के कारण परीक्षा नहीं दे सके. दाखिले की प्रक्रिया, फीस, आदि लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय में ही कराया जाता है.’

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लालबहादुर संस्कृत विश्वविद्यालय में जहां इस कोर्स की थ्योरेटिकल जानकारी दी जाती है वहीं आईआईएमसी में इसके प्रायोगिक पहलूओं को सीखाया जाता है. जैसे आईआईएमसी के सामुदायिक रेडियो से रेडियो प्रोग्राम संबधित बारीकियां सिखाई जाती है, वहीं टीवी स्टूडियो में छात्रों को एंकरिंग और टेलीविजन संबधित जानकारियां दी जाती हैं.

लाल बहादुर संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत पत्रकारिता डिप्लोमा की कोर्स इंनचार्ज और प्रोफेसर कमला भरद्वाज बताती हैं ‘हमने नोटिफिकेशन निकाला हुआ है. लेकिन इस कोर्स को चलाने के लिए पर्याप्त छात्रों ने अभी तक आवेदन नहीं किया है. इसलिए ये कोर्स फिर से दोबारा शुरू नहीं हो सका है.’ उन्होंने कहा कि साल में दो बार इस कोर्स को शुरू किया जा सकता है. एक फरवरी से अप्रैल और दूसरा अगस्त से अक्टूबर.

‘अगर अगस्त तक दस छात्र भी आवेदन कर देते हैं तो हम इस कोर्स को फिर से शुरू कर देंगे.’

छात्रों के नहीं आने की वजह क्या है

फरवरी 2018 में शुरू हुए इस कोर्स का पहला बैच पूरा हो चुका है. लेकिन एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी यह कोर्स दोबारा शुरू नहीं हो सका है. संस्कृत डिप्लोमा के इस कोर्स के लिए बारहवीं तक संस्कृत पढ़ा होना चाहिए.  कुछ मीडिया जानकारों का मानना है कि आज स्कूल स्तर पर ही संस्कृत की पढ़ाई बहुत कम लोग करते हैं. ज्यादातर संख्या हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं की है. जो कुछ लोग इस विषय की पढ़ाई करते वे संस्कृत में ही स्नातक और परास्नातक कोर्स करते हुए उच्च शिक्षा लेते हैं.

आईआईएमसी से जुड़े एक वरिष्ठ शिक्षक ने बताया, ‘पत्रकारिता जगत में अगर भाषा की बात करें तो ज्यादातर चैनल, अखबार और मीडिया से जुड़े वेब पोर्टल अंग्रेजी और हिंदी में ही है. मीडिया में नौकरी की संभावना सरकारी चैनलों में सीमित है और पूरा जोर प्राइवेट चैनलों पर है. जहां संस्कृत न के बराबर है. उसका पाठक वर्ग भी बाकी भाषाओं की तुलना में बहुत कम है. इसलिए संस्कृत में पत्रकारिता करने की रुचि छात्रों में बन नहीं पा रही है.’


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रोजगार की क्या है संभावनाएं

कमला भरद्वाज ने बताया कि इस कोर्स में दाखिला लिए ज्यादातर छात्रों को नौकरी मिल गई है. कुछ छात्र दूरदर्शन में गए तो वहीं कुछ का प्लेसमेंट ऑल इंडिया रेडियो में हुआ है. बाकियों को अपने-अपने राज्य के रिजनल यूनिट में नौकरी मिली है.

इसके अलावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पिछले दिनों एक नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा था कि अब प्रेस रिलीज हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू के अलावा संस्कृत भाषा में भी जारी करने की पहल किया था. इसके पीछे उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक शिशिर का मानना था कि इससे संस्कृत भाषा को बढ़ावा मिलेगा और संस्कृत के विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन होगा.

वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता के पूर्व संपादक राहुल देव ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘संस्कृत में डिप्लोमा कोर्स करने के बाद करियर के विकल्पों की बात करें तो एक दो पत्रिकाएं हैं जो ऑनलाइन हो गई हैं जहां उनको अगर कोई आर्थिक सहायता मिलती है तो उनको जरूरत पड़ेगी लोगों की. लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात संस्कृत, धर्म, अधयात्म आदि विषयों को भी एक बीट की तरह मीडिया को कवर करना चाहिए.

वे आगे कहते हैं, ‘मैं शायद देश का पहला संपादक था जिसने जनसत्ता अखबार में एक धर्म संवादाता रखा था. मेरी निश्चित राय उस समय भी थी और आज भी है कि धर्म हमारे देश में इतना बड़ा है कि उसका प्रभाव, विस्तार, बारिकियां अगर देखे तो वो बढ़ रहा है. उसके अपने अपराध हैं, राजनीति हैं. उसके मुद्दे समय-समय पर आते रहते हैं. जिन पत्रकारों की रुचि इन विषयों में है और अगर उन्होंने संस्कृत से डिप्लोमा किया है तो उन्हें सहर्ष लिया जाना चाहिए.’

संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने में जुटी मोदी सरकार के कार्यकाल में पत्रकारिता के उच्च शिक्षण संस्थान में शुरू हुए इस कोर्स में छात्रों की अरुचि ने जरूर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है. ऐसे में देखना होगा कि संस्कृत पत्रकारित को आगे जारी रखने के लिए आईआईएमसी प्रशासन किस तरह का कदम उठाता है.

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