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Friday, 27 September, 2024
होमदेशअपराधियों की तरह महसूस करते हैं : मुंबई के डॉक्टर, निकाय के सख्त कोविड परीक्षण नियमों से क्यों नाराज हैं

अपराधियों की तरह महसूस करते हैं : मुंबई के डॉक्टर, निकाय के सख्त कोविड परीक्षण नियमों से क्यों नाराज हैं

बीएमसी के दिशानिर्देश कहते हैं कि डॉक्टरों को परीक्षण करने से पहले रोगियों की शारीरिक जांच करनी होती है, ऐसा नहीं करने पर वे अपना लाइसेंस खो सकते हैं.

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मुंबई: मुंबई में डॉक्टर्स नगर निगम ग्रेटर मुंबई (एमसीजीएम ) द्वारा निर्धारित नियमों के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं, बीएमसी के दिशानिर्देश उन्हें परीक्षण को करने से पहले कोविड-19 लक्षणों के लिए एक मरीज को शारीरिक रूप से जांच करने के लिए आदेश देता हैं, जिसमें विफल रहने पर उनके लाइसेंस जब्त कर लिए जाएंगे.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के दिशानिर्देशों के अनुसार, निजी प्रयोगशालाओं में कोरोना के लिए परीक्षण केवल एक योग्य चिकित्सक द्वारा निर्धारित किए जाने पर किया जाना चाहिए. आईसीएमआर दिशानिर्देशों में शारीरिक परीक्षा का कोई उल्लेख नहीं है.

लेकिन 10 मई को जारी किए गए एमसीजीएम दिशानिर्देशों में कहा गया है कि चिकित्सकों को कोरोना के परीक्षणों को निर्धारित करने से पहले एक मरीज की शारीरिक जांच करने के लिए एक फॉर्म भरने की जरूरत है.

दिशानिर्देशों के अनुसार, यदि डॉक्टर ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो वे एमसीआई (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) पंजीकरण रद्द करने सहित कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होंगे.’

चिकित्सा सलाहकार समूह के अध्यक्ष डॉ दीपक बैद ने कहा कि ‘एक डॉक्टर को इस प्रकार का एक फार्म भरने के लिए मजबूर करना और यह भेजना कि नीचे कोई डिस्क्लेमर है कि अगर मैं कोई गलत काम करता हूं तो मेरा लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा, यह तर्कसंगत नहीं है.’

उन्होंने कहा कि कुछ डॉक्टरों ने एमसीजीएम पर आरोप लगाया है, जिसे बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के रूप में भी जाना जाता है, मुंबई में कोविड के मामलों के सख्त परीक्षण दिशानिर्देश जारी किए हैं क्योंकि कम परीक्षण से कम लोगों को पहचान होती है.

एसोसिएशन ने 19 मई को भी मुंबई नगर निगम के आयुक्त को लिखा था, निकाय को दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए डॉक्टरों के लाइसेंस को रद्द करने के अपने फैसले को वापस लेने का आग्रह किया क्योंकि यह ‘स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के मनोबल को कम करता है.’

बैद ने कहा कि नगर निगम ने अभी भी इस मामले का संज्ञान नहीं लिया है.

उन्होंने यह भी कहा कि एक डॉक्टर का लाइसेंस रद्द करना सरकार का विशेषाधिकार नहीं है, लेकिन एमसीआई का है.

‘यह (फॉर्म) एक डॉक्टर द्वारा प्रयोगशाला में परीक्षण का अनुरोध है. महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल भी इस पर उतर आया और कहा कि सरकार को किसी भी डॉक्टर के लाइसेंस को रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है.

दिप्रिंट ने एमसीजीएम के अतिरिक्त नगर आयुक्त सुरेश काकानी से संपर्क किया, जो मुंबई के स्वास्थ्य मामलों के प्रभारी भी हैं, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशन तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

जब दिप्रिंट आईसीएमआर के प्रवक्ता रजनीकांत श्रीवास्तव के पास पहुंचा, तो उन्होंने कहा कि शीर्ष अनुसंधान निकाय इस मामले में शामिल नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘राज्य अपनी नीतियां तय करते हैं,’ उन्होंने कहा: ‘एमसीआई इस पर निर्णय ले सकता है क्योंकि सभी डॉक्टर एमसीआई के तहत पंजीकृत हैं.’

एमसीजीएम के अनुसार, 2 जून तक, मुंबई में 41,986 मामले और 1,368 मौतें हुईं.

‘नोटिस से हम अपराधियों की तरह महसूस करते हैं’

दिशानिर्देश जारी करने के अलावा, एमसीजीएम ने 17 मई को एक नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया कि डॉक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए, जिन्होंने शारीरिक रूप से रोगियों की जांच किए बिना परीक्षण किए.

नोटिस में लिखा है कि ‘यदि कोई एमओएच (स्वास्थ्य का चिकित्सा अधिकारी) पाता है कि स्थानीय निजी चिकित्सा शारीरिक परीक्षण के बिना बाहरी क्षेत्र के व्यक्तियों को स्वाब परीक्षण के लिए सिफारिश पत्र दे रही है, तो ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है क्योंकि पंजीकरण के लिए कारण बताओ नोटिस रद्द किया जा सकता है. स्थानीय पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज करने के लिए आदेश दिया जा सकता है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, महाराष्ट्र, के अध्यक्ष डॉ. अविनाश भोंडवे के अनुसार, डॉक्टरों को एमसीजीएम के नियमों का उल्लंघन करने के लिए 20 नोटिस जारी किए जा चुके हैं.

भोंडवे ने दिप्रिंट को बताया, ‘वे (नोटिस) बाद में वापस ले लिए गए. मैंने व्यक्तिगत रूप से स्वास्थ्य सचिव से बात की और मामले को तुरंत हल कर दिया गया.’

बैद ने कहा कि वार्ड अधिकारियों द्वारा या तो इस आधार पर नोटिस जारी किए गए थे कि शारीरिक परीक्षा आयोजित नहीं की गई थी या उन लोगों के लिए परीक्षण निर्धारित किए गए थे, जो असिम्पटोमैटिक थे.

भोंडवे के अनुसार, ‘हर छोटी चीज के लिए, सरकार नोटिसों को जारी कर रही है और यह गलत है. हमने उस बारे में शिकायत की थी. डॉक्टरों का सम्मान किया जाना चाहिए, जिस तरह से वे ये नोटिस जारी कर रहे हैं, उससे हमें अपराधियों जैसा महसूस होता है.’

मरीजों का उत्पीड़न

डॉक्टरों के खिलाफ कठोर दंड के अलावा नियमों ने मरीजों के लिए कठिनाइयों को बढ़ा दिया है.

मुंबई के दो निजी कोविड अस्पतालों के एक चिकित्सक डॉ शाहिद बरमारे ने दिप्रिंट को बताया कि हर दिन दो या तीन रोगी फिर से फॉर्म भरने के लिए उनके पास वापस आते हैं.

उदाहरण के लिए, ‘अगर मैं लैब का नाम लिखता हूं, जैसे कि मेट्रोपोलिस और मरीज मेट्रोपोलिस जाता है और पाता है कि उनकी अपॉइंटमेंट पूरी हो चुकी हैं, उन्हें अपॉइंटमेंट पाने से पहले दूसरे फॉर्म को भरने के लिए मेरे पास वापस आना होगा. इसलिए मरीज को इधर-उधर भागना पड़ता है.

अन्य राज्यों में प्रोटोकॉल

एमसीजीएम की तरह, गुजरात में सरकार ने भी सख्त प्रतिबंधों को लागू किया था, जिसके आधार पर स्वास्थ्य अधिकारियों से कोविड परीक्षण के लिए अनुमोदन की आवश्यकता है.

अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ मोना देसाई ने कहा, ‘यह बहुत मुश्किल था. हमें दो पेज का फॉर्म भरना था और इसे सीडीएचओ (मुख्य जिला स्वास्थ्य अधिकारी) को मेल करना था और तब भी हमें पांच-छह दिनों के लिए मंजूरी नहीं मिलती.’

गुजरात उच्च न्यायालय, जो एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था, रविवार को एक राहत देते हुए ने कहा कि परामर्श चिकित्सक के निर्णय के आधार पर परीक्षण की अनुमति दी जानी चाहिए और इस संबंध में केवल एक सूचना अधिकारियों को दी जानी चाहिए.

यह आदेश में निर्दिष्ट रोगियों की कुछ श्रेणियों पर लागू होता है.

बुधवार दोपहर तक, स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, गुजरात में कुल 17,617 कोविड मामले दर्ज हुए.

दिप्रिंट ने दिल्ली और पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों से बात की, जिन्होंने कहा कि कोविड परीक्षण के लिए एक सामान्य प्रिस्क्रिप्शन पर्याप्त है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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