scorecardresearch
Friday, 20 December, 2024
होमदेशकोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में देश के बाकी मुख्यमंत्रियों से पीछे क्यों नज़र आ रहे हैं नीतीश कुमार

कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में देश के बाकी मुख्यमंत्रियों से पीछे क्यों नज़र आ रहे हैं नीतीश कुमार

देश के कई राज्यों के मुख्यमंत्री कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई में अपने घरों से निकलने लगे हैं. ऐसे में बिहार की जनता नीतीश कुमार से सवाल करने लगी है कि वो क्या कर रहे हैं.

Text Size:

पटना: बिहार में कोरोनावायरस की चपेट में आकर मुंगेर के जिस व्यक्ति की मौत 21 मार्च को हुई थी, वह 13 मार्च को कतर से मुंगेर लौटे थे. कोविड-19 के लक्षण आने पर 15 मार्च को जब वे मुंगेर के सरकारी अस्पताल में पहुंचे तो उन्हें वहां से पटना के पीएमसीएच रेफर कर दिया गया था.

लेकिन पीएमसीएच की लचर व्यवस्था को देखकर परिजनों ने उन्हें एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराने का फैसला किया.

नर्सिंग होम में मरीज़ की हालत बिगड़ने लगी तो उन्हें पटना एम्स भेज दिया गया जहां कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट आने के पहले ही उनकी मौत हो गई.

अगले दिन जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि वे कोरोना से संक्रमित थे. मगर अस्पताल प्रबंधन ने डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुपालन के बिना ही परिजनों को शव सौंप दिया.

फिलहाल बिहार में कोविड-19 संक्रमण के पॉजिटव मामलों की संख्या 23 हो गई है और सबसे चिंताजनक बात ये है कि इनमें से 10 मरीज़ ऐसे हैं जो मुंगेर के पहले मरीज से संपर्क में आकर संक्रमित हुए.

राज्य में कोरोना का पहला मामला सामने आने के बाद ही स्वास्थ्य व्यवस्था पर कई तरह के प्रश्न चिन्ह लगने शुरू हो गए थे लेकिन इसके बावजूद न तो कोई कार्रवाई हुआ और न ही सरकार ने इसकी कोई जिम्मेवारी ली.

बिहार में बाहर से आ रहे लोगों की स्क्रीनिंग, उनके जांच की व्यवस्था और सरकार अथवा प्रशासन की गंभीरता, सब सवालों के घेरे में है. क्योंकि मुंगेर के उस पहले मरीज़ जैसे ही अब तक लाखों लोग पिछले कुछ हफ्तों के दौरान बाहर से बिहार आए हैं.

दिल्ली, सूरत, चेन्नई, बैंगलुरू और महाराष्ट्र में लॉकडाउन के दौरान अपने घर जाने के लिए सड़कों पर उमड़ी भीड़ को देखकर कोई भी इसका सहज ही अंदाजा लगा सकता है.

बिहार सरकार की तरफ से 31 मार्च को जारी आंकड़ों के अनुसार अब तक 4,16,031 लोग बाहर से आए हैं. लेकिन उनमें से केवल 5162 लोगों को ही निगरानी में रखा गया है.


यह भी पढ़ें: कोविड 19 से निपटने के लिए मोदी सरकार गवर्नेंस के मोर्चे पर काम करने की जगह आत्म प्रचार में लगी है


सैंपल टेस्ट के मामले में भी बिहार का नंबर देश में सबसे नीचे के राज्यों में है. 31 मार्च तक महज़ 1051 सैंपलों की ही जांच हो सकी है. जबकि बिहार की आबादी की एक तिहाई आबादी वाला राज्य केरल सात हजार से अधिक सैंपल टेस्ट कर चुका है.

सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इन सवालों पर राज्य सरकार के पास कोई जवाब नहीं है, क्योंकि वह पिछले ही साल सुप्रीम कोर्ट में ये बता चुकी है कि हमारे पास जितनी जरुरत है उसकी तुलना में 57 फीसदी डॉक्टर कम हैं और 71 फीसदी नर्सों की कमी है.

कहां हैं ‘सुशासन बाबू’

अब लोग यह पूछने लगे हैं कि ‘सुशासन बाबू’ कहे जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या कर रहे हैं और क्या कह रहे हैं? क्योंकि दूसरे प्रदेशों के मुख्यमंत्री कोरोना की लड़ाई में अपने घरों से बाहर निकल रहे हैं, शिकायतों के निपटारे में ज्यादा एक्टिव लगते हैं और अपने योगदान के कारण खबरों में बने हुए हैं.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद सड़क पर निकल कर सोशल डिस्टैंसिंग के लिए दुकानों के सामने गोला बनाती दिखीं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोनावायरस के कारण उपजे हालात पर एक्शन लेने के कारण सुर्खियों में हैं.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमेत सोरेन ने तो अपने ट्वीटर हैंडल के नाम के साथ ‘घर में रहें-सुरक्षित रहें’ जोड़ लिया है.

चाहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हों या पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह या कोई भी दूसरे अन्य राज्य के मुख्यमंत्री. कोरोना से लड़ाई में सभी अपने-अपने कामों को लेकर चर्चा में हैं.

लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चर्चा कहीं नहीं है. उल्टा उनपर चुप्पी साधने और एक्शन लेने में देरी करने के आरोप लगने लगे हैं.

बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने दिप्रिंट से कहा, ‘बाक़ी मुख्यमंत्रियों की तरह फील्ड में रहना और एक्टिविटी करना तो दूर की बात है, मुख्यमंत्री ने कोरोना को लेकर अभी तक अपने राज्य के नागरिकों को संबोधित तक नहीं किया है. जबकि विपदा के ऐसे मौके पर‌ राज्य की जनता अपने मुखिया पर ही‌ सबसे अधिक भरोसा करती है.’

तेजस्वी आगे कहते हैं, ‘उनकी डबल इंजन की सरकार से ज्यादा एक्टिव हमारी पार्टी है जो सरकारी सिस्टम के समानांतर जमीनी स्तर पर काम कर रही है. आप सोशल मीडिया पर देख सकते हैं.’

‘हमारे पास इस बात का रिकार्ड है कि राज्य के बाहर और अंदर फंसे 35000 से अधिक लोगों की मदद‌ की है. लेकिन उन्होंने क्या किया है? ना तो सरकारी हेल्पलाइन सही से काम कर रहे हैं, ना ही डॉक्टरों के पास सुरक्षा उपकरण हैं. ऐसे में हमारी उनसे गुज़ारिश है कि वे बाक़ी मुख्यमंत्रियों की तरह नहीं भी करें तो कम से कम इतना जरूर करें कि राज्य के फंसे लोगों और इलाज कर रहे डाक्टरों की समस्याओं को सुन लें.’

कोरोना से लड़ाई में नीतीश कुमार की भूमिका पर उठ रहे सवालों पर सत्ताधारी पार्टी जदयू अपने नेता का फ़िर भी बचाव कर रही है.

सरकार के आईपीआरडी मिनिस्टर और ‌जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं, ‘नीतीश‌ कुमार प्रचार करने में भरोसा नहीं करते हैं. काम करने में करते हैं. जो लोग तैयारियों और सरकार की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं कि उन्हें समझना चाहिए कि ये अचानक आयी आपदा है. इससे हर राज्य और देश लड़ रहा है.’

नीरज कुमार आगे कहते हैं, ‘जिन्हें नहीं पता कि नीतीश कुमार ने क्या किया है, उन्हें पता होना चाहिए कि बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है जहां गांवों में क्वारेंटाइन बनाए गए हैं. हम पहले राज्य हैं जिसने मुख्यमंत्री राहत कोष का पैसा कोरोना से लड़ाई में लगाया है. ये सब मुख्यमंत्री की विशिष्ट सोच का नतीज़ा है.’


यह भी पढ़ें: नवीन पटनायक की सूझबूझ और समय से पहले की फूर्ती ने ओडिशा को कोरोनावायरस संक्रमण के प्रकोप से बचाया


नीतीश कुमार का ट्विटर अकाउंट देखने पर मालूम पड़ता है कि 13 मार्च को बिहार में जिस दिन कोरोना का पहला संक्रमित मरीज आया था और उसकी कहीं जांच नहीं हुई थी, उस दिन वे अपने समर्थकों और नेताओं के साथ राज्यसभा के लिए एनडीए गठबंधन के उम्मीदवारों का नामांकन करा रहे थे.

उस दिन तक भारत में कोरोना के 73 पॉजिटिव मामले आ चुके थे. मुख्यमंत्री ने उससे आठ दिन पहले यानी चार मार्च को कोरोनावायरस से बचने और सतर्कता को लेकर आम लोगों के लिए एडवाइजरी भी जारी की थी. लेकिन 13 मार्च को ट्विटर पर जारी उनकी ही तस्वीर में वे इंच भर का भी फासला लिए बिना दूसरे अन्य नेताओं के साथ खड़े दिखते हैं.’

कोरोना की इस लड़ाई में अभी तक नीतीश कुमार की तरफ से बिहार के आम लोगों के लिए जो कुछ मिला है वो सिवाए सोशल मीडिया में एडवाइजरी जारी करने के कुछ नहीं हैं.

हालांकि, राज्य सरकार ने कागजों पर सही मगर गरीब व पीड़ित लोगों के लिए 100 करोड़ रुपए की राहत पैकेज की घोषणा जरूर की है. मगर वह भी दूसरे अन्य राज्य सरकारों की तुलना में काफी कम है.

बात अगर कोरोना से लड़ाई में गंभीरता की हो तो इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि कोरोनावायरस को लेकर 16 मार्च को बिहार विधानसभा में अपने आखिरी स्पीच में उन्होंने कहा था कि कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि उससे सतर्क रहने की है.

उसी दिन विधानसभा में जब कोरोनावायरस के डर से कुछ विधायक मास्क लगाकर पहुंच गए तो सीएम उन्हें डांटने के लहजे में बोले, ‘मास्क लगाकर आप लोग पैनिक मत क्रिएट करिए.’

कुल मिलाकर देखा जाए तो कोरोनावायरस से इस लड़ाई में नीतीश कुमार का योगदान केवल एडवाइजरी जारी करने और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए समीक्षा बैठकें करने तक रह गया है.

जबकि, बिहार में मामले अब लगातार बढ़ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि बाहर से आए हर 10 में से तीन लोगों में संक्रमण का खतरा है. लेकिन लाखों की संख्या में बाहर से आए इन लोगों की जांच के लिए बिहार सरकार के पास ना तो पर्याप्त डॉक्टर हैं और ना ही इंतजाम.

जून 2019 में नीति आयोग ने स्वास्थ्य के मामलों में भारत के राज्यों की जो रैंकिंग बनाई थी, उसमें बिहार निचले पायदान पर था. यहां प्रति एक लाख आदमी पर अस्पताल का एक बेड उपलब्ध है.

इस लॉकडाउन के दौर में प्रेस के पास भी वही जानकारियां हैं जो सरकार और प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है. उन सूचनाओं और घोषणाओं का क्रॉसचेक फिलहाल संभव नहीं है.


यह भी पढ़ें: केजरीवाल के मंत्री की शिकायत के बाद मोदी सरकार ने आईएएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की


नीतीश कुमार के सोशल मीडिया से जो ताजा जानकारी मिलती है, उसके अनुसार उन्होंने 31 मार्च को 1 अणे मार्ग में ‘नेक-संवाद’ के तहत कोरोना संक्रमण, एईएस, बर्ड फ्लू एवं स्वाइन फ्लू के संबंध में समीक्षा बैठक की थी. ऐसी बैठकें और इससे भी उच्चस्तरीय बैठकें वे पिछले कई दिनों से कर रहे हैं.

बकौल बिहार सरकार, कोरोना से निपटने की तैयारियों को लेकर 25 मार्च को ही सभी जिलों को एडवाइजरी जारी कर दी गई थी. तब से मुख्यमंत्री कई बार इन तैयारियों का जायजा ले चुके हैं.

लेकिन बेहद अफसोस की बात है कि इतने दिनों के दौरान जिनमें लाखों लोग लौटकर बिहार आए हैं, हजारों संदिग्ध हैं, और कहा जा रहा है कि लॉकडाउन के दौरान बाहर से आए हर शख्स को 14 दिन क्वारेंटाइन में रखा जाएगा, फिर भी बिहार में कोरोना से इलाज के लिए अभी तक मात्र 886 आइसोलेशन बेड ही तैयार हो पाएं हैं. जबकि इससे अधिक मरीजों की तो सैंपल जांच हो गई है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

share & View comments