शंभू (पंजाब): पंजाब के आंदोलनकारी किसानों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उन्होंने शंभू रेलवे स्टेशन को क्यों अपने प्रमुख विरोध स्थलों में से एक बना रखा है. पंजाब-हरियाणा सीमा पर स्थित ये स्टेशन न केवल इस राज्य बल्कि उत्तरी क्षेत्र के एक बड़े हिस्से के लिए प्रवेश द्वार जैसा है.
भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के हजूरा सिंह ने कहा, ‘हिमाचल प्रदेश, राजस्थान या फिर यहां तक कि जम्मू-कश्मीर जाने वाली किसी भी ट्रेन को पंजाब को पार करने के लिए इसी स्टेशन से गुजरना पड़ता है. अगर मुख्य द्वार बंद हो तो पंजाब देश के बाकी हिस्सों से कटा रहेगा.’
मोदी सरकार द्वारा 26 सितंबर को पारित तीन विवादास्पद कृषि विधेयकों पर विरोध जताने के लिए किसान 1 अक्टूबर से यहां जमे हैं.
उन्होंने कुछ रियायतें भी दी हैं—वे रेल पटरियों से दूर स्टेशन के बाहर चले गए हैं और मालगाड़ियों की आवाजाही के लिए सहमत हो गए हैं. हालांकि, किसानों ने मोदी सरकार द्वारा पारित तीन कृषि विधेयकों को रद्द किए जाने तक यात्री गाड़ियों को गुजरने की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया है.
हजूरा सिंह ने कहा, ‘हमने 1 अक्टूबर को पटरियों को आवागमन ठप कर दिया था जिसे 22 अक्टूबर तक जारी रखा. लेकिन 22 अक्टूबर की शाम सभी 30 किसान संगठनों ने मालगाड़ियां गुजरने देने के लिए रेल ट्रैक खाली करने का फैसला किया. फिर हमने अपने विरोध प्रदर्शन के लिए प्लेटफार्म को चुना. लेकिन 5 नवंबर को केंद्र सरकार को यह दिखाने के लिए अपना आंदोलन स्टेशन के बाहर स्थानांतरित कर लिया कि हम पटरियों को बाधित नहीं कर रहे हैं और वे मालगाड़ियों की आवाजाही फिर शुरू कर सकते हैं. लेकिन हमने यात्री गाड़ियों को गुजरने की इजाजत नहीं दी है.’
ट्रैक खाली लेकिन केंद्र के साथ गतिरोध जारी
हालांकि, 30 किसान संगठनों ने आवश्यक आपूर्ति के लिए मालगाड़ियों की आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए रेलवे ट्रैक से हटने का फैसला किया है, लेकिन केंद्र सरकार ने ट्रेन सेवाएं फिर शुरू करने से इनकार कर दिया है.
रेल मंत्रालय ने शनिवार को एक बयान जारी करके कहा कि मालगाड़ियों का परिचालन तभी शुरू होगा जब सभी ट्रेनों को पंजाब में प्रवेश की अनुमति होगी.
बयान में कहा गया, ‘ट्रेन के टाइप, मार्गों, गंतव्य और कार्गो आदि के रूप में किसी भी पाबंदी को मंजूर किए जाने की संभावना नहीं है क्योंकि इससे व्यापक अनिश्चितता की स्थिति बनने के अलावा रेलवे कर्मियों के जीवन और संपत्ति सुरक्षा को लेकर भी जोखिम है.’
उसी दिन रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट करके कहा, ‘पंजाब सरकार से आग्रह है कि संपूर्ण रेलवे प्रणाली की पूर्ण सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करें और सभी ट्रेनों को पंजाब से होकर आने-जाने दें ताकि माल और यात्री ट्रेनें पंजाब के लोगों को अपनी सेवाएं मुहैया करा सकें.’
Operationally important that all tracks, stations & Railway property are clear for safety of passengers, Railway staff & infrastructure. People of Punjab want to travel for festivals like Chhath Puja, Diwali & Gurupurab.
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) November 7, 2020
पंजाब सरकार ने शुक्रवार को यह घोषणा करते हुए स्थिति साफ करने की कोशिश की कि रेल रोको आंदोलन चलाने वाले सभी 30 किसान संगठनों ने मालगाड़ियों की आवाजाही की अनुमति देने के लिए रेलवे ट्रैक से हटने का फैसला किया है.
किसानों का कहना है कि यात्री ट्रेनों की अनुमति न देने के पीछे एकमात्र कारण यही है कि वह अपनी बात मोदी सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं. भारतीय किसान संघ के रंजीत सिंह ने कहा, ‘हम केवल इसलिए यहां बैठे हैं ताकि इस पर हमारी आवाज सुनी जाए कि तीन कृषि विधेयकों को रद्द करने की जरूरत है. इसके अलावा अपने खेत-खलिहाल छोड़कर और पंजाब के लोगों के हितों को खतरे में डालकर हम यहां क्यों बैठेंगे. जिस क्षण वे इन कानूनों को रद्द कर देंगे, हम अपना विरोध खत्म कर देंगे.’
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तीन विवादास्पद बिल
किसानों का विरोध तीन विवादास्पद कृषि कानून को लेकर है—इनमें से कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020 किसानों को विभिन्न राज्य कानूनों के तहत गठित कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) के बाहर उपज बेचने की अनुमति देता है. मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध अधिनियम, 2020 जहां कांट्रैक्ट खेती की अनुमति देता है, वहीं आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 अनाज, दालों, आलू, प्याज और तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियंत्रित करता है.
किसानों ने कहा कि ये विधयेक निजी कंपनियों को उनकी जमीन पर एकाधिकार की अनुमति देते हैं. बीकेयू (राजेवाल) के चरणजीत सिंह ने सवाल उठाया, ‘हमें अपनी जमीन कॉरपोरेट घरानों को क्यों देनी चाहिए और क्यों उनका गुलाम बनना चाहिए? इन कानूनों के तहत हमारी मंडियां नहीं बचेंगी, निजी कंपनियां हमारी जमीन पर ठेके पर खेती करेंगी और हमें उचित मूल्य भी नहीं मिलेगा जो हमें एमएसपी प्रणाली के तहत मिलता रहा है क्योंकि वे एमएसपी से कम कीमत पर हमारी उपज खरीद लेंगे.’
किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार का यह आश्वासन मात्र कि एमएसपी प्रणाली जारी रहेगी पर्याप्त नहीं है. हजूरा सिंह ने कहा, ‘केंद्र सरकार को यह प्रावधान शामिल करने के लिए नए कानूनों में संशोधन करना चाहिए कि किसानों को अगर एमएसपी का भुगतान नहीं किया जाता है, तो जुर्माना लगना चाहिए. हमारे संरक्षण के लिए बची उपज सरकार को ही खरीदनी चाहिए और निजी कंपनियों द्वारा नहीं खरीदी जानी चाहिए.’
एक तरफ जहां भाजपा ने किसानों के ‘नक्सलवादी ताकतें’ होने का आरोप लगाया है, वहीं किसानों का कहना है कि जब तक कानूनों को रद्द नहीं किया जाता, तब तक उनका शांतिपूर्ण प्रदर्शन जारी रहेगा. अखिल भारतीय किसान संघ के दरबारा सिंह ने कहा, ‘चक्का जाम के दिन भी लोग यह कहते रहे कि विरोध हिंसक हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह विरोध भारत और पाकिस्तान के बंटवारे या पंजाब के विभाजन या 1984 की तरह हिंसक नहीं होगा. हम शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करेंगे और तीनों कानूनों को रद्द किए जाने तक अपना विरोध जारी रखेंगे.’
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