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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशमोदी-ट्रंप व्यापार युद्ध से आनंदित हैं हिमाचल के सेब उत्पादक

मोदी-ट्रंप व्यापार युद्ध से आनंदित हैं हिमाचल के सेब उत्पादक

अच्छी पैदावार से पहले ही संतुष्ट हिमाचल के सेब उत्पादकों को अमेरिकी सेबों पर आयात शुल्क को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 70 प्रतिशत करने के मोदी सरकार के फैसले का अतिरिक्त फायदा मिला है.

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शिमला: भारत के 28 अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने के जून में लिए गए कदम के बाद जहां डोनल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के व्यापार युद्ध की समाप्ति का इंतजार किया जा रहा है, वहीं इसकी वजह से हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादकों को इस साल अप्रत्याशित मुनाफे की उम्मीद है.

बंपर फसल से पहले ही उत्साहित करीब 1.22 लाख सेब उत्पादकों को व्यापार युद्ध का अतिरिक्त फायदा मिल रहा है, क्योंकि बढ़े शुल्क की सूची में अमेरिकी सेब भी शामिल है. मोदी सरकार ने अमेरिका से आयातित सेबों पर शुल्क को 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 70 प्रतिशत कर दिया है.

राज्य के सेब उत्पादकों का कहना है कि शुल्क में भारी वृद्धि का फौरी फायदा देखने को मिल रहा है, क्योंकि कुल आयातित सेबों में से लगभग 30 से 35 प्रतिशत अमेरिकी सेब हुआ करते हैं.

वाणिज्य मंत्रालय के अधीनस्थ संस्था कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के पूर्व निदेशक प्रकाश ठाकुर कहते हैं, ‘मेरी अभी-अभी अमेरिकी सेबों के दिल्ली स्थित एक आयातक से बात हुई है. उसने शुरू में ही अमेरिका से आयात में 20 फीसदी कटौती करने का फैसला कर लिया है.’

हालांकि ठाकुर के अनुसार, हिमाचली सेबों को अन्य देशों से आयातित सेबों का मुकाबला तो करना ही होगा.

उन्होंने कहा, ‘चिली, तुर्की और पोलैंड जैसे देशों से सेबों के आयात पर शुल्क 50 प्रतिशत ही बना रहेगा. फिर भी अमेरिका से आयात में कमी से बाज़ार में हमारे सेबों के लिए जगह बनेगी.’

शुल्क के बढ़े स्तर को स्थाई करने की मांग

खुद बागवानी से जुड़े ठाकुर का कहना है कि अमेरिकी सेबों पर आयात शुल्क के बढ़े स्तर को स्थाई बना दिया जाना चाहिए और साथ ही अन्य देशों से आयातित सेबों को भी बढ़े शुल्क के दायरे में लाया जाना चाहिए.


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हाल में संपन्न लोकसभा चुनावों के दौरान सेबों पर आयात शुल्क बढ़ाने का विषय राज्य में चुनावी मुद्दों में शामिल था.

राज्य विधानसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक और जुब्बल-कोटखाई से पार्टी विधायक नरेंद्र बरागटा कहते हैं, ‘वो तो यूपीए सरकार थी जो इस मुद्दे पर ना-नुकुर कर रही थी.बागवानी मंत्री रहते हुए मैंने खुद इस मुद्दे को यूपीए के वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा के समक्ष उठाया था, जो कि शिमला के ही हैं. उन्होंने मुझे लिख कर सूचित किया था कि विश्व व्यापार संगठन के नियमों के मुताबिक आयात शुल्क बढ़ाया नहीं जा सकता. पर, अब मोदी जी ने ये काम कर दिखाया है.’

उत्पादक इस समय अनुकूल परिस्थितियों का जम कर फायदा उठा रहे हैं.

मुख्य सेब उत्पादक इलाकों जुब्बल-कोटखाई, कोटगढ़, रोहड़ू, चौपाल और थानेदार में पैदावार के मौसम ने अभी रफ्तार पकड़ी ही है. कुल्लू, मंडी और चंबा से सेब की खेप 15 अगस्त के बाद निकलनी शुरू होगी, जबकि किन्नौर के सेब नवंबर-दिसंबर तक बाज़ारों में पहुंचेंगे.

अभी अगस्त के पहले सप्ताह तक, राज्य से सेब की 28 लाख पेटियां बाहर भेजी जा चुकी हैं. हर दिन 1.5 से 2.25 लाख पेटियां भेजी जा रही हैं और इनकी संख्या अगले सप्ताह से बढ़ने की उम्मीद है.

राज्य के बागवानी विभाग का आकलन है कि इस साल राज्य से सेब की करीब चार करोड़ पेटियां बाज़ार में पहुंचेंगी. पिछले साल के मुकाबले ये दोगुनी संख्या है.

सेब पट्टी के उत्पादकों को घर बैठे फायदा

राज्य की सेब पट्टी में अमेरिकी आयात पर शुल्क बढ़ाए जाने का सकारात्मक असर दिखना शुरू भी हो गया है, हालांकि उत्पादक इसके पीछे इस बार सेब की बेहतर गुणवत्ता का योगदान बताते हैं.

कोटखाई इलाके के धांगवी गांव के किसान मोतीलाल चौहान ने बताया कि उन्हें अपने बगान में ही सेबों की बहुत बढ़िया कीमत मिल गई.


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चौहान ने बताया, ‘हमने 2,500 पेटियों के अपने कुल पैदावार पर प्रति पेटी 3,200 रुपये की कीमत पाई है. लुधियाना की एक कंपनी ने ये खरीद की है जो दुबई, सिंगापुर और मनीला को सेब का निर्यात करती है. उन्होंने बगान के स्तर पर ही कुल 80 लाख रुपये का ये सौदा कर लिया. मेरे सेब अमेरिकी किस्मों को कड़ी टक्कर दे सकते हैं. ये सब अच्छे रूटस्टॉक के चयन और बेहतर बागवानी प्रबंधन के कारण संभव हो सका, जिसके लिए मैंने बहुत मेहनत की थी.’

उन्होंने बताया कि उपरोक्त सौदे के बाद भी उनके पास 3,200 के करीब सेब पेटियां बेचने के लिए उपलब्ध हैं. चौहान ने पिछले साल अधिकतम 3,000 रुपये प्रति पेटी के दर से बिक्री की थी.

इसी इलाके के एक अन्य उत्पादक ने शिमला के थोक बाज़ार में 3,800 रुपये प्रति पेटी के हिसाब से सेब बेचने का दावा किया.

हिमाचल में सेब क्रांति के जनक माने जाने वाले स्टोक्स परिवार के 51 वर्षीय संदीप सिंघा ने बताया, ‘कीमतें अच्छी इसलिए मिल रही हैं, क्योंकि उत्पादकों ने सर्वोत्तम बागवानी पद्धतियों को अपनाना शुरू कर दिया है. जिन किसानों ने अपने 30-40 साल पुराने पेड़ों को हटा कर उनकी जगह इटली, अमेरिका और न्यूज़ीलैंड से मंगाए रूटस्टॉक लगाए थे, वे आज अच्छी पैदावार कर रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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