मुंबई : हर रोज़ अपनी 12 घंटे की शिप्ट के लिए घर से निकलने से पहले मुंबई पुलिस के 42 वर्षीय असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर (एएसआई) राउत होम्योपैथिक आर्सनिक एल्ब्यूमिन-30 की चार गोलियां लेते हैं. ‘इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए’ एक आयुर्वेदिक काढ़ा लेते हैं और फिर ‘ताक़त के लिए’ व्हे प्रोटीन लेते हैं.
वो अपने लंच के साथ गर्म पानी भी रखते हैं और अपनी जेब में सैनिटाइज़र की एक बोतल तैयार रखते हैं. हालांकि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक उपचार कोविड-19 से बचाते हैं. लेकिन राउत कोई मौक़ा नहीं छोड़ रहे हैं. क्योंकि महाराष्ट्र में पुलिस बल ख़ासकर पुलिस, बुरी तरह कोविड-19 महामारी का शिकार हुई है.
एक जून तक, कोविड-19 से संक्रमित होने वाले महाराष्ट्र पुलिसकर्मियों की कुल संख्या 2,500 से अधिक है और उनमें से लगभग 1,500 मुंबई पुलिस से हैं. महाराष्ट्र पुलिसकर्मियों में कोविड-19 के एक्टिव मामलों की संख्या 1514 है, जिनमें 191 अधिकारी हैं. अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि इन 1514 पुलिसकर्मियों में से 800 मुंबई पुलिस से हैं, और बाक़ी मुख्यत: ठाणे, पुणे, और नासिक ज़िलों से हैं.
अभी तक कुल 27 पुलिसकर्मी कोविड से मारे जा चुके हैं और उनमें से कम से कम 16 मुंबई पुलिस से हैं.
मुंबई में 4,448 और पुलिसकर्मी क्वारंटीन किए जा चुके हैं.
इसके मुक़ाबले, कोविड से सबसे अधिक प्रभावित दो राज्यों- दिल्ली और तमिलनाडु के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, दोनों राज्यों में 450-450 पुलिसकर्मी इनफेक्शन की चपेट में आए. ये दोनों राज्य महाराष्ट्र की तरह कोरोनावायरस संक्रमित पुलिसकर्मियों के सामयिक आंकड़े जारी नहीं करते.
राउत के काम की जगह, नागपाड़ा पुलिस स्टेशन में अकेले 13 पॉज़िटिव मामले हैं. वो सब ठीक हो गए हैं, लेकिन राउत का कहना है कि उन्हें बहुत सावधान रहना पड़ता है. एएसआई कहते हैं कि घर में घुसने से पहले, वो अपने ऊपर सैनिटाइज़र छिड़कते हैं और घर की किसी भी चीज़ को छूने से पहले, सीधे गर्म पानी से नहाते हैं.
मुंबई पुलिस को शुरू में विटामिन सी और डी के सप्लीमेंट्स और कोविड की रोकथाम के लिए हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) की गोलियां दी गईं. लेकिन बाद में मलेरिया की दवा बंद कर दी गई जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि वायरस के खिलाफ लड़ाई में इससे कोई फायदा नहीं होता.
लेकिन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, मोर्चे पर लगे स्वास्थ्यकर्मियों, अर्ध-सैनिक स्टाफ और पुलिसकर्मियों के लिए, जो कोरोनावायरस से संबंधित काम में लगे हैं. एचसीक्यू की सिफारिश करती है. उसने डब्लूएचओ को लिखकर उसके आंकलन पर अपनी असहमति जताई है.
इस बीच महाराष्ट्र, ख़ासकर मुंबई में पुलिस के लिए कोविड-19 का ख़तरा बहुत ही वास्तविक है.
सामने मोर्चे पर घंटों की ड्यूटी, कम से कम सुरक्षा गियर के साथ सबसे अधिक प्रभावित राज्य में कुछ सबसे घने इलाक़ों में रहने की शोचनीय स्थिति और ख़राब फिटनेस ने मिलकर पुलिसकर्मियों को कोविड-19 वायरस के प्रति एक सबसे संवेदनशील ग्रुप बना दिया है और उनके लिए अभी दूर-दूर कोई राहत नहीं है. महाराष्ट्र सरकार ने लॉकडाउन को 30 जून तक बढ़ा दिया है और मुंबई जैसे रेड ज़ोन इलाक़ों में 3 जून से कैलिब्रेटेड तरीक़े से पाबंदियों में ढील देने की घोषणा की है.
रहने के हालात, घंटों की ड्यूटी और फिटनेस
टॉप पुलिस अधिकारियों के अनुसार, महाराष्ट्र पुलिसकर्मियों में पॉज़िटिव मामलों की ऊंची संख्या, आम आबादी में फैली संक्रमण दर का नतीजा है. महाराष्ट्र देश में सबसे अधिक प्रभावित राज्य है. 30 मई तक राज्य में 34,890 एक्टिव केस थे और 2,197 मौतें हो चुकी थीं. भारत के 20 प्रतिशत मामले अकेले मुंबई में हैं
मुंबई पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर (प्रशासन) नवल बजाज ने कहा, ‘ये संख्या दिखाती है कि शहर में क्या चल रहा है.’
एक दूसरे पुलिस अधिकारी ने कहा कि मुंबई पुलिस अपने कार्मिकों में कम इम्यूनिटी की समस्या से ग्रसित है, रहने के ख़राब हालात, ड्यूटी के लम्बे घंटे, सिपाहियों और मध्य स्तर के पुलिसकर्मियों की फिटनेस से ये समस्या और गहरा गई है.
सीनियर ऑफिसर ने कहा, ‘सीनियर लेवल के ऑफिसर्स की फिटनेस बहुत अच्छी होती है क्योंकि एक सुडौल शख़्सियत अकसर उच्च-स्तर के प्रमोशन हासिल करने में मददगार साबित होती है. ये कोई आदर्श नहीं है. लेकिन टॉप लेवल के पुलिस अधिकारियों में आसानी से कोई बेडौल शरीर वाला दिखाई नहीं देगा.’ उन्होंने आगे कहा, ‘सिपाहियों और मध्य-स्तर के कार्मिकों में, फिटनेस को लेकर ज़्यादा गंभीरता नहीं है.’
ऑफिसर ने ये भी कहा कि 65 प्रतिशत से अधिक मुंबई पुलिसकर्मी, बड़े परिवारों के साथ स्लम्स, चाल, और छोटे फ्लैट्स में रहते हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘बहुत सारे मामलों में उन्हें सार्वजनिक शौचालय के लिए लाइन लगानी पड़ती है. उनकी पत्नियां उनकी पोषण की ज़रूरतों से वाक़िफ़ नहीं होतीं.’ उन्होंने ये भी कहा,’ऐसे विपरीत हालात में, सेहत कहीं पीछे छूट जाती है.’
महाराष्ट्र महामारी विज्ञान सेल के प्रमुख प्रदीप अवाते ने कहा, ‘पुलिस कर्मी औसत आदमी की अपेक्षा ज़्यादा लोगों से मिलते-जुलते हैं, जो उन्हें भारी जोखिम में डाल देता है. भले ही वो हेल्थ केयर वर्कर्स जितना न हो. इसके अलावा, लम्बी ड्यूटी, घर से दूर तैनाती, और खाने के अनियमित समय का भी पुलिसकर्मी की सेहत पर असर पड़ता है, जिससे उनका जोखिम बढ़ जाता है.’
लेकिन पुलिस सुधारों पर काम कर रही कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के सीनियर एडवाइज़र माजा दारूवाला ने कहा कि समस्या अफसरशाही की भी है, जो बल के निचले तबक़े की केयर नहीं कर रहे.
दारूवाला ने कहा, ‘आबादी के एक हिस्से में इतनी अधिक बीमारी, कई चीज़ों का परिणाम है. ख़ासकर लीडरशिप द्वारा लम्बे समय से सिपाहियों के कल्याण पर तवज्जो न देना का.’ दारूवाला ने ये भी कहा कि लोगों से मिलते समय क्या एहतियात बरतनी चाहिएं, इसे लेकर भी सिपाही अकसर पर्याप्त रूप से जागरूक नहीं होते, जिसपर रोज़ाना ज़ोर देने की ज़रूरत है.
लॉकडाउन ड्यूटी
ज़मीन पर तैनात पुलिसकर्मियों का कहना है कि कोविड-19 मोर्चे पर ड्यूटी के लम्बे घंटे तनावपूर्ण रहे हैं और वो संक्रमण को लेकर संवेदनशील हो गए हैं.
लॉकडाउन के दौरान, हर थाने की आधी से अधिक फोर्स, बंदोबस्त और कोविड संवेदनशील इलाक़ों में लगी होती है और बाक़ी पुलिसकर्मी अपराध रोकने, संज्ञेय अपराधों की तफतीश करने और किसी भी क़ानून- व्यवस्था की स्थिति से निपटने का काम करते हैं.
पुलिस थानों को ये अतिरिक्त काम भी दिए गए हैं कि वो प्रवासियों का मूवमेंट चेक करें. क्वारंटीन सुविधाओं को देखें और सुनिश्ति करें कि प्रवासी श्रमिक ट्रेन्स पकड़ने के लिए, अलग अलग रेलवे स्टेशनों पर पहुंच जाएं. प्रवासियों के मूवमेंट को लेकर पुलिस थानों को, आपस में भी तालमेल रखना पड़ता है, और उसी हिसाब से लॉकडाउन आदेशों को भी लागू कराना होता है.
जिन पुलिसकर्मियों से दिप्रिंट ने मुलाक़ात की उनमें से अधिकतर काम में बुरी तरह फंसे थे. हालांकि काम का ये बोझ कम हो जाएगा जब एक जून से श्रमिक ट्रेनों के लिए पंजीकरण बंद हो जाएगा, क्योंकि अधिकतर प्रवासी घर लौट चुके हैं.
एक सिपाही ने कहा, ‘ये पूरी तरह से क्लर्कों वाला काम है. मुझे नहीं पता कि ये काम पुलिस को क्यों दिया गया है.’ उसने आगे कहा, ‘हमें अपने काम के लिए छोड़ देना चाहिए, जो अपराध का पता लगाना, और क़ानून का पालन कराना है.’
लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही, मुम्बई पुलिस ने सभी छुट्टियां रद्द कर दी हैं. एक दूसरे सिपाही ने दिप्रिंट को बताया, ‘हर पुलिस कर्मी सड़क पर काम कर रहा है. हम सैनिकों की तरह हैं.’ उसने आगे कहा कि मुम्बई में पुलिसकर्मियों की भारी कमी है.
पुलिस के बहुत से सिपाहियों ने कोविड-19 के तौर-तरीक़ों को लेकर भी सवाल उठाए. जिन्होंने उन्हें जोखिम में डाल दिया है. उनमें सबसे प्रमुख वो प्रोटोकोल है, जिसके तहत पुलिसकर्मियों को कोविड-19 से मरे मरीज़ के शव के साथ, श्मशान घाट तक जाना पड़ता है, यदि वो मौत उनके इलाक़े में हुई हो.
अंधेरी पुलिस स्टेशन के एक 52 वर्षीय कॉन्सटेबल ने कहा, ‘हम पर्याप्त पीपीई के बिना ये काम कर रहे हैं और अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं.’ उसने आगे कहा, ‘अस्पताल में स्टाफ कम होने की वजह से, शव को लेने में समय लग जाता है. उसके बाद शवों की संख्या अधिक होने के कारण, दाह संस्कार की प्रक्रिया में भी 6 घंटे तक लग जाते हैं. कभी कभी तो हमारी पूरी शिफ्ट श्मशान घाट में ही गुज़र जाती है.’
सुरक्षा उपकरण दिए जाने के मामले में भी सवाल उठाए जा रहे हैं. अधिकतर बलों को पुलिस का लोगो लगे हुए कपड़े के मास्क और सैनिटाइज़र्स दिए जा रहे हैं. एक दूसरे पुलिसकर्मी ने कहा ‘हमें फेस शील्ड्स और एन-95 मास्क मिलने चाहिएं.’ उसने ये भी कहा कि सिपाहियों के पास काम पर आने के सिवाय कोई चारा नहीं है, क्योंकि मना करने पर उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है, चूंकि अब महामारी अधिनियम 1897 लागू कर दिया गया है.
दिप्रिंट ने मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह, ज्वाइंट कमिश्नर (क़ानून व्यवस्था) विनॉय कुमार चौबे और पुलिस प्रवक्ता प्रणॉय अशोक से सम्पर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है. उनका जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
लेकिन, ज्वाइंट कमिश्नर (प्रशासन) नवल बजाज ने कहा कि कपड़े के मास्क काफी हैं. ‘अगर आप किसी अस्पताल के अंदर या कोविड-19 पॉज़िटिव मरीज़ के क़रीबी सम्पर्क में नहीं जा रहे हैं, तो कपड़े का मास्क काफी होता है.’
मुंबई पुलिस विभाग की ओर से जारी एक प्रेस नोट में भी कहा गया कि उसने 13,350 फेस शील्ड्स, 2,500 एन-95 मास्क, और 2.61 लाख कपड़े के मास्क वितरित किए हैं. लेकिन कॉन्सटेबल्स की 46,000 की संख्या को देखते हुए, एन-95 मास्क और फेस शील्ड्स की संख्या अभी भी नाकाफी है.
फोर्स ने पॉज़िटिव पाए जाने वाले अपने कार्मिकों के लिए, पूरे शहर में फ्री केयर सेंटर्स भी खोले हैं. बजाज ने कहा, ‘महामारी के दौरान हम (पुलिसकर्मियों की मदद की) हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं.’ उन्होंने आगे कहा कि पुलिसकर्मियों के लिए, कुछ दूसरे प्रावधान भी किए जा रहे हैं, जैसे कि मुफ्त इलाज, कोविड सेंटर में फ्री स्टे, फ्री राशन वाउचर्स, फ्री दवाएं, फ्री विटामिन्स, पॉजिटिव पाए जाने पर 10 हज़ार रुपए, और मुश्किल समय से निपटने के लिए एक लाख रुपए का लोन.
उन्होंने कहा कि पुलिसकर्मियों के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन, एक एम्बुलेंस सेवा और कोविड-19 जांच के लिए फ़ीवर क्लीनिक्स की सुविधा दी गई है. इसके अलावा हल्के लक्षण वाले पुलिसकर्मियों और उनके परिवार वालों के लिए, मरोल और कलीना में 900 की क्षमता के, दो नए कोविड केयर सेंटर्स भी बनाए गए हैं.
राज्य सरकार ने इस बीमारी से मारे जाने वाले कार्मिकों के लिए, दस लाख की अनुग्रह राशि का भी ऐलान किया है. अभी तक ऐसे तीन कर्मियों के परिवारों को ये राशि मिल चुकी है.
परिवारों को जोखिम
पुलिसकर्मियों के सामने एक बड़ी चिंता है. उनके परिवार के संक्रमित होने का डर. ड्यूटी के दौरान पुलिसकर्मियों को भले ही संरक्षण मिल रहा हो, लेकिन उनके घर और परिवार पर ख़तरा बना रहता है.
आज़ाद मैदान पुलिस स्टेशन में काम करने वाले, एक पुलिस इंस्पेक्टर की पत्नी लीना गायकवाड़ ने बताया, ‘मैं सुबह 3 बजे तक सो नहीं पाती, बस यही चिंता रहती है कि कहीं वो वायरस लेकर तो नहीं लौटेंगे.’ उन्होंने बताया कि उनके 42 वर्षीय पति ने उनसे कहा था कि अपने दोनों बच्चों को लेकर वो अपने पैतृक स्थान पर चली जाए. लेकिन उन्होंने मना दिया, क्योंकि उन्हें पति की सेहत की चिंता थी. उन्होंने कहा, ‘देखकर दुख होता है कि वो अपने 3 साल के बेटे को गले नहीं लगा सकते.’
धारावी में ड्यूटी कर रहे 23 वर्षीय कॉन्सटेबल केतन जगताप ने कहा कि उनके जैसे कार्मिक बहुत चिंता में हैं, क्योंकि वो लौटकर एक कमरे के घर में आते हैं, जिसमें तीन-चार सदस्य रहते हैं.
उसने कहा, ‘सरकार को हमारे परिवारों को और सुविधाएं देनी चाहिएं, और सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी हर हफ्ते जांच हो. अगर हमारे परिवार संरक्षित हैं, तो हम तनाव-मुक्त होकर काम कर सकते हैं.’
नागपाड़ा पुलिस स्टेशन के पुलिस मुख्यालय पर, एक 49 वर्षीय असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर की पत्नी, जो ग्राउण्ड फ्लोर पर रहती हैं, उन्होंने दिप्रिंट को ग्राउण्ड फ्लोर से दूर रहने को कहा, क्योंकि वहां एक सिपाही की कोविड-19 से मौत हो गई थी, लेकिन न तो फ्लोर को सैनिटाइज़ किया गया, और न ही पड़ोसियों की जांच कराई गई.
बाहर पड़े कचरे के ढेर और बिल्डिंग की ख़स्ता हालत की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ‘पॉज़िटिव केस वाली दूसरी बिल्डिंग्स सैनिटाइज़ की जाती हैं और वहां पड़ोसियों की स्क्रीनिंग भी होती है. लेकिन पुलिस क्वार्टर्स को छोड़ दिया जाता है.’ उन्होंने ये भी कहा कि ये बिल्डिंग किसी वक़्त भी गिर सकती है, लेकिन शिकायतों के बावजूद यहां कोई मरम्मत नहीं की जाती.
बजाज ने बताया, ‘हमने पुलिस स्टेशंस को अब दिन में दो बार सैनिटाइज़ करना शुरू कर दिया है, कुछ चीज़ें ही हैं जो हम कर सकते हैं.’
दारूवाला ने कहा, ‘सिपाहियों के रहने के ख़राब हालात की तरफ, बहुत लम्बे समय से ध्यान नहीं दिया गया है, और यही हाल उनके काम करने की स्थिति का है, जबकि अफसरों के जीवन में बेहतर सुविधाएं और आवास हैं.’
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